दूध व्यवसाय के विभिन्न घटक

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दूध की खरीद: 3 मुख्य चरण | Procurement of Milk

By Dr Savin Bhongra

1. दुग्ध एकत्रीकरण (Milk Collection)
2. दूध का अवशीतलन (Chilling of Milk)
3. दुग्ध प्राप्ति तथा गुणवत्ता परीक्षण (Receiving and Quality Testing of Milk).

”दूध को उत्पादकों से एकत्र करके परिवहन (Transportation) से लेकर डेरी प्लेट फार्म (Dairy Platform) पर प्राप्त (Receive) किये जाने तक की क्रियाएँ दुग्ध प्राप्ति (Milk Procurement) के अन्तर्गन आती है ।”

इस तरह से इस क्रिया में निम्नलिखित चार उपक्रियाओं का समावेश हो जाता है:

1. दुग्ध एकत्रीकरण

2. दूग्ध सयन्त्र पर दूध प्राप्त करना

3. दूध का अवशीतलन

4. दुग्ध प्राप्ति एवं गुणवत्ता परीक्षण

1. दुग्ध एकत्रीकरण (Milk Collection):

बडे नगरों में दूध की माँग अधिक होती है जिसकी पूर्ति के लिए आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से दूध को एकत्र करके प्रसंस्करण उपरान्त उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाता है । शहरों में या उनके नजदीकी क्षेत्रों में दूध प्रसंस्करण (Milk Processing) बडे पैमाने पर सरकारी दुग्ध योजनाओं, सहकारी तन्त्र या निजी डेरियों तथा छोटे व्यापारियों द्वारा किया जाता है ।

गाँव में एकत्रीकरण केन्द्र (Collection Centre) पर निम्नलिखित क्रियाएं सम्पन्न होती है:

i. दूध को एकत्र करना (Milk Assembling)

ii. दूध को तोलना (Milk Weighting)

iii. दूध का परीक्षण (Testing of Milk)

iv. दूध को ठण्डा करना (Cooling of Milk)

v. दूध को वाहन में भरना (Loading of Milk)

vi. दूध का परिवहन (Transportation of Milk to Dairy Plant)

दुग्ध संयंत्र पर दूध प्राप्त करना (Milk Collection at Dairy Plant):

डेरी संयंत्र पर दूध पहुँचने पर उसे प्राप्त करने में निम्नलिखित क्रियाएँ सम्पन्न की जाती है:

i. दूध उतारना (Unloading of Milk)

ii. डेरी मंच पर दुग्ध परीक्षण (Milk Testing at Dairy Platform)

iii. दूध के डिब्बों को खाली करना (Empting of Milk Cans or Dumping of Milk)

iv. दूध को तोलना (Weighing of Milk)

v. दूध को अवशीतित करना (Chilling of Milk)

डेरी संयंत्र पर प्रसंस्करण होने तक दूध को ठण्डा करके संग्रह टैंकों (Storage Tanks) में रखा जाता है ।

दुग्ध पास्तुरीकरण प्रक्रिया में निम्नलिखित क्रियाएं सम्पन्न की जाती है:

i. दूध का मानकीकरण (Standardization of Milk)

ii. दूध का छानना (Milk Filtration)

iii. दूध का पूर्वतापन (Preheating of Milk)

iv. दूध का निरोगन (Milk Pasteurization)

v. दूध को ठण्डा करना (Cooling of Milk)

vi. दूध का पैकिंग (Packing of Milk)

दुग्ध प्राप्ति की दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Milk Collection Efficiency):

दूध को दक्षतापूर्ण (Efficiency) प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित 6 बिन्दुओं की पूर्व जानकारी होना आवश्यक है:

i. क्षेत्र में विपण्य तथा विपणित आधिक्य दूध की मात्रा (Marketable and Marketed Surplus of Milk in the Region)

ii. दुग्ध प्राप्ति की विभिन्न विधियां एवं प्रणालियाँ (Various Systems and Methods of Milk Procurements)

iii. कच्चे दूध के लिए मूल्य निर्धारण की नीति (Pricing Policy for Raw Milk)

iv. कच्चे दूध के लिए भुगतान की विधियाँ एवं प्रणालियाँ (Methods and Systems of Payment for Raw Milk)

v. दुग्ध परिवहन का प्रबन्धन (Management of Milk Transportation)

vi. दूध को ठण्डा एवं प्रशीतित करने का प्रबन्धन (Cooling or Chilling of Milk at Collection, Assembling, and Chilling Centers)

vii. दुग्ध प्राप्ति पर परिव्यय का आंकलन (Cost Estimation/Analysis of Milk Procurement)

2. दूध का अवशीतलन (Chilling of Milk):
उद्देश्य तथा महत्व (Objective and Importance):

दूध, क्षरण पन्धियों से जीवाणुमुक्त अवस्था में प्राप्त होता है परन्तु अयन या थनों में उपस्थित जीवाणु तथा बाहर का वातावरण दूध को संक्रमित (Contaminated) करता है । पशु के बैठने पर पशुशाला के फर्श से जीवाणु पशु के थनों के छिद्रों में प्रवेश पा जाते हैं जो दोहन के समय दूध में मिलकर उसमें आ जाते है ।

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अतः प्रथम दूध (Fore Milk) में जीवाणुओं की संख्या अधिकतम होती हैं । रोगाणुओं के लिए भी यह तापमान उपयुक्त होता है । दोहन के समय या बाद में प्रवेश पाने वाली भूल या हवा से भी जीवाणु दूध में प्रविष्ट होते हैं । दूध जीवधारियों की वृद्धि के लिए सवोंत्तम पोषक पदार्थ है । अतः जीवाणुओं को भी इसमें पूर्ण पोषण मिलता है तथा वे तीव्र गति से प्रवेश करते है ।

दूग्ध के तापमान तथा जीवाणु वृद्धि गुणांक सम्बन्ध को देखने पर स्पष्ट होता है दूध को दोहन पश्चात् शीघ्रतापूर्वक ठण्डा करने का बहुत अधिक महत्व है । दूध को 10 से 5०C ताप पर ठण्डा करके रखने के द्वारा जीवाणुओं की वृद्धि को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है जीवाणु वृद्धि दर घटने पर दूध में खटास देर में तथा कम मात्रा में उत्पन्न होती है । अपने देश का वातावरण गर्म है । अतः यहाँ दूध की ठण्डा करने का और भी अधिक महत्व बढ जाता है ।

दुग्ध प्रशीतन केन्द्र (Milk Chilling Centre):

जब दूध, दूग्ध संग्रह क्षेत्र से दुग्ध संयंत्र में पहुँचने में अधिक समय लगने की सम्भावना होती है तो उसे दुग्ध प्रशीतन केन्द्र पर ले जाकर ठण्डा किया जाता है । दुग्ध प्रशीतन केन्द्र दुग्ध उत्पादन क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं । ताकि उत्पादन के बाद न्यूनतम समय में उसे ठण्डा किया जा सके ।

दूध को ठण्डा करने के लिए सामान्यतया प्लेट-टाईप शीतकों का उपयोग किया जाता है । इन केन्द्रों पर दूध के प्राप्ति के समय तोलकर, नमूना भर कर व परीक्षण करके प्राप्त दूध का श्रेणीकरण करते हैं तत्पश्चात गुणवत्ता अनुसार अलग-अलग रख कर उसे ठण्डा करते है ।

3. दुग्ध प्राप्ति तथा गुणवत्ता परीक्षण (Receiving and Quality Testing of Milk):
दुग्ध क्षेत्रों में दुध के एकत्रीकरण के बाद उसे दूध संयंत्र या दूध प्रशीतन केन्द्र पर ले जाया जाता है । इन स्थानों पर प्राप्ति के समय होने वाली क्रियाएँ थोडी भिन्नता के साथ लगभग समान है ।

ये क्रियाएं निम्नलिखित हैं:

A. दुग्ध अवशीतलन केन्द्र परे आवश्यक क्रियाएं:

1. Collection of Milk

2. Testing of Milk

3. Weighing of Milk

4. Cooling of Milk

5. Transportation of Milk

B. दुग्ध संयंत्र पर दुग्ध प्राप्ति क्रियाएं:

1. Unloading of Milk

2. Grading of Milk

3. Sampling of Milk

4. Weighing of Milk

5. Testing of Milk

प्राप्त दूध की गुणवता, उससे बनने वाले दुग्ध पदार्थों की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है । डेरी संयंत्र पर दुग्ध प्राप्ति के समय उसका तापमान 5०C से अधिक नहीं होना चाहिए । दूध साफ, स्वच्छ, निर्मल व उत्तम स्वास युक्त होना चाहिए ।

दूध में Antibiotics, Pesticides या Preservatives आदि की उपस्थिति आवांछनीय है । असामान्य तथा उच्च अम्लता युक्त दूध को प्राप्त नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे दूध की Heat Stability कम होती है । दूध दोहन के 3-4 घण्टे के अन्दर दुग्ध प्राप्ति तथा शीतलन का कार्य पूर्ण हो जाना चाहिए । विलम्ब होने पर दूध की गुणवत्ता में गिरावट आने लगती है ।

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दुग्ध प्राप्ति के समय होने वाली क्रियाएं:

1. उतारना (Unloading):

डेरी प्लेट फार्म पर दूध को उतारने में सुविधा के लिए दूध लाने वाले ट्रक तथा प्लेटफार्म का तल समान होना चाहिए । दूध के डिब्बों को इक में से हाथ (Manually) द्वारा उतारा जाता है । अतः उतारते समय भी डिब्बों को श्रेणीकरण (Grading) के लिए एक निश्चित क्रम में रख लेना चाहिए । टैंकर में आये दूध को पम्प द्वारा प्राप्त किया जाता है । टैंकर में पम्प लगाने से पहले सभी आवश्यक परीक्षण कर लेने आवश्यक होते हैं ।

2. श्रेणीकरण (Grading):

दूध का Dairy Plant या Chilling Centre पर श्रेणीकरण करने के लिए Platform Test किये जाते हैं । इस वर्ग में वे सभी परीक्षण आते हैं जो दूध की प्राप्ति के समय प्लेटफार्म पर किये जाते है ।

प्लेटफार्म परीक्षण (Platform Tests):

परीक्षणों में अधिकतर संवेदी परीक्षण (Sensory Test or Organoleptic Tests) आते हैं । जिनमें गन्ध (Flavour) ताप (Temperature) आभास (Appearance), छू कर देखना (Touch), अम्लता (Acidity) तथा तलछट (Sediment) परीक्षण मुख्य है ।

इन परीक्षणों द्वारा भी दूध को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय लिया जाता है । इन परीक्षणों में चूँकि समय बहुत कम लगता है अतः इन्हें Rapid Plateform Test भी कहा जाता है । ये परीक्षण करने से पहले दूध को अच्छी प्रकार से मिश्रित कर लेना चाहिए ।

इन परीक्षणों में दूध को चखकर कभी नहीं देखना चाहिए:

1. गन्ध (Smell):

गन्ध, दूध की गुणवता का एक बहुत अच्छा सूचक है । दूध का ढक्कन खोल कर, दूध को हिला कर, दुबारा ढक्कन लगा कर दूध को एक बार फिर हिलाते हैं तत्पश्चात दुध की गन्ध का अनुभव करते है । अनुभवी निरीक्षण गन्ध परीक्षण द्वारा दूध की अम्लता या अन्य अवांछनीय गन्ध का पता लगा लेते है ।

2. आभास या दिखावट (Appearance):

इस परीक्षण द्वारा दूध की सतह पर तैरते बाहय पदार्ष, अवांछनीय रग या आशिक रूप से मथने से बने मक्खन कणों की उपस्थिति का बोध होता है । दूध में अवांछनीय पदार्थ या रंग की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए ।

3. तापमान (Temperature):

तापमान का सीधा सम्बन्ध दूध में जीवाणुओं की संख्या तथा उनकी वृद्धि दर से है जो अन्तिम रूप से दूध की गुणवत्ता को प्रभावित करते है । डिब्बों को छूकर दूध के तापमान का अनुभव किया जाता है । प्राप्ति के समय दूध का तापमान वांछनीय है ।

4. तलछट (Sediment):

दूध में दिखाई देने वाले बाह्य पदार्थों का ज्ञान इस विधि द्वारा किया जाता है । दूध में तलछट न्यूनतम् होना चाहिए । न्यूनतम् तलछट का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि उसमें जीवाणुओं की संख्या भी न्यूनतम् होगी परन्तु इसका विपरीत हमेशा सत्य होता है अर्थात् तलछट अघिक होने पर जीवाणुओं की संख्या निश्चित रूप से अधिक होगी ।

5. अम्लता परीक्षण (Acidity Test):

दूध में प्राकृतिक अम्लता (0.14%) उसके स्वाद या गन्ध में खट्टापन का बोध नहीं करती है । परन्तु विकसित अम्लता (0.16%) होने पर खट्टापन आना प्रारम्भ हो जाता है । विकसित अम्लता दुग्ध प्रोटीन की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित करती है । अनुभवी निरीक्षक दूध को सूँध कर उसकी अम्लता का निर्णय कर लेते है ।

6. सी. ओ. बी. परीक्षण (Clot on Boiling Test):

दूध का उष्मा के प्रति स्थिरता (Heat Stability) परीक्षण के लिए परखनली में 5 ml दूध लेकर उबाला जाता है । खट्टा या असामान्य दूध उबालने पर फट जाता है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाता है ।

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7. वसा परीक्षण (Fat Tests):

दूध के मूल्य भुगतान तथा उसमें मिलावट का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वसा परीक्षण किया जाता है । दूध में वसा प्रतिशत वैधानिक मानकों के अनुसार होना चाहिए । वसा परीक्षण के लिए साधारणतः गर्बर विधि का प्रयोग करते हैं ।

8. आपेक्षिक घनत्व परीक्षण (Specific Gravity Test):

दूध में पानी तथा सप्रेटा दूध की मिलावट का पता लगाने के लिये लैक्टोमीटर पाठयांकों (Lactometer Reading) तथा उसका तापमान ज्ञात किया जाता है । प्राप्त पाठयाकों (Observations) के आधार पर दूध में वसा रहित ठोस पदार्थों की मात्रा की गणना भी की जा सकती है ।

वसा, वसा रहित ठोस तथा अपेक्षित घनत्व का परीक्षण दूध के मूल्य भुगतान के लिए भी आवश्यक है । पानी की मिलावट पर लैक्टोमीटर पाठयांक घटता है जबकि संप्रेटा दूध की मिलावट पर लैक्टोमीटर पाठयांक बढ़ता है । दूध से क्रीम निकाल लेने पर भी यह पाठयांक बढ जाता है ।

सामान्य दूध का, सामान्य तापमान पर लैक्टोमीटर पाठयांक 28 से 32 तक होता है । जो ताप बढ़ने पर घटता है तथा ताप घटने पर यह बढता है । शुद्ध सप्रेटा दूध का लैक्टोमीटर पाठयांक 40 होता है । जबकि आसुत पानी का लैक्टो मीटर पाठपाक 0 होता है ।

दूध का नमूना लेना (Sampling of Milk):

दूध में दुग्ध वसा तथा दुग्ध सीरम के घनत्व में भिन्नता के कारण वसा (कम घनत्व के कारण) दूध की सतह पर आकार एकत्र होती रहती है । अतः परीक्षण के लिए नमूने लेने से पूर्व दूध को अच्छी प्रकार से मिश्रित कर लेना चाहिए । नमूने का तापमान 15.7०C से 32.2०C उपयुक्त है ।

यदि दुग्ध नमूनों का परीक्षण विलम्ब से करना हो तो Mercuric Chloride, Formalin या Potassium Chromate मिला कर रखना चाहिए । इससे दूध की गुणवत्ता स्थिर बनी रहेगी ।

विभिन्न नमूनों को मूल दूध की मात्रा के अनुपात में मिलाकर बने एक मिश्रित नमूने को Composite कहते हैं । इसमें सम्मिलित होने वाले नमूनों में दूध ती मात्रा उसी अनुपात में होनी चाहिए जिस मात्रा (दूध) से वह नमूना लिया गया है अर्थात् नमूने की मात्रा दूध की मात्रा की अनुपातिक होनी चाहिए । मूल दूध की मात्रा के अनुरूप नमूनों की मात्रा लेकर Composite Sample बनाने के लिए उन्हें मिलाया जाता है ।

दूध के परीक्षण:

दूध की गुणवत्ता की गहन परीक्षा के लिए प्लेटफार्म परीक्षणों के अतिरिक्त निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं:

1. Acidity Test

2. Ethanol (Alcohol Test)

3. Clot-on-Boiling Test

4. Alcohol-Alizarin Test

5. Dye Reduction Test

6. Direct Microscopic Count

7. Lactometer Reading

8. Fat Test

9. Solids-Not Fat Estimation

दूध को तौलना (Weighing of Milk):

दूध से नमूना लेने के बाद डिब्बों को Weigh Tank में खाली करके दूध का भार ज्ञात कर लिया जाता है । भार को निर्धारित पंजिका में अंकित करते रहते हैं । टैंकर्स में भरे दूध का Flow Meter द्वारा आयतन ज्ञात करते हैं । आयतन को आ. घनत्व से गुणा करके दूध का भार ज्ञात कर लेते है ।

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