पंचगव्य बनाने की विधि

0
8178

पंचगव्य एक चमत्कारी जैविक खाद – जाने बनाने का तरीका

पंचगव्य एक जैविक खाद या प्राकृतिक सामग्री से बनी हुई जैविक विकास उत्तेजक औषधि है, जो पौधे के विकास को बढ़ाने के साथ ही मिट्टी के उपयोगी जीवाणुओं की सुरक्षा करता है। जिसमे मुख्य रूप से गाय का गोबर, गौ-मूत्र, दूध है, इसके साथ ही दो अन्य उत्पाद दही और घी भी होते हैं। इनको उचित अनुपात में मिश्रित करके खमीर के लिए छोड़ दिया जाता है। यह पंचामृत के समान मिश्रण है, जिसमे गोबर और गौ-मूत्र को शहद और चीनी के साथ बदल दिया जाता है। खमीर का उपयोग एक फेरमेंटर, केले, मूंगफली का केक और नारियल के पानी के रूप में किया जाता है, यह माना जाता है कि यह एक शक्तिशाली जैविक कीटनाशक के साथ ही विकास में बढ़ोत्तरी करने वाला उर्वरक है।

पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य अर्थात् गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बनाये जाने वाले पदार्थ को पंचगव्य कहा जाता है। प्राचीन समय में इसका प्रयोग खेती की उर्वराशक्ति को बढ़ाने के साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था। पंचगव्य एक अत्यधिक प्रभावी जैविक खाद है जो पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है और उनकी प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है। पंचगव्य का निर्माण देसी गाय के पांच उत्पादों से होता है क्योंकि देशी गाय के उत्पादों में पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व पर्याप्त व संतुलित मात्रा में पाये जाते हैं

पंचगव्य के लाभ

  • भूमि की उर्वराशक्ति में सुधार।
  • भूमि में हवा व नमी को बनाये रखना।
  • भूमि में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में बढ़ोतरी।
  • फसल में रोग व कीट का प्रभाव कम करना।
  • सरल एवं सस्ती तकनीक पर आधारित।
  • फसल उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता में वृद्धि।

पंचगव्य बनाने के लिए आवश्यक सामग्री और उसकी मात्रा

  • दूध 2 लीटर गाय का
  • गाय का दही 2 लीटर
  • गौ-मूत्र 3 लीटर
  • गाय का घी- आधा किलो
  • ताजा गोबर गाय का 5 किलो
  • गन्ने का रस 3 लीटर (अथवा 500 ग्राम गुड़ 3 लीटर पानी में)
  • नारियल का पानी 3 लीटर
  • पके केले 12

पंचगव्य के फायदे

सब्जियों, फलों और दूसरे कृषि उत्पादों की आयु को बढ़ाता है।पंचगव्य बड़ी पत्तियों और घने छत्र को पैदा करता है।उपज को बढ़ता है (अधिकांश मामलों  में, उपज 20 से 25 फीसदी तक बढ़ जाती है, कुछ मामलों में जैसे खीरा, उपज दोगुनी हो जाती है) और उत्पाद की गुणवत्ता को भी बढ़ाता है।यह फलों में मिठास और सुगंध के स्तर को बढ़ाता है।फसल को जल्दी तैयार कर देता है। (दो सप्ताह पहले फसल की कटाई की जा सकती है)।यह पानी की जरूरत को 25 से 30 फीसदी तक कम कर देता है, जिससे यह सूखे की स्थिति में भी जिंदा रहता है।इसके द्वारा बहुत ज्यादा और घनी जड़ें जो मिट्टी की गहराईयों को भेदते हुए चली जाती है उनका उपचार किया जा सकता है।रसायनिक खाद के मुकाबले अगर आप खुद इसे तैयार करते हैं तो आपकी खेती का खर्च भी कम हो जाएगा।व्यवसायिक खेती में अनुशंसित खाद और रसायन के छिड़काव के मुकाबले इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा फायदेमंद है।जैविक खेती क्षेत्र की बढ़ोत्तरी में भी यह मदद करता है।

READ MORE :  VARIOUS INDIGENOUS KNOWLEDGE (IK) /ETHNO VETERINARY MEDICINE (EVM) FOR HEALTHCARE PRACTICES USED IN ORGANIC LIVESTOCK FARMING IN INDIA

पंचगव्य बनाने की विधि 

  • प्रथम दिन 5 कि.ग्रा. गोबर व 1.5 लीटर गोमूत्र में 250 ग्राम देशी घी अच्छी तरह मिलाकर मटके या प्लास्टिक की टंकी में डाल दें।
  • अगले तीन दिन तक इसे रोज हाथ से हिलायें। अब चौथे दिन सारी सामग्री को आपस में मिलाकर मटके में डाल दें व फिर से ढक्कन बंद कर दें।
  • इस मिश्रण को 15 दिनों के लिए छाँव में रखना है और प्रतिदिन सुबह और शाम के समय अच्छी तरह लकड़ी से घोलना है|
  • इसके बाद जब इसका खमीर बन जाय और खुशबू आने लगे तो समझ लें कि पंचगव्य तैयार है। इसके विपरीत अगर खटास भरी बदबू आए तो हिलाने की प्रक्रिया एक सप्ताह और बढ़ा दें। इस तरह पंचगव्य तैयार होता है अब इसे 10 ली. पानी में 250 ग्रा. पंचगव्य मिलाकर किसी भी फसल में किसी भी समय उपयोग कर सकते हैं।
  • अब इसे खाद, बीमारियों से रोकथाम, कीटनाशक के रूप में व वृद्धिकारक उत्प्रेरक के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसे एक बार बना कर 6 माह तक उपयोग कर सकते हैं। इसको बनाने की लागत 70 रु. प्रति लीटर आती है।

पंचगव्य एकत्रित करने की विधि

पंचगव्य को छाया में और हर समय ढक कर रखा जाना चाहिए। इस मिश्रण की देखभाल करते रहना चाहिए ताकि कोई कीट मिश्रण में न गिरे और न ही इसमे कोई अंडे पैदा हो। इसे रोकने के लिए कंटेनर को हमेशा तार के जाल या प्लास्टिक ढक्कन के साथ बंद करके रखा जाना चाहिए।

उपयोग करने की विधि 

  • पंचगव्य का उपयोग अनाज व दाल (धान, गेहूँ, मंड़ुवा, राजमा आदि) तथा सब्जियों (शिमला मिर्च, टमाटर, गोभी व कन्द वाली) में किया जाता है।
  • छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है।
  • बीज उपचार से लेकर फसल की कटाई के 25 दिन पहले तक 25 से 30 दिन के अंतराल में इसका उपयोग किया जा सकता है।
  • प्रति  बीघा 5 लीटर पंचगव्य 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधों के तने के पास छिड़काव करें।
READ MORE :  बैकयार्ड पोल्ट्री/ शूकर से मनुष्यों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारियों से बचाव हेतु जैव सुरक्षा उपाय।।

पंचगव्य को निम्नलिखित प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है-

  • बीज व जड़ उपचार द्वारा: पंचगव्य के 3% घोल में बीज या जड़ को 10-15 मिनट तक डूबोने के बाद 30 मिनट तक छाया में सुखाकर बुवाई करें। 300 मि.ली. पंचगव्य 60 किलो बीज या जड़ का उपचार करने के लिए पर्याप्त होता है।
  • फल पेड़, पौधों और फसल पर छिड़काव करके: पंचगव्य के 3% घोल को फल पेड़-पौधों और फसल पर छिड़काव करके प्रयोग किया जा सकता है। 3 लीटर पंचगव्य एक एकड़ फसल के लिए पर्याप्त होता है। पौधशाला से पौधों को निकालकर घोल में डुबायें और रोपाई करें। पौधा रोपण या बुआई के पश्चात 15-25 दिन के अंतराल पर 3 बार लगातार छिड़काव करें।
  • सिंचाई के पानी के साथ प्रवाहित करके: मिश्रण को सिंचाई के पानी के साथ 50 लीटर प्रति हेक्टेयर मिलाकर ड्रिप सिंचाई या प्रवाह सिंचाई के माध्यम द्वारा किया जा सकता है। 3 लीटर पंचगव्य एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होता है।  सिंचाई के लिए प्रति लीटर पंचगव्य की मात्रा 20 लीटर/एकड़ होनी चाहिए।
  • बीज भंडारण के लिए: बीज को भंडारण करने से पहले पंचगव्य के 3% घोल में 10-15 मिनट के लिए डुबो कर रखें उसके बाद सुखाकर भंडारण करें। ऐसा करने से बीज को लगभग 360 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

पंचगव्य के प्रयोग में सावधानियाँ

  • पंचगव्य का उपयोग करते समय खेत में नमी का होना आवश्यक है।
  • एक खेत का पानी दूसरे खेतों में नहीं जाना चाहिए।
  • इसका छिड़काव सुबह 10 बजे से पहले तथा शाम 3 बजे के बाद करना चाहिए।
  • पंचगव्य मिश्रण को हमेशा छायादार व ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।
  • इसको बनाने के 6 माह तक इसका प्रयोग अधिक प्रभावशाली रहता है।
  • टीन, स्टील व ताम्बा के बर्तन में इस मिश्रण को नहीं रखना चाहिए।
  • इसके साथ रासायनिक कीटनाशक व खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • पंचगव्य के उचित लाभ के लिए 15 दिन में एक बार प्रयोग करना चाहिए।
READ MORE :  Shampoo, oil, cancer drugs from cow urine, dung — what Modi govt wants scientists to work on

पंचगव्य का प्रभाव

  • पंचगव्य का छिड़काव करने से पौधों के पत्ते आकार में हमेशा बड़े एवं अधिक विकसित होते हैं तथा यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को तेज करता है जिससे पौधे की जैविक क्षमता बढ़ जाती है एवं उपापचय क्रियायें तेज हो जाती हैं।
  • तना अधिक विकसित और मजबूत होता है जिससे परिपक्वता के समय पौधे पर जब फल लगते हैं तब पौधा फलों का वजन सहने में अधिकतम सक्षम होता है तथा शाखाएं भी अधिक विकसित तथा मजबूत होती हैं।
  • जड़ें अधिक विकसित तथा घनी होती हैं तथा इसके अलावा वे एक लंबे समय के लिए ताजा एवं स्वस्थ रहती हैं। जड़ें मृदा में गहरी परतों में फैलकर वृद्धि करती हैं तथा आवश्यक पोषक तत्वों एवं पानी को अधिकतम मात्रा में अवशोषित कर लेती हैं जिससे पौधा स्वस्थ बना रहता है तथा पौधों में तेज हवा, अधिक वर्षा व सूखे की स्थति को सहने की एवं रोगों के प्रति लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • पंचगव्य के प्रयोग से फसल की अच्छी उपज मिलती है। यह वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी एक समान फसल की पैदावार देने में सहायता करता है। यह न केवल फसल की उपज को बढ़ाता है बल्कि अनाज, फल, फूल व सब्जियों का उत्पादन एक बेहतर रंग, स्वाद, पौष्टिकता तथा विषाक्त अवशेषों के बिना करता है जिससे फसल की बाजार में अधिक कीमत मिलती है। यह बहुत सस्ता एवं अधिक प्रभावकारी है जिससे कृषि में कम लागत पर अधिक लाभ मिलता है।

पंचगव्य छिड़काव का काल चक्र

फूल से पहले- एक बार 15 दिनो में (दो बार छिड़काव)

खिले हुए फूलों पर- एक बार 10 दिनों में (दो बार छिड़काव)

 

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON