गाभिन पशु की देखभाल

0
2378

गाभिन पशु की देखभाल

डॉ रोहिणी गुप्ता1, डॉ प्रतिभा शर्मा2, डॉ आदित्य अग्रवाल3, डॉ अंजलि गौतम2

  1. पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर, (म. प्र.)
  2. पशुपालन विभाग, (म. प्र.)
  3. पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा, (म. प्र.)

गाभिन पशु की देखभाल के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

  • प्रथम महीने में भ्रूण का विकास धीरे धीरे होता है, अतः इन 3 माह में खान-पान में ज्यादा परिवर्तन की जरूरत नहीं होती है, बस खनिज लवण, प्रोटीन की मात्रा थोड़ी बढ़ा देनी चाहिए।
  • 3 से 6 माह के गाभिन पशु के चारे में प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज लवण की मात्रा बढ़ा दें।
  • 6 से 7 माह के गाभिन पशु को चारे के लिए ज्यादा दूर तक नहीं ले जाना चाहिए। उबड़ खाबड़ रास्तों पर नहीं घुमाना चाहिए।
  • गाभिन पशु को साफ स्वच्छ वातावरण में रखना चाहिए एवं उस स्थान की रोज सफाई करनी चाहिए।
  • यदि गाभिन पशु दूध दे रहा हो तो गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद दूध निकालना बंद कर देना चाहिए।
  • गाभिन पशु के उठने बैठने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए, पशु जहां बंधा हो उसके पीछे के हिस्से का फर्श आगे से कुछ ऊंचा होना चाहिए।
  • गाभिन पशु को पोषक आहार की आवश्यकता होती है, जिससे ब्याने के समय दुग्ध ज्वर और कीटोसिस जैसे रोग ना हो तथा दुग्ध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े। प्रतिदिन निम्नवत भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए।
हरा चारा 25 से 30 किलो
सूखा चारा 5 किलो
संतुलित पशु आहार 3 किलो
खली 1 किलो
खनिज मिश्रण 50 ग्राम
नमक 30 ग्राम

 

  • 6 माह के गाभिन पशु को पाचक प्रोटीन, 10 से 12 ग्राम कैल्शियम 7 से 8 ग्राम फास्फोरस एवं विटामिन दे।
  • कैल्शियम की पूर्ति के लिए दाने में कैल्शियम कार्बोनेट मिलाएं।
  • जिस स्थान पर गाभिन पशु रखा गया हो वहां शांति हो।
  • गाभिन पशु को सर्दी, गर्मी एवं बरसात से बचाएं।
  • गाभिन पशु को पीने के लिए 75 से 80 लीटर प्रतिदिन स्वच्छ व ताजा पानी उपलब्ध कराना चाहिए।
  • पशु के पहली बार गाभिन होने पर 6 से 7 माह के बाद उसे अन्य दूध देने वाले पशुओं के साथ बांधना चाहिए और शरीर, पीठ व थन की मालिश करनी चाहिए।
  • ब्याने के 4 से 5 दिन पूर्व उसे अलग स्थान पर बांधना चाहिए। ध्यान रहे कि यह स्थान स्वच्छ हवादार व रोशनी युक्त हो। पशु के बैठने के लिए फर्श पर सूखा चारा डालकर व्यवस्था बनानी चाहिए।
  • ब्याने के 1 से 2 दिन पहले से पशु पर लगातार नजर रखनी चाहिए।
READ MORE :  CONCEPT OF  LIVESTOCK BASED GROUP FARMING OR COMMUNITY FARMING  IN INDIA

प्रसव के समय व प्रसव के बाद पशु की देखभाल

  • प्रसव क्रिया आरंभ होने के एक दिन पहले से ही पशु के योनि द्वार से द्रव्य स्त्राव निकलना शुरू हो जाता है और पशु अशांत रहता है। ऐसे समय पशु को अनावश्यक अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
  • प्रसव क्रिया के समय योनि द्वार से जल थैली बाहर निकलती है जिसे अपने आप ही फटने दे। बच्चा पहले सामने की पैरों पर सिर टिकी हुई अवस्था में बाहर आता है यदि प्रसव स्वाभाविक रूप से 4 घंटे में ना हो, तो किसी पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
  • प्रसव के बाद योनि द्वार, पूँछ तथा पीछे के हिस्से को गुनगुने पानी में 0.1 प्रतिशत पोटेशियम परमैंगनेट डालकर साफ करें।
  • 4 से 6 घंटे के अंदर प्लेसेंटा या जेर अपने आप बाहर निकल जाती है, यदि यह 12 घंटे तक अपने आप ना निकले तो किसी पशु चिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।
  • निकली हुई जेर को पशु से अलग हटा देना चाहिए, यदि पशु इस जेर को खा जाए तो उससे पशु को अपच हो जाएगा और उसके दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाएगी, इसलिए जेर को पशु की पहुंच से दूर गाड़ देना चाहिए।
  • प्रसव के तुरंत बाद पशु को गुड या सीरा गुनगुने पानी में घोलकर पिलाना चाहिए तथा सरलता से पचने वाला दस्तावर चारा या दाना 3 से 5 दिन तक खिलाते रहे। उसके बाद धीरे-धीरे 7 से 10 दिनों में उसे सामान आहार देना शुरू करना चाहिए।
  • प्रसव के बाद पहली बार पशु के थन से पूरा दूध नहीं निकालना चाहिए क्योंकि पूरा दूध निकालने से, खासकर अधिक दूध देने वाले पशुओं में, दूध ज्वर होने का भय रहता है।
READ MORE :  अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओ का सही चुनाव कैसे करे

 

नवजात बछड़े की देखभाल

  • जन्म के तुरंत बाद बछड़े के नाक और मुंह से श्लेष्मा इत्यादि को साफ करे।
  • नवजात बछड़े को छाती पर धीरे धीरे मालिश करें, जिससे कि उसे सांस लेने में आसानी रहे। बछड़े के पूरे शरीर को अच्छी तरह से साफ करें।
  • बछड़े के मुंह में दो उंगलियां डालें और उसकी जीभ पर रखें, इससे बछड़े को दूध पीने में मदद मिलेगी।
  • नाल को दो इंच की दूरी पर धागे से बांध दे, बची हुई नाल को साफ कैची से काटकर, उस पर टिंचर आयोडीन लगाएं जिससे की नाल में संक्रमण को रोका जा सके।
  • जन्म के बाद आधे घंटे के भीतर नवजात बछड़े को खीस पिलाएं। खीस की मात्रा बच्चे के वजन के 1 /10 भाग के बराबर होनी चाहिए। जिसे दिन में तीन से चार बार बांट कर देना चाहिए।
  • बछड़े के उचित विकास हेतु उन्हें 2 माह की उम्र तक दूध पिलाना चाहिए।
  • तीसरे सप्ताह कृमि नाशक दवा दें। तदांतर 3 व 6 माह की उम्र में एक एक बार ।
  • बछड़ा जैसे ही 1 महीने का हो जाए उसे कोमल घास (हे) और 100 ग्राम शिशु आहार प्रतिदिन देना चाहिए।
  • तीन महीने की उम्र होने पर पशु चिकित्सक से संपर्क करके आवश्यक टीके लगवाएं।
  • नवजात बछड़े को सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए।
  • नवजात बछड़े में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत कम होती है। भैंस के बच्चे में यह क्षमता और भी कम होती है खीस पिलाना, मां से रोग प्रतिरोधक क्षमता बच्चे में पहुंचाने का एक प्राकृतिक तरीका है।
  • खीस नवजात पशु को प्रकृति द्वारा दिया गया एक अमूल्य उपहार है। इसमें अतिरिक्त पोषक तत्व होते हैं जैसे दूध से चार से पांच गुना प्रोटीन, 10 गुना विटामिन ए और प्रचुर  मात्रा मे खनिज तत्व।
  • यह हल्का दस्तावर होता है जिससे आंतों को गंदा मल साफ हो जाता है।
  • ध्यान रखे हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग अलग बर्तनों में और अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए।
  • https://www.pashudhanpraharee.com/care-management-of-pregnant-cattle/#:~:text=%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%81%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%203%20%2D4%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE,%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A5%A4
READ MORE :  CARCASS DISPOSAL OF ANIMALS

https://www.gaonconnection.com/animal-husbandry/complete-information-on-pregnant-buffalo-care-and-feed-47894

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON