कड़कनाथ मुर्गे : स्वाद और स्वास्थ्य का खज़ाना

0
1987

कड़कनाथ मुर्गे : स्वाद और स्वास्थ्य का खज़ाना

 

जमशेदपुर शहर के नॉनवेज के शौकीनों के बीच पिछले कुछ सालों में कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड काफी बढ़ चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में पौष्टिकता से भरपूर कड़कनाथ मुर्गे की माँग जमशेदपुर जैसे शहरों में बढ़ती जा रही है।
खास बात ये है कि इस किस्म का मुर्गा केवल भारत में ही पाया जाता है। देश के कई होटलों में भी अब कड़कनाथ मुर्गे की डिमाड़ बढ़ गई है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी अपने फार्म हाउस पर कड़कनाथ मुर्गे की फॉर्मिंग कर रहे हैं।ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस प्रजाति के मुर्गे में ऐसा क्या खास है?

कड़कनाथ मुर्गी पालन (kadaknath Poultry Farming in India)

कड़कनाथ मुर्गे की एक नस्ल है, जिसे काली मासी भी कहा जाता है. ये मुर्गे पूरी तरह काले होते हैं, कड़कनाथ मुर्गे का खून और मांस भी काले रंग का ही होता है तथा इनके अंडे सुनहरे रंग के होते हैं. इनकी उत्पत्ति मध्य प्रदेश के धार और झाबुआ से हुई है. इन पक्षियों को ज्यादातर ग्रामीण गरीबों, आदिवासियों और आदिवासियों द्वारा पाला जाता है. इसके स्वास्थ्य से जुड़े फायदों को देखते हुए इसकी मार्केट में मांग अधिक रहती है और इसकी गुणवत्ता के कारण ये काफी महंगा भी बिकता है. हमारी भारतीय क्रिकेट टीम के प्रसिद्ध खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी ने भी इन मुर्गो को पाल रखा है और कड़कनाथ मुर्गे से वे कड़क कमाई करते हैं.

कड़कनाथ वैज्ञानिक नाम ( Kadaknath Scientific name): Gallus gallus domesticus

कड़कनाथ मुर्गी की खासियत (Kadaknath Chicken Specialties)

भारत में कड़कनाथ मुर्गे की एक ऐसी नस्ल है, जिसका मांस काले रंग का होता है| कई रिसर्च के अनुसार सफ़ेद रंग वाले चिकन की तुलना में काले चिकन में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा काफी कम होती है, तथा एमिनो एसिड का लेवल अधिक होता है | देशी और बायलर मुर्गे की तुलना में इसका स्वाद काफी अच्छा होता है | मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में इस काले मुर्गे का पालन किया जाता है, जहां इसे कालीमासी नाम से जानते है |कड़कनाथ मुर्गे की जुबान, चोंच, मांस, अंडा बल्कि शरीर का हर भाग काला होता है | इसमें प्रोटीन भरपूर होता है, तथा वसा काफी कम होती है | इसलिए हार्ट और डायबिटीज के मरीजों के लिए यह चिकन काफी फायदेमंद होता है | देश के मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने भी कड़कनाथ मुर्गे पाल रखे है |

इसलिए है कड़कनाथ की महत्ता

प्रोटीन—

कड़कनाथ – 25 फीसद

सामान्य मुर्गा- 18 फीसद

फैट—-

कड़कनाथ – 0.7321.03 फीसद

सामान्य मुर्गा- 13 फीसद

कोलेस्ट्रोल—-

कड़कनाथ – 184 एमजी प्रति 100 ग्राम

सामान्य मुर्गा- 218 एमजी प्रति 100 ग्राम

 

 भारत में कड़कनाथ मुर्गा (Kadaknath Cock in India)

 भारत में कड़कनाथ मुर्गा मुख्य रूप से मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ जिले में ही मिलता है | किन्तु कड़कनाथ की इस ब्रीड को अब तमिलनाडू, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में पाया जाने लगा है | कड़कनाथ मुर्गे की तासीर काफी गर्म होती है, तथा देश से तक़रीबन सभी हिस्सों में इस मुर्गे की काफी अच्छी मांग रहती है | यह तीन प्रजातियों में पाया जाता है, जिसमे पेंसिल्ड, गोल्डन और जेड ब्लैक शामिल है | जेड ब्लैक मुर्गे के पंख पूरे काले होते है, तथा पेंसिल्ड प्रजाति के मुर्गे का आकार पेंसिल की तरह होता है, वही गोल्डन प्रजाति के मुर्गे के पंखो पर गोल्डन छींटे पड़े होते है |

फायदे

 कड़कनाथ मुर्गा 4 से 5 महीने में पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं. इसका मांस बाजारों में 800 से 1000 रुपये किलो तक मिलता है. इसकी मुर्गी के अंडों की कीमत 50 रुपए तक की होती है. वहीं इसके एक दिन के चूजों की कीमत 80 से 100 रुपये तक मिलती है. इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण बाजार में इसकी मांग काफी अधिक है. इसके पालन के बारे में जानकारी लेने के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण ले सकते हैं. वहीं बड़े स्तर पर कारोबार करने के लिए राष्ट्रीय बैंकों और ग्रामिण बेकों द्वारा पशुपालक को लोन भी मुहैया कराया जाता है. इसका पालन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

READ MORE :  भारत में देसी मुर्गी पालन का व्यवसायिक स्वरूप

कड़कनाथ की विशेषता और प्रजातियां

 इस मुर्गे की कुछ खास विशेषताएं है. इसमें 25 से प्रतिशत से अधिक प्रोटीन पाया जाता है. जबकि अन्य मुर्गो में 15 से 25 प्रतिशत फैट होता है. इसमें आयरन अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है. इसका मांस बीमार लोगों के लिए काफी फायदेमंद होता है. कड़कनाथ मुर्गे की तीन प्रजातियां पाई जाती है. जिसमें जेड ब्लैक मुर्गा, पैंसिल्ड और गोल्डन ब्लैक किस्में होती है.

 

कड़कनाथ मुर्गे में क्या है खास (What is Special)

दरअसल, कड़कनाथ मुर्गों की प्रजातियों में आने वाला सबसे महंगा मुर्गा है। इसका रंग, खून, पंजे और आंखें आदि सबकुछ काले रंग के ही हैं। इसलिए इसे काले चिकन या काले मांस के नाम से भी जाना जाता है। बाजार में इस मुर्गे की कीमत लगभग 1200 रूपये प्रति किलो से लेकर 1800 रूपये प्रति किलो तक है। अन्य मुर्गों के मुकाबले यह केवल 5 से 6 महीने के भीतर ही तैय़ार हो जाता है। कड़कनाथ मुर्गे चारे में बरसीम और चरी आदि खाते हैं। इन्हें पालने में लागत कम लगती है और मुनाफा काफी ज्यादा होता है। अपनी कई खूबियों के कारण इस मुर्गे की सबसे अधिक मांग है। इसकी एक खास बात यह भी है कि अन्य मुर्गों की तुलना में इसमें वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है, जिसे खाने से शरीर को नुकसान नहीं होता है।

सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है

कड़कनाथ मुर्गा मूलरूप से मप्र के झाबुआ में मिलता है। इसकी कीमत भी सामान्य मुर्गों के मुकाबले काफी ज्यादा होती है। क्योकि इसमें प्रोटीन की मात्रा बेहद ज्यादा पायी जाती है। साथ ही इसकी हड्डियां और मांस का कलर भी अलग होता है। जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। आमतौर पर अगर आप इसे बाजार में लेने जाते हैं, तो इसकी कीमत 900 से 1500 रुपये किलों तक होती है।

भारत के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता

 यह मुर्गा एक दुर्लभ प्रकार का मुर्गा है। जो भारत के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता है। काले रंग की वजह से इस मुर्गे को स्थानीय भाषा में कालीमासी भी कहा जाता है। जानकार मानते हैं कि दूसरी प्रजातियों के मुकाबले यह मुर्गा अधिक स्वादिष्ट, पौष्टिक, सेहतमंद और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। समान्य मुर्गों में जहां 18-20 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है, जबकि कड़कनाथ मुर्गे में करीब 25 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।

 झाबुआ के आदिवासी इस मुर्गे को काफी पवित्र मानते हैं

 कड़कनाथ मुर्गे के 3 प्रजाति मिलते हैं। इनमें जेट ब्लैक गोल्डन ब्लैक और पेसिल्ड ब्लैक शामिल हैं। इनका वजन 1.8 किलों से 2.0 किलो तक होता है। गौरतलब है कि कुछ सालों पहले तक कड़कनाथ मुर्गे को मध्य प्रदेश के झाबुआ और छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले आदिवासी ही पालते थे और इन्हें काफी पवित्र माना जाता था। आदिवासी समाज के लोग इस मुर्गे को दीपावली के बाद देवी के सामने बलि देते थे और फिर इसे खाने का रिवाज था। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि इन्हें तैयार होने में टाइम लगता है।

अंडे पर नहीं बैठती मुर्गी

कड़कनाथ प्रजाति की मुर्गियां अपने अंडे पर नहीं बैठतीं। कड़कनाथ के अंडों की ब्रीडिंग का तरीका दूसरे प्रजाति के मुर्गों से एकदम अलग है। इसके अंडों को इनक्यूबेटर में रखा जाता है और लगातार टेम्प्रेचर मेंटेन किया जाता है। यह प्रक्रिया 21 दिन तक जारी रहती है। तब अंडे से चूजा बाहर निकल आता है। कड़कनाथ का अंडा भी बाजार में सबसे महंगा बिकता है। इसके हरेक अंडे की कीमत 40 से 50 रुपये तक होती है।

आयरन और प्रोटीन ज्यादा

कड़कनाथ मुर्गे में आयरन और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। मांसाहारी लोगों के लिए इसका स्वाद भी लजीज होता है। ठंड के मौसम में इसे खाना ज्यादा फायदेमंद होता है। मांग की तुलना में इसका उत्पादन काफी कम है। इसलिए इसके मांस की कीमत एक हजार रुपये किलो तक होती है।

डायबिटिक रोगों के लिए फायदेमंद

 कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गी का रंग काला, मांस काला और खून भी काला होता है। अपने औषधीय गुण के कारण यह बहुत डिमांड में है। इस मुर्गे के मांस में आयरन और प्रोटीन सबसे ज्यादा पाया जाता है। इसके मांस में वसा और कोलेस्ट्रॉल भी कम पाया जाता है। इसके चलते ह्रदय और मधुमेह के रोगियों के लिए यह चिकन बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसके रेगुलर सेवन से शरीर को काफी पोषक तत्व मिलते हैं। इसकी मांग और फायदों को देखते हुए सरकार भी इसका बिजनेस शुरू करने में हर स्‍तर पर मदद करती हैं।

READ MORE :  Low Cost Feed Formulation for Rural Poultry or Deshi Poultry or Cockerel chicken (Sonali) 

100-120 रुपये में मिलते हैं चूजे

पूरे देश में कड़कनाथ मुर्गे की सप्लाई झाबुआ से ही होती है। हालांकि, मध्य प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में भी इसके पोल्ट्री फार्म मौजूद हैं। इसके चूजे कृषि विज्ञान केंद्रों से मिलते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र से 15 दिन का चूजा दिया जाता है जिसकी कीमत 100 से 120 रुपये तक होती है। छह महीने में चूजा मुर्गे में तब्दील हो जाता है। इसका वजन बढ़कर डेढ़ से दो किलो तक हो जाता है।

 कड़कनाथ मुर्गे को GI टैग मिला हुआ है

कड़कनाथ मुर्गे की सबसे खास बात ये है कि इसे GI टैग मिला हुआ है। जिसे एमपी सरकार ने कुछ साल पहले ही हासिल किया है। हालांकि मप्र और छत्तीसगढ़ के बीच कड़कनाथ को लेकर अभी भी खींचतान है। लेकिन अगर इतिहास को देखें तो मध्यप्रदेश सरकार ने इस प्रजाति के लिए पहला मुर्गा पालन केंद्र साल 1978 में स्थापित किया था।

ड़कनाथ मुर्गे को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग

चेन्नई स्थित GI पंजीकरण कार्यालय ने मध्य प्रदेश राज्य को मुर्गे की एक प्रजाति कड़कनाथ के लिये भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दे दिया है। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास ट्रस्ट, झाबुआ ने इसके लिये वर्ष 2012 में आवेदन किया था।

प्रमुख बिंदु 

  • कड़कनाथ मुर्गा मूलत: मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ, अलीराजपुर और धार ज़िले के कुछ भागों में पाया जाता है।
  • छत्तीसगढ़ द्वारा भी कड़कनाथ मुर्गे पर GI टैग की मांग की जा रही थी। लेकिन अंतत: मध्य प्रदेश के दावे को मान्यता दी गई।
  • कड़कनाथ मुर्गा मेलानिन वर्णक के कारण काले रंग का होता है। इसलिये इसे कालीमासी भी कहा जाता है।
  • इसके पंख, माँस, हड्डियाँ और खून भी काले रंग के होते है। सामान्य मुर्गे का खून लाल रंग का होता है।
  • यह औषधीय गुणों से युक्त होता है तथा यह मुर्गे की अन्य प्रजातियों से अधिक पौष्टिक और सेहत के लिये लाभकारी होता है।
  • जहाँ अन्य मुर्गो में 18-20% प्रोटीन पाया जाता है वहीं, कड़कनाथ मुर्गे में 25% प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अपेक्षाकृत कम पाई जाती है और आयरन अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  • चिकन की अन्य किस्मों की तुलना में कड़कनाथ मुर्गे का उच्च-प्रोटीन युक्त माँस, चूजे और अंडे बहुत ज़्यादा कीमत पर बेचे जाते हैं।

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)

  • एक भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।
  • इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएँ एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।
  • उदाहरण के तौर पर- दार्जिलिंग की चाय, जयपुर की ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू कुछ प्रसिद्ध GI टैग हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
  • वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्‍तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ था।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है।
  • भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।

GI पंजीकरण के लाभ

  • यह भारत में भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
  • दूसरों के द्वारा किसी पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है।
  • यह भारतीय भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
  • यह संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।
READ MORE :  Backyard Poultry Production and its Management

कड़कनाथ मुर्गा पूरी तरह से काला होता है, भारत में ही पाए जाने वाले इस मुर्गे की मांग काफी है, क्योंकि इसकी मुर्गी का एक अंडा 50 रुपए तक बिकता है। इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट में कड़कनाथ मुर्गे को कैसे बनाया जाए इस पर डेमो सेशन हुआ। पंख से लेकर मीट तक सब काला है…

– कड़कनाथ के पंख से लेकर मीट तक सब काला है। यहां तक की हड्डियां भी। मिलता भी सिर्फ देश में एक ही जगह से है, जो मध्य प्रदेश की भील प्रजाति पालती है। स्वाद से लेकर रेट तक सब कड़क है, इसलिए इसे कहते है कड़कनाथ मुर्गा।

– इसे बनाने से लेकर खाने तक में रेगुलर से अलग तकनीक इस्तेमाल होती है। इसी तकनीक को बताया गया था, इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, पंजाब यूनिवर्सिटी में। जहां शेफ लाइव डेमो से तीन तरह से कड़कनाथ मुर्गे को बना रहे थे।

गर्म तासीर होती है इस मुर्गे की

कड़कनाथ मुर्गे की तासीर गर्म होती है, इसलिए इसे एसी ग्रेवी के साथ बनाया जाता है जिसकी तासीर ठंडी हो। इसमें मुर्गे को पहले उबाला जाता है और ग्रेवी को अलग से बनाया जाता है।इसमें घी, हींग जीरा मेथी,अजवाइन, साथ ही धनिया पाउडर को डाला जाता है। इसके बाद दोनों को मिलाकर यह तैयार होता है। कड़कनाथ मुर्गे का मांस काफी नर्म होता है, यह जब पकता है तो मुंह में आसानी से घुल जाता है।

आटे में लपेट कर भुनाया जाता है…

कड़कनाथ को रोस्टेड तरीके से भी बनाया जा सकता है, इसमें मुर्गे को गर्म मसालों में मिलाकर एक नर्म कपड़े से लपेटा जाता है, इसके बाद इसको चारों तरफ से आटे से ढक दिया जाता है। इसके बाद इसे अवन में पकाया जाता है। पंद्रह मिनट तक पकाने के बाद, चिकन में से कपड़े और आटे की परत को खाला जाता है और इसे सर्व किया जाता है।

कड़कनाथ मुर्गी का पालन भी सामान्य मुर्गी की तरह ही होता है | इनके आहार में भी अधिक खर्च नहीं आता है | यह बरसीम, बाजरा, हरा चारा और अनाज चोकर खाकर ही अच्छी वृद्धि करते है | आप आरम्भ में कम चूजों का ही पालन करे, पहले आप तक़रीबन 30 चूजे पाले | चूजों के लिए करीबी कृषि केंद्र से संपर्क कर सकते है | यहाँ पर आपको कड़कनाथ मुर्गी पालन करने के लिए जरूरी टिप्स दिए जा रहे है |

  • सबसे पहले आप किसी कड़कनाथ व्यवसायी या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर खर्चे का आंकलन कर ले | इससे आपको बजट की जानकारी हो जाएगी, जिसके बाद आप यह तय कर सकेंगे, कि आप पोल्ट्री फार्म खोलेंगे या मुर्गियों का बिज़नेस करेंगे |
  • इसके बाद आप कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म के लिए स्थान को चुने, तथा कितने क्षेत्र की जरूरत होती है, की जानकारी भी प्राप्त कर ले | भूमि क्षेत्रफल पता करने के पश्चात् मार्केट को ध्यान में रखते हुए स्थान को चुने | आप घर से भी मुर्गी पालन कर कम खर्च में भी इसकी शुरुआत कर सकते है|
  • स्थान चुनने के बाद फार्म तैयार करने के लिए शेड बनाए |
  • शेड तैयार करने के पश्चात् किसी कृषि विज्ञान केंद्र या कड़कनाथ मुर्गी पालन केंद्र से संपर्क करे |
  • अब आपको चूजों के आहार के लिए दाना पानी का प्रबंध करना होता है | आहार के तौर पर आप कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और खनिज सामग्री युक्त चिनियाबादाम की खली, चावल ,चोकर,  मकई, मछली का चूरा, नमक, सरसों की खली, चूने का पत्थर और हड्डी का चूर्ण दे सकते है |
  • कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू करने के बाद आपको पालन से संबंधित कुछ सावधानियों को बरतना होता है | इसमें बीमारी से बचाने के लिए टीके लगाए जाते है |
  • आप सामान्य जानकारी के साथ मुर्गी पालन कर सकते है, तथा सरकार द्वारा चलाए जा रहे मुफ्त प्रशिक्षण ले सकते है |

 

डॉ राजेश कुमार सिंह ,पशुधन विशेषज्ञ, जमशेदपुर

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON