मानव स्वास्थ्य एवं पशुओ पर जूनोटिक बीमारियों का प्रभाव
Dr. Raj Kumar Berwal
Asstt. Professor ,Department of Livestock Products Technology ,College of Veterinary Science, Rajasthan University of Veterinary and Animal Sciences ,RAJUVAS – Bikaner
E mail : drberwalraj@gmail.com Mob: 9414482918
जूनोटिक रोग वो संक्रामक रोग होते हैं जो जानवरों से मनुष्यों और मनुष्यों से जानवरों में फैलते हैं। जब ये रोग मनुष्यों से जानवरों में फैलते है तो इसे रिवर्स जूनोसिस कहा जाता हैं। जूनोटिक रोग बैक्टीरिया, वायरस, फफूँद अथवा परजीवी किसी भी रोगकारक से हो सकते हैं। भारत मे होने वाले जूनोटिक रोगों में रेबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, ईबोला, निपाह, ग्लैंडर्स, साल्मोनेलोसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस एवम जापानीज इन्सेफेलाइटिस इत्यादि शामिल हैं। ये लिस्ट काफी लम्बी हैं, विश्व भर में लगभग 150 जूनोटिक रोग उपस्थित हैं। कुछ जूनोटिक रोग तो सीधे ही सम्पर्क में आने से फैलते हैं जबकि कुछ वेक्टर जैसे कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़, घोंघा, चिचड़, मछली, पिग, मुर्गी और घोड़ा इत्यादि के द्वारा फैलाये जाते हैं ये रोग पालतू और जंगली दोनों प्रकार के जानवरों में लक्षणों को पहचान कर तुरंत प्रभावी उपाय कियेयुवा पशुपालको को अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीको, नवीन अनुसंधानों के प्रयोग से अधिक दुध उत्पादन हेतु प्रेरित किया जाना चाहिएद्य पशुचिकित्सा सेवाओं, और लाभकारी योजनाओ का व्यापक प्रचार प्रसार भी आवश्यक हैंद्य अभी भी ग्रामीण इलाकों में पशुओं और पशुपालको के लिए कल्याणकारी योजनाओ के प्रति उतनी जागृति दिखाई नही देती हैंद्य पशुपालकों को अभी भी समय पर कृमिनाशन, टीकाकरण करवाने के फायदे नही पता होता! पशुपालन विभाग जब भी टीकाकरण अभियान चलाता हैं तो उसे अपेक्षित सहयोग नही मिल पता हैं, पालतू पशुओं की बात तो हो गयी परंतु जंगली जानवरों पर तो सर्वाधिक संकट है। घटते वनों से जंगली जानवरों के रहने और खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गयी हैं। फिर दूसरा पहलू ये कि उनकी चिकित्सा व्यवस्थाएं भी ज्यादा अच्छी नही हैं। उनसे होने वाले जूनोटिक रोगों से भी काफी बार जूझना पड़ता है। इस बीच बड़ा बिंदु ये भी हैं कि जूनोटिक रोगों से बचाव हेतु वेटरनरी और मेडिकल दोनों प्रोफेशन में बेहतर तालमेल बहुत जरूरी हैं, प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए प्रयास किये जाने चाहिए।
जूनोटिक रोगों से लड़ाई की सभी योजनाओं और प्रयासो में वेटरनरी डॉक्टर्स को शामिल किया जाना चाहिए। दूध मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ और संपूर्ण भोजन होता है यह सभी पशु तथा मनुष्य के लिए भोजन का प्रथम स्रोत है जिसे सबसे पहले भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है दूध न्यूट्रीशन से भरपूर होता है
पशु का दूध मनुष्य के लिए कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, मिनरल्स का स्रोत है दूध में वे सभी घटक होते हैं जो सभी आयु के आदमी वर्ग के विकास के लिए आवश्यक होते हैं ! मनुष्य के लिए पशु का दूध जितना आवश्यक होता है, उतना ही मनुष्य द्वारा पशु का रखरखाव भी आवश्यक है क्योंकि सारी जीवाणु जनित बीमारियां पशु से प्राप्त दूध से मनुष्य में फैलती है इन बीमारियों को जूनोटिक बीमारियां कहते हैं किसी भी पशु की दूध की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि पशु किस नस्ल का है किस बयांत में है या पशु की आयु क्या है ! दुधारू पशुओं का स्वास्थ्य कैसा है इन सब के साथ पशुओं की दूध गुणवत्ता बाड़े की साफ-सफाई तथा आसपास के वातावरण पर निर्भर करती है!
दूध से होने वाली बीमारियों से कैसे बचेंः-
1. पशुओं का दूध निकालने से पहले हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए।
2. दूध निकालने के काम आने वाले सभी बर्तन और उपकरण को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए।
3. कभी भी दूध को कच्चा नहीं पीना चाहिए।
4. दुधारू पशु के रहने वाले स्थान को साफ सुथरा रखना चाहिए।
5. पशुओं की देखभाल करने वाला व्यक्ति भी खुद साफ सफाई का ध्यान रखें।
6. दूध को हमेशा अच्छी तरह गर्म करके ही उपयोग में लेना चाहिए।
7. इस तरह से हम सावधानियां रखकर इन बीमारियों से खुद को और पशु को बचा सकते हैं।
एक स्वास्थ्य पहल / वन हेल्थ के अंतर्गत पशुजन्य रोगों के नियंत्रण मैं पशु चिकित्सा विदो की भूमिका