1.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
2. डॉ विकास सचान सहायक आचार्य
मादा पशु रोग विज्ञान विभाग दुवासु मथुरा
यदि निम्नलिखित तथ्यों पर समुचित ध्यान दिया जाए तो कृत्रिम गर्भाधान से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का निदान किया जा सकता है।
१. जिन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है, प्रायः देखा गया है कि उन क्षेत्रों के देसी एवं कमजोर सॉडो का, बधियाकरण नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में गर्मी में आए पशु का गर्भाधान सॉडो द्वारा, प्राकृतिक रूप से हो जाता है। कभी-कभी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित पशु को भी सांड के पास जाते समय प्राकृतिक रूप से भी गर्भित हो जाता है। ऐसी स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए यह मुख्य सुझाव दिया जाता है कि जिन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्भाधान का कार्य चलाया जा रहा है, उस क्षेत्र के सभी बछड़ों को बधिया कर दिया जाए एवं सॉडो को क्षेत्र से बाहर निकाल कर नंदीशाला में रखा जाए।
२. कृत्रिम गर्भाधान करते समय किसी भी पशु के प्रजनन अंगों की जांच करने से पूर्व पशु की बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए जैसे पशु की उम्र, पशु की ब्यॉतों की संख्या, पूर्व व्यॉत की तिथि, पूर्व व्यॉत का प्रकार( सामान्य या असामान्य जैसे जेर का रुक जाना, या बच्चा फंस जाना, या बच्चेदानी का बाहर आ जाना इत्यादि) पूर्व में कराए गए कृत्रिम गर्भाधान या प्राकृतिक गर्भाधान की तिथि तथा उसकी संख्या, जनन अंगों में पहले हुई बीमारी, गर्मी में जेरी या श्राव का प्रकार तथा उसकी मात्रा इत्यादि। अक्सर यह देखा गया है की पशुपालक उपरोक्त जानकारी पशु चिकित्सक को नहीं दे पाते हैं या कभी-कभी जानबूझकर बहुत सी जानकारी छिपाते हैं। कभी-कभी पशुपालक अपने पशु को स्वयं न लाकर किसी आदमी जैसे बच्चा, स्त्री या नौकर या पड़ोसी के साथ कृत्रिम गर्भाधान केंद्र भेज देते हैं। अतःऐसी स्थिति में उपरोक्त जानकारी पाना और भी कठिन हो जाता है ।
३. अक्सर यह भी देखा गया है कि गर्भ न ठहरने की दशा में जब वही पशु दूसरी बार कृत्रिम गर्भाधान के लिए लाया जाता है तो पहले दी गई सूचनाओं में भिन्नता होती है या अक्सर बहुत सी सूचनाएं भिन्न भी होती हैं। यह भी देखा गया है कि दूसरी बार गर्भाधान के लिए लाते समय कभी-कभी तो उसका पशुपालक ही बदल जाता है। इसी कारण वह पशु के बारे में सही बातों की जानकारी नहीं दे पाता है। इस संबंध में एक सलाह यह है कि किसी भी पशु को एक ही व्यक्ति लाए तथा पूर्व में पशु चिकित्सक द्वारा दिया गया नकुल स्वास्थ्य कार्ड अवश्य साथ लाए।
४. अधिकांश पशुपालक, अपने दुधारू पशुओं को इस विचार से गर्भित नहीं कराते कि ऐसा करवाने से इसका दूध कम हो जाएगा। यह एक गलत अवधारणा है।पशुपालक अपने पशुओं पर तभी ध्यान देते हैं जब वह दूध देना बंद कर देता है। ऐसा करने से उनको अपने पशुओं पर सूखे समय में अधिक व्यय करना पड़ता है तथा आर्थिक नुकसान होता है। अतः दूध देने वाले पशुओं को भी ब्याने के 2 से 3 माह के अंदर ही गर्भित करवा लेना चाहिए।
५. अक्सर पशुपालक अपने पशुओं की गर्मी के लक्षणों की ठीक से जांच भी नहीं करते तथा कई बार तो कृत्रिम गर्भाधान केंद्र तक पशु ले जाने की परेशानी से बचने के लिए भी पशुपालक गर्मी में आए पशुओं को केंद्र पर नहीं लाते हैं। कृत्रिम गर्भाधान को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे मुख्य कारण पशुपालकों को गर्मी के सही लक्षण एवं उसकी अवस्था की सही जानकारी न होना होता है। अतः चिकित्सकों का यह दायित्व है क्षेत्र में बहुउद्देशीय चिकित्सा शिविरों एवं गोष्ठियों के माध्यम से आम पशुपालकों को गर्मी के सही लक्षणों एवं कृत्रिम गर्भाधान के उपयुक्त समय की जानकारी अवश्य देनी चाहिए।
६. पशुपालक अक्सर अपने पशु को गर्भाधान के लिए या तो गर्मी के प्रारंभ वाली अवस्था अर्थात 12 घंटे के अंदर या फिर बाद की अवस्था अर्थात 24 से 36 घंटे बाद केंद्र पर लाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में केवल 40 से 50% पशु ही सही समय पर कृत्रिम गर्भाधान के लिए लाए जाते हैं। शेष 50 से 60% पशुओं के पशुपालकों को उसकी गर्मी की अवस्था की पहचान का सही ज्ञान नहीं होता है।
७. कृत्रिम गर्भाधान की वास्तविक सफलता के लिए आवश्यक है की गर्भाधान प्रक्रिया के बाद गर्भित पशु का समय से गर्भ परीक्षण किया जाए।
८. इसके अतिरिक्त कुपोषण एक ऐसी समस्या है जो पशुओं में प्रजनन क्षमता को सबसे अधिक प्रभावित करती है अतः पशुओं को कुपोषण की समस्या से बचाएं।
कृत्रिम गर्भाधान की सफलता का आधार:
१. पूर्ण प्रशिक्षित एवं योग्य कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता।
२. संक्रमण मुक्त , स्वच्छ कृत्रिम गर्भाधान उपकरण तथा वांछित उत्तम कोटि का अतिमीकृत वीर्य की उपलब्धता।
३. मादा के रितुकाल का पूर्ण ज्ञान व सूचना जो कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता को दी जानी है व समय से दी गई हो।
४. पशुपालक को पशु पर पूर्ण ध्यान देना व उसके स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना।
५. पशु का प्रजनन स्वास्थ्य उत्तम होना चाहिए अर्थात पशु प्रजनन रोग मुक्त होना चाहिए।
कृत्रिम गर्भाधान की सफलता हेतु मुख्य सुझाव:
१. पशु को ऋतु में आने पर मध्य से अंतिम अवस्था में कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए।
२. मादा पशु अक्सर साईं काल 6:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे के मध्य गर्मी में आती हैं।
३. कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।
४. बच्चा देने के बाद पशु को सामान्य प्रसव के उपरांत 2 माह के अंदर एवं असामान्य प्रसव के बाद 3 माह के अंदर उन्हें गर्भित कराएं।
५. कृत्रिम गर्भाधान कराने के पश्चात पशु में गर्मी के लक्षणों की जांच 20 से 21 दिन पश्चात अवश्य करनी चाहिए, यदि पशु गर्भित नहीं हुआ होगा तो वह पुनः 20 से 21 दिन बाद गर्मी पर आएगा।