केनाइन पारवो वायरस संक्रमण

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केनाइन पारवो वायरस संक्रमण

डॉ. प्रवीन बानो , सहायक आचार्य , पशु व्याधिकी विभाग , सी.वी.ए.एस., राजुवास , बीकानेर

केनाइन पारवो वायरस संक्रमण श्वानो में होने वाला अत्यधिक खतरनाक संक्रमण है जो की एक प्रकार के वायरस से होता है । यह केनाइन पारवो वायरस टाइप 2 से होता है । यह वाइरस श्वानो की श्वेत रक्त कोशिकाओं और जठर संबंधी मार्ग को प्रभावित करता है । इसके अलावा कम उम्र के श्वानो में यह वाइरस हृदय की मांसपेशियों को भी  प्रभावित कर सकता है । श्वानो में यह वायरस संक्रमण 6 से 20 सप्ताह की उम्र के बीच के श्वानो में, बिना टीकाकरण वाले श्वानो में ज्यादा होता है । श्वानो की कुछ नस्ले जैसे- जर्मन शैफर्ड, डॉबरमैन, बुल टेरियर, रॉटविलर एवम स्पिंगलर स्पैनियल आदि प्रजातियां इस संक्रमण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है।

इस रोग का फैलाव संक्रमित श्वानो के सीधे संपर्क में आने, संक्रमित श्वानो के मल एवम् अपशिष्ट पदार्थ के संपर्क में आने से होता है । यह वायरस दूषित सामानों एवम् सतहो के संपर्क में आने से भी आसानी से फैल सकता है । यह वाइरस सर्दी, गर्मी, नमी व शुष्कता के प्रति प्रतिरोधी है और लंबे समय तक पर्यावरण में जीवित रह सकता है। यह संक्रमित श्वानो के मल की थोड़ी मात्रा में भी वायरस उपस्थित हो सकता है एवं अन्य श्वानो को संक्रमित कर सकता है यह वायरस संदूषित पदार्थों जैसे- भोजन व पानी के बर्तन, संक्रमित जगहों, संक्रमित कपड़ों आदि से भी फैल सकता है।

केनाइन पारवो वायरस संक्रमण के प्रमुख लक्षणों में श्वान का सुस्त रहना, बुखार आना, उल्टी करना, खूनी दस्त होना, पेट में दर्द एवं सूजन आना आदि होते है । भूख में कमी होना भी पारवो वाइरस संक्रमण का लक्षण है। इस संक्रमण की गंभीरता के आधार पर हर एक श्वान में लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। लगातार उल्टी, दस्त होने की वजह से स्वान के शरीर में निर्जलीकरण हो जाता है और आंतों व प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान होने से श्वान की मृत्यु भी हो सकती है। उचित उपचार के अभाव में अधिकांश श्वानों में लक्षण प्रकट होने के दो से तीन दिन के भीतर मृत्यु हो जाती है।

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उपचार एवम् रोकथाम

  • इस वायरस संक्रमण के लिए कोई सुनिश्चित इलाज नहीं है। श्वानों में लक्षणों के प्रकट होने के आधार पर इस संक्रमण का इलाज किया जाता है। इस संक्रमण के लक्षण प्रकट होने के तुरंत पश्चात पशु चिकित्सक की सलाह लेकर उसका इलाज करवाया जाना चाहिए।उल्टी व दस्त होने की वजह से शरीर में लवण व द्रव्य की कमी को पूरा करने के लिए बाहर से लवण व द्रव्य दिए जाने चाहिए।
  • रक्तस्त्रावी आंत्र के उपचार हेतु ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक व लक्षण आधारित उपचार दिया जाना चाहिए।
  • अगर लगातार उल्टियां हो रही हो तो कम से कम 24 से 26 घंटे तक उसे कुछ ना खिलाए व पिलाए तथा तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाकर उचित इलाज करवाये ।

इस संक्रमण की रोकथाम हेतु संक्रमित श्वान को स्वस्थ श्वानों से अलग रखें तथा आवास स्थल की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। श्वानों के मल मूत्र तथा अन्य शारीरिक विसर्जनों का उचित रूप से निस्तारण करें। उचित समय पर पशुचिकित्सक की सलाह पर टीकाकरण अति आवश्यक रूप से करवाये ।

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