भारतीय मुर्गीपालन में नवीन प्रौद्योगिकी
डॉ. मीनाक्षी एस. बावस्कर और डॉ. गौतम आर. भोजने
पोल्ट्री क्षेत्र राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में पशुधन 14% सकल घरेलू उत्पाद में 1% का योगदान देता है। भारत अब दुनिया का तीसरा अंडा उत्पादक (एफएओ) है। पोल्ट्री मांस ग्लोबल मांस मांग का सबसे तेजी से बढ़ने वाला घटक है।ऑटोमेशन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स ने मुर्गीपालन व्यवसाय में बडी क्रांति ला दी है। पोल्ट्री फार्म में तापमान, आर्द्रता और प्रकाश की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए स्मार्ट सेंसर और मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग किया जाने लगा है। स्वचालित दाना पानी व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि पक्षियों को सही पोषण मिले और मेहनत कम हो।पोल्ट्री उद्योग का महत्व है,पोल्ट्री फार्मिंग का मुख्य उद्देश्य है अंडे, मांस आदि का उत्पादन।
मुर्गीपालन में आधुनिक तकनीकें–
- समग्र दक्षता और स्वच्छता को बढ़ाने के लिए स्वचालित नियंत्रण प्रणाली,
- स्वचालित शॉवर,
- कूलिंग पैड
- कुशल फ़ीड वितरण प्रणाली
- डिजिटल वायु गुणवत्ता मॉनिटर अमोनिया और कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्तर की वास्तविक समय पर रीडिंग
मुर्गी पालन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग–
एआई (आर्टीफिसिअल इंटेलेंजेन्स ) तकनीक के साथ वास्तविक समय डेटा का विश्लेषण करके, पोल्ट्री किसान बेहतर फ्लोक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सटीक तापमान नियंत्रण, प्रकाश और आर्द्रता के माध्यम से दैनिक कृषि गतिविधियों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन कर सकते हैं।
रोग निदान और रोकथाम: एआई-सक्षम पर्यवेक्षण के साथ अपने पोल्ट्री फ्लोक के स्वास्थ्य की जांच रख शकते है ।
पोल्ट्री में एआई के लिए आवश्यक उपकरण–
- मोम से बंद स्टेम के साथ छोटा ग्लास फ़नल,
- गर्भाधान सिरिंज,
- चौड़े मुंह वाली कांच की शीशी,
- छोटा पाइरेक्स वीर्य कप,
- बड़ा फ्लास्क।
अपने नियमित मुर्गी पालन में और अधिक मुनाफ हासिल करने के लिए, सुचारू और लाभदायक मुर्गी पालन और प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कूच जरुरी बाते
पोल्ट्री फार्म के स्थान एवं निर्माण का चयन–
- शहर से दूर, शांत, बिना प्रदूषण वली जगेह
- पर्याप्त रूप से हवादार, अच्छा वायु संचार
- सड़क और परिवहन के लिए सुलभ।
- अधिक धूप से बचने के लिए पूर्व-पश्चिम की ओर फार्म का मुख करें।
- भीड़भाड़ से बचने के लिए पर्याप्त जगह
- प्रत्येक पक्षी के लिए 2 वर्ग फुट जगह बनाए रखी जानी चाहिए
- फ्री-रेंज खेती के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होती है
- स्वच्छ एवं निरंतर जल पूर्ति
- स्वस्थ चूज़ों का चयन करें और प्रजनन करें
- अच्छी उत्पादन क्षमता, मजबूत और रोग प्रतिरोधक नस्लें,
- नस्लें आपकी जलवायु के लिए उपयुक्त और अनुकूल होनी चाहिए।
- स्वच्छता परिवेश
- उचित वेंटिलेशन और अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड संचय से बचने के लिए व्यक्तिगत आश्रयों के बीच कम से कम 40 फीट की दूरी
- फार्म परिसर और आसपास को साफ-सुथरा रखे
- आगंतुक ने पहले बड़े पक्षी को मिलन होगा उसके बाद छोटे पक्षी को, जिससे बीमारी और संदूषण न फैले।
- मृत और कमजोर पक्षियों को हटा दे
- मुर्गी फार्म, उनका भोजन उपकरण और पाणी पीने वाले बरतन साफ रखे
दाणा और पानी
- अंडे और चिकन मांस की गुणवत्ता, उनको खिलाए गए दाना पाणी के गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
- उनकी उम्र और वजन के अनुसार, अच्छी गुणवत्ता और संतुलित आहार जरुरी होता है (प्रोटीन और पोषण संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर)
- मुर्गीपालन के लिए आधुनिक आहार में बड़े पैमाने पर अनाज, प्रोटीन और विटामिन अनुपूरक शामिल होने चाहिये
- मक्का और सोयाबीन कि उत्पादन में प्रमुख भूमिका है क्योंकि ६०-७०% फ़ीड में मक्का और सोया प्रोटीन होता है।
- फ़ीड अग्रणी फ़ीड निर्माताओं से खरीद शकते है।
- लेयर्स और ब्रॉयलर के लिए दिया जाने वाला फीड उनकी विशिष्ट आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अलग होता है।
- लेयर फीड को अंडे के उत्पादन की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर है।
इसमें बहुत कम वसा होती है क्योंकि इससे वजन नहीं बढ़ना चाहिए, आवश्यक पोषण के अनुसार और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए संतुलित आहार प्रदान किया जाता है।
- ब्रॉयलर आहार के लिए उनके आहार में अधिक ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता होती है क्योंकि वे बहुत तेजी से बढ़ने वाले पक्षी हैं।
- उचित विकास के लिए ब्रॉयलर चिकन को विटामिन युक्त पूरक की आवश्यकता होती है, उनके आहार में प्रोटीन युक्त भोजन और पर्याप्त वसा भी शामिल होती है जो तेजी से विकास को प्रोत्साहित करती है और कोमल और स्वस्थ चिकन देती है।
- साफ पानी नियमित रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए
- पाइपलाइनों को नियमित समय अंतराल में साफ किया जाना चाहिए।
- फीड साफ और सूखा रहना चाहिए। दूषित चारा मुर्गीपालन को संक्रमित कर सकता है।
- नम चारा फंगल विकास को प्रोत्साहित करता है।
कुक्कुट रोग की रोकथाम और स्वास्थ्य प्रबंधन:
- टीकाकरण फ्लोक के स्वास्थ्य प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
- बाहरी परजीवियों के लिए पक्षियों का नियमित रूप से निरीक्षण किया जाना चाहिए और शेड के चारों ओर फॉर्मेलिन का छिड़काव करना चाहिए।
- बीमार पक्षियों की पहचान करना और उनका इलाज करना चाहिये।
- प्राथमिक भीड़ से बीमार मुर्गियों और अन्य मुर्गों को हटा दें ।
- संक्रमण की पहचान होने पर सही उपचार दें।
- बीमार मुर्गीओंको पूरी तरह ठीक होने तक समूह से अलग रखें।
- बहु-आयु फ्लोक को अलग करना।
- संक्रमण फैलने से रोकने के लिए मृत और कमजोर पक्षियों की नियमित जांच की जानी चाहिए और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए।
उपरोक्त तकनीकों का पालन करके किसी स्थान के चयन और फार्म के निर्माण का अंदाजा लगाया जा सकता है।
भारत में पोल्ट्री उद्योग की चुनौतियाँ –
एवियन इन्फ्लुएंजा (बर्ड फ्लू) जैसी बीमारियों के फैलने से मुर्गों को मार दिया जाता है, ऑर्डर रद्द कर दिए जाते हैं और कीमतों में वृद्धि होती है जिससे उद्योग पर गहरा असर पड़ता है। कच्चे माल की कमी एक और मुद्दा है. सोयाबीन भोजन की कीमत में वृद्धि हुई है, जिससे चारा निर्माताओं को पक्षियों को दिए जाने वाले आहार के मामले में समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा है
मुर्गी पालन को कैसे बेहतर बनाये–
मुर्गीपालन दक्षता बढ़ाने के लिए पशुपालकों द्वारा अपनाई जाने वाली जरुरी विधियाँ
- जल प्रबंधन
- फ़ीड रणनीति
- सुविधाजनक आश्रय और वेंटिलेशन सुविधाएं
- जैव सुरक्षा सावधानियां
- नियमित टीकाकरण और स्वास्थ्य विश्लेषण
मुर्गीपालन के दो मुख्य उद्देश्य
- बेहतर प्रथाओं के साथ पालन के तरीकों के बारे में आम जनता के लिए प्रदर्शन
फार्म के रूप में कार्य करना।
- किसानों को उनके द्वारा उचित दरों पर उन्नत प्रजनन स्टॉक की पूर्ति करना
भारतीय कृषि में मुर्गीपालन की भूमिका–
मुर्गीपालन हमारे देश में बहुत पुरानी प्रथा है और अब यह ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। पोल्ट्री उद्योग का संगठित क्षेत्र कुल उत्पादन का लगभग ७०% योगदान दे रहा है और शेष ३०% भारतीय पोल्ट्री बाजार में असंगठित क्षेत्र से है।
ग्रामीण विकास में मुर्गीपालन की भूमिका–
९० % से अधिक ग्रामीण परिवार कुक्कुट पक्षियों की एक या अधिक प्रजातियाँ रखते हैं। काफी ग्रामीण मुर्गीपालन उत्पादन में गरीबी कम करने, कुपोषण मिटाने, सहायक आय उत्पन्न करने, महिलाओं को सशक्त बनाने और देश के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में लाभकारी रोजगार प्रदान करने की सिद्ध क्षमता है।
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लेखक १. डॉ. मीनाक्षी एस. बावस्कर सहाय्य्क प्राध्यापक, पशुप्रजनन व प्रसूती शास्त्र,नागपूर पशु चिकित्सा कॉलेज,नागपूर, महाराष्ट–४४००१३,मोबाइल नंबर +९१५८०४७००० ईमेल-drmeenakshi.vet@gmail.com २. डॉ. गौतम आर. भोजने सहाय्य्क प्राध्यापक, वेटेरिनरी क्लिनिकल मेडिसिन,नागपूर पशु चिकित्सा कॉलेज,नागपूर, महाराष्ट–४४००१३,मोबाइल नंबर +९८२२३६०४७५