ट्रामेटिक रेटिकुलाइटिस (traumatic reticulitis)
यह रोग मुख्यरूप से गाय व भैसों मे होने वाला रोग है ! जब पशु अपने आहार/भोजन के साथ किसी तीखे व नुकिले बाह्य पदार्थ (वस्तु) जैसे – कील , तार का टुकड़ा , सुई , आलपीन आदि को खा जाता है तो यह अखाध पदार्थ रेटिकूलम मे साधारणतया इकठा रहता है और रेटिकूलम की दिवार मे छेद करता हुआ वक्ष गुहा की पेरिटोनियम मे चुभ जाती है तो इसे traumatic reticuloperitonitis (TRP) कहते है ! इसे hardware disease , foreign body syndrome भी कहते है !
रोगकारक (etiology):
गाय व भैस अपना आहार पहले चबाती नही है , केवल निगलती है तथा बाद मे फुसरत मे जुगाली करके चबाती है , इसलिए उस चारे के साथ कील , तार , सुई , आलपीन व कॉच आदि के टुकडे भी चले जाते है !
* वे पशु जो सड़को पर घूमते उनमे ज्यादा होता है !
लक्षण (symptoms):
1. रोग के लक्षण अचानक प्रकट होते है एवं पशु भोजन ग्रहण करना बंद कर देता है !
2. रोगी प्राणी चलने-फिरने मे तकलीफ महसूस करता है तथा चलता है तो बहुत धीरे-धीरे चलता है एवं कराहने की आवाज करता है !
3. वह पेट दर्द के लक्षण प्रदर्शित करता है !
4. वह प्रायः खडा रहता है तथा बैठते समय बहुत सावधानी से बैठता है !
5. उसकी पीठ तनी रहती है एवं धनुषाकार हो जाती है एवं रोगी प्राणी अपने अगले पैरो को ऊपर से चौड़ें करके खडा रहता है !
6. सांस लेने पर अधिक तकलीफ व दर्द होता है एवं साथ मे आवाज भी सुनी जा सकती है !
7. पशु को हल्की बुखार आ सकती है
8. पशु को बार-बार आफरा आता है !
उपचार (treatment):
Acute व chronic reticulitis दोनों मे ही किसी भी प्रकार के उपचार से अच्छे परिणाम नही मिलते है ! फिर भी निम्न प्रकार इसका उपचार किया जा सकता है !
* रोगी प्राणी को ऐसी जगह बाँधना चाहिए जिससे उसके अगले पैर पिछले पैर की तुलना मे ऊँचाई पर रहे एवं प्राणी ज्यादा हिल-डुल नही सके !
* प्राणी को सूखा चारा सामान्य से आधी मात्रा मे देना चाहिए !
* किसी प्रकार के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए प्रतिजैविक औषधियां (antibiotics) दी जानी चाहिए !
# अगर रोग की शुरुआत मे ही रोगकारक का पता लग जाये तो रूमनोटोमी (rumenotomy) नामक शल्य क्रिया करवा ले , यही सबसे अच्छा उपचार है !