पशु प्रजनन में अपनाएं आधुनिक तकनीक

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पशु प्रजनन में अपनाएं आधुनिक तकनीक
‘‘देश में देश हरियाणा जित दूध दही का खाणा’’। जिसके घर मुर्रा उसका पूत ताकतवर व स्वस्थ घणा’। इस कहावत को प्रमाणित कर दिया हमारे प्रदेश के खिलाड़ियों के द्वारा हाल के आयोजित प्री-कब्बड्डी तथा ओलम्पिक व राष्टज्डमण्डल खेलों में अपना नाम दर्ज करवा कर। मुर्रा की मांग भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों में ही नहीं बल्कि विदेशी भी इसकी तरफ लालायित रहते हैं तथा इस कहावत के साथ प्रदेश को पहचानते हैं ‘मुर्रा है जहा° हरियाणा है वहा°’। हम अपने पशुओं की प्रजनन प्रक्रिया में आधुनिक तकनीक अपनाकर, सुचारू रूप से ब्यांतकाल रखकर, दूध उत्पादन बढ़ाकर अधिक लाभ कमा सकते हैं।
आज हमारे प्रांत के तकरीबन गा°व के हर घर में मुर्रा है तथा प्रदेश में भैंसों की संख्या लगभग 60 लाख है तथा गाय 15 लाख हैं और दूध का उत्पादन 6.66 मीलियन टन के करीब है। हरियाणा राज्य में प्रति व्यक्ति दूध 708 ग्राम उपलब्ध है तथा राष्टज्डीय उपलब्धता हमारे राज्य से करीब तीसरा हिस्सा कम है। अगर हम पशुधन में 2020 के लिए आधुनिक तकनीक अपनाकर कार्य करेगें तो अनुमानित प्रगति इस प्रकार से हो सकती है। अगर कृत्रिम गर्भाधान जो आज 60 प्रतिशत तक अपनाया है उस को बढ़ाकर 90 प्रतिशत तक पशुपालक अपनाएंगे तो दूध का उत्पादन 12 मीलियन टन होगा जिससे प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1000 ग्राम हो सकती है इसके साथ-साथ
हमारी जनसंख्या का स्वास्थ्य भी इस प्रकार से होगा ‘जो मुर्रा का दूध पियेगा, वह लम्बा जीयेगा’, क्योंकि भैंस के दूध में क्लोस्टज्डाॅल की मात्रा कम होती है तथा विशेष तौर पर हृद रोगियों व सेहत पसंद लोगों के लिये अच्छा रहता है। प्रदेश के पशुपालकों को कुछ आधुनिक ज्ञान व जागरूकता की कमी होने के कारण दुधारू पशुधन में प्रजनन सम्बन्धी विकार व समस्याए° आ जाती हैं। खैर इसके लिए अब हमने प्रदेश के पशु पालकों को जागरूक बनाने के लिये एक योजना तैयार की है जिसके तहत हम प्रदेश के पशुपालक तक हमारी पशुधन सम्बन्धी सभी योजनाओं की जानकारी पहु°चाने की कोशिश करेंगें। जैसे कि हमारी भैंस 12 से 14 महीने में हर वर्ष ब्यानी चाहिए तथा कम से कम 300 दिन तक एक ब्यांतकाल में दूध प्राप्त होना चाहिए। इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिये हमें निम्नलिखित बातों का उचित प्रबन्ध एवं अमलीजामा पहनाना है:-
कुछ बातें जो विशेष तौर से पशुपालकों ने अच्छी तरह ध्यान में रखकर जैसे गर्मी में आये पशु को पहचानना। यदि पशुपालकने इस बात पर अच्छी तरह ध्यान नहीं दिया अर्थात गर्मी में आये पशु को नहीं पहचाना तो फिर दोबारा गर्मी में आने के बाद 21 दिनपर चली जाती है। इसलिए यह दैनिक व्यवस्था में पशुपालन के व्यवसाय में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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इसके साथ-साथ ब्याने की तिथि
सबसे पहले हमें पता होना चाहिए कि हमारा पशु किस तारीख को ब्यांता था। इसके ठीक 21 दिन बाद पशु गर्मी में आता है,इस समय पशु की गर्मी को पहचानना बहुत ही जरूरी है। परन्तु देखने में आया है कि हमारे ज्यादातर किसान तथा पशुपालक भाईयों को पता ही नहीं चलता कि पशु गर्मी में आया है। इसके लिए पशुपालक भाईयों को बताना चाहेंगें कि पशु गर्मी में आता है तब क्या-क्या लक्षण दिखाता है –
1. मुँह से बोलती है। यानि बार-बार रम्भाने की तेज कड़क आवाज करना।
2. योनि सूजी हुई, लाल व चिपचपी हो जाती है तथा उसमें चिकना पदार्थ निकलता है।
3. गर्म पशु दूसरे पशु पर चढ़ता है।
4. गर्म पशु बैचेन रहता है तथा खाना पीना कम कर देता है तथा अन्य पशुओं से अलग रहता है।
5. पशु दूध की मात्रा कम कर देता है तथा डोेका मोड़ लेता है।
6. गूंगा आमा।
इसलिए इस तरह के लक्षण देखने के लिए पशु को हमें सुबह तथा सा°यकाल रोजाना ध्यानपूर्वक देखना चाहिए तथा रोजाना सांड को सुंघाना चाहिए। ब्याने की तिथि को ध्यान में रखना चाहिए व पहली गर्मी में मादा पशु को सांड से नहीं मिलवाना चाहिए। ज्यादातर गाय गर्मी में 8-24 घण्टे तक रहती हैं तथा उसे सांड से मिलाना या कृत्रिम गर्भाधान गर्मी के अंतिम 8 घंटे में करवाना चाहिए। इस तरह भैंस में गर्मी 12 से 36 घण्टे तक रहती है तथा उसे सांड से मिलाना या कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए। मादा पशु को गर्मी के आखरी 8 घण्टे में सांड से मिलवाना चाहिए।

प्रजनन में सांड-झोटा सम्बन्धी सुझाव
1. किसान भाईयों साण्ड झुण्ड के आधे के बराबर होता है इसका मतलब है कि जो बच्चा सांड के वीर्य से पैदा होगा उसके
आधे गुण बच्चे में होंगें। इसलिए सांड भी अच्छी नस्ल वाला अच्छे गुणों वाला ;दूध इत्यादिद्ध तथा ताकतवर होना चाहिए।
2. सांड का प्रजनन प्रक्रिया के लिए प्रयोग दो साल की उम्र से पहले नहीं करना चाहिए तथा उसका वजन 300 किलोग्राम के लगभग तथा देखने में ताकतवर होना चाहिए।
3. सांड का प्रजनन में प्रयोग एक दिन में तीन बार से ज्यादा नहीं करना चाहिए तथा एक दिन छोड क़ र करना चाहिए। लगातार तथा बेहिसाब सांड का प्रयोग करने से सांड शुक्राणु रहित वीर्य देने लगता है जिससे मादा भैंसों में खालीपन व फिरने की समस्या ज्यादा होती है जो कि जाने अनजाने में भैंस प्रजनन में (नये दूध करने में योगदान देते हैं)। यह मुर्रा भैंस नस्ल को बिगाड़ने/सुधारने में बहुत ही घातक व खतरनाक है। इसलिए पशुपालक भाईयों से प्रार्थना है कि प्रजनन में बुग्गी वाले झोटे की सेवा कभी नहीं लेनी चाहिए।

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इसके अलावा प्रजनन सम्बन्धी समस्या के अन्य कारण ये भी हो सकते हैं
1. पैतृक समस्या- एक नस्ल या पशु के अवगुण उसके बच्चों में यानि के एक वंश से दूसरे वंश में आ जाते हैं। ऐसे अवगुणों का पशुपालकों को ध्यान रखना चाहिए तथा अपने पशु का पशु चिकित्सक से ही इलाज करवाना चाहिए।
2. पशु शरीर में हार्मोनों के असंतुलन के कारण।
3. संक्रमण रोग व समस्या- विशेष तौर से बच्चा गिराने की समस्या व टी.बी. इत्यादि। ये बीमारिया° खासतौर से पशु से मनुष्य व मनुष्य से पशु को लग जाती है। पशुचिकित्सक से समय-समय पर जा°च व इलाज करवायें।
4. असंक्रमण व अन्य कारण- ये रोग विशेषतौर से पशु के ब्याने के बाद होते हैं जैसे बच्चेदानी में किसी अड़चन व रूकावट के कारण व ब्याते समय बच्चेदानी का बाहर आ जाना व जेर बाहर न निकलना तथा बच्चेदानी में जेर का सड़ जाना इत्यादि।
इसके बाद पशु का बार-बार गर्मी में आना, गर्भ धारण न करना यानि ;फिरद्ध जाना इत्यादि।
इन सभी समस्या व बीमारियों से पशुओं को निजात दिलाने के लिए हमारे हर पशु हस्पताल में अनुभवी पशु चिकित्सक हमेशा उपलब्ध रहते हैं। आप उनकी सेवाए° जरूर लें।

खनिजों की कमी तथा उसका प्रबन्ध
खनिजों की कमी के कारण पशु में प्रजनन ताकत की कमी, बांझपन तथा समय पर गाभिन न होने की समस्या आ जाती है। खासतौर से कैल्शियम, फास्फोरस, कोपर, कोबाॅल्ट, जिंक, मैगनीज और आयोडीन प्रजनन पर बहुत असर डालते हैं। हमारे प्रदेश में खासतौर से भैंसों में इन सभी प्रजनन सम्बन्धी खनिजों की कमी पाई गई है। इन सभी खनिजों की कमी को पूरा करने के लिए हमें अपने पशुओं को बरसीम, रिजका, कासनी, लोबिया, बिनौले की खल, चैकर, चावल की पालिया, गेहू°, जौं, जई व मक्का इत्यादि खिलाना चाहिए तथा जो खनिज़ मिश्रण हमारे हर गा°व के पशु हस्पताल में उच्च गुणवत्ता वाला आई.एस.आई. मार्का वाला मु∂त मिलता हैं तथा अपने पशुओं को हर वर्ग के पशुओं को नीचे लिखे हिसाब से खिलायें तथा खनिज़ों से कमी वाली बीमारियों से निजात दिलायें व प्रजनन बढ़ायें जैसे रोजाना छोटे बछड़े, कटिया को 15-20 ग्राम तथा दूध देने वाले पशुओं को 100 ग्राम तथा बीच की बड़ी कटिया तथा बछड़े को 20-30 ग्राम देना चाहिए।

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मौसम का असर
सर्दी या गर्मी के मौसम का भी प्रजनन पर असर रहता है। सर्दी तथा सामान्य मौसम में तो मादा पशु गर्मी में आता रहता है तथा नया दूध होता रहता है। ज्यादातर गर्मियों में पशु गर्मी में कम आता है। इसलिए गर्मियों में भी पशुगृ ह का तापमान सामान्य बनाकर पशुओं को रात को तथा सुबह और सांयकाल ध्यान से देखना चाहिए और मादा की गर्मी को तथा समय को ध्यान में रखते हुए साण्ड से मिलवाना चाहिए अथवा कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए। विशेष तौर से हम पशु पालक भाईयों को बताना चाहते हैं कि कृत्रिम गर्भाधान के लिए हमारे पशु चिकित्सालय व गा°वों में यह सुविधा उपलब्ध रहेगी।
आप अपने मादा पशुओं के पालन-पोषण में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके गर्मी में आए पशु की पहचान करके, सही समय पर साण्ड से मिलाकर तथा कृत्रिम गर्भाधान करवाकर, अन्य प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करके, अच्छा खान-पान व खनिजों की पूर्ति करके मौसम के असर का प्रबन्ध करके, साल में एक ब्यांत ले सकते हैं तथा 300 दिन दूध प्राप्त कर सकते हैं।
नमस्कार,
आज हम जानेंगे – पशु प्रजनन में अपनाएं आधुनिक तकनीक
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