बांझ गाय एवं बछिया से बिना बच्चा दिए दूध प्राप्त करने की उत्तम तकनीक

0
6477

बांझ गाय एवं बछिया से बिना बच्चा दिए दूध प्राप्त करने की उत्तम तकनीक

 

डॉ संजय कुमार मिश्र, एमबीएससी,पीवीएस
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा,मथुरा, उत्तर प्रदेश

श्वेत क्रांति के जनक स्वर्गीय वर्गीज कुरियन के अथक प्रयास के परिणाम स्वरूप आज के परिवेश में गांव -गांव में शंकर गाय आम तौर पर देखी जा सकती हैं। इससे दुग्ध उत्पादन में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है। परंतु इसके साथ-साथ पशुपालकों को शंकर गायों की बहुत सी बीमारियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। शंकर गाय देसी नस्ल की गाय की तुलना में पूरी तरह वातावरण के अनुसार अपने आप को नहीं ढाल पाई है जिससे उन में प्रजनन संबंधी कई विकार उत्पन्न हो जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या है कई बार गर्भाधान कराने के बावजूद पशुओं का गर्भित न होना। पशुपालक की यह आम शिकायत होती है कि विदेशी/ शंकर गाय दुग्ध उत्पादन मैं तो बहुत अच्छी होती हैं परंतु कई बार लंबे समय तक यह गर्भित नहीं हो पाती हैं। हमारे प्रदेश में बांझ पशुओं के बारे में कोई नीति नहीं है। अतः पशुपालक ऐसे बांझ पशुओं को निराश्रित छोड़ देते हैं जिससे निराश्रित गोवंश की समस्या में बढ़ोतरी हुई है। और आए दिन शहरों में इन निराश्रित गोवंश के कारण कई बार भयानक दुर्घटनाएं होती हैं । हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने निराश्रित गोवंश के संरक्षण विशेष ध्यान दिया है परंतु उत्पादकता ना होने के कारण मुख्यमंत्री सहभागिता योजना में लोग गोवंश को सही प्रकार से अंगीकार नहीं कर पा रहे हैं। यदि यह निराश्रित गोवंश दुग्ध उत्पादन में आ जाए तो निराश्रित गोवंश की समस्या से निजात पाई जा सकती है।वैज्ञानिक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि पशुओं के बिना बच्चा दिए उनसे दूध लिया जा सकता है और यह इस समस्या का समाधान हो सकता है। यह उपचार उन गायों में कामयाब है जो कि कम से कम एक बार बच्चा दे चुकी हो जिससे उनका अयन पूरी तरह से विकसित हो। हार्मोन के इंजेक्शन लगाकर दूध लेने की यह प्रक्रिया केवल गाय में ही सफल है जबकि भैंसों में नहीं। हमेशा यह याद रखना चाहिए यह प्रक्रिया नैसर्गिक गर्भाधान का तोड़ नहीं है तथा इसे हमेशा अंतिम प्रयास के रूप में प्रयोग करना चाहिए। इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल बांझ पशु से दूध लेना है तथा पशुपालक का खर्च कम करना है।

इस उपचार से अधिकतम सफलता प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें :-

गोवंश का चयन करते समय रखने वाली सावधानियां:

१.उपचार शुरू करवाने से पहले आप अपने पशु की सम्यक जांच पशु चिकित्सक द्वारा करवा कर यह सुनिश्चित कर लें कि आप का पशु दूध देने लायक है या नहीं।
२. गाय के लिए बनाई गई औषधि का प्रयोग भैंस मैं कदापि ना करें क्योंकि गाय की औषधि का भैंस में प्रयोग भैंस के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

उपचार प्रारंभ करने के पूर्व रखी जाने वाली सावधानियां:

  1. जिस गाय का उपचार किया जाना है वह पूर्णता स्वस्थ हो और कम से कम 40 दिन की सूखी हुई हो।
  2. यदि बछिया का उपचार किया जाना है तो वह स्वस्थ हो और उसकी उम्र कम से कम ढाई वर्ष तथा उसका वजन भी कम से कम 300 किलोग्राम हो l
  3. पशु को कांटे पर तोलकर या उसका वजन दिए गए फार्मूले से निकालकर उसके वजन के अनुसार ही किट प्राप्त करें।

पशु का वजन निकालने का फार्मूला निम्न प्रकार है –

वजन= लंबाई× घेरा / स्थिरांक

लंबाई – पशु की लंबाई सेंटीमीटर में( कंधे से लेकर जहां पर पूंछ शुरू हो)
घेरा – पशु का घेरा सेंटीमीटर में (अगली टांगों के नीचे से छाती का पूरा घेरा)
स्थिरांक – एक निश्चित स्थिरांक जोकि –

  • यदि घेरा 164 सेंटीमीटर या उससे कम हो तो स्थिरंक=
    64.4
  • यदि घेरा 165 से 200 सेंटीमीटर के बीच हो तो स्थिरांक = 61
  • यदि घेरा 200 सेंटीमीटर या उससे अधिक हो तो स्थिरांक= 57.5
    ४. अंडाशय का आकार उचित होना चाहिए । यदि अंडाशय अविकसित है, या उसका आकार छोटा है तो संभवतः पशु इस उपचार के बाद भी दूध ना दे। इसलिए इस विधि द्वारा पशु से दूध प्राप्त करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है की पशु का कम से कम एक अंडाशय तो अवश्य विकसित हो।
    ५. अंडाशय के ऊपर कोई सिस्ट नहीं होना चाहिए तथा उसका पीतकाय अर्थात कॉरपस लुटियम सिकुड़ा हुआ होना चाहिए यदि अंडाशय के ऊपर सिस्ट हो तो उसको समाप्त करने के लिए उचित हार्मोन दें। सिस्ट को समाप्त करने के पश्चात पुनः जांच कर ले कि कहीं दोबारा सिस्ट तो नहीं बन गए हैं।
    ६. पशु के गर्भाशय की जांच करके यह सुनिश्चित कर लें कि गर्भाशय में कोई संक्रमण/ मवाद इत्यादि ना हो। यदि संक्रमण है तो पहले उसका उपचार कराएं। गर्भाशय का संक्रमण पूरी तरह से ठीक होने पर ही इस विधि को अपनाएं। संक्रमण के निवारण के लिए घरेलू विधि में एक किलोग्राम देसी घी 1 किलोग्राम चीनी और 1 किलोग्राम सूजी लेकर उसका हलवा बना ले। पूरे हलवे को तीन भागों में बांट कर पशु को पहला भाग पहले दिन दूसरा भाग दूसरे दिन तथा तीसरा भाग तीसरे दिन खिलाएं। उपरोक्त के साथ-साथ प्रथम दिन से 1 लीटर की यूट्रीवाइव की बोतल में से प्रतिदिन चौथाई भाग अर्थात ढाई सौ मिली लीटर मात्रा लेकर लगातार चार दिन तक एक पशु को पिलाएं। इस उपचार से पशु का गर्भाशय पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगा।
    ७. पशु को पेट के कीड़े मारने की दवा उपचार शुरू करने के एक सप्ताह पूर्व ही दे दे। पौष्टिक एवं संतुलित आहार दें। 50 ग्राम विटामिन एवं आवश्यक खनिज लवणों का मिश्रण पेट के कीड़ों की दवा देने के दूसरे दिन से देना प्रारंभ करें और कम से कम 20 दिन तक अवश्य दें।
    ८. सर्दी के मौसम में औषधियां अक्सर जम जाती हैं अतः यह ध्यान रखें कि औषधि किसी सुरक्षित स्थान जैसे अलमारी इत्यादि में रखें फ्रिज में नहीं। यदि दवाई जमी हुई है तो शीशिओं को, तब तक हिलाते रहे जब तक की औषधि पूरी तरह घुल ना जाए। जमी हुई औषधि को घोलने के लिए शीशिओं को, हल्के गुनगुने पानी में भी रख सकते हैं।
READ MORE :  BACKYARD POULTRY FOR WOMEN EMPOWERMENT AND NUTRITIONAL

उपचार प्रारंभ करने का समय:

१. नियमित रूप से गर्मी में आने वाले पशुओं का उपचार उसके गर्मी में आने के छठे दिन से ही प्रारंभ करें। नियमित रूप से गर्मी में ना आने वाले पशु का उपचार किसी भी दिन से उसी अवस्था में किया जा सकता है जबकि पशु का अंडाशय ठीक हो और गर्भाशय में संक्रमण ना हो।
२. उपचार के दौरान लगातार अपने पशु चिकित्सक के संपर्क में रहें।

उपचार के दौरान सावधानियां:

१. उपचार के 12 दिनों के अंदर यदि पशु गर्मी में आ जाता है तो उस को ठंडाई की एक बोतल पिला दे। जिससे उसकी गर्मी शांत हो जाए। लंबे समय तक गर्मी में बने रहने पर पशु अपनी क्षमता से कम दूध देगा। यदि 12 घंटों के अंदर गर्मी शांत नहीं होती है तो पशु को पुनः एक ठंडाई की बोतल और पिला दे।
२. जिस दिन उपचार प्रारंभ करें उस दिन तो पहला दिन माने तथा भावी समस्त प्रक्रियाओं की गणना उसी दिन से करें। प्रत्येक दिन की प्रक्रिया पूरी करने के पश्चात समय सारणी में उस दिन के सामने सही का निशान अवश्य लगा दे।
३. पशु को इंजेक्शन लगाने के लिए 5ml की सिरिंज का प्रयोग करें। ध्यान रखें की नीडल की लंबाई भी छोटी हो।
४. प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन के घोलो की शीशियों, मैं से 2- 2ml घोल, एक ही सिरिंज में लेकर पशु की गर्दन में सब क्यूटेनियस इंजेक्शन द्वारा सुबह और शाम लगातार 7 दिन तक लगाएं।
५. सुबह और शाम के इंजेक्शन गर्दन में एक ही और ना लगाएं यदि सुबह का इंजेक्शन गर्दन में दाएं ओर लगाया गया है तो शाम का इंजेक्शन बाई ओर लगाएं। औषधि 12 घंटे के अंतर से सुबह शाम लगाएं।
६. उपचार के तीसरे या चौथे दिन से कुछ पशु कम चारा खाना शुरू कर देते हैं। इसके निवारण के लिए पशु को दिन में एक बार लगातार 7 दिन तक( पहले दिन से सातवें दिन तक) प्रतिदिन 50 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट अर्थात खाने का सोडा गुड या आटे की लोई में मिलाकर खिलाएं। यदि पशु फिर भी कम चारा खाता है या चारा खाना बंद कर देता है तो पशु की जीभ पर, 200 ग्राम काला नमक रगड़ कर एक हाजमा की पूरी बोतल लगभग 800 एम एल पिलाएं पशु के चारा खाने की दशा के अनुसार हाजमा की एक और बोतल अगले दिन पिलाई जा सकती है।
७. उपचार आरंभ करने के पांचवें दिन से पशु के थनों को प्रतिदिन सुबह और शाम 10 से 15 मिनट तक मालिश करें यदि दोनों में से कोई भी द्रव या सराव निकले तो उसे निकाल कर फेंक दें।
८. उपचार प्रारंभ करने के 11 या 12 दिन से पशु दूध देना प्रारंभ कर देता है। 14 दिन तक दूध की मात्रा ढाई सौ ग्राम या उससे अधिक हो जाती है। 20 वें दिन तक पशु जितना भी दूध दे उस दूध को उसी पशु को पिला दें। 21 वे दिन से ही दूध को अपने प्रयोग में लाना प्रारंभ करें।
९. यदि पशु 11 या 12वें दिन से दूध देना प्रारंभ नहीं करता दूध की मात्रा कम है तो पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

READ MORE :  THE VETERINARIAN RESPONSE TO THE COVID 19 CRISIS

उपचार की समय सारणी:

१.पहला दिन –
(क) “पी” और “ई”धोलो में से 2-2 एम एल घोल 5ml की सिरिंज में लेकर कम लंबाई की सुई से पशु की गर्दन में सबक्यूटे नियस इंजेक्शन द्वारा सुबह और शाम लगाएं। सुबह और शाम के इंजेक्शनो को गर्दन में एक ही ओर ना लगाएं। यदि सुबह का इंजेक्शन गर्दन में दाएं ओर लगाया गया है तो शाम को इंजेक्शन बॉई ओर लगाएं। औषधि ठीक 12 घंटे के अंदर से सुबह शाम लगाएं।
(ख) 50 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट अर्थात खाने का सोडा दिन में एक बार गुड़ या आटे की लोई में मिलाकर खिलाएं।

२. दूसरे दिन से चौथे दिन तक-

“पी” और “ई” घोलों को पहले दिन की तरह सुबह और शाम दे,एवं 50 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट खिलाएं।

३. पांचवा दिन-
(क) “पी” और “ई” घोलो को चौथे दिन की तरह सुबह और शाम दें। 50 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट खिलाए।
(ख) पशु के थनों को प्रतिदिन सुबह और शाम 10 से 15 मिनट तक मालिश करें। यदि थानों में से कोई द्रव या, शराब निकले तो उसे निकाल कर फेंक दें।
(ग) 200ml यूटेराइन टॉनिक जैसे यूटेरोटोन दिन में एक बार पिलाएं।

४. छठे से सातवे दिन-

(क) “पी” और “ई” घोलो को पांचवें दिन की तरह सुबह और शाम लगाएं। थनों को सुबह और शाम 10 मिनट तक पसाएं। 200ml युटेराटोन पिलाएं। 50 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट खिलाए।

५. आठवां दिन-

(क) 10 से 15 एम एल लेवामिसाल-७५ का एक टीका सबक्यूटेनियस लगाएं।
(ख) पशु के थानों को अन्य दिनों की तरह सुबह शाम पसाएं तथा 200ml युटेराटोन पिलाएं।

नौवां दिन-

(क) 10 से 15 एम एल टोनोफॉसफेन का एक टीका इंट्रा मस्कुलर लगाएं।
(ख) पशु के थनों को अन्य दिनों की तरह सुबह और शाम पसाएं तथा 200ml युटेराटोन पिलाएं।

दसवां दिन-

(क) “आर” घोल में से एक मिली लीटर धोल सुबह और शाम को पशु की गर्दन में सबक्यू टेनियस इंजेक्शन द्वारा लगाएं। सावधानी रखें कि टीका सबक्यूटेनियस ही लगे । किट को ठंडे स्थान पर ही रखें परंतु सर्दियों में “आर” घोल की सीसी में दवाई पूरी तरह से नहीं धुलती है और सीसी में तैरती हुई नजर आ सकती है। ऐसी स्थिति में शीसी को गुनगुने पानी में 10 मिनट तक रखें अथवा शीसी को दोनों हथेलियों के बीच में लेकर रगणे।
औषध के पूरी तरह से धुल जाने पर ही इंजेक्शन लगाएं।
(ख) एक पूरी वायल जिस पर “डी’ लिखा है का गहरा इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन दिन में एक बार लगाएं।
(ग) पशु का पसाना जारी रखें।

READ MORE :  CARE,HANDLING & MANAGEMENT TIPS OF FROZEN SEMEN & LN2 CRYOCANE/ CONTAINERS FOR BETTER AI CONCEPTION RATE

11वां दिन-

(क) “आर” एवं “डी” के इंजेक्शन दसवें दिन की तरह दे।
(ख) यदि पशु किसी भी प्रकार की बेचैनी महसूस करें जैसे चक्कर आना पसीना आना, हांफना , बुखार आना इत्यादि तो “आर” का टीका तुरंत बंद कर दें और सीसी में बची हुई दवाई को आगे प्रयोग ना करें ऐसा “आर” का इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन लगने से हो सकता है।”आर” का टीका लगने के दौरान या उसके एक या दो दिन बाद जब भी पशु बेचैनी महसूस करता है तो पशु को सुबह और शाम 10 से 15 एम एल का इंजेक्शन तब तक लगाते रहे जब तक कि पशु पूरी तरह से स्वस्थ ना हो जाए। समय सारणी के अनुसार उपचार प्रारंभ रखें और अपने पशु चिकित्सक के संपर्क में रहें।
(ग) 1 किलो प्रोलेक्ट-एम को 2 किलो गुड़ में मिलाकर बराबर भार के 10 लड्डू बना ले। 11 दिन से पशु को एक लड्डू सुबह और एक लड्डू शाम को खिलाएं।

12 दिन —

“आर” एवं “डी” के इंजेक्शन11वे दिन की तरह दें। प्रोलेक्ट-एम तथा गुड़ का मिश्रण 11 वे दिन की तरह खिलाए।

13 वा दिन –

“आर” एवं “डी” के इंजेक्शन 12 वें दिन की तरह दें। प्रोलेक्ट एम तथा गुड़ का मिश्रण 12 वें दिन की तरह खिलाएं।

14 दिन –

(क) प्रोलेक्ट एम तथा गुड़ का मिश्रण 13 दिन की तरह खिलाए।
(ख) आठवें दिन की तरह पशु को 10 से 15 एम एल लेवामिसाल-75 का एक टीका सब क्यूटेनियस लगाएं।
(ग) यदि 13 वें दिन तक भी पशु दूध देना प्रारंभ नहीं करता अथवा 14 वें दिन दूध की मात्रा ढाई सौ मिली लीटर से कम है तो अपने पशु चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।

15 वां दिन-

(क) प्रोलेक्ट- एम तथा गुड़ का मिश्रण 14 वें दिन की तरह दें।
(ख) नवे दिन की तरह पशु को टोनोफासफेन का 10 से 15 मिलीलीटर का इंजेक्शन इंट्रा मस्कुलर लगाएं।

16 वें दिन से 20 वे दिन तक-

पशु को खल चोकर मिश्रित संतुलित एवं पौष्टिक आहार देते रहें।

21 वें दिन से 25 वें दिन तक-

(क) 21 वे दिन से दूध को अपने प्रयोग में लाना प्रारंभ कर दें।
(ख) 21 वे दिन से 25 वें दिन तक एक किलोग्राम प्रोलेक्ट – एम को 2 किलो ग्राम गुड़ में मिलाकर उसके 10 लड्डू तैयार कर ले। पशु को एक-एक लड्डू सुबह और शाम प्रतिदिन खिलाएं।

26 वे दिन से 40 वें दिन तक-

पशु का दूध 40 दिन तक बढ़ता रहता है अतः सामान्य तौर पर पशु 40 दिनों के भीतर अपनी क्षमता के अनुरूप दूध देने लगता है। यदि इस दौरान पशु का दूध बढ़ना बंद हो जाए तो आप तुरंत अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें। पशु सामान्य रूप से बच्चा देने वाले पशु के अनुरूप ही लगभग पूरे व्यात दूध देता रहता है।

41वे दिन से साठवें दिन तक —

41 दिन से 7 दिन के भीतर पशु समय से गर्मी में आने लगता है । पशु की गर्मी सामान्य होते ही उसके गर्मी में आने के आठवें दिन से पशुधन खिलाना प्रारंभ करें। अगली गर्मी आने पर उसका कृत्रिम गर्भाधान कराएं।

60 दिन से 80 दिन–

इस उपचार के बाद लगभग 80% पशु 60 से 80 दिनों के अंदर ही गर्वित हो जाते हैं।

दोबारा दूध प्राप्ति- यदि पशु गर्वित नहीं ठहरता है तो उस पशु से पूरे बयात दूध लेकर तथा उसका दूध लगभग 60 दिन सुखाकर इस उपचार द्वारा उस पशु से आप दोबारा दूध ले सकते हैं । इस विधि को अपनाने से पहले आप पुनः अपने पशु चिकित्सक से अंडाशय एवं गर्भाशय की जांच अवश्य करवा लें।

टीकों के पूरे नाम
पी-प्रोजेस्ट्रोन,
ई-एस्ट्रोजन,
आर,-रिसरपीन,
डी-डेक्सामेथासोन

नोट: उपचार के दौरान यदि आप महसूस करते हैं की दूध की मात्रा अपेक्षा से कम है अथवा पशु को कोई भी परेशानी है तो तुरंत अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
*

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON