20 वीं पशुधन गणना के मुख्य बिन्दु

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20 वीं पशुधन गणना के मुख्य बिन्दु

पशुधन प्रहरी नेटवर्क

अखिल भारतीय पशुधन गणना पाँच वर्षो के अन्तराल पर पूरे देश में आयोजित की जाती हैं । यह प्रक्रिया ब्रिटिश भारत में 1919-20 में पशुधन से सम्बन्धित सूचनायें एकत्र करने हेतु सीमित क्षेत्रों में शुरू की गयी थी । द्वितीय पशुधन गणना 1924-25 में उन्ही बिन्दुओं पर की गयी । तदुपरान्त प्रत्येक पशुधन गणना में अवधारणाओं और परिभाषाओं के बदलाव के साथ सीमाओं और आच्छादन का विस्तार होता चला गया ।
आजादी के बाद प्रथम पशुधन गणना वर्ष 1951 में आयोजित की गयी तथा उत्तरोत्तर हर पाँचवे वर्ष यह गणना आयोजित की जाती हैं ।
पशुधन गणना के क्रम में वर्तमान पशुधन गणना 2017 पशुधन गणना की 20वी कड़ी है ।
पशुधन गणना प्रथम बार सम्पूर्ण भारत वर्ष में पेपर (अनुसूची) के स्थान पर टेबलेट के माध्यम से की गयी।
उद्देश्य
पशुपालन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि हैं । जिससे कृषि पर निर्भर परिवारों को अनुपूरक आय प्राप्त होती हैं । परिवारों को सहायक आय प्रदान करने के अतिरिक्त गौवंशीय, महिषवंशीय, भेंड़, बकरी, सूकर, मुर्गीपालन आदि के रूप में पशुओं के पालन के अलावा दूध, अंडे और मांस के रूप में पोषण का एक स्रोत हैं । यह देखा गया हैं कि सूखा और अन्य प्राकृतिक विपदाओं जैसे आकस्मिकताओं के समय पशुधन ही भारी संख्या में ग्रामीणों के काम आता हैं । चूकि पशुधन के स्वामित्व को समान रूप से भूमिहीन कामगारों, मजदूरों, छोटे और सीमान्त कृषकों में वितरित किया गया हैं इसलिए इस क्षेत्र में प्रगति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संतुलित रूप से विकास हो पाएगा ।
पशुधन संगणना प्रशासनिक योजनाकारों, पशुपालन, वैज्ञानिकों और अन्य जो इस क्षेत्र के विकास में कार्यरत हो, के लिए उपयोगी सिद्व हो सकती हैं । पशुओं के क्षेत्र में उचित योजना बनाने, कार्यक्रम तैयार करने, पुनर्निमाण करने एवं विभिन्न योजनाओं को सही दिशा देने, पशुधन के क्षेत्र में त्वरित व उचित विकास प्रदान करने में पशुधन संगणना के आंकड़े राज्य के लिए सहायक होगें ।
लाभ
पशुपालन क्षेत्र में कम निवेश के साथ भी वृद्वि होने की काफी संभावनाएं विघमान हैं । इस क्षेत्र में किसी नीति/कार्यक्रम की योजना तैयार करने के लिए, उनके प्रभावी क्रियान्वयन, उनके प्रभाव का अनुश्रवण और मूल्यांकन, संख्याओं का अनुमान, मूल आंकड़े हैं, जो पशुधन संगणना पर आधारित हैं । पशुधन की आयु, लिंग इत्यादि सहित श्रेणीवार आधार पर पशुधन संख्या की विस्तृत सूचना का यह एक मात्र स्रोत हैं । इससे कुक्कुट और पशुधन क्षेत्र में उपयोग होने वाले उपकरण तथा मशीनरी पर भी अलग से सूचना प्राप्त होती हैं । अखिल भारतीय आधार पर यह गणना की जाती हैं और ग्रा

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20वीं पशुगणना रिपोर्ट———-

देश में गधों की आबादी 61 फीसदी घटी, 35.75 करोड़ पशु बढ़े
केंद्रीय मत्स्यपालन एवं डेरी मंत्रालय द्वारा बुधवार को 20वीं पशुगणना रिपोर्ट जारी की गई. देश में पशुधन की आबादी 2012 के बाद 4.6 फीसदी बढ़कर 35.75 करोड़ हो गई है.

• गायों की संख्या में 18 फीसदी की बढ़ोतरी
• भैंस, भेड़, बकरे और मिथुन की संख्या बढ़ी

देश में गायों की आबादी विगत पशुगणना के मुकाबले 18 फीसदी बढ़ी है, जबकि गधों की संख्या 61 फीसदी घट गई है. इसी प्रकार भैंस, भेड़, बकरे और मिथुन की आबादी बढ़ी है जबकि सूअर, घोड़े, खच्चर और ऊंट की आबादी घटी है. केंद्रीय मत्स्यपालन एवं डेरी मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी 20वीं पशुगणना की रिपोर्ट के अनुसार, देश में पशुधन की आबादी 2012 के बाद 4.6 फीसदी बढ़कर 35.75 करोड़ हो गई है.
गायों की आबादी में 18 फीसदी की वृद्धि हुई है और पशुगणना की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में गायों की संख्या 14.51 करोड़ है, जबकि गोधन (गाय-बैल) की आबादी 0.8 फीसदी बढ़कर करीब 18.25 करोड़ हो गई है. वहीं, गोजातीय (गाय, बैल, भैंस, मिथुन और याक) की आबादी पिछली पशुगणना के मुकाबले एक फीसदी बढ़कर करीब 3.28 करोड़ हो गई है.

देसी गोधन की संख्या छह फीसदी घटी

विदेशी या संकर और देसी मवेशियों की आबादी क्रमश: 5.04 करोड़ और 14.21 करोड़ हो गई है. देसी गाय की आबादी में पिछली पशुगणना के मुकाबले 2019 में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. विदेशी या संकर गोधन की आबादी पिछली पशुगणना की तुलना में इस साल 26.9 फीसदी बढ़ी है. हालांकि कुल देसी गोधन की संख्या छह फीसदी घट गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2012-2019 के दौरान देसी गोधन की आबादी में गिरावट की दर बीती पशुगणना 2007-12 के मुकाबले नौ फीसदी से कम है. देश में भैंस की आबादी पिछली पशुगणना के मुकाबले करीब एक फीसदी बढ़कर 10.98 करोड़ हो गई है. दुधारू पशुओं (गाय और भैंस) की आबादी छह फीसदी बढ़कर 12.53 करोड़ हो गई है.
सूअरों की संख्या 90.6 लाख है
20वीं पशुगणना की रिपोर्ट के अनुसार, देश में भेड़ों की संख्या बीती पशुगणना के मुकाबले 14.1 फीसदी बढ़कर करीब 7.43 करोड़ हो गई है. वहीं, बकरों की आबादी 10.1 फीसदी बढ़कर करीब 14.89 करोड़ हो गई है जबकि सूअर की संख्या 12.03 फीसदी घटकर 90.6 लाख हो गई है. मिथुन की आबादी 30 फीसदी बढ़कर 3.9 लाख जबकि याक की आबादी 24.67 फीसदी घटर 58,000 रह गई है.
84000 खच्चर रह गए हैं
देश में घोड़ों और टट्टओं की आबादी 45.6 फीसदी घटकर 3.4 लाख रह गई है. खच्चर की कुल आबादी 57.1 फीसदी घटकर 84,000 रह गई. वहीं, गदहों की आबादी पिछली पशुगणना के मुकाबले 61.23 फीसदी घटकर महज 1.2 लाख रह गई है. ऊंट की आबादी भी 37.1 फीसदी घटकर महज 2.5 लाख रह गई.
देश में पोल्ट्री यानी कुक्कुटों (मुर्गा-मुर्गी) की आबादी 16.8 फीसदी बढ़कर 85.18 करोड़ हो गई है. बैकयार्ड पोल्ट्री की आबादी 45.8 फीसदी बढ़कर 31.70 करोड़ और कमर्शियल पोल्ट्री की आबादी 4.5 फीसदी बढ़कर 53.47 करोड़ हो गई है. देश के कुल पशुधन में बकरे की तादाद 27.8 फीसदी, भेड़ की 13.87 फीसदी, गोधन की 35.94 फीसदी और भैंस की 20.45 फीसदी है.

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हाल ही में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय (Ministry of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying) ने 20वीं पशुधन गणना रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट पिछली जनगणना के साथ-साथ विभिन्न प्रजातियों के समग्र योग को दर्शाती है।

प्रमुख बिंदु

 पशुधन गणना-2018 के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जिसमें पशुधन गणना- 2012 की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है।
 पश्चिम बंगाल में पशुओं की संख्या में सबसे अधिक (23%) की वृद्धि हुई, उसके बाद तेलंगाना (22%) का स्थान रहा।
 देश में कुल मवेशियों की संख्या में 0.8% की वृद्धि हुई है।
 यह वृद्धि मुख्य रूप से वर्ण शंकर मवेशियों और स्वदेशी मादा मवेशियों की आबादी में तेज़ी से वृद्धि का परिणाम है।

 उत्तर प्रदेश में मवेशियों की आबादी में सबसे ज़्यादा कमी देखी गई है, हालाँकि राज्य ने मवेशियों को बचाने के लिये कई कदम उठाए हैं।
o पश्चिम बंगाल में मवेशियों की आबादी में सबसे अधिक 15% की वृद्धि देखी गई है।
 कुल विदेशी/क्रॉसब्रीड मवेशियों की आबादी में 27% की वृद्धि हुई है।
o 2018-19 में भारत के कुल दूध उत्पादन में क्रॉस-ब्रीड मवेशियों का योगदान लगभग 28% था।
o जर्सी या होलेस्टिन जैसे विदेशी और क्रॉसब्रीड मवेशियों की दुधारू क्षमता अधिक है, इसलिये कृषकों द्वारा इन मवेशियों को अधिक पसंद किया जा रहा है।
o कुल देशी मवेशियों की आबादी में 6% की गिरावट देखी गई है।
 राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से देशी नस्लों के संरक्षण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बावजूद, भारत के स्वदेशी मवेशियों की संख्या में गिरावट जारी है।
 उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है, जिसका कारण बहुत हद तक गौहत्या कानून है।
 कुल दुधारू मवेशियों में 6% की वृद्धि देखी गई है।
o आँकड़े बताते हैं कि देश में कुल मवेशियों का लगभग 75% मादा (गाय) हैं, यह दुग्ध उत्पादक पशुओं के लिये डेयरी किसानों की वरीयताओं का एक स्पष्ट संकेत है। गायों की संख्या में वृद्धि का कारण सरकार द्वारा किसानों को उच्च उपज वाले बैल के वीर्य के साथ कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा प्रदान करना है।
 बेकयार्ड पोल्ट्री में लगभग 46% की वृद्धि हुई है।
o बेकयार्ड मुर्गी पालन में वृद्धि ग्रामीण परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है जो गरीबी उन्मूलन के संकेत को दर्शाता है।
o कुल गोजातीय जनसंख्या (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक) में लगभग 1% की वृद्धि देखी गई है।
o भेड़, बकरी और मिथुन की आबादी दोहरे अंकों में बढ़ी है जबकि घोड़ों, सूअर, ऊँट, गधे, खच्चर और याक की गिनती में गिरावट आई है।
पशुधन की जनगणना
 वर्ष 1919-20 से देश में समय-समय पर पशुधन की गणना आयोजित की जाती है। तब से प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार यह गणना आयोजित की जाती है।
 इसमें सभी पालतू जानवरों की कुल गणना को शामिल किया गया है।
 राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा अब तक ऐसी 19 गणनाएँ की जा चुकी हैं।
 20वीं पशुधन जनगणना में पहली बार फील्ड से ऑनलाइन प्रसारण के माध्यम से घरेलू स्तर के डेटा का उपयोग किया गया है।
 जनगणना केवल नीति निर्माताओं के लिये ही नहीं बल्कि किसानों, व्यापारियों, उद्यमियों, डेयरी उद्योग और आम जनता के लिये भी फायदेमंद है।

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