पशुओं के लिए सम्पूर्ण आहार पद्धति

0
694

पशुओं से अधिकतम उत्पादन (मांस, दूध, ऊन इत्यादि) प्राप्त करने के लिए उन्हें संतुलित आहार खिलाना आवश्यक है। हरे चारे की कमी के कारण पशुओं की पोषक तत्वों की आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है। पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए पशुओं एवं मनुष्यों के बीच में प्रतिस्पर्धा होती रहती है। इस प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए कम गुणवत्ता वाले चारे एवं फैक्ट्रियों ने निकलने वाले खाद्य अवशेषों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन सभी खाद्य पदार्थों को पशुओं को खिलाने से पहले उचित उपचार करना चाहिए एवं इनके साथ कुछ विटामिन तथा मिनरल सप्लीमेंट्स को भी खिलाना चाहिए।
हाल ही में ‘संपूर्ण आहार’ पद्धति उपयोग में लायी जा रही है जिसमें फैक्ट्रियों से निकलने वाले अवशेष का उचित उपचार करके पशुओं को खिलाया जा सकता है। इस संपूर्ण आहार पद्धति का मूल सिद्धांत यह है कि पशुओं को दाना एवं चारे के साथ अन्य पोषक तत्वों को मिलाकर श्रम की भी बचत कर सकते हैं जिनका उपयोग हम कार्यों में ले सकते हैं।
राशन के अवयवों के अनुपात को नियंत्रित करना- सम्पूर्ण आहार के रूप में कम गुणवत्ता वाले चारे एवं दाने के अवशेषों को भी उपयोग किया जा सकता है। संपूर्ण आहार बनाने के लिए खाद्य पदार्थों को प्रकमण करके उसकी गुणवत्ता भी बढ़ायी जा सकती है। इससे खाद्य पदार्थों के कण का आकार भी कम हो जाता, जिससे इनका पाचन बढ़ जाता है।
संपूर्ण आहार से न केवल पोषक तत्वों की उपयोगिता बढ़ जाती है, बल्कि उनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। अत: इससे कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाला राशन बनाया जा सकता है। जिससे अंतत: दुग्ध उत्पादन बढ़ता है।
सम्पूर्ण आहार के रूप में खाद्य पदार्थ पशुओं के लिए उपलब्ध रहते हैं। यशेच्छ आहार के रूप में पशु को खिलाने से वे अपनी इच्छानुसार खाते हैं, जिससे खाद्य पदार्थ व्यय या बरबाद हो जाते हैं। इससे पशुओं को पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
संपूर्ण आहार के रूप में पशुओं को खिलाने से रुमेन पर भार कम पड़ता है जिसके एसिटिक, प्रोपियोनिक एसिड का अनुपात नियंत्रित रहता है, जिससे दूध में वसा की मात्रा बढ़ जाती है।
खेती के दौरान अनाजों से बचने वाले अवशेषों की घनत्व 30-50 कि.ग्रा./मीटर3 होती है तथा सम्पूर्ण आहार के एक ब्लॉक का घनत्व 360-650 कि.ग्रा./मी.3 होती है। सम्पूर्ण आहार को ब्लॉक या पैलेट के रूप में बनाया जा सकता है, जिससे इनका आवागमन आसानी से हो जाता है।
सम्पूर्ण आहार पद्धति के लाभ – सम्पूर्ण आहार में 60 प्रतिशत मिश्रित चारा होता है जिसमें 35 प्रतिशत गेहूं का भूसा + 15 प्रतिशत बरसीम हे होता है। कुछ प्रयोगों में यह पाया गया है कि बछड़ों को संपूर्ण आहार खिलाने से उनकी वृद्धि दर 450 – 970 ग्राम प्रतिदिन तक हो सकती है। भूसे को यूरिया से उपचारित करके संपूर्ण आहार के रूप में खली के साथ खिलाया जा सकता है। ऐसे सम्पूर्ण आहार 4-8 लीटर दूध प्रतिदिन देने वाली गायों एवं भैंसों के लिए उपर्युक्त है।
सम्पूर्ण आहार पद्धति की सीमाएं- कुछ पशुपालकों द्वारा यह पाया गया कि ज्यादा दिनों तक पशुओं को संपूर्ण आहार खिलाने से पाचन क्रिया में बाधा एवं जोड़ों से संबंधित रोग उत्पन्न होने लगते हैं। ये समस्याएं कम गुणवत्ता वाले चारे खिलाने या फिर ज्यादा पिसे हुए दाने खिलाने के कारण हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान पशुओं में पोषक तत्वों की आवश्यकता बहुत ज्यादा होती है जिनकी कमी को संपूर्ण आहार के द्वारा भी पूरा नहीं किया जा सकता है।
• डॉ. दिव्या तिवारी
• डॉ. आर.के. जैन
• डॉ. हिमांशु प्रताप सिंह
• डॉ. एम.के. मेहता
• पशुपोषण विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय, महू (म.प्र.)

Please follow and like us:
Follow by Email
Facebook

Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON
READ MORE :  पशुओं के लिए दस्त यानि की पतला गोबर का घरेलु नुश्खा