लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) अथवा गांठदार त्वचा रोग का होम्योपैथी एवं घरेलू जड़ी बूटियों द्वारा उपचार तथा बचाव

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लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) अथवा गांठदार त्वचा रोग का होम्योपैथी एवं घरेलू जड़ी बूटियों द्वारा उपचार तथा बचाव

 

डॉ राजेश कुमार सिंह, पशु चिकित्सक, जमशेदपुर, झारखंड

एक तरफ लोग जहां कोरोना के कहर से परेशान हैं, वहीं दूसरी तरफ मवेशियों में लम्पी स्किन डिजीज नामक बीमारी तेजी से फेल रही है. ये एक वायरल बीमारी है जिसमें मवेशियों के शरीर पर गांठे बन जाती है और इनमें पस पड़ने लगता है. जिससे पशुओं की मौत तक हो जाती है.

एलएसडी एक संक्रामक रोग है जो पॉक्सविरिडी विषाणु के कारण होता है, जिसे नीथलिंग वायरस के रूप में भी जाना जाता है। संक्रमण के लगभग एक सप्ताह बाद बुखार की शुरुआत होती है।
· यह जानवरों के बीच सीधे संपर्क द्वारा, आर्थ्रोपोड वैक्टर के माध्यम से प्रेषित होता है। इस बीमारी के कारण पशुपालन उद्योग को दूध की पैदावार में कमी, गायों और सांडों के बीच प्रजनन क्षमता में कमी, गर्भपात, क्षतिग्रस्त त्वचा और खाल, वजन में कमी या वृद्धि और कुछ कुछ मामलों में असामयिक मृत्यु भी देखी जा रही है। यह बीमारी झारखंड के उड़ीसा तथा बंगाल से सटे कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों मैं पिछले साल जून, जुलाई के महीने में देखा गया था। उस दौरान उड़ीसा ,वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ में भी इसका प्रकोप सुनने को मिला था।

बीमारी की पहचान:

इस बीमारी के आक्रमण में सबसे पहले मवेशी के शरीर में गांठ बनती हैं, फिर जख्म बड़े होते जाते है जिसके बाद उस जख्म का इलाज न किया जाए तो उसमें कीड़े लग जाते हैं, जो गाय बैल को कमजोर कर देते हैं. इसलिए जरूरी है कि बीमार होते ही पशुओं का उपचार किया जाए ताकि बीमारी न फैले. वहीं साफ सफाई के साथ ही बीमार मवेशी को दूसरे जानवरों से अलग रखना चाहिए क्योंकि यह एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलने वाला रोग है. हालांकि यह व्यवहारिक तौर पर सुदूर देहात क्षेत्रों में संभव नहीं है क्योंकि वहां पर सभी जानवर एक साथ खुले में चरने जाते हैं।

लक्षण:

रोग के शुरुवात में उच्च बुखार और लिम्फ ग्रंथियों की सूजन जो त्वचा में 0.5 से 5.0 सेमी व्यास तक हो सकते हैं। ये गांठे (नोड्यूल) पूरे शरीर में पाए जा सकते हैं, लेकिन विशेष रूप से सिर, गर्दन, थनों, अंडकोश और गुदा और अंडकोष या योनिमुख के बीच के भाग (पेरिनेम) पर होते है। कभी-कभी पूरा शरीर गांठो से ढँक जाता है। नोड्यूल नेक्रोटिक (परिगालित) और अल्सरेटिव भी हो सकते हैं, जिससे मक्खियों द्वारा संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ढूध वाले पशुओ में दूध उत्पादन में कमी के साथ अवसाद, भूख की कमी, नासिका प्रदाह (राइनाइटिस), नेत्रश्लेष्मलाशोथ (आंखों और नाक से श्राव) और अतिरिक्त लार का गिरना भी देखा जा सकता है। बाद में नाक से स्राव भूरा / सफेद हो जाता है।गंभीर रूप से प्रभावित जानवरों में, नेक्रोटिक घाव श्वसन और जठरांत्र संबंधी मार्ग में भी विकसित हो सकते हैं। श्वसन पथ में फैलने से सांस लेने में कठिनाई होती है और 10 दिनों के भीतर मृत्यु हो सकती है। गाभिन पशुओ में गर्भपात भी हो सकता हैं।
गांठ पर बाल खड़े मिल सकते हैं और गांठ त्वचा के भीतर स्थित भी हो सकती हैं और दृढ़, उभरे हुए, गोल और चपटे होते हैं। मुह पर गांठे मुलायम, पीले / भूरे रंग की हो सकती है जो रगड़ने के बाद आसानी से लाल पैच बनाते हैं। कभी-कभी पैरो में दर्दनाक एडिमा के साथ ही ऊपरी त्वचा का निकल जाना भी देखा जा सकता है। कभी नोड्यूल्स सूख जाते हैं और धीरे-धीरे आसपास की त्वचा से अलग होने लगते हैं, अंत अल्सर बनाते हुए त्वचा को छोड़ देते हैं, जो धीरे-धीरे ठीक हो जाता है, लेकिन एक निशान रह जाता है। वयस्क मवेशी आमतौर पर मरते नहीं हैं लेकिन उन्हें ठीक होने में महीनों लग सकते हैं और उनमें से कुछ बहुत दुबले हो जाते हैं। कभी-कभी रोग बहुत हल्का होता है; जानवरों को केवल कम बुखार होता है और त्वचा में गांठ होती है जो लगभग कुछ सप्ताह में ठीक हो जाती है।

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निदान:

लम्पी रोग, छद्म गांठदार त्वचा रोग (स्यूडो लम्पी) के साथ भ्रमित हो सकता है, जो एक हर्पीसवायरस (बोवाइन हर्पीसवायरस 2) के कारण होता है। ये दोनों रोग नैदानिक रूप से समान हो सकते हैं, हालांकि सामान्यतः हर्पीस वायरस के घाव गायों के थनों तक ही सीमित लगते हैं, और इस बीमारी को गोजातीय हर्पीस मैमिलाइटिस कहा जाता है। छद्म-गांठदार त्वचा रोग, सच्ची ढेलेदार त्वचा रोग की तुलना में एक मामूली बीमारी है, लेकिन इनका विभेद अनिवार्य रूप से विषाणु के अलगाव और पहचान पर निर्भर करता है।

उपचार:

लम्पी त्वचा रोग के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं और सल्फोनामाइड्स का उपयोग करके द्वितीयक संक्रमण की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है। एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग स्थानीय भी किया जा सकता है, और साथ में नॉन स्टेरोइडल एंटी इन्फ्लामेंटरी ड्रग्स भी दी जा सकती है। संक्रमित जानवर आमतौर पर ठीक हो जाते हैं। पूर्ण स्वस्थ होने में कई महीने लग सकते हैं खासतौर से जब द्वितीयक जीवाणु संक्रमण होता है। वैसे देखा जाए तो इस रोग का अभी तक पूर्ण रूप से विशेष जानकारी नहीं मिल पाई है कि इसका मुख्य कारण क्या है फैलने का तथा इसका उपचार किया है। केवल इस रोग के लक्षण के आधार पर ही पशुओं को इलाज किया जा रहा है। इसके लिए हम पशु चिकित्सक एलोपैथी पद्धति द्वारा उपचार स्वरूप यदि बुखार है तो एंटीपायरेटिक इंजेक्शन लगाते हैं ,एंटीहिस्टामिनिक इंजेक्शन लगाते हैं एलर्जी को खत्म करने के लिए साथ में सेकेंडरी बैक्टीरियल इन्फेक्शन को दूर करने के लिए एक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करते हैं। यदि त्वचा में जख्म घाव का रूप ले लिया है तो हम इस एंटीबायोटिक युक्त मलहम लगाते हैं। इसके अलावा हम आर्युवेदिक पद्धति/ जड़ी बूटी द्वारा घरेलू उपचार से भी इस रोग का इलाज करते है जैसे कि हल्दी पाउडर, एलोवेरा का जेल, चूना तथा नीम का छाल और पता तथा नीम का तेल इत्यादि को पेस्ट बनाकर घाव पर या उस तरह की लीजंस पर लगाने से इस समस्या का समाधान जल्दी प्राप्त होता है। हम सुदूर देहात क्षेत्र के पशुपालकों ,जहां पर आधारभूत सुविधाएं नहीं है वहां के पशुपालकों को यह सुझाव देते हैं कि वह अपने पशुओं को नीम छाल तथा नीम पता युक्त पानी को उबालकर उस पानी को छानकर, जब पानी ठंडा हो जाता है तो उस पानी में कपड़ा को भीगा कर उस पानी से यदि पशुओं के शरीर को सप्ताह में दो से तीन बार यह प्रक्रिया दोहराई जाती है तो इस तरह के रोग के लक्षण पशुओं में देखने को नहीं मिलते हैं। इस पद्धति के अलावा होम्योपैथी पद्धति द्वारा भी इस रोग का शर्तिया इलाज किया जा सकता है। हमने फील्ड स्तर पर पाया है कि देश में पशुओं के लिए होम्योपैथिक दवा बनाने वाली सबसे पुरानी कंपनी गोयल होमियो वेट फार्मा की दवाइ होम्यो नेस्ट मेरीगोल्ड+ एलएसडी 25 किट HOMEONEST MERIGOLD+ (LSD 25 Kit) का यदि पशुपालक इस्तेमाल करता है तो 2 सप्ताह के अंदर इस रूप से पूर्ण निजात पाया जा सकता है। यह दवाई ज्यादा कारगर भी है तथा सस्ता भी है।

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https://goelvetpharma.com/product/homeonest-marigold-lsd-25-kit/

LSD का आर्थिक प्रभाव:

यह रोग त्वचा को डायरेक्ट प्रभावित करता है जिस से की चलती त्वचा का क्वालिटी खराब हो जाता है। साथ में जानवरों जैसे कि भैंस का मीट भी खाने लायक नहीं रह पाता है। हम सभी जानते हैं कि भारत विश्व का सबसे बड़ा भैंस की मीट का निर्यातक है। जो देश चमड़ा तथा भैंस का मीट हम से मंगा रहे थे वे इस रोग को देखते हुए भारत के इन उत्पादों से दूरी बना रहे हैं जिसके चलते इन उत्पादों का मांग कम होते जा रहा है। हमारी प्रतिस्पर्धा करने वाले देश जैसे कि चीन ने भारत से मवेशी और पशु उत्पादों के आयात के खिलाफ चेतावनी अधिसूचना जारी करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को प्रेरित किया है।

यह चेतावनी भारत द्वारा पशु स्वास्थ्य के लिए विश्व संगठन (OIE) में मवेशियों में “गांठ त्वचा रोग“ वायरस के बारे में अपनी अधिसूचना प्रस्तुत करने के बाद आई है। इसके चलते भारत से दूसरे देशों में निर्यात होने वाले पशु धन उत्पाद में भारी गिरावट आई है। इससे भारत को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। हमें यथाशीघ्र इस रोग के बचाओ तथा उपचार का समाधान निकालना होगा।

केंद्र सरकार को क्या करना चाहिए?

· भारतीय भैंस के मांस के अंतर्राष्ट्रीय आयातकों को आश्वासन दिया जाना चाहिए कि संक्रमित जानवरों को स्वस्थ जानवरों से दूर एक सुरक्षित क्षेत्र में रखा गया है।
· गुणवत्ता की गारंटी का आश्वासन दें ताकि भारत में निर्यातकों को नुकसान न हो।
· मांस के खरीदार को अफवाहों से दूर रखने के लिए उचित जानकारी दी जानी चाहिए।

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https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1887700

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