पशु फार्म के अपशिष्ट पदार्थ: प्रबंधन एवं उपाय

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पशु फार्म के अपशिष्ट पदार्थ: प्रबंधन एवं उपाय

डॉ पूर्णिमा सिंह, डॉ आदित्य मिश्रा, डॉ दीपिका डी सीज़र, डॉ आनंद जैन, डॉ संजू मंडल, डॉ अनिल गट्टानी, डॉ चारु शर्मा, डॉ प्रीति वर्मा

पशु शरीर क्रिया विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर (.प्र)

भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय कृषि प्रणाली में पशुपालन का एक महत्वपूर्ण योगदान है । वे न केवल हमें दूध और मांस प्रदान करते हैं परन्तु साथ ही खाद, ऊन, अंडा आदि उत्पादन में भी इनका योगदान है, इसके अलावा, इनका व्यापक रूप से कृषि में खेतों को जोतने एवं परिवहन के लिए भी उपयोग किया जाता है। सामान्य पशु फार्म से निकलने वाले अपशिष्ट गोबर, मूत्र, नाल, मृत जन्म, पोस्टमार्टम मलबा, बिस्तर, चारा अपव्यय, दूध-घर का कचरा या धोना, मृत पशु और पक्षी, बाल, खुर और सींग आदि है, जिनका उचित प्रबंधन पशु फार्म की एक महत्वपूर्ण चुनौती है। जानवरों के कचरे के साथ सार्वजनिक पर्यावरणीय चिंता यह है कि यह आक्रामक गंध के साथ वायुमंडलीय हवा को प्रभावित करता है, बड़ी मात्रा में CO2 और अमोनिया का उत्सर्जन होता है जो अम्लीय वर्षा और ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान करता है। यह जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर सकता है और संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक हो सकता है। अपशिष्ट प्रबंधन में निगरानी और विनियमन के साथ-साथ कचरे का संग्रह, परिवहन, उपचार और निपटान शामिल है। अपशिष्ट पदार्थो से होने वाले हानिकारक प्रभाव जैसे प्रदूषण, बीमारियों/रोगजनकों के प्रसार को खत्म या कम करने के लिए कचरे को संशोधित किया जा सकता है एवं  सूक्ष्मजैविक लोड को कम किया जा सकता। कंपोस्टिंग, रीसाइक्लिंग, रेंडरिंग, बायो-डीजल जैसे पारंपरिक और उन्नत दोनों तरीकों से डेयरी फार्म कचरे का प्रबंधन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो सकता है।

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1.   कम्पोस्टिंग जैविक अपघटन और कार्बनिक पदार्थों का स्थिरीकरण है। यह प्रक्रिया एक अंतिम उत्पाद का उत्पादन करती है जो स्थिर है, कम गंध है, रोगजनकों से मुक्त है, और इसे खाद के रूप में भूमि पर लगाया जा सकता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि फसलों की उपज बढ़ाने के लिए उर्वरकों का होना आवश्यक है। विशेष रूप से, रासायनिक उर्वरक (एनपीके) ने फसल उत्पादन में काफी वृद्धि की है। यह एक प्राकृतिक एरोबिक प्रक्रिया है जो विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थो को स्थिर करती है। अच्छी तरह से तैयार खाद में ह्यूमस की गंध होती है। मृत पशु भी इस प्रक्रिया में उपयोग हो सकते हैं, हालांकि पंख, दांत, और हड्डी के टुकड़े खाद बनाने में उपयोगी नहीं है, इनको छांट कर अलग किया जा सकता है।2.  एकीकृत कंपोस्टिंग और वर्मीकम्पोस्टिंग पारंपरिक थर्मोफिलिक खाद में प्रमुख समस्या प्रक्रिया में लगने वाली लंबी अवधि हैं, जिससे पोषक तत्वों कि हानि हो जाती है। जिसके लिए, एक एकीकृत प्रणाली विकसित की गयी जो तेज दर पर वांछनीय विशेषतायुक्त व रोगाणुओं से मुक्त उत्पाद प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि तापमान ३५ डिग्री सेंट्रिग्रेट से कम होना चाहिए।3.  वर्मीकम्पोस्ट वर्मी कम्पोस्टिंग केंचुओं के उपयोग से खाद तैयार करने की विधि है जो मिट्टी के भौतिक और जैविक गुणों में सुधार करके मिट्टी की गुणवत्ता को समृद्ध करती है। यह जैविक खेती प्रणाली के एक प्रमुख घटक के रूप में लोकप्रिय हो रहा है। केचुए, गाय-भैसों के गोबर खाद के प्रसंस्करण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है क्योंकि यह खाद की नमी, पीएच और विद्युत चालकता को कम करता है। यह मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार करता है, और बेहतर जड़ विकास और पोषक तत्व अवशोषण को भी बढ़ावा देता है। वर्मीकम्पोस्ट खनिज संतुलन की आपूर्ति करता है, पौधों की पोषक उपलब्धता में सुधार करता है। वर्मीकंपोस्टिंग प्रक्रिया में दो विशिष्ट चरण होते हैं, प्रथम जिसमे केंचुए जैव पदार्थो की भौतिक स्थिति और माइक्रोबियल संरचना में बदलाव लाते है। दूसरा परिपक्वता चरण, जिसमे केचुओं को अपचित कचरे की ताजा परतों की ओर विस्थापन किया जाता है। 4.  रेंडरिंग कृषि पशु अपशिष्ट जैसे रक्त, मांस, पंख और हड्डी के प्रोटीन और वसा को पुनर्चक्रित करने का यह एक बेहतरीन तरीका है। वे वसा और प्रोटीन जो मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त है, उनको इन प्रक्रिया द्वारा पशु चारा या उर्वरक के लिए उपयुक्त बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के पशु उप-उत्पादों को साबुन, पेंट, मोमबत्तियां, प्लास्टिक और रबड़ जैसे कई अन्य उत्पादों के आधार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।5.  बायोगैस उत्पादन तकनीक बायोगैस, ऊर्जा का कुशल, और नवीकरणीय स्रोत्र है, जिसका उपयोग अन्य गैर-नवीकरणीय ईंधन के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। एलपीजी सिलेंडर के रूप में संग्रहित शुद्ध बायोगैस किसी भी समय कहीं भी आसानी से उपयोग किया जा सकता है। 6.  शैवाल की खेती से उपचार शैवाल की खेती के कई लाभ हैं, जैसे, इसकी तेज उत्पादन दर, बड़ी मात्रा में वसा और हाइड्रोकार्बन का संचय; साथ ही अपशिष्ट पदार्थ के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका। इन शैवाल उत्पादों को जैव-तेल सहित कई मूल्य वर्धित उत्पाद हेतु संसाधित किया जा सकता है। यह गैर-फसल आधारित जैव-ईंधन उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में उत्कर्ष विकल्प हो सकता है।7.  गोबर उपयोग के तरीके डेयरी फार्म व गौशालाओं में गोबर का निस्तारण सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि, गोबर यदि प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है, तो खाद और ऊर्जा का संसाधन हो सकता है। गोबर का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है जैसे कि दहन (गोबर की लकड़ी) या बायोगैस के उत्पादन के लिए या मिट्टी के कंडीशनर के रूप में या उर्वरक के रूप में या दीवार के पलस्तर के लिए सामग्री के रूप में, आदि। इनके अलावा साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, सनस्क्रीन, फेस वॉश, चाय, अगरबत्ती, गमले, दीपक और पंचगव्य प्रमुख गोजातीय गोबर उत्पाद हैं जो बाजार में मौजूद हैं। 8. गोमूत्र के उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में गोमूत्र का प्रयोग चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। जीवामृत एक उर्वरक है जो गोमूत्र, गोबर, गुड़, दाल के आटे और राइजोस्फीयर मिट्टी के मिश्रण से बनाया जाता है, गोमूत्र का उपयोग चावल के उत्पादन के लिए भी बेहतर है । कई प्रकार के व्यावसायिक उत्पाद जैसे फर्श क्लीनर, जैविक उर्वरक, इमल्सीफाइड डीजल, पंचगव्य, में भी इसका प्रयोग किया जाता है। 9. जैव चिकित्सा अपशिष्ट हानिकारक अपशिष्ट (टीके, वेल, दवाएं, सीरिंज आदि) का निपटान “ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016” के प्रावधानों के अनुसार किया जाना चाहिए। यदि आपके पास स्वयं की चिकित्सा सुविधा है तो कचरे का निपटान “बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016” के प्रावधानों के अनुसार किया जाना चाहिए।अपशिष्ट पदार्थो के प्रबंधन के साथ ही यह प्रयास होना चाहिए कि उपलब्ध संसाधनों का संयमित उपयोग किया जाए, जिससे अपशिष्ट पदार्थो कि मात्रा को कम रखा जा सके, पशुओ के स्नान तथा अन्य आवश्यकताओं में जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए। उचित संचालन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त आधारभूत संरचना प्रदान की जानी चाहिए साथ ही साथ गोबर, गौ मूत्र जैसे अवयवों को उचित समय व सफाई से एकत्रित करते रहना चाहिए ।

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