कृत्रिम गर्भाधान नस्ल सुधार का प्रभावी साधन

0
482
कृत्रिम गर्भाधान नस्ल सुधार का प्रभावी साधन

कृत्रिम गर्भाधान नस्ल सुधार का प्रभावी साधन

महेश एस त्रिवेदी, प्रणोती शर्मा, ए. के. पाटिल

दुनिया में सबसे बड़ी गोजातीय आबादी भारत में है । भारत साल 1998 के पश्चात् से विश्व के दुग्ध उत्पादक देशों में प्रथम स्थान पर है । भारत में दूध का उत्पादन 1950-51 से 2017-18 की अवधि में, 17 मिलियन टन से बढ़कर 221 मिलियन मेट्रिक टन हो गया । गोवंशीय पशुओं की संख्या में भी भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है । भारत में 37 प्रकार की गोवंशीय नस्ल चिन्हित है । वर्तमान परिदृश्य में इन नस्लों के पशुओं की संख्या में तेजी से कमी आ रही है जिसका मुख्य कारण इन नस्लो की उत्पादन क्षमता कम होना एवं कृषि के क्षेत्र में तेजी से मशीनीकरण का होना है इसलिए इन नस्लो की उपयोगिता बढाकर इनका संरक्षण करना आवश्यक है ।

देसी नस्ल के पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा गर्मी सहन करने की शक्ति अधिक होती है जिस वजह से यह आसानी से बीमार नहीं पड़ते तथा वह पोषण आहार की अनुपलब्धता एवं अन्य विपरीत परिस्थितियों में भी गुजारा कर लेते हैं कुछ देसी नस्लों के पशुओ जैसे की साहीवाल, गिर, रेड सिंधी एवं राठी में दुग्ध उत्पादन की अच्छी क्षमता होती है । इसके अतिरिक्त कुछ भारतीय नस्ल अपनी भारवाहक क्षमता एवं कृषि कार्य संबंधी क्षमता के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है जिसमें मध्य प्रदेश में पाई जाने वाली मालवी, निमाड़ी एवं केंनकथा आदि नस्ल मुख्य रूप से शामिल है ।

प्रजनन क्षमता

पशओु की एक नियमित अंतराल पर वत्स उत्पन्न करने की क्षमता है जो झुंड की प्रबधन नीति द्वारा तय की जाती है। प्रजनन क्षमता एक बहु-तथ्यात्मक विशेषता है। इसकी गिरावट आनुवांशिक, पर्यावरण और प्रबंधकीय कारकों की जटिल परस्पर क्रिया के नेटवर्क के कारण हुई है। खराब प्रजनन क्षमता का अर्थ है कम गर्भाधान दर जिसके कारण हमें अधिक अवधि (जो कि अगले एस्ट्रास तक है) के लिए पशु का रखरखाव करना पड़ता है और इस प्रकार उत्पादन की शरुआत में देरी होगी जिससे किसान को आर्थिक नुकसान होगा ।

READ MORE :  पशुओं में पीपीआर रोग: लक्षण, निदान एवं उपचार

कृत्रिम गर्भाधान

पशुओ में गर्भाधान की एक वैज्ञानिक विधि है कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया में उच्चकोटि के नर पशु के वीर्य को एकत्र कर प्रयोगशाला मे पूर्ण रूप से जाँच के उपरांत तरल नत्रजन में हिमीकृत वीर्य के रूप में संरक्षित किया जाता है एवं गाय की गर्मी में आने पर कृत्रिम विधि द्वारा मादा की जनन इन्द्रियों में बीज को सेचित किया जाता हैं । कृत्रिम गर्भाधान से पशुओं की नस्ल में सुधार किया जा सकता है । जिससे पशुपालको को न सिर्फ बढ़ा हुआ दुग्ध उत्पादन प्राप्त होता है अपितु अलग से सांड रखने की आवश्यकता भी नहीं है । उत्तम नस्ल के नर का वीर्य आसानी से गांव में उपलब्ध होता है एवं उत्तम नस्ल की अधिक से अधिक संतति उत्पन्न की जा सकती है । उन्नत नस्ल के सांड की मृत्यु के उपरांत भी उसके वीर्य को संरक्षित रख उसका उपयोग संतति उत्पन्न करने हेतु करना संभव है । कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा नई एवं उन्नत प्रजातियां विकसित की जा सकती है इच्छित गुण एवं जाति की संतति  प्राप्त की जा सकती है इससे पशुपालक की लागत में कमियां आती है एवं बार-बार गर्भाधान हेतु साड़ बदलने की आवश्यकता नहीं होती ।

 कृत्रिम गर्भाधान हेतु कुछ आवश्यक सावधानियां रखनी पड़ती है जैसे की सीमन का स्ट्रॉ उपयोग से पूर्व सदैव पूरी तरह तरल नत्रजन में डूबा रहना चाहिए अन्यथा यह खराब हो जाएगा । कृत्रिम गर्भाधान के पूर्व हिमीकृत वीर्य स्ट्रॉ सेंसिटिव डिग्री तापमान पर 30 सेकंड तक थाविंग  करनी चाहिए । थाविंग करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी का तापमान सदैव थर्मामीटर से देखना चाहिए । कृत्रिम गर्भाधान सदैव गर्मी की मध्य अवस्था में करना चाहिए गाय में गर्मी के लक्षण गर्मी की प्रारंभिक अवस्था में गए रंभा ना बेचैनी दूसरी गायों को सहलाने योनि मार्ग से तरल चिपचिपा रंगहीन स्राव निकलना दूसरी गायों पर चढ़ना परंतु उन्हें खुद पर नहीं चढ़ने देना एवं गर्मी की मध्य अवस्था योनि मार्ग से स्राव निकलने के अतिरिक्त गाय दूसरी गायों के चढ़ने पर आराम से खड़े रहती है यह अवस्था गर्भ रोपण हेतु सर्वथा उपयुक्त होती है । मादा पशुओ में गर्मी के लक्षण आना शुरू होने के 12 पश्चात कृत्रिम गर्भाधान करवाना उचित होता है एवं सफलतापूर्वक गर्भधारण की सम्भावना अधिक होती है । कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से उत्पन्न वत्स का वंशानुगत रिकॉर्ड भी संधारित किया जाता है जिससे संतति परिक्षण आदि सरलता से की जा सके ।

नस्ल सुधार का उत्तम उपाय है कृत्रिम गर्भाधान

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON