गर्भवती दुधारू पशु की देखभाल एवं प्रबंधन

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CARE-MANAGEMENT OF DAIRY-CATTLE
CARE & MANAGEMENT OF PREGNANT DAIRY CATTLE

गर्भवती दुधारू पशु की देखभाल एवं प्रबंधन

Dr. Rakesh Kumar Singh

 M.V.Sc &  Ph.D. (Indian Veterinary Research Institute,Izatnagar),

Associate Professor & Officer Incharge,

Dept.of Veterinary Physiology & Biochemistry, COVAS,

Sardar Vallabhbhai Patel University of Agriculture & Technology,

Modipuram, Meerut (UP.),India-250110.

Mobile No.- 9411423409

 

गर्भधारण के पश्चात गाय एवं भैसों की देखभाल बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए । बच्चे के जन्म से पूर्व तथा बाद में माँ की देखभाल में जरा सी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए अन्यथा दूध की मात्रा व् बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । कभी- कभी इस प्रकार की लापरवाही बरतने से पशु की मौत  भी हो सकती है । प्रसूति काल में पशुओं के भली प्रकार से रखरखाव की जानकारी पशुपालको को  अवश्य ही होनी चाहिए ।

प्रसव से पूर्व गाभिन पशुओं का रखरखाव:

  1. ब्याने के दो माह पूर्व दूध निकालना बंद करना चाहिए ।
  2. गाय-भैसों को इस अवस्था में आकर व वजन के अनुसार १ से १।५ किलोग्राम दाना (रखरखाव राशन के आलावा ) प्रतिदिन देना चाहिए ।
  3. गायों को सुखाने के बाद थानों के छिद्रों पर जीवाणुरोधक घोल लगाना चाहिए ।
  4. ऐसी गायों को गर्भपात हुई गायों से दूर रखना चाहिए ।
  5. खनिज लवण की उचित मात्रा देनी चाहिए ।
  6. प्रति पशु लगभग २५-३० किलोग्राम हरा चारा रोज देना चाहिए । पशु को अफरा से बचाने के लिए दलहनी चारों के साथ भूसे की मात्रा पुरे आहार का एक चौथाई दी जनि चाहिये।
  7. पशु के राशन में मक्का, जौ, गेहुं या अन्य अनाजों के दानों के साथ गेहूं का चोकर, तेलहनी फसल की खली, नमक, खनिज मिश्रण एवं दलहनी फसल की भूसी/छिलका  होनी चाहिए ।
  8. पिने की साफ,स्वच्छ एवं पर्याप्त पानी की व्यवस्था होनी चाहिए ।
  9. पशुओं को डरना, धमकाना दौड़ाना अथवा अन्य पशुओं से लड़ने देना नहीं चाहिए ।
  10. पशुओं से स्नेहपूर्वक,दयालुता से व्यवहार किया जाना चाहिए।
  11. पशु को बच्चा देने के १५ दिन पहले से ही प्रसव कच्छ में रखना चाहिए।
  12. पशु को अत्यधिक धुप,गर्मी या जाड़े से बचाना चाहिए।
  13. पशु को कृमिनाशक दवा एवं टीकाकरण पशुचिकित्सक के परामर्श के उपरांत ही करना चाहिए।
  14. पशुशाला की साफ-सफाई के साथ-साथ उसमे ताज़ी हवा एवं प्रकाश का समुचित प्रबंध होना
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चाहिए ।

प्रसव के समय पशुओं का रखरखाव :

  1. प्रसव कच्छ व पशुशाला की फर्श पर पुआल व भूसे को बिछा देना चाहिए।
  2. प्रसव के दौरान पशु को किसी भी प्रकार से भयभीत नहीं करना चाहिए  व किसी भी प्रकार का शोरगुल अथवा भीड़-भाड़ नहीं करनी चाहिए।
  3. नवजात के जन्म के समय यदि पशु खड़ा है तो बच्चे को जन्म के समय गिरने से चोट लगने से बचने हेतु हाथों द्वारा बच्चे को गिरते समय सभालना चाहिए।
  4. पशु को जेर इत्यादि नहीं खाने देना चाहिए।

प्रसव के बाद पशु का रखरखाव :

  1. पशु को अपने बच्चे को चाटने व दूध पिलाने देना चाहिए।
  2. पशु को जल्दी पचने वाला पौष्टिक चारा, अनाज व गुड़ देना चाहिए।
  3. पशु को पीने के लिए गर्मी में शुद्ध ताजे व जाड़े में हल्के गरम पीने लायक पानी देना चाहिए।
  4. बच्चे के जन्म के पश्चात यदि ८-१० घंटे बाद भी पशु की जेर न गिरे तो इसे खींचने का प्रयास कदापि नहीं करनी चाहिए तथा तुरंत ही नजदीकी पशुचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
  5. अधिक दूध देने वाले पशुओं में मिल्क फीवर (दुग्ध-ज्वर) नामक बिमारी होने की संभावना रहती है जिसमे पशु की गर्दन अकड़ जाती है व पशु जमीन पर लेट जाता है। इस बीमारी की किसी भी प्रकार से संभावना या लक्षण प्रकट होने की स्थिति में बिना कोई देरी किये किसी योग्य पशु चिकित्सक से इलाज करना चाहिए।
  6. बच्चे के जन्म के पश्चात् यदि १०-१५ दिन बाद भी मादा जनन अंगों से किसी प्रकार का स्त्राव , दुर्गन्ध अथवा मवाद आदि आता है तो किसी योग्य पशुचिकित्सक को दिखाना चाहिए।
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