दुधारू पशुओं में अन्तरावस्था काल की सरल प्रबंधन रणनीतियां

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दुधारू पशुओं में अन्तरावस्था काल की सरल प्रबंधन रणनीतियां

अमित कुमार सिंह1*, अनिल कुमार1, संजय कुमार1

1कृषि विज्ञान केंद्र, अमिहित, जौनपुर 2

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या 224229

*पत्राचार लेखक का ईमेल: amitkumarsingh5496@gmail.com

परिचय

हाल ही में किये गए कई शोध कार्यो में यह ज्ञात हुआ की अन्तरावस्था काल के दौरान दुधारू पशु अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार प्रदर्शन कर पाता है। अन्तरावस्था काल पशुओं में ब्यांत से 21 दिन पहले एवं बाद के काल को समझा जाता है। अन्तरावस्था काल के दौरान दुधारू पशुओं का उचित देखभाल करना बहुत जरूरी हो जाता है। इस अवस्था के दौरान किये गए प्रबंधन का असर आगे आने वाले लम्बे समय तक रहता है। कई शोधकार्यो में यह पाया गया कि जिन पशुओं का रख- रखाव अन्तरावस्था काल के दौरान बेहतर रहा वे पशु अन्य पशुओं की तुलना में प्रभावी रूप से बेहतर रह। इसके साथ ही उन पशुओं का शारीरिक रख रखाव भी अच्छा पाया गया।  इस लेख में कुछ मुख्य एवं सरल बिंदुओं को बताया गया है| जिन प्रबंधन तकनीकों को अपनाकर बेहतर गुणवत्तायुक्त दुग्ध की प्राप्ति के साथ पशुओं में बेहतर स्वास्थ को बनाये रखा जा सकता है।

यह समय पशुओं के लिए अति महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे समय में समय पशु बिना दुग्ध उत्पादन की अवस्था से दुग्ध उत्पादन करने की अवस्था में प्रवेश करता है।  इस दौरान पशुओं के शरीर में नाटकीय बदलावों होते हैं जिसमे मुख्यतः खाद्य ग्राह्यता में भारी गिरावट, रोग-प्रतिरोधक क्षमता में कमी, शारीरिक अवस्था में कमी, इत्यादि हैं। इन परिस्थितियों से बचने के लिए बेहतर प्रबंधन तकनीकों को अपनाना जरुरी हो जाता है।

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खाद्य ग्राह्यता में कमी

यह लाज़मी है की जिस प्रकार का पौस्टिक खाद्य जानवर ग्रहण करते हैं वैसा ही उनका प्रदर्शन होता है। अन्तरावस्था काल में लगभग 30% तक गिरावट देखने को मिलती है। इसलिए हमारी प्रबंधन नीतियों को इस प्रकार होना चाहिए जिससे पशु सही मात्रा में गुणवत्तायुक्त पोषण प्राप्त कर सके।

अन्तरावस्था काल में पशुओं का उचित प्रबंधन करने से होने वाली समस्याएं

अन्तरावस्था काल में अनुचित प्रबंधन से कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जिसमे मुख्य्तः शारीरिक क्षति, दुग्ध उत्पादकता में कमी, उत्पादित दुग्ध की गुणवत्ता में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, बिमारियों का होना जिसके फलस्वरूप आर्थिक हानि होती है और किसान को आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। आकृति 1 मे अन्तरावस्था काल में पशुओं का उचित प्रबंधन न करने से होने वाली परेशानियों को दर्शाया गया है

आकृति 1: अन्तरावस्था काल में पशुओं का उचित प्रबंधन करने से होने वाली समस्याएं

अन्तरावस्था काल में की जाने वाली उन्नत प्रबंधन नीतियां

पोषण प्रबंधन

चूँकि पशुओं और उनके अजन्मे बच्चों को जरुरी पोषण की मात्रा में 25-30% ज्यादा बढ़ जाती क्योंकि पशु की अपनी शारीरिक अवस्था के साथ साथ उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को सही पोषण मिलता रहे। इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा इस 42 दिन के समय में मिश्रित दाने की मात्रा 25-30% बढाकर देना चाहिए। ध्यान रहे की हरा एवं सूखा चारा सही अनुपात में और उचित मात्रा में रहे।

पशुओं को सही अनुपात में दाने और चारा देना

अच्छी तरह से मिश्रित एवं पर्याप्त मात्रा में सूखा एवं हरा चारा प्रदान करने के साथ पशुओं को दाना देना चाहिए। प्रायः किसान अन्तरावस्थीय काल में पशुओं को दाना नहीं देते हैं क्योंकि पशु उस समय दुग्ध उतपादन नहीं करते हैं। इसलिए प्रति 100 किलो शारीरिक भार पर 2.5-3 किलो शुष्क खाद्य देना चाहिए।  इससे पशु के साथ उनके गर्भ में पल रहा बच्चा भी स्वस्थ रहता है। ध्यान रहे की अत्यधिक सूखा, हरा या दाना नहीं देना चाहिए।  सूखे एवं हरे चारे का सही अनुपात (30:70 -40:60) होना चाहिए। साथ ही साथ यह ध्यान रखना चाहिए की शुष्क खाद्य में दाने एवं चारे का अनुपात (30:70 -40:60) रखना चाहिए।

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पशुओं को वसा की आपूर्ति

दुग्ध में काफी मात्रा (3-7%) में वसा पाई जाती है जो की एक ऊर्जा का श्रोत है। अतः खाद्य सामग्रियों में वसा की मात्रा अन्तरावस्था काल में बढ़ा देनी चाहिए ताकि पशुओं को खाद्य के साथ वसा की उचित आपूर्ति हो सके। इसके लिए वनस्पति तेल (सोयाबीन, सरसो, सूर्यमुखी, इत्यादि) का प्रयोग खाने में मिलाकर किया जा सकता है। अन्तरावस्था काल के कुल 42 दिनों के दौरान 50 से 250 मिलीलीटर तेल 250-400 किलो शारीरिक भार के हिसाब से प्रतिदिन दिया जाना चाहिए। इससे जो शारीरिक अवस्था में गिरावट अक्सर देखने को मिलती है, उसमे काफी कमी आती है और स्वस्थ्य के साथ बेहतर दुग्ध उत्पादन देखा गया है।

पशुओं को आवश्यक विटामिन एवं खनिज तत्वों की आपूर्ति

मुख्यतः विटामिन E, विटामिन A, C, D ज़रूरी विटामिन माने जातें हैं। वही खनिज तत्वों में सेलेनियम, जिंक और कॉपर इत्यादि हैं। पुरे शुष्क खाद्य के लिए मिश्रित दाने में इन विटामिनो और खनिज तत्वों का समावेश आवश्यक है। मिश्रित दाने में 2% इन विटामिनो एवं खनिज तत्वों की मात्रा अच्छी मानी गयी है। ध्यान रहे की मिश्रित दाने में 1% खाने का नमक शामिल होना चाहिए।

 

शारीरिक संरचना की देखभाल

अत्यधिक मोटापा या पतलापन पशु के स्वास्थय के लिए हानिकारक होता है। खासकर अन्तरावस्था काल में पशुओं की शारीरिक बनावट इन दोनों अवस्थाओं के मध्य होनी चाहिए।  शोधों में यह पाय गया है जिन पशुओं की शारीरिक अवस्था बी० सी० यस० (बॉडी कंडीशन स्कोर) 3.5 (1- 5 की स्केल) के आसपास रहा उन पशुओं का प्रदर्शन हर मामले में बेहतर रहा। उन स्वस्थ पशुओं ने बेहतर दुग्ध उत्पादन किया और ब्यांत के बाद शारीरिक क्षति भी कम हुई। बेहतर शारीरिक स्थिति में रहने वाले पशुओं की प्रजनन क्षमता बेहतर रही और प्रसव सामान्य पाए गए।

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पशुओं को सही बाड़ा एवं नियंत्रण प्रबंधन करना

अन्तरावस्था काल में पशु काफी संवेदनशील होते हैं इसलिए उनका सावधानी से ध्यान रखना चाहिए। पशुओं को मुख्यतः आरामदायक, हवादार, फिसलनरहित, चारे- पानी को बढ़ावा देने वाला और पशुशाला में होने वाले श्रम को सही से संचालित करवाने वाला होना चाहिए।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि अन्तरावस्था काल में सही प्रबंधन आवश्यक होता है। इस काल में किये गए प्रबंधन का परिणाम दूरगामी होता है। बेहतर प्रबंधन रणनीतियां जिनमे उचित पोषण, सही देखभाल, सही बाड़ा एवं नियंत्रण प्रबंधन, इत्यादि करने से किसान अनचाहे परिणामो से बचकर बेहतर उत्पादन, गुणवत्ता, शारीरिक रख-रखाव प्राप्तकर अपनी आय को बढ़ा सकता है जिससे वह शशक्त होने के साथ साथ दूसरे किसानो की लिए मिसाल बन सकता है।

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