पशुओं के रोग एवं प्राथमिक उपचार : पारंपरिक पशु चिकित्सा पद्धति

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पशुओं के रोग एवं प्राथमिक उपचार : पारंपरिक पशु चिकित्सा पद्धति

कई बार पशुओं के बीमार होने पर जल्दी पशु चिकित्सक नहीं उपलब्ध हो पाते हैं, पशुपालक मेडिकल स्टोर से दवाएं लाकर पशुओं को देता है, जोकि महंगे तो होते हैं, लेकिन कई बार इलाज नहीं हो पाता है। कई बार तो पशुपालक को नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। जबकि पशुपालक घर बैठे कुछ घरेलू उपचार अपनाकर अपने पशुओं को ठीक कर सकते हैं, जोकि देश में वर्षों से लोग करते आ रहे हैं। पशुपालकों को पशुओं में होने वाली सामान्य बीमारियों की जानकारी होनी चाहिए, जिसके आधार पर वे अपने पशु का प्राथमिक उपचार कर सकें, साथ ही कुछ देशी दवाइयां हैं जिनकी गुणवत्ता वैज्ञानिको ने भी परखी है।पशुपालन एक लाभदायक व्यवसाय है, पशुपालन को वैज्ञानिक विधि के आधार पर करने से पशु स्वास्थ्य पर नगण्य व्यय के साथ अधिक उत्पादन होने से लाभ का औसत बढ़ जाता है। छोटी जोत के किसानों की आजीविका के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में जाना जाने वाला पशुपालन वैसे तो एक लाभकारी व्यवसाय है, परन्तु यदि पशुओं के रोग एवं पशुपालकों की उनके बारे में अज्ञानता को देखा जाये तो यह बहुत ही घाटे का सौदा हो जाता है। पशुपालकों को पशुओं में होने वाली सामान्य बीमारियों की जानकारी स्वंय होनी चाहिये, जिसके आधार पर वे अपने पशु को प्राथमिक देशी चिकित्सा प्रदान कर सकें साथ ही कुछ देशी दवाइयां जिनकी गुणवता वैज्ञानिक समुदाय में जाँची व परखी जा चुकी है, उनकी भी पहचान पशुपालक को होनी चाहिये। यहां पर पशुओं की साधारण बीमारियां एवं उनके देशी उपचार पर प्रकाश डाला गया है। सामान्यतया दो-तीन दिन के घरेलू उपचार से यदि फायदा न दिखे तो पशु चिकित्सक के पास ले जाकर पशु का इलाज करवाना चाहिए। बीमारी की तीव्रता के अनुसार ही उपचार होना चाहिए। गंभीर बीमारियों में घरेलू उपचार न करके तत्काल डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

पशुओं की बीमारियां और उनके घरेलु देशी उपचार

 भूख न लगना या चारा कम खाना:

अजवायन-50 ग्राम, नमक-50 ग्राम, सौंठ-20 ग्राम, सौंफ-20 ग्राम और नक्स वोमिका पाउडर-10 ग्राम, इन सभी चीजों को मिलकार अच्छी तरह कूटकर और इसमें 200 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 लड्डू बना लें। बड़े पशुओं को सुबह व शाम को 1 लड्डू दो से तीन दिन तक देने से तुरंत लाभ होता है। छोटे पशुओं को इसकी आधा मात्रा देनी चाहिए। इस पाउडर की चार खुराक बनाकर, एक खुराक आधा लीटर पानी में घोलकर सुबह शाम भी दे सकते हैं।

दस्त आना:

100 ग्राम चावल उबालकर और उसमें 200 ग्राम छाछ व 100 ग्राम खड़िया पीसकर मिला लें। इस एक खुराक को सुबह शाम दो बार और छोटे पशुओं की इसकी आधी खुराक दो से तीन दिन तक खिलानी चाहिए।

खूनी दस्त:

बेलगिरी 100 ग्राम व मिश्री 200 ग्राम में 100 ग्राम सूखा धनिया लेकर इन तीनों चीजों को अच्छी तरह से एक साथ पीस लें। इसके बाद इसकी तीन खुराक बनाकर 200 ग्राम पानी में घोलकर दिन में तीन बार दें, यह खुराक दो से तीन दिनों तक देनी चाहिए।

आफरा आना (गैस बनना):

जब पशुओं का पेट फूल जाए और उन्हें सांस लेने व बैठने में परेशानी होने लगे तो पशुओं को 20 ग्राम हींग को 300 ग्राम मीठे तेल में मिलाकर तुरंत पिला दें इससे गैस से तुरंत आराम मिल जाएगा। इसके साथ ही शहजन की पेड़ की छाल को पानी में उबालकर उस पानी के पिलाएं तो अफरा से आराम मिल जाता है। साथ ही अगर 50 ग्राम अजवायन को, 50 ग्राम काला नमक को 500 ग्राम छाछ में मिलाकर देने से भी फायदा होता है।

निमोनिया/खांसी/सर्दी जुकाम:

सबसे पहले पशु के ऊपर कपड़ा बांध दें फिर 250 ग्राम अडूसा के पत्ते, 100 ग्राम सौंठ, 20 ग्राम काली मिर्च, 50 ग्राम अजवायन लेकर सबको मिलाकर बारीक पीसकर 20 ग्राम पिसी हल्दी और 500 ग्राम गुड़ में अच्छी तरह से मिलाकर इनसे 6 लड्डू बना और दिन में तीन बार पशुओं को चटाने से जल्दी आराम मिल जाता है। नहीं तो 100 ग्राम सुहागा को फूल, 200 ग्राम पिसी मुलेठी को 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर 6 लड्डू बना लें और दिन में तीन बार एक-एक लड्डू देने से आराम मिल जाता है। यह उपचार 4-5 दिनों तक करना चाहिए।

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बुखार आना:

अडुसा के 100 ग्राम पत्ते, नीम गिलोय 10 ग्राम, कुटकी 100 ग्राम और 50 ग्राम काली मिर्च को मिलाकर बारीक पिस लें और इसमें से 25 ग्राम सुबह व 25 ग्राम शाम को 1 लीटर पानी में उबाल कर इस पानी को पिलाने से बुखार उतर जाता है। इस उपाय को 1-2 दिनों तक करना चाहिए।

खून बहना:

जिस जगह से खून बह रहा हो उस जगह पीसी फिटकरी लगाने से तुरंत खून बहना बंद हो जाता है, नहीं तो नाग केसर की जड़ों का लेप लगाने से भी खून बहना बंद हो जाता है।

घाव या फिर टूटे सींग का इलाज:

झरबेरी (बेर) की जड़ों को अच्छी तरह से धोकर सुखा लें और फिर इसे अच्छी तरह से बारीक पीस लें और इसमें अर्जुन छाल का पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर रखें। जब कभी भी किसी की सींग टूट जाए या कोई घाव हो जाए तो उस पर इस पाउडर को लगाकर पट्टी बांधने से घाव भर जाता है।

मिट्टी खाना/दीवार चाटना:

अगर पशु मिट्टी खा रहा है या फिर दीवार चाट रहा है तो उसको हर दिन 50 ग्राम नमक व खनिज लवण पाउडर 25 ग्राम रोजाना देना चाहिए।

 पशुओं में जुएं पड़ना:

खाने के तम्बाकु की एक पुड़िया को आधा किलो पानी में कुछ देर के लिए भिगो दें, फिर उसको उसी पानी में अच्छी तरह से मसल लें और उसमें दो चम्मच सरसों का तेल मिलाकर पशुओं के शरीर पर मालिश करें और अगर पानी कम हो तो और मिल लें। इसको लगाने के कुछ देर बाद पशु के शरीर को बोरी से रगड़कर साफ कर दें, सभी जुएं और चीचड़ खत्म हो जाएंगे।

पशुओं की रिपीट ब्रीडिंग का घरेलू उपचार

पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग ऐसी समस्या जिसमें गाय भैंस तीन या तीन से अधिक बार गर्भाधान के बाद भी गर्भ धारण नहीं कर पाते, ऐसे पशु रिपीट ब्रीडर कहलाते हैं। ऐसे पशुओं मद चक्र के पहले चार दिन एक मूली प्रतिदिन देनी चाहिए। मद चक्र के 5-8 दिन, अगले चार दिन तक ग्वारपाठा, एलुवीरा, का एक पत्ता प्रतिदिन देना चाहिए। मद चक्र के 9-12 दिन में सहजन के 4 मुट्ठी पत्तियाँ प्रतिदिन देनी चाहिए। मद चक्र के 13-16 दिन लगातार, चार मुट्ठी हडजोड़ प्रतिदिन खिलाये। मद चक्र के 17-20 दिन में लगातार, चार मुट्ठी कडी़ पत्ते, में थोड़ी, सी हल्दी मिलाकर देना चाहिए ।

हींग:-

यह हल्के पीले रंग अथवा सफेद रंग की होती है। इसका गंध भारी तथा स्वाद कड़वा होती है। यह पानी में घुलनशील है और इसका घोल दूधिया रंग का होता है। इसका प्रयोग ऊपरी भागों, त्वचा के ऊपरी घावों को तेजी से सुखाने के लिए किया जाता है तथा भीतरी प्रयोग अर्थात् दवा के रूप में खाने से पेट से गंदी वायु को निकालने सड़न, पीप को रोकने, जीवाणुओं का नाश करने तथा बलगम को निकालने वाली औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। 👉🏻हींग का 20 प्रतिशत का टिंचर (20 ग्राम हींग को 1 लीटर जल में) घावों के लिए प्रयोग किया जाता है। पशुओं में अफरा के उपचार एवं उदर शूल या पेट दर्द में नीचे लिखा मिश्रण दवा के रूप में दिया जाता है। हींग, सोंठ, तम्बाकू, काला नमक प्रत्येक को बराबर-बराबर भाग में लेकर 1 लीटर जल में घोल बना दिया जाता है। 👉🏻पशुओं के पेट में कीड़े पड़ जाने पर 250 ग्राम ताजा हल्दी के गांठ को कूटकर इसका रस निचोड़ लें। इस रस को पीने के पानी मे मिलाकर प्रयोग किया जाता है। यह दवा हर महीने में एक बार निश्चित रूप से दी जानी चाहिए। 👉🏻अफरा होने अथवा पशुओं का पेट फूल जाने और पशुओं को सांस लेने एवं बैठने में परेशानी आने की स्थिति में पशुओं को 20 ग्राम सुभाश/हींग को 300 ग्राम मीठे तेल में मिलाकर तुरन्त पिला दें इससे गैस फौरन खत्म हो जायेगी। यदि सहजन के पेड़ की छाल को पानी में उबालकर उस पानी को पिलाये तो भी अफरा खत्म हो जाता है।

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कत्‍था:-

यह हल्के भूरे अथवा लाल रंग के ढेलो के रूप में बाजार में मिलता है। यह अन्दर से रन्ध्रयुक्त और तोड़ने में भुरभुरा होता है। खाने में पहले-पहल कड़वा व तीखा तथा बाद में मीठा लगता है। उबलते हुए पानी में यह पूर्ण रूप से घुलनशील है। दवा के रूप में घोड़ों को 3.55 – 7.10 ग्राम तथा गाय व बैल को 7.10- 21.30 ग्राम की मात्रा में दिया जा सकता है। 👉🏻कत्थे का प्रयोग अतिसार और पेचिश में किया जाता है। कत्थे का मिश्रण अफीम 3.55 ग्राम, कत्था 7.10 ग्राम, अदरक 3.55 ग्राम तथा खड़िया 14.20 ग्राम को मिलाकर बनाया जाता है। इस मिश्रण को पशु अनुसार खुराक सुबह-शाम खिलाना चाहिए।

अलसी का तेल:-

👉🏻अलसी को पेरने से प्राप्त होता है। हवा में रखे जाने पर यह गाढ़ा हो जाता है। अलसी का तेल घोड़े को 560 से 800 ग्राम तथा गाय व बैल को 568 से 1136 ग्राम तक खिलाया जाता है। साथ ही इसे पेट दर्द में क्लोरल हाइड्रेड के साथ मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है।

यूकेलिप्टस का तेल:-

👉🏻यूकेलिप्टस की ताजी पत्तियों से यूकेलिप्टस का तेल आसवन द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह या तो रंगहीन होता है अथवा हल्का पीला। स्वाद में कड़वा और गन्धयुक्त पदार्थ है, जो पांच गुने प्रतिशत ऐल्कोहल मे घुलनशील है। 👉🏻यूकेलिप्टस के तेल को घावों की ड्रेसिंग के लिए प्रयोग किया जाता है। 👉🏻गठिया के दर्द इत्यादि में यूकेलिप्टस घोड़े को 560 से 1130 ग्राम दिया जाता है।

रेड़ी के तेल:-

👉🏻अरण्डी का तेल साफ, हल्के रंग का होता है, जो अच्छे से सूख कर कठोर हो जाता है। इस तेल में कोई गन्ध नहीं होती है। इसके औषधीय प्रयोग भी होते हैं। इस तेल को दवा में एक मूल्यवान जु़लाब माना जाता है। रेंडी का तेल अरण्डी के बीजों से प्राप्त किया जाता है। रेड़ी के तेल का प्रयोग जुलाब के रूप में किया जाता है। 👉🏻गाय व बैल को भी इतनी ही मात्रा में दिया जाता है लेकिन बछड़े के लिए मात्रा घटाकर 50 से 60 ग्राम कर दिया जाता है। शुद्ध अरण्डी के तेल की कुछ बूंदे पशुओं की आंख में डाल देने पर पशुओं की आंख में किसी चीज के गिर जाने पर लाभ पंहुचता है।

 

सोंठ (सूखे अदरक):-

 

👉🏻सूखे अदरक को सोंठ कहते हैं। यह अदरक के पौधे का भूमिगत तना है। प्रायः सोंठ का प्रयोग पाउडर रूप में होता है। घोड़े को 14 से 28 ग्राम दिया जाता है। गाय व बैल को भी इतनी ही मात्रा में दिया जाता है। 500 ग्राम सोंठ को 1 लीटर एल्कोहल में मिला देने पर सोंठ का घोल (टिंचर) तैयार हो जाता है। सोंठ आमाशय, जिगर और पाचन शक्ति को बल देता है। यह भूख को बढ़ाता है, पेट की वायु को बाहर निकालता और उत्तेजना उत्पन्न करता है। दस्त कराने वाली दवाओं के साथ भी साठे का प्रयोग किया जाता है।

कुचिला:-

👉🏻ये कुचिला नामक एक छोटे से पेड़ के पके हुए बीज होते हैं। ये तवे के चपटे होते हैं और इनमें ऊपर रोयें होते हैं। ये गन्धहीन बीज स्वाद में बड़े कड़वे होते हैं। इनको पीसकर पाउडर के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुचिला का प्रयोग उस दशा में जबकि पशुओं को लकवा मार जाने का भय होता है, बहुत उपयोगी सिद्ध होता है, क्योंकि इसका रीढ़ की नाल पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है। पेट दर्द में इस औषधि का प्रयोग अमोनियम कार्बोनेट के साथ किया जाता है। निमोनिया तथा अन्य श्वास रोगों में इसका प्रायः प्रयोग किया जाता है।

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फिटकरी:-

👉🏻यह रंगहीन पदार्थ है जिसका स्वाद मीठा और कसैला होता है। यह सात भाग पानी में घुलनशील है। यह द्रवों को जमाने और तन्तुओं को संकुचित करने के साथ खून का दृढ़ थक्का बनाती है। अतः खून का बहना रोकने के लिए यह अति उपयोगी औषधि है। यह श्लेष्मिक झिल्ली को सिकोड़ती है। अतः आंख धोने, गर्भाशय जलन, सर्दी और मुख्य बुखार में फिटकरी का 2-5 प्रतिशत घोल प्रयोग किया जाता है। भीतरी रक्त प्रदाह को रोकने के लिए फिटकरी खिलाई भी जाती है। 👉🏻जिस जगह खून बह रहा है, उस जगह पर पिसी हुई फिटकरी लगाने से तुरन्त खून बन्द हो जाता है अथवा नाग केसर जड़ी का लेप करने से भी खून शीघ्र बन्द हो जायेगा। मुँह में छाले होने पर 10 ग्राम सुहागा को हल्का सा गर्म करके फूला लें तथा उसमें 2 ग्राम कपूर और 20 ग्राम शहद मिला लें, मुँह को फिटकरी के पानी से धोकर इस दवाई का मुँह में लेप कर दें छाले अति शीघ्र ठीक हो जायेंगे।

 

कपूर:-

👉🏻सदाबहार पेड़ की लकड़ी से आसवन विधि द्वारा प्राकृतिक कपूर प्राप्त किया जाता है लेकिन संश्लेषण विधि द्वारा भी कपूर बनाया जाता है। कपूर एक रंगहीन पदार्थ है जिसके रवे पारदर्शी होते है। इनमें एक विशेष प्रकार की सुगन्ध आती है। स्वाद में यह पहले कड़वा फिर तिक्त और अन्त में ठण्डा लगता है। यह तेजी से जलता है और हवा में खुला रख देने पर शीघ्र ही उड़ जाता है। अतः इसे डिब्बे में लौंग के साथ बन्द करके रखते हैं। 👉🏻10 ग्राम देशी कपूर को 200 ग्राम नारियल के तेल में मिलाकर उसको किसी बन्द ढक्कन के बरतन में रख लें तथा पशु के खुजली वाले स्थान पर दिन में दो बार लगावें। इससे अतिशीघ्र आराम मिलता है। अगर जानवरों के पूरे शरीर पर खुजली हो तो इसको पानी मिलाकर पूरे शरीर पर लगा देना चाहिए। 👉🏻कपूर को ईथर अथवा जैतून के तेल में (1: 4) मिलाकर दिया जाता हैं। 👉🏻छाले व घावों पर लगाने के लिए कपूर का निम्नलिखित जीवाणुनाशक एवं छिड़कने वाले पाउडर के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है। कपूर 3.55 ग्राम, कार्बोलिक एसिड 3.55 ग्राम, फिटकरी 7.10 ग्राम, जिंक आक्साइड 7.10 ग्राम व बोरिक एसिड 226 ग्राम इन सबको मिलाकर पाउडर के रूप में प्रयोग किया जाता है। 👉🏻कपूर को तुलसी दल के साथ पीस कर ऐसे घावों पर लगाना चाहिए जिनमें कीड़े पड़ गये हों। ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए। 👉🏻छाजन और दाद, खाज, खुजली में कपूर 3.55 ग्राम, माड़ 14.20 ग्राम, जिंक आक्साइड 14.20 ग्राम सभी को मिलाकर पाउडर बनाकर इसका प्रयोग करना चाहिए। 👉🏻200 भाग कपूर को 800 भाग मूंगफली के तेल में मिलाकर कपूर का लेप तैयार किया जाता है जिसे मोच, चोट, गठिया, पशुओं के स्तन प्रदाह में लेप के रूप में प्रयोग किया जाता है। वायु नली भुज प्रदाह और निमोनिया में इस लेप की छाती पर मालिश की जाती है। 👉🏻घोड़ों के उदर दर्द और गाय-बैल में अफरा रोग होने पर नीचे लिखी औषधि की 27 ग्राम मात्रा देनी चाहिए। कपूर, अजवाइन, हींग, कालीमिर्च (4 ग्राम) पीस और सनई की पत्ती सभी को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर लें व 1 पाव पानी में मिलाकर उसे रोगी पशु को पिलायें।

 

 

पशुओं के रोग एवं प्राथमिक उपचार

पारंपरिक पशु चिकित्सा पद्धति

औषधीय खरपतवार

 

डॉक्टर कौशलेंद्र पाठक, पशुधन विशेषज्ञ, लखनऊ

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