एंडोमेट्राइटिस के कारण, लक्षण, निदान, भविष्य, उपचार एवं बचाव

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एंडोमेट्राइटिस के कारण- लक्षण- निदान- भविष्य- उपचार एवं बचाव

१.डॉ संजय कुमार मिश्र एवं

२.प्रो० (डॉ) अतुल सक्सेना

१.पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा
२. निदेशक शोध, दुवासु मथुरा

गाय-भैंसों में अनुउर्वरता का एक बहुत बड़ा कारण है एंडोमेट्राइटिस। इसमें गर्भाशय की आंतरिक परत में सूजन आ जाती है और सूजन में मवाद भर जाती है जो प्रायः जीवाणु, विषाणु या कवक के कारण हो सकती है। जीवाणु में मुख्य रूप से स्ट्रिपटोकोकाई, स्टेफाइलोकोकाई, कोराइनी बैक्टीरियम पायोजेनिस, ब्रूसेला अबारट्स , कैंपाइलोबैक्टर फीटस, माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस तथा कोली फार्म जीवाणु एवं ट्राई ट्राई को मोनाश फिटस, नामक प्रोटोजोआ मुख्य हैं।
कारण:
गर्भपात,
समय से पहले बच्चा देना/ प्रीमेच्योर बर्थ,
असामान्य प्रसव, जुड़वा बच्चे,
पायोमेट्रा,
गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा, योनि एवं योनि द्वार में घाव। व्यायाम की कमी।
गर्भाशय का अपने, सामान्य आकार में आने में देरी होना। कृत्रिम गर्भाधान के समय चोट।
ब्याने के समय सफाई की कमी
पोषण की कमी एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी से संक्रमण जल्दी होने की संभावना रहती है।
एस्ट्रोजन हार्मोन की अधिक मात्रा थायराइड का काम नहीं करना, आयोडीन की कमी के कारण एंडोमेट्राइटिस होने की संभावना अधिक रहती है। गाय-भैंसों में एंडोमेट्राइटिस होना अलग-अलग प्रजाति, जलवायु, क्षेत्र के कारण प्रभावित होता है।भैंसों में 20 30% होता है।
लक्षण:
म्यूकस एवं मवाद मिला हुआ स्राव निकलता है जो मुख्यत: गर्मी के दौरान अधिक निकलता है। गर्मी सामान्य होती है। गर्मी के दौरान मवाद के कतरे गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय दोनों से गर्मी के दौरान बाहर आ सकते हैं। मवाद मिले स्राव का रंग बादली, दूधिया, मवाद जैसा होता है जबकि गर्मी का स्राव साफ कांच के रंग जैसा होता है। इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा में भी सूजन और मवाद पड़ा हो सकता है। गुदा परीक्षण करने पर गर्भाशय का आकार
हल्का बढ़ा हुआ भारी तथा गर्भाशय की दीवार मोटी महसूस होती है। यह बदलाव एक या दोनों श्रंग मैं हो सकते हैं। इसके कारण ब्याने के बाद गर्भाशय का इंवॉल्यूशन देरी से होता है। एंडोमेट्राइटिस के बावजूद गर्मी व मद चक्र सामान्य समय का होता है। गर्भाशय के संक्रमण तथा असामान्य एंडोमेट्राइटिस के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता है और पशु रिपीट ब्रीडर हो जाता है और बिना गर्भ धारण किए बार-बार गर्मी में आता रहता है। बाहर से परीक्षण करने पर गाय भैंस की योनि से मवाद निकलती हुई नजर आती है। गाय भैंस के बैठने पर मवाद नीचे गिरती रहती है एवं पूछ पर भी मवाद लगी रहती है।
एंडोमेट्राइटिस की उस अवस्था में जब गर्भाशय का आकार हल्का बड़ा हुआ हो तो गुदा परीक्षण मैं 35 से 40 दिन के गर्भ का भ्रम हो सकता है। ऐसी स्थिति में सामान्य गर्मी होने के बावजूद बार-बार गर्भाधान कराने से भी गर्भधारण नहीं होता है। एंडोमेट्राइटिस की गंभीरता व स्त्राव के आधार पर इसे तीन भागों में बांट सकते हैं-
प्रथम डिग्री एंडोमेट्राइटिस:
सामान्य मद चक्र।
सराव में बहुत हल्की और कम मात्रा में मवाद होती है जो बाद में बंद हो जाती है। जननांग पूरी तरह से सामान्य होते हैं।
द्वितीय कोटि एंडोमेट्राइटिस:
मद चक्र असामान्य हो सकता है या हल्का लंबा हो सकता है। स्राव म्यूकस व मवाद मिला हुआ होता है। जननांग विशेषकर गर्भाशय में हल्की सूजन व हल्का भारी होता है।
तृतीय डिग्री एंडोमेट्राइटिस:
मद चक्र लंबा हो जाता है। सराव में सिर्फ मवाद ही होती है विशेषकर गर्मी या मद के दिनों में।
गर्भाशय का आकार काफी बढ़ जाता है तथा उसकी दीवार मोटी हो जाती है।
निदान:
इतिहास और लक्षणों के आधार पर निदान किया जा सकता है। प्रयोगशाला में जीवाणु, विषाणु एवं प्रोटोजोआ की जांच कर भी निदान किया जा सकता है। गर्भाशय , गर्भाशय ग्रीवा की जांच कर या मवाद की स्लाइड बनाकर सीधी जांच द्वारा भी निदान किया जा सकता है। एंडोमेट्रियम की बायोप्सी भी की जा सकती है।
स्पैकुलम लगाकर जांच करने पर योनि की दीवाल पर मवाद लगी नजर आती है।
भविष्य:
यदि समय से निदान कर उपचार शुरू कर दिया जाए तो बीमारी का भविष्य अच्छा है यानी पशु ठीक हो जाता है परंतु देरी हो जाने पर पशु को ठीक होने में काफी समय लगता है। भविष्य इस बात पर भी निर्भर करता है की एंडोमेट्राइटिस किस कारण से हुई है। इस दौरान सामान मद चक्र के समय बार-बार गर्मी में आने व एस्ट्रोजन के कारण गर्भाशय एवं अन्य जनन अंगों में जो बदलाव होते हैं उनके कारण भी पशु को स्वस्थ होने में मदद मिलती है।
यदि संक्रमण मैं मेटइसटरस काल में होता है तो वापस ठीक होने में अधिक समय लगता है या एंडोमेट्राइटिस से पायोमेट्रा हो जाता है।
उपचार:
किसी योग्य पशु चिकित्सक से ही उपचार कराएं। उपचार का मकसद संक्रमण को रोकना तथा गर्भाशय की अंदरूनी परत यानी एंडोमेट्रियम को वापस सामान्य अवस्था में लाना ताकि सफल गर्भाधान हो सके। मवाद की जीवाणु जांच द्वारा सेंसटिविटी टेस्ट करा लेना चाहिए ताकि उपयुक्त प्रतिजैविक औषधि के प्रयोग से संक्रमण को जल्दी समाप्त किया जा सके।
पोवीडीन आयोडीन, 5% घोल को 50ml आसुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालें। अथवा ऑक्सीटेटरासाइक्लिन आई यू 60ml गर्भाशय में डालें। अथवा
4 ग्राम लिकसेन आई यू 60ml आसुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालें।
अथवा 3 ग्राम ऑक्सीटेटरासाइक्लिन
बोलस 50-100 मिली मैट्रोनिडाज़ोल मैं घोलकर गर्भाशय में 3 से 5 दिन तक डालें।
थर्ड डिग्री एंडोमेट्राइटिस में जहां गर्भाशय का आकार बढ़ गया हो, पायोमेट्रा की स्थिति हो ऐसे में पीजी एफ टू अलफा, देना चाहिए तथा इसके साथ प्रतिजैविक औषधि भी देनी चाहिए। एंडोमेट्राइटिस के उपचार के लिए एंडोमेट्रियम को उत्तेजित करना भी आवश्यक है ताकि गर्भाशय की सक्रियता बढ़ सके। इसमें
लूगोलस आयोडीन के 5% घोल का 5ml 100 मिलीलीटर शुद्ध आशुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालना चाहिए।
प्रतिजैविक औषधि के साथ-साथ सहयोग के लिए निम्न औषधियां भी अवश्य दें इंजेक्शन विटामिन ए 600000 आई यू एक दिन छोड़कर कम से कम 5 बार दें।
इंजेक्शन विटामिन ई सेलेनियम 150 एमजी
जिंक सल्फेट 5 एमजी मुंह द्वारा दें (यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्तेजित करती है)
एंडोमेट्राइटिस व मेट्राइटिस/ गर्भाशय शोथ, की स्थिति में उपरोक्त प्रतिजैविक
औषधियों का प्रयोग करें।
उपरोक्त प्रतिजैविक औषधियों से उपचार के बाद अगली बार पशु के गर्मी में आने शराब देखने पर उपचार के असर का पता चल जाएगा। यदि गर्भाशय सामान्य हो जाता है अर्थात संक्रमण समाप्त हो जाता है तो शराव में मवाद नहीं दिखेगी और यदि गर्मी के समय शराव में मवाद मिली हुई है तो वापस इसी प्रतिजैविक थेरेपी को देने की जरूरत पड़ती है।

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बचाव:
वास्तव में गर्भाशय में संक्रमण पशु घर की साफ सफाई की कमी के कारण अधिक होता है।
इसके अतिरिक्त कृत्रिम गर्भाधान के समय भी असेप्टिक तरीके से गर्भाधान नहीं करने से भी संक्रमण हो जाता है इसलिए इससे बचाव किया जाए। ब्याने के समय व बाद में पशु घर व पशु की अच्छी सफाई रखें।
ब्याने के समय हाथों की मदद से बछड़ा खींचकर निकालने , कठिन प्रसव, जेर को हाथ से निकालने आदि के बाद कम से कम 3 दिन तक इंट्रायूटराइन प्रतिजैविक औषधि जरूर दें। कृत्रिम गर्भाधान करते समय ध्यान रखें वीर्य को सर्विस में रखें गन को आगे गर्भाशय के अंदर तक नहीं ले जाएं।
यदि पशु ब्रूसेलोसिस कैंपाइलोबैक्टीरियोसिस या ट्राइकोंमोनीएसिस, से ग्रस्त है तो उसका उपचार अवश्य करें।
यदि पशु योनि के रास्ते हवा खींचती है (न्यूमोवेजाइना) तो योनि द्वार के ऊपरी हिस्से पर टांके लगाएं तथा इसके लिए कैशलिकस ऑपरेशन किया जाता है।
कठिन प्रशव एवं जेर के रुकने के बाद अक्सर एंडोमेट्राइटिस हो जाती है इसलिए इसके बाद प्रतिजैविक औषधि का प्रयोग अवश्य करें।
एंडोमेट्राइटिस के उपचार के लिए जब भी पोवीडीन घोल, ऑक्सीटेटरासाइक्लिन या नाइट्रोफुरेजोन को गर्भाशय में डाला जाता है तो गायों में मद चक्र छोटा हो सकता है। कई तरह के घोल से एंडोमेट्रियम उत्तेजित हो जाती है जिससे उर्वरता कम हो जाती है। जैसे लुगोलस घोल, के डालने के उपरांत संक्रमण रुकने के बाद वापिस गर्भधारण होने मैं थोड़ा अधिक समय लगता है। इसीलिए गर्भाशय में स्ट्रांग घोल नहीं डालने चाहिए जिससे गर्भाशय की अंदरूनी परत एंडोमेट्रियम प्रभावित हो। प्रयोग में लिए जाने वाले घोल जैसे पोवीडीन, लियूगोल, आदि को वांछित तनुकरण के बाद ही डालना चाहिए। उसको जल्दी ठीक करने के उद्देश्य से कई लोग स्ट्रांग पॉवीडीन, पोटेशियम परमैंगनेट या लुगालस, आदि का प्रयोग करते हैं जो गर्भाशय के लिए अत्यंत घातक होता है इसके बुरे नतीजे अचानक तो सामने नजर नहीं आते परंतु बाद में गर्भधारण में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

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