बकरियों के लिए आहार तथा  चारा फसल चक्र प्रवंधन

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बकरियों के लिए आहार तथा  चारा फसल चक्र प्रवंधन

डॉ जितेंद्र सिंह,पशु चिकित्सा अधिकारी , कानपुर देहात

पशु पालन में भी बकरी व् भेड़ पालन सब से अहम योगदान रहा है|

भारत में कुल पशुधन की 15.1 प्रतिशत बकरियाँ है, तथा विश्व की 16.2 प्रतिशत बकरियाँ भारत में है| राजस्थान राज्य में देश की 17.43 प्रतिशत बकरियाँ पाई जाती है, जो राजस्थान राज्य के कुल पशुधन की 38 प्रतिशत है| हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी बकरी की उपयोगिता पहचान कर ही इसे गरीब की गाय का नाम दिया है| बकरी की आवश्यकताए एवं देखभाल अन्य किसी भी पशु की अपेक्षा कम और आसान है|  वातावरण के विपरीत परिस्थितियों में वनस्पतियो व् झाड़ियों की पत्तियाँ खाकर भी जीवित रह सकती है| इसलिये बकरी को रेगिस्तान का चलता फिरता फ्रीज या रनिंग डेयरी भी कहते है|

भारत में बकरियों की प्रमुख नस्लें :

भारत में बकरी की 22 नस्लें उपलब्ध है| भारतीय बकरियों की नस्लों को जलवायु क्षेत्रो के आधार पर उपयोगिता के आधार पर एवं शारीरिक आकर के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है|

  1. पूर्वोत्तर क्षेत्र की नस्लें  :आसाम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, एवं बिहार का पूर्वोत्तर क्षेत्र शामिल है| इस क्षेत्र की नस्लों में मुख्य रूप से गंजाम, आसाम हिल, ब्लैक बंगाल, एवं बेरारी नस्लें मुख्य है|
  2. उत्तर पश्चिमी शुष्क से अर्द्ध शुष्क क्षेत्र की नस्ले:इस क्षेत्र में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा गुजरात के मैदानी भाग शामिल है| इस क्षेत्र में खेजड़ी, नीम, अरडु, बबूल कीकर, बरगद, बेरी, झड़बेरी, आदि वृक्षो की अधिकता है| भारत वर्ष की बकरी की प्रमुख नस्ले भी इसी क्षेत्र में विकसित हुई है| इस क्षेत्र की प्रमुख नस्लों में जमुनापारी, कच्छी, मारवाड़ी, सुरती, मेहसाना,झालावड़ी, गोहिलावड़ी एवं मालवा आदि नस्लें मुख्य है|
  3. उत्तरी ठण्डे क्षेत्र की नस्ले :इस क्षेत्र की प्रमुख नस्लों में चेंगु, चांगथांगी, गड़ी  एवं कश्मीरी  आधी प्रमुख है|
  4. दक्षिणी क्षेत्र की  नस्ले :इस क्षेत्र की प्रमुख नस्लों में मालाबारी, कनाई- आड़ू, संगमनेरी एवं उस्मानाबादी आदि नस्लें मुख्य है|
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उपयोगिता के आधार पर बकरियों का वर्गीकरण :

  1. दुग्ध उत्पादन करने वाली नस्ले:जमुनापारी, बीटल, बारबरी एवं जखराना आदि प्रमुख है|  
  2. मांस उत्पादन करने वाली नस्ले :  ब्लैक बंगाल, गंजाम, आसाम हिल, संगनेरी, कनाई – आड़ू, मालवा, मारवाड़ी एवं बेरारी आदि प्रमुख है|
  3. मांस एवं दुग्ध दोनों का उत्पादन देने वाली नस्ले:सिरोही (परबतसरी, देवगढ़ी), कच्छी, मेहसाना, मालाबारी, झालावाडी, गोहिलावड़ी  एवं सुरती आदि प्रमुख है|

 

बकरियों की प्रजनन व्यवस्था:

प्रजनन की क्रिया लैंगिक परिपक्वता के उपरांत ही आरम्भ होती है| सही समय पर प्रजनन न होने से उत्पादन क्षमता में कमी आती है, साथ ही बकरी पालक को आर्थिक हानि भी होती है, अतः बकरी पालक को प्रजनन व्यवहार के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी रखना अति आवश्यक है|

परिपक्व होने की आयु : पालन पोषण की उचित दशा में बकरिया लगभग 10-12 माह में प्रौढ़ हो जाती है| बकरियों को 15-18 माह (शरीर का भार 22-25 किलोग्राम होना चाहिए) की आयु में गर्भित करना ठीक रहता है|  बकरियों का गर्मी में आने के समय को मदकाल कहते है| बकरियों में मदकाल की अवधि लगभग 30 घंटे (12-36 घंटे) तक होती है| बकरी के मदकाल या गर्मी में आने के लक्षण इस प्रकार है जैसे बकरी का बार बार पूंछ हिलना, बकरे के आस पास चक्कर लगाना, बकरी का बार बार बोलना, दूध उत्पादन कम होना आदि है| रेवड़ (Herd) में 25-30 बकरियों पर एक बकरा काफी होता है| बकरियों में गर्भ काल का औसतन समय 150 (145-155) दिन का होता है| बकरी का जीवन काल 10-12 वर्ष का होता है| बकरी की उत्पादन क्षमता उसके जीवन के 4-6 वर्ष तक की आयु में अधिकतम होती है|

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आवास व्यवस्ता:   बकरियों के रहने के लिए साधारण, सूखे एवं स्वच्छ बाड़े का होना चाहिए|बकरियों के आवास (बाड़े) मुख्तय तीन प्रकार के हो सकते है – 1. पूर्ण खुला बाड़ा 2. अर्द्ध खुला बाड़ा 3. पूर्ण ढका बाड़ा

बकरियों की आहार व्यवस्था: बकरी एक जुगाली करने वाला पशु है लेकिन उनकी दूसरे पशुओं के मुकाबले खाने की आदत भिन्न होती है| बकरिया अपने हिलने डुलने वाले ऊपरी होठो तथा जिव्हा की सहायता से वे बहुत छोटी घास एवं पेड़ तथा झाड़ियों की पत्तियों को आसानी से खा जाती है| बकरी अपने शरीर के वजन का ३-४ प्रतिशत तक सूखा पदार्थ आराम से ग्रहण कर सकती है| बकरी के आहार को मुख्य तोर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  • चारा:चारे के रूप में किसान बकरियों को अनाज वाली फसलों से प्राप्त चारा, फलीदार हरे चारा, पेड़-पौधों की पत्तियों का चारा, विभिन्न प्रकार की घास आदि को काम में लिया जा सकता है|
  • दाना :दाना वह पदार्थ है जिसमें नमी व् क्रूड फाइबर की मात्रा अपेक्षाकृत कम, परन्तु प्रोटीन की मात्रा प्रचुर होती है| दाने अधिक पाचनशील भी होते है| दूध देने वाली बकरियों को जीवन निर्वाह के लिए 150 ग्राम के अतिरिक्त 300-400 ग्राम दाना प्रति किलोग्राम दूध के हिसाब से प्रति बकरी देना आवश्यक है|

 

बकरियों को संतुलित आहार की आवश्यकता स्वस्थ दिशा में जीवन निर्वाह, जनन, मांस, दुग्ध  तथा रेशा उत्पादन हेतु पडती है| बकरियों के आहार के मुख्य घटक दाना व् अन्य पदार्थ  (खनिज मिश्रण) होते है|

बकरियों के चारे को किसान सामान्यत दलहन व् अदलहन में बांटा जा सकते है| दलहन चारे को सूखे चारे जैसे चना, मटर, अरहर, मूंग उर्द का भूसा तथा हरे चारे जैसे बरसीम, रिजका, सेनजी लोबिया, ग्वार  में बांटेते है| अदलहन सूखे चारे जैसे- गेहू, जो, जई, का भूसा, कड़बी (ज्वार, बाजरा, मक्का) सुखी घासें (हे) तथा अदलहन हरे चारे के अंतर्गत ज्वार, मक्का, बाजरा, मकचरी, नेपियर, सूडान घासें, जई मुख्य रूप से लिए जाते है|

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नए किसान यह ध्यान रखे की इन चारो के अलावा बकरियों के लिए चारागाह घासें, वृक्षों को पत्तिया, झाडिया , कुछ फलियाँ व् फल बहुत की श्रेष्ठ चारे के रूप में प्रचलित है|    इनके अलावा जंगली जलेबी, पीपल, नीम, बेर भी बकरियों को अच्छा चारा उपलब्ध कराते है|

वृक्ष का नाम पत्ती चारा का समय फली चारा का समय
देशी बबूल मई – फरवरी मई- जून
अरडू मई- मार्च
देशी सीसम अप्रैल – अक्टूबर
गूलर दिसंबर-अगस्त मार्च – जुलाई
सुबबूल जुलाई- दिसंबर
अंजन अप्रैल – जनवरी
खेजड़ी पुरे वर्ष जून – अगस्त

चारा फसल चक्र

  1. ज्वार+बाजरा+सूडान+मकचरी+लोबिया-बरसीम +  जई
  2. मक्का+लोबिया-ज्वार +लोबिया+मकचरी-बरसीम

चारे की फसलों को बोन व् काटने का सम

फसल बुवाई का समय चारा प्राप्त होने का समय
ज्वार मार्च – मध्य अगस्त 60 दिन बुवाई के बाद मई- अक्टूबर बहुकाट; पहली कटाई 60  दिन बुवाई के बाद, दूसरी – तीसरी कटाई 40-50 दिन पहली कटाई के बाद
मकचरी मार्च – जुलाई 80 दिन बुवाई के बाद मध्य मई- अक्टूबर, दाने – मध्य नवंबर
लोबिया मार्च – सितम्बर (पहला सप्ताह) 60-70 दिन बुवाई के बाद (मई- दिसंबर) फली बनने पर दाने 90-100 दिन बुवाई के बाद
रिजका मध्य सितम्बर – अक्टूबर पहली 60-70 दिन बुवाई के बाद अन्य 25-30 दिन अंतराल  (10-15 प्रतिशत फूल)

 

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