भेड़ के दूध का महत्व और किसानों के अर्थिक उत्थान में उसकी भूमिका

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भेड़ के दूध का महत्व और किसानों के अर्थिक उत्थान में उसकी भूमिका

अर्पिता महापात्र
भा.कृ.अनु.प.-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर (राजस्थान)

https://dahd.nic.in/sites/default/filess/NAP%20on%20Sheep.pdf

प्राचीन काल से दूध मानव पोषण का एक अभिन्न हिस्सा रहा हैं। यह जन्मोपरान्त से ही सभी स्तनधारियों का पहला भोजन होता हैं। दूध एक सम्पूर्ण आहार भी कहा जाता हैं। लगभग 10,000 साल पहले, लोग जानवरों का दूध नहीं पीते थे, वे जानवरों का पालन केवल मांस के लिए करते थे, लेकिन धीरे-धीरे किसानों और पशुपालकों द्वारा दूध का उपयोग भोजन के रुप में किया जाने लगा। आजकल समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा दूध का उपयोग प्रचुर मात्रा में किया जाने लगा हैं। मानव सेवन के लिए दूध आमतौर पर गाय, भैंस, भेंड, बकरी से प्राप्त किया जाता हैं एवं कुछ क्षेत्र विषेष में याक एवं ऊंट से भी प्राप्त किया जाता हैं।
आज पूरी दुनिया दो बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही हैं वे चुनौतियां कुपोषण और जलवायु परिवर्तन है। कुपोषण से निपटने के लिए भेड़ का दूध एक अद्वितीय संसाधन हैं। हाल ही में आहार और जीवनषैली में बदलाव के कारण कई असाध्य और घातक बीमारियों का विस्तार हुआ हैं। इसलिए, सभी उपभोक्ता अब स्वास्थ्य समृद्ध खाद्य पदार्थों में रुचि रखने लगे हैं। वे ऐसे खाद्य पदार्थों की तलाष कर रहे हैं जिनमें मध्यम मात्रा में शर्करा व पर्याप्त मात्रा में फायदेमंद वसा एवं पोषक तत्व हो। भेड़ का दूध इन सभी पोषण पहलुओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करता हैं। इसमें वे सभी महत्वपूर्ण गुण हैं जिन गुणों का लोकप्रिय जानवर गाय के दूध में अभाव होता हैं।
भेड़ का दूध ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है जो खिलाडियों को तत्काल ऊर्जा प्रदान करता हैं। भेड़ के दूध में गाय के दूध से दोगुनी वसा होती है, सामान्यतः वसा दो प्रकार की होती हैंः- फायदेमंद और हानिकारक। भेड़ के दूध में ज्यादातर फायदेमंद वसा होती हैं। फायदेमंद वसा शरीर में पोषक तत्वों के अवषोषण करने और शरीर का ताप बनाए रखने के लिए आवष्यक है। भेड़ का दूध प्राकृतिक रुप से छोटा और एक रुप (होमोजेनाइज्ड) होने के कारण इसका पाचन आसानी से हो जाता है, इसलिए इसका पाचन आसान होता है। भेड़ के दूध में आयरन, कैल्षियम, फाॅस्फोरस, जिंक, थायमिन, राइबोफ्लेबिन और विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है। यह दूध उत्पाद बनाने और किण्वित पदार्थ बनाने के लिए उपयुक्त होता है। अच्छी सेहत के लिए आवष्यक जीवित सूक्ष्म जीवों को शरीर में देने के लिए भेड़ का दूध एक सही माध्यम हैं।
भेड़ के दूध में जैवसक्रिय प्रोटीन का औषधीय प्रभाव होता है जो हृदय रोगों एवं संक्रामक रोगों से लडनें में लाभकारी हैं। हाल ही में हुए शोध में बताया गया है कि गाय के दूध की तुलना में भेड़ के दूध का सेवन चुहों में हड्डियों के विकास की दर को बढ़ता है, भेड़ का दूध कमजोरी और दुर्बलता जैसी समस्याओं के लिए पौष्टिक विकल्प हैं।
आज जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सभी जीव-जन्तु सामना कर रहे हैं। भेड पृथ्वी के सबसे अनुकूल जानवरों में से एक हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों (भूमि, पानी और चारा) की कमी और कम से कम पूंजी के निवेष से जीवित रहने और अधिक मुनाफा देने वाला प्रभावी जानवर हैं। भेड़ के पास प्रकृति के विभिन्न जलवायु परिदृष्यों में अनुकूलन होने की उत्कृष्ट रुपात्मक विषेषताएं हैं।
इन विषेषताओं के कारण भेड़ पालन विस्तृत जलवायु विविधता यानी बर्फीले पहाड़ों से लेकर शुष्क रेगिस्तान तक किया जाता हैं। भारत में भेड़ें मुख्य रुप से मांस और ऊन के लिए पाली जाती है, लेकिन हाल ही में भेड़ के दूध ने शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया हैं। आयुर्वेद में यक्ष्मा, यौन रोग और पेट फूलने जैसे विभिन्न विकारों में भेड़ के दूध के उपयोग का वर्णन हैं। यह गठिया और खांसी जैसे लक्षणों में भी उपयोगी हैं।
शहरों की ओर लोगों के प्रवासन और प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर क्षरण के कारण निरक्षर और अनभिज्ञ किसान समुदाय अपनी आय की पुरानी और स्थायी प्रथाओं जैसे कृषि और पशुपालन से स्थानांतरित होकर अस्थायी प्रथाओं जैसे मजदूरी की ओर ढलने को मजबूर हो रहा हैं। आज पूरा विष्व कोविड-19 के कारण प्रभावित हुआ है उसमें सर्वाधिक प्रभावित वर्ग मजदूर है, जबकि भेड़ पालन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पडा हैं। भेड़ पालन किसानों के लिए सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् लाभदायक हैं। डेयरी भेड़ उद्योग का भारत में अभी अन्वेषण नहीं किया गया हैं। जिसकी किसानों और शोधकर्ताओं द्वारा छान-बीन करने की आवष्यकता है। यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है, यह निष्चित रुप से भविष्य में उच्च मांग हासिल करेगा। इसलिए किसानों को इस दिषा में आगे सोचना चाहिए। यह छोटे, सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों के लिए बहुत कम निवेष वाला एक लाभदायक व्यवसाय है। भेड़ पालन किसानों के लिए भविष्य में जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने का स्थायी विकल्प हो सकता है। भविष्य में भेड़ के दूध को उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य एवं भोजन की मांग को पूरा करने के लिए एक आषाजनक भूमिका निभानी होगी।

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