ग्रीष्मकालीन हरे चारे कि कुछ रोचक जानकारी।

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ग्रीष्मकालीन पौष्टिक हरे चारे की मिश्रित फसल बोने का यह सही समय है। हरे चारे में पर्याप्त पौष्टिकता होती है। साथ ही पशुओं के लिए हरे चारे का महत्व उसी तरह है, जिस तरह मानव के लिए रोटी के साथ दाल सब्जी का महत्व होता है। इसलिए पशुपालकों को चाहिए कि वे खेत में वैज्ञानिक फसल चक्र अपनाएं हरे चारे का अधिक से अधिक उत्पादन करें। हरा चारा पशु को खिलाने से दूध का उत्पादन बढ़ता है। हरे चारे में पशुओं के लिए जरूरी विटामिन का तत्व केरोटीन ( विटामिन ए)
काफी मात्रा होता है । मिश्रित हरे चारे के लिए ज्वार, मक्का, चरी बाजरा, लोबिया जैसी चारा फसलों की बुआई कर सकते हैं।

1.हरे चारे में विटामिन ,प्रोटीन, फॉस्फोरस आदि तत्व उचित मात्रा में उपलब्ध होने से पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ता है।

2.पशुओं को हरा चारा खिलाने से उनकी पाचन क्रिया ठीक रहती है। इसलिए प्रतिदिन पशुओं को 15-20 किलो हरा चारा खिलाएं।

3.चारे में विटामिन की प्रचुरता से पशु का बीमारियों से बचाव होता है। उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है।

4.हरे चारे को साइलेज (हे) के रूप में संरक्षित रखा जा सकता है।

5.अच्छे किस्म के हरे चारे की एक से अधिक कटाई की जा सकती है।

6.हरे चारे में पानी की मात्रा अधिक होने से गर्मी के मौसम में पशुओं में पानी की कमी नहीं रहती है।

हरे चारें मे गुणवता कारकों के साथ-साथ हरे चारे में कई बार ऐसे पदार्थ भी पाये जाते है जिनकी वजह ये उसकी गुणवत्ता कम हो जाती है तथा पशु द्वारा अधिक मात्रा में खाऐ जाने पर कई बार पशु की मृत्यु भी हो जाती है। जिसे हम Toxin बोलतें है। पशुपालको को इस प्रकार के गुणवत्तारोधी कारर्को के बारे जानकारी होना अति आवश्क है। सामान्य तौर पर चारा फसलों में गुणवत्तारोधी कारक नहीं पाए जाते हैं लेकिन जब कभी चारा फसले तनावग्रस्त जैसे-पानी की कमी या अधिकता, सौर ऊर्जा की कमी तथा उर्वरकों की अधिक मात्रा में उपयोग करने की स्थिती में ये कारक में पैदा हो जाते है और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

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1. धुरिन(पुसिक अम्लो)
यह कारक मुख्यरूप से ज्वार फसल में पाया जाता है। जब ज्वार की फसल में पानी की कमी होती है, तो इस कारक की पाये जाने की सम्भावना अधिक होती है। अधिक नत्रजन उपयोग विशेष रूप से फास्फोरस एवं पोटाशियम की कमी की दशा में धुरिन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके बचाव के लिए हमें फसलों को पूर्ण परिपक्व अवस्था में काट कर खिलाना चाहिए। फसल की कटाई के समय किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए तथा 50 से कम ऊंचाई की ज्वार की फसलों को पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।अधिक मात्रा में पशुओं द्वारा ग्रहण किये जाने पर (एच. सी एन/धुरिन) पशु की उत्पादकता को कम करता है। पशु बीमार हो जाता है तथा बहुत अधिक मात्रा हो जाने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है।

2. नाईट्रेट
नाईट्रेट की मात्रा सबसे ज्यादा जई में पाई जाती है( ये सर्दी के मौंसम का चारा है जानकारी के लिए) नाइट्रेट की ज्यादा मात्रा जई में सौर ऊर्जा की कमी से बढ़ती है। ज्यादा मात्रा में नाइट्रेट, नाइट्रोजन उर्वरक डालने पर होती है। नाइट्रेट, जई पौधे के निचले भाग में अधिक पाया जाता है। नाइट्रेट की विषाकता को कम करने के लिए प्रभावित चारे का साइलेज तैयार करना चाहिए। कयोंकि इस प्रकिया में नाइट्रेट का स्तर 40-50 प्रतिशत कम हो जाता है। जिसमें नाइट्रेट विषाकता की सम्भावना हो, उसे थोड़ा-थोड़ा खिलाना चाहिए या फिर जिस चारें में इसकी कम मात्रा हों, उसमें मिलाकर खिलाना चाहिए। जब मौसम नाइट्रेट की मात्रा बढ़ाने में सहायक जैसा हो, तो यह चारा भी नहीं खिलाना तथा मौसम के सुधार का प्रतीक्षा करें।
3. आक्जेलेट
इसकी मात्रा सबसे ज्यादा बाजरा, नेपियर घास में पायी जाती है। यह भोजन में उपलब्ध कैल्शियम और मैग्निशियम के साथ जुड़कर मैग्निशियम आक्जेलेट में परिवर्तित कर देता है, जो कि अघुलनशील है। जिसके कारण रक्त में तत्वों की कमी हो जाती हैं तथा गुर्दे में जमा होकर पथरी बना देता है। जुगाली न करने वाले पशु इसके प्रति अधिक सर्वेदनशील होते है। इसी कारण जुगाली करने वाले पशुओ में 2 प्रतिशत एवं जुगाली नहीं करने वाले पशुओं में 0.5 प्रतिशत तक आक्जेलेट की मात्रा सुरक्षित होती है।

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4. सैपोनिन
सेपोनिन सबसे ज्यादा फलीदार फसलों में पाया जाता है। जैसे रिजका, बरसिम। यद्यपि इसकी अधिक मात्रा की समस्या ठण्डे प्रदेशों में होती है, इसलिए सर्दी के मौसम में उगाये जाने वाली फलीदार चारों को खिलाते समय सावधानी बर्तनी चाहिए। सेपोनिन चारे में कड़वाहट पैदा करता है और उसको अस्वादिष्ट बना देता है। सेपोनिन की वजह से पशुओं में झाग पैदा होने की स्थिती से अफारा आ सकता है।

5. टैनिन
टैनिन सबसे ज्यादा बबुल में पाया जाता है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज तत्व टैनिन के साथ मिलकर जटिल पदार्थ बना देता है। इसकी वजह से पशुओं को ये प्राप्त नहीं हो पाते हैं। टैनिन की मात्रा उण्डे क्षेत्रों की घासों में बहुत कम फलीदार फसलों में 5 प्रतिशत से कम तथा गर्म क्षेत्रों में पाये जाने वाले चारे में अधिक पायी जाती है। टैनिन की2-4 प्रतिशत मात्रा की पशुओं को आवश्यकता होती है। लेकिन इससे अधिक मात्रा (5-9 प्रतिशत) ग्रहण करने पर रेशे की पाचनशीलता में कमी हो जाती है।
6. फाइटोइस्ट्रोजन
इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत तक फसलों में पायी जाती हैं। इसकी अधिक मात्रा फलीदार फसलों में पायी जाती है जैसे रिजका, बरसीम एवं विभिन्न प्रकार की क्लोवर आदि।

सौ बात कि एक बात।
भूमी में आवश्यक पोषक तत्वों के संतुलित मात्रा में उपयोग करने, उचित जल प्रबंधन एवं कटाई प्रबंधन का उपयोग कर, हम विभिन्न चारा वाली फसलों में गुणवत्तारोधी कारको की समस्या से उभरा जा सकता है। उचित प्रबंधन के पश्चात् भी, अगर किसी कारण वश पशु के चारे में एक आर्दश स्तर से अधिक मात्रा खाये जाने पर तथा पशु में जहर के लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त पशुचिकित्सक से सलाह लेकर उचित उपचार करवाना चाहिए

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धन्यवाद।

डॉ साविन भोगरा ,पशुधन विशेषज्ञ, हरियाणा

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