ग्रामीण क्षेत्रों में बटेर पालन अतिरिक्त आय का बड़ा स्रोत

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ग्रामीण क्षेत्रों में बटेर पालन अतिरिक्त आय का बड़ा स्रोत

किसानों के लिए जापानी बटेर पालन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। जापनी बटेर पालतू जाति के श्रेणी में आती है। जापानी बटेर का पालन कर कम लागत में अच्छी कमाई की जा सकती है। बटेर का मांस काफी स्वादिष्ट व फायदेमंद है। कृषि विभाग के अधिकारियों की बाते मानें तो दुनिया में आज जापानी बटेर, मांस उत्पादन में भारत का पांचवा स्थान तो अंडा उत्पादन में सातवां स्थान है।

मुर्गी पालन को लेकर उत्साहित किसानों को अब एक नई खेती मिल गई है किसान अब मुर्गी पालन के बदले बटेर पालन में भी किस्मत आजमाने लगे हैं. 70 के दशक में अमेरिका से इस जापानी बटेर को भारत लाया गया. अब केंद्रीय पक्षी अनुसंधान इज्जत नगर बरेली में यह व्यसायिक रूप ले चुका. कोरोना काल में जहां सभी तरह के मांसाहार से लोग बचते रहे वहीं बटेर के स्वादिष्ट और पौष्टिकता भरा मांस को जमकर खाते रहे हैं. खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में इसके प्रति किसानों का रुझान बढने लगा है. किसानों को मेहनत के हिसाब से अच्छी कमाई हो रही है अब जानते हैं इसकी खेती कैसे की जाती है.

आजकल भारतवर्ष में 72 मिलियन जापानी बटेर का व्यावसायिक पालन हो रहा है। दुनिया में आज जापानी बटेर पालन में भारतवर्ष का मांस उत्पादन में पाँचवाँ स्थान तथा अण्डा उत्पादन में सातवाँ स्थान है। व्यावसायिक मुर्गी पालन चिकन फार्मिंग के बाद बत्तख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है।

भारत वर्ष में सन 1974 में जापानी बटेर सर्वप्रथम यूएसए पशु विज्ञान विभाग कैलिफोर्निया डैविस से लाई गयी थी तथा कुछ वर्षों के बाद में जर्मनी और प्रजातांत्रिक कोरिया (साउथ कोरिया) से लाया गया था। बताते चलें कि ब्रिटेन में जितने उपनिवेश देश थे उन्हीं देशों में यूएनडीपी के सहयोग से परंपरागत चिकन फार्मिंग के लिये विकल्प के रूप में (विविधीकरण में) जापानी बटेर का जननद्रव्य उपलब्ध कराया गया जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बांग्लादेश मैसीडोनिया, इजिप्त, सूडान इत्यादि।

भारतवर्ष में जब इन जापानी बटेर के अंडे को प्राप्त किया गया था तब इनका वजन 7-8 ग्राम तथा चूजों का शारीरिक भार 70-90 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा प्रस्फुटन 35-40 प्रतिशत था। करीब-करीब 38 वर्षों के अंतराल के बाद सघन व वृहत रूप से शोध व उन्नयन के कार्य किये गये हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज छ: विभिन्न पंखों के रंगों के मांस व अंडा उत्पादन के लिये शारीरिक भार 130-250 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा 240-305 अण्डे प्रतिवर्ष देने वाली प्रजातियों का विकास किया गया है। हमारा अभिप्राय है कि वैज्ञानिकों के अथक प्रयत्न के बाद इनके रख-रखाव का प्रबंधन इत्यादि का साहित्य विकसित किया गया तथा धीरे-धीरे संपूर्ण भारतवर्ष में उन्नयन जननद्रव्य पहुँचाया गया। चाहे वह निषेचित अण्डों या जिंदा बटेरों के रूप में दिया गया हो।

 

  • आाज भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर मुर्गी पालन से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। साथ ही मुर्गी पालन आज दुनिया में आय प्राप्ति का एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। इसके साथ ही भारत में बटेर की खेती अच्छी आय और रोजगार के अवसर का एक बड़ा स्रोत हो सकती है। बटेर सबसे छोटे आकार के पोल्ट्री पक्षियों की एक प्रजाति है जिसकी पालन-पोषण प्रणाली बहुत आसान और सरल है। जंगली बटेरों को घरेलू पक्षियों के रूप में पालने के तरीकों का पता जापानी वैज्ञानिकों ने पहले लगाया। बटेर की खेती जापान और दुनिया भर में काफी फैल गई है। अब दुनिया भर में बटेर की खेती का व्यवसाय लोग मांस और अंडे दोनों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए करते हैं। यह व्यवसाय अन्य पोल्ट्री व्यवसाय की तुलना में अधिक लाभदायक है। जापानी बटेर पालन में भारत का मांस उत्पादन में पाँचवां तथा अण्डा उत्पादन में सातवां स्थान है। सभी प्रकार की वायु और पर्यावरण के साथ बटेर खुद को ढाल सकते हैं और बटेरों के लिए भारतीय जलवायु बहुत उपयुक्त है । आजकल भारतवर्ष में ज्यादा लोग जापानी बटेर का व्यावसायिक पालन कर रहे हंै। बटेर के मांस और अंडे अन्य पोल्ट्री अंडे की तुलना में बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं क्योंकि इसमें तुलनात्मक रूप से प्रोटीन, फास्फोरस, लोहा, विटामिन ए बी 1 और बी 2 अधिक होता है। बटेर को लावा तितर ऐसे विविध नाम से जाना जाता है। बटेर पक्षी अपनी स्वादिष्ट मांस, अंडे और अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। कुछ वर्षों में बटेर की जापानी नस्लों को विकसित किया गया है। इसलिए बटेर पालन आसान हो गया है। बटेर पालन आजकल के परिवेश में ग्रामीण व्यवस्था में श्रेष्ठतम व्यावसायिक पालन की श्रेणी में आता है। कुक्कुट पालकों को जापानी बटेर की फार्मिंग के लिये एक लाइसेंस की आवश्यकता होती है। लाइसेंस चार प्रकार के होते है। बटेर बिक्री के लिए बटेर पालने के लिए मांस बिक्री के लिए बटेर का उत्पादन के लिए। जो आसानी से क्षेत्र के पशुधन अधिकारी से मिल सकता है।
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आवास प्रबंधन

 

बटेर चूजों का पालन दो तरीके से किया जा सकता है, डीप लीटर पद्धति और बैटरी ब्रूडर इसके लिए बैटरी ब्रूडर काफी उपयुक्त होता है ।

डीप लीटर पद्धति

इस पद्धति में कम जगह लगती है। दो सप्ताह तक डीप लीटर विधि में 200 से 250 वर्ग से.मी. प्रति चूजा जगह होनी चाहिए। उसके बाद चूजों को बैटरी ब्रूडर में रखा जाता है।

बैटरी ब्रूडर पद्धति

पहले दो सप्ताह तक 3&2.5&1.5 फीट जगह में लगभग 100 बटेर रख सकते और तीन से छह सप्ताह तक 4&2.5&1.5 फीट जगह में लगभग 50 बटेर रखे जा सकते हैं।
6 से 7 सप्ताह की आयु वाले बटेर से अंडे मिलने लगते हैं । प्रजनन के लिए तीन मादा पर एक नर की व्यवस्था करें।
एक मुर्गी के लिए र्निधारित स्थान पर 8-10 बटेर रख सकते हैं । छोटे आकार के होने के कारण इनका पालन आसानी से किया जा सकता है। इसके साथ ही इनपे दाने की खपत कम होती है ।
बटेर पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए उनके विविध नस्लों के बारे में जानना जरूरी है ।
केंद्रीय अनुसंधान संस्थान के द्वारा जो नस्लें विकसित की गई हैं।
ब्रॉयलर बटेर की नस्लें : कैरी उत्तम (सफेद छाती वाले) कैरी श्वेता (सफेद पंख वाले) और कैरी पर्ल (सफेद अंडे देने वाले) ।
अंडा देने वाली बटेर की नस्लें : इंग्लिश सफेद ब्रिटिश रेंज और मांचुरियन गोल्ड।

  • आहार प्रबंधन
  • बटेर आहार के लिए कोई खास व्यवस्था नही करनी पड़ती है। बटेर की सही शारीरिक बढ़वार के लिए संतुलित आहार की जरुरत होती है।
  • बटेर की शारीरिक बढ़वार 10-12 सप्ताह कि उम्र में पूरी हो जाती है। शुरू के 3 सप्ताह में अधिक बढ़वार होती है ।
  • एक वयस्क बटेर को प्रतिदिन 14 कि.ग्रा. आहार की आवश्यकता होती है ।
  • अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर को एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना जब कि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर को 25 से 28 ग्राम दाना लगता है।
  • पाँच सप्ताह की उम्र तक एक किलो ग्राम मांस पैदा करने के लिये 5 किलो ग्राम दाने की आवश्यकता पड़ती है।
  • बटेर की सही शारिरीक बढ़वार के लिए संतुलित आहार की जरुरत होती है।

 

लिंग पहचान—- बटेरों के लिए लिंग की पहचान मुर्गी चूज़ों की तरह एक दिन की आयु पर की जाती है। परंतु तीन सप्ताह की आयु पर पंखो के रंग के आधार पर जिसमें नर के गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल, भूरा, धूसर और मादा की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के धब्बेदार होता है। मादा बटेरों के शरीर का भार नर से 15 से 20 प्रतिशत अधिक होता है।

 

प्रकाश व्यवस्था—– व्यस्क बटेरों या अंडा देने वाली बटेरों के लिए 16 घंटे प्रकाश और 8 घंटे का अंधेरा जरुरी है। बटेरों के मांस उत्पादन वृद्वि करने के लिए बाजार भेजने से पहले 7-10 दिन तक 8 घंटे प्रकाश और 16 घंटे अंधेरा रखना जरुरी है।

  • रोग प्रबंधन

 

मुर्गियों की तुलना में बटेर में रोग कम होते है । रोज की सफाई एंव रखरखाव स्वच्छ पानी की व्यवस्था और उचित वेंटिलेशन यह पर्यावरण को रोग मुक्तरखने में मदत करता है। बटेर में होने वाली प्रमुख बिमारियों में अलसरेटिव इटेराइटीस यह जीवाणु जनीत बीमारी है। इसमें इंटेस्टाईन में अल्सर हो जाते है। इसके रोकथाम के लिए लीटर की सफाई पर ध्यान दें कॉक्सीडियोसिस यह बीमारी खराब रखरखाव के कारण फैलती है और हिसटोमोनियसिस इसके बचाव के लिए समय-समय पे डीवर्मींग करवायें।

बटेर की बिक्री

बटेर को बाजार में बेचने की उम्र लगभग पांच सप्ताह की होती है ।

सावधानियां

  • चूजे मान्यता प्राप्त हैचरी से ही लें।
  • चूजों को संतुलित आहार दे।
  • दाना-पानी वाले बरत्नों को दिन में कम से कम एक बार साफ करें ।
  • बीमार और कमजोर पक्षियों को अलग रखे।

 

  • बटेर पालन के लाभ

कुक्कुट पालन में नये विकल्प के तौर पर कम खर्चे मे अधिक आय पाने का जरिया बना है बटेर पालन। व्यवसाय में आमदनी के लिये मुर्गी की तुलना में जापानी बटेर की विशेषत: पर ध्यान देंं।

  • बटेर पालने के लिए कम जगह लगती है।
  • कम खर्चे में बटेर पालन शुरू किया जा सकता है।
  • बटेर की प्रजाति प्रति वर्ष तीन से चार पीढ़ी को जन्म दे सकती है।
  • मादा बटेर अनुकूल वातावरण में लम्बे समय तक अंडे देती है।द्य व्यावसायिक बटेर पालन में टीकाकरण की आवश्यकता नहीं होती है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण इसमें बीमारियाँ न के बराबर होती हैं।
  • जापानी बटेर के अंडों की पौष्टिकता मुर्गी के अंडों से कम नहीं होती है।
  • बटेर का अंडा मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयुक्त है।
  • बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। उनके मांस में वसा बहुत कम होता है। इसलिए बटेर का मांस रक्तचाप के रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है।
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चूजों की देखभालचूजों की देखभाल ?

 

  • बटेर के बच्चे का वजन लगभग 7 ग्राम होता है। इसलिए उसकी देखभाल काफी सावधानीपूर्वक करनी पड़ती है। शुुरुआती दिनों में बटेर के चूजों पर विषेश ध्यान देना होता है। क्योंकि पहले सप्ताह में चूजों का मृत्यु दर अधिक देखा जाता है ।
  • चूजों का पालन जमीन पर डीप लीटर पद्धति या बैटरी ब्रूडर में किया जाता है ।द्य चूजों को 3-4 सप्ताह के बाद तापक्रम की आवश्यकता नहीं रहती है। इसलिए उन्हें ग्रोवर घर में रख दें।
  • चूजों को कैनिबालिस्म नाम के रोग से बचाने के लिए चार सप्ताह की उम्र में चूजों के ऊपर के चोच को थोड़ा काट दें।
  • बटेर मादा 75 प्रतिशत अंडे शाम के समय (दोपहर 3-6) देती है ।

 

अंडों की देखभालअंडों की देखभाल

 

  • एक अंडे का वजन लगभग 7-15 ग्राम होता है।
  • अंडे काले डॉट्स के साथ सफेद होते हैं।
  • बटेर के अंडे का स्फुटन (हॅचिंग) कृत्रिम तरीके से इनक्यूबेटर में आसानी से किया जा सकता है।द्य अंडों को सेने के लिए तापमान और नमी पर विशेष रुप से ध्यान देना होता है ।
  • अंडा सेने के समय 0-14 दिनों तक तापमान 50 फारेनहाइट और नमी 87 प्रतिशत होनी चाहिए। इसके बाद 15-17 दिनों तक तापमान 98.50 फारेनहाइट एवम नमी 90 प्रतिशत हो।
  • 14 दिनों तक एक निश्चित समय पर अंडों का उलटना-पलटना जरुरी होता है। उसके बाद अंडों को इनक्यूबेटर से हॅचिंग मशीन में रख दिया जाता है। तब 18वे दिन से अंडों से चूजे निकलना शुरु होते है।
  • मुर्गी अंडे की तुलना में बटेर के अंडे में 47 कम वसा होता है।
  • 5 सप्ताह के आयु के बाद बटेर के चूजों को जमीन पर या पिंजड़ो में रखा जा सकता है।
  • जमीन पर लीटर को फैलाकर रखा जा सकता है। उसकी मोटाई 10 से.मी. तक पर्याप्त है।
  • 8 से 12 बटेर को 5 से 3 वर्ग फीट स्थान में रखा जा सकता है ।

अंडा उत्पादन —-मुर्गी की अपेक्षा बटेर अपने दैनिक अंडा उत्पादन का 70 प्रतिशत दोपहर के 3 बजे से 6 बजे के बीच करती है। शेष अंधेरे में देती है, जिसको दिन में 3-4 बार में इकट्ठा करना चाहिए। बेहतर उत्पादन के लिए अंडे से बच्चा निकालने के लिए (ब्रीडर बटेर पैरेंट) नर और मादा 10 से 28 सप्ताह आयु के बीच के होने चाहिए। एक नर बटेर के साथ 2 से 3 मादा बटेरों को रखना चाहिए। बटेरों के चोंच, पैर के नाखून थोड़ा काट देना चाहिए ताकि एक दूसरे को घायल न कर सके।

टीकाकरण—-

बटेरों में किसी प्रकार का टीकाकरण नहीं करना पड़ता है क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बटेर आहार में 5 प्रतिशत सूखा हुआ केजीन (फटे दूध का सफेद भाग) मिलाने से कम मृत्युदर और अच्छी शारीरिक वृद्वि होती है और औषधि के रुप में मिनिरल और विटामिल सप्लीमेंट दिए जाते है।
हम अपने कुक्कुट पालकों को बताते चलें कि बटेर पालन आजकल के परिवेश में ग्रामीण व्यवस्था में श्रेष्ठतम व्यावसायिक पालन की श्रेणी में आता है जिन्हें निम्न बिंदुओं से भली-भाँती समझा जा सकता है :

1. व्यावसायिक बटेर पालन में टीकाकरण कि आवश्यकता नहीं है तथा बीमारियाँ न के बराबर होती हैं।

2. 6 सप्ताह (42 दिनों) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती हैं जबकि कुक्कुट पालन (अंडा उत्पादन की मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।

3. बटेरों को घर के पिछवाड़े में नहीं पाला जा सकता है। हमारा आशय है कि यह तीव्र गति से उड़ने वाला पक्षी है, अत: इसकी व्यवस्था बंद जगह में ही की जा सकती है।

4. ये तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाते हैं।

5. जापानी बटेर के अंडो की पौष्टिकता मुर्गी के अंडों से कम नहीं होती है।

6. गाँव में बेरोजगार युवक व महिलायें घर में 100 बटेरों को एक पिंजड़े में जिसकी लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई – 2.5 × 1.5 × 0.5 मीटर हो, आसानी से रखे जा सकते हैं। अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है। पाँच सप्ताह की उम्र तक एक किलो ग्राम मांस पैदा करने के लिये 2.5 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है, साथ ही एक किलोग्राम अंडा उत्पादन के लिये करीब 2 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है।

7. बटेर का अण्डा वजन में 8-14 ग्राम में पाया जाता है जो कि 60 पैसे से लेकर 2 रुपये तक बाजार में आसानी से मिल जाता है तथा एक अंडा उत्पादन में मात्र 30 पैसे दाना खर्च तथा 10 पैसा मानव श्रम व अन्य खर्चे लगते हैं। अत: 40 पैसा प्रति अंडा उत्पादन में खर्च आता है। प्रतिदिन एक महिला आधा घंटा सुबह तथा आधा घंटा शाम को समय देकर 50-100 रुपये प्रतिदिन 100 मादा बटेरों को रखने से कमाए जा सकते हैं तथा परिवार के लिये पौष्टिक आहार व कुछ मात्रा में प्रोटीन खनिज लवण और विटामिन्स मिलते हैं।

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8. प्रथम दो सप्ताह इनके लालन पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना पानी इत्यादि। तीसरे सप्ताह से तंदूरी बटेर व अन्य मांस और अण्डे के उत्पाद बनाकर नकदीकरण किया जा सकता है।

9. एक ग्रामीण बेरोजगार युवक व महिला मात्र 200 बटेरों की रखने कि व्यवस्था कर लेता है तो इनके रखने के स्थान की आवश्यकता लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई 3 × 2 × 2 मीटर जगह कि आवश्यकता होती है और प्रति पक्षी 18-25 रुपये लागत आती है तथा बाजारी मूल्य 40-70 रुपये प्रति पक्षी मिल जाता है। अत: गाँव के बेरोजगार युवक और युवतियों द्वारा मात्र एक घंटा सुबह और शाम देने से 2500-4000 रुपये प्रति माह अपने खेती-वाड़ी के क्रियाकलापों के साथ-साथ जापानी बटेर का उत्पादन कर प्राप्त कर सकते हैं।

10. ग्रामीण क्षेत्रों के लिये उचित जननद्रव्य केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में उपलब्ध है। संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न पंखों के रंगों की बटेरों की बहुतायत मात्रा में मांग है, जैसा कि सारणी में दर्शाया गया है।

सरकार ने जापानी बटेर (फराओ) से प्रतिबंध हटा दिया है। अब पॉल्ट्री हाउस खोलकर इसका पालन किया जा सकता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अब तक इसे मारने और पकाकर खाने पर रोक थी। नवंबर, 2016 से पूर्व जंगली और विदेशी बटेर के पालन और उनके अंडे या मांस को बेचने पर रोक थी, लेकिन देसी बटेर को छोड़ जापानी बटेर के बेचने और इनके पालन के लिए पॉल्ट्री हाउस खोलने की अनुमति केंद्र और राज्य सरकार ने दे दी है।

क्र.सं. विकसित करने का वर्ष प्रजातियाँ पंखों का रंग 5 सप्‍ताह में शारीरिक भार वार्षिक अंडा उत्‍पादन अंडे का वजन हैचिंग प्रतिशत
1. 1980-81 कैरी पर्ल जंगली/फरोह 140 ग्राम 305 09 ग्राम 80
2. 1998-99 कैरी उत्‍तम जंगली/फरोह 250 ग्राम 260 14 ग्राम 75
3. 1999-02 कैरी उज्‍जवल सफेद गलकम्‍बल 180 ग्राम 220 12 ग्राम 70
4. 2001-02 कैरी स्‍वेता संपूर्ण सफेद 175 ग्राम 205 10 ग्राम 72
5. 2003-04 कैरी ब्राउन संपूर्ण ब्राउन 180 ग्राम 210 11 ग्राम 65
6. 2010-11 कैरी सुनहरी आधी ब्राउन आधी सफेद 185 ग्राम 200 12 ग्राम 65

पौष्टिक है बटेर का अंडा

बटेर के एक अंडे का वजन 10 ग्राम तथा मुरगी के अंडे का वजन 55 ग्राम का होता है परंतु मुरगी की अपेक्षा बटेर के अंडे में क्रमशरू वजन 10 रू 55, जर्दी 29 रू 25 प्रतिशत, सफेदी 55 रू 61 प्रतिशत, कैल्शियम 59 रू 57 ग्राम, फास्फोरस 220 ग्राम, लौह तत्व 3-7, विटामिन 0.12 रू 0.07 ग्राम, प्रोटीन 13 रू 10 प्रतिशत तथा बीटा बी 150 रू 50 ग्राम की मात्र में पाया जाताहै। इसकी पौष्टिकता को देखते हुए बटेर की कीमत मुरगे की कीमत से ज्यादा होने के बावजूद मांस प्रेमी बटेर के प्रति आकर्षित हो रहे हैं|

बटेर पालन के लिए कुछ महत्वपूर्ण बाते है जिन पर किसानों को ध्यान की जरुरत है.

पोष्टिकता के लिहाज से वजन 55 ग्राम का होता है लेकिन मुर्गी की अपेक्षा बटेर के अंडे का वजन 30 ग्राम का होता है. बटेर अपने वजह से 10 भाग के रुप में अंडा देती है वही मुर्गी सिर्फ 3 भाग के ही होते हैं.

बटेर के अंडे में फास्पोरस और लौह की मात्रा होती है और इसकी शक्तिवर्घक गुण के कारण इसे लोग ज्यादा पसंद करते हैं. अभी भी जंगली मुर्गी को मारने पर कानूनी पाबंदी लगी हुई है.

मुर्गी पालन की तरह की छोटे से घर में साफ सफाई का ध्यान रखते हुए बटेर के चूजे के लाएं.

एक बटेर को वयस्क होने में 6 से 7 सप्ताह लगता है. उसके साथ ही अंडे देना शुरु कर देती है. एक साल में यह बटेर 280 से 290 अंडे देती है. सही तापमान पर अंडे से चूजे निकल जाते हैं

अंडे की खासियत यह भी है कि इनको एक निश्चित टेंपरेचर पर रखकर 17 दिनों के प्रोसेस के बाद चूजे निकल जाते हैं. जिसे आसानी से किसी दूसरे किसान को पालने के लिए दे दिया जाता है.

एक बटेर 5 सप्ताह में ही 300 ग्राम के आस पास होता है और बाजार में बेचने लायक हो जाता है .इसकी कीमत 45 रुपये से 60 रुपये होती है जबकि चिकन की कीमत कई बार कम होती है.

साल भर में बटेर पालन पूरे साल में 5 से 6 बार कर सकते हैं. बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण बामारियां कम होती हैं फिर भी डाक्टरी सलाह के साथ ही इसका पालन करना चाहिए.

जंगली बटेर साल दो बार ही अंडे दे पाती है. इस पर सरकारी रोक लगाई गई है. अब तक सैकड़ो किसानों ने इज्जतनगर से प्रशिक्षण लेकर इस काम को शुरु कर चुके हैं.

ER. NK SINGH, TATA POWER,JAMSHEDPUR

https://www.agrifarming.in/quail-farming

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