मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते दूध में घातक संदूषक

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LETHAL CONTAMINANTS IN MILK AFFECTING HUMAN HEALTH

मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते दूध में घातक संदूषक

 

के.एल. दहिया

पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, कुरूक्षेत्र, हरियाणा

 

सार

दूध किसी भी मादा द्वारा उत्पादित प्रकृति का ऐसा पेय पदार्थ है जो उसके नवजात बच्चे के पालन-पोषण संबंधी सभी आहारीय आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है और पालतु पशुओं द्वारा उत्पादित अतिरिक्त दूध का उपयोग मानव द्वारा सह़त्राब्दियों से किया जाता रहा है। समय की परिवर्तनशीलता और औद्योगिक क्रांति के साथ-साथ पालतु पशुओं के बीमार होने पर अविवेकपूर्वक दी जाने वाली औषधीयों खासतौर पर एंटिबायोटिक्स और विभिन्न प्रकार की मिलावट और कई अन्य प्रकार के संदूषकों के कारण मानव द्वारा सेवन किया जाने दूध जहरीला हो गया है जिससे मानव प्रजाति में रोगाणुरोधी औषधी प्रतिरोध और कैंसरजन्यता सहित कई प्रकार के कुप्रभाव स्वास्थ्य पर देखे जा सकते हैं। पशुओं के उपचार व दूध उत्पादन सहित दूध सरंक्षण में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की दवाओं का तर्कसंगत उपयोग के साथ-साथ पशु चिकित्सा कर्मियों, संगठनों और आमजन को साहित्यिकी और अन्य माध्यमों से जागरूक करना और उचित निगरानी की सहायता से नियंत्रित किया जा सकता है।

 

खोजशब्द: दूध, संदूषक, अनुमत सीमा, दुष्प्रभाव, रोकथाम।

 

प्रस्तावना

माँ द्वारा उसके बच्चे के लिए उत्पादित दूध विश्व का अतिउत्तम प्राकृतिक आहारीय उपहार है। यह ठोस भोजन को पचाने में सक्षम होने से पहले नवजन्में स्तनधारियों (स्तनपान कराने वाले मानव शिशुओं सहित) के लिए पोषण का प्राथमिक स्रोत है। प्रसव के तुरंत उत्पादित दूध, जिसे खीस कहा जाता है, में एंटीबॉडी होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं और कई प्रकार की बीमारियों के जोखिम को कम करता है। बेशक! कोई किसी को कुछ खाने के लिए न दे पाये लेकिन प्रकृति हर मां को उसके पैदा होने वाले बच्चे के लिए पहले से ही दुग्ध ग्रंथि में आहार प्रबंधन कर देती है और दूध रूपी खाद्य उपहार नवजन्मे बच्चे को उपलब्ध हो जाता है। दूध बच्चे के प्रारंभिक विकास के लिए संपूर्ण आहार है। दूध में शर्करा, प्रोटीन, वसा, खनिज और विटामिन आदि सहित आवश्यक पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति करता है।

जैसा कि मनुष्य अन्य स्तनधारी जीवों के दूध के प्राथमिक उपभोक्ता हैं, अतः दूध की अंतःप्रजाति खपत सामान्यतौर पर देखी जाती है। खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार विश्वभर में, अंतःप्रजाति दूध और दुग्ध उत्पादों के छः अरब से अधिक उपभोक्ता हैं, जिनमें से अधिकांश विकासशील देशों में हैं और एक अनुमान के अनुसार विश्व की आबादी का लगभग 12 से 14 प्रतिशत अर्थात 75 से 90 करोड़ लोग दुग्ध उत्पादन इकाईयों पर या दुग्ध उत्पादन परिवारों में रहते हैं (FAO 2010)। इन्हीं दुग्ध उत्पादकों पर विश्व के छः अरब लोगों को स्वच्छ दूध आपूर्ति का दायित्व है। 15 करोड़ दुग्ध उत्पादकों के सहयोग से भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है (GRAIN 2019)। अतः इन लोगों को स्वच्छ दूध उत्पादन सहित स्वास्थ्यवर्धक दूध हेतु जागरूक करना अतिआवश्यक है।

उच्च पोषण मूल्यों और अत्यधिक उपयोग के बावजूद, दूध मिलावट, रासायनिक और दवा यौगिकों के प्रसार से दूषित होता है। औषधी अवशेष दूध और दूध के व्यापार के मानकों को प्रभावित करते हैं और अनुमेय सीमा से अधिक दूध व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य खतरों को बढ़ावा देते हैं। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006, किसी भी पशु चिकित्सा औषधी के अवशेषों को ‘मूल यौगिकों या उनके उपापचयी (मेटाबोलाइट्स) या किसी भी पशु सामग्री के किसी भी खाद्य भाग में प्रत्येक के रूप में वर्णित करता है और संबंधित पशु चिकित्सा औषधी की संबंधित अशुद्धियों के अवशेषों को शामिल करता है’ (FSSA 2006)। खाद्य सुरक्षा शब्द आमतौर पर खाद्य गुणवत्ता पर लागू होता है जो मानव जाति में हानिकारक प्रभाव पैदा करता और इसमें पशु रोग और सिंथेटिक उत्पादों (ज़ेनोबायोटिक्स) द्वारा होने वाले प्रतिकूल प्रभाव शामिल हैं। हाल ही में, दूध और कृषि उत्पादों में औषधी अवशेषों की उपस्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव को एक बड़ी चिंता का विषय माना गया है। भारत में दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं की एक बड़ी आबादी है और बीमार पशुओं के इलाज के लिए पशु चिकित्सा औषधियों का उपयोग भी इस तरह की सघन उत्पादन पद्दतियों का एक अभिन्न अंग है। अतः यह संभावना नहीं है कि दूध और दूध उत्पादों में औषधी अवशेष मौजूद नहीं हैं। इसलिए उपभोक्ताओं की सुरक्षा और निर्यात के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों को आश्वस्त करने के लिए, दूध को अक्सर औषधी अवशेषों के लिए जांचा जाना चाहिए।

विभिन्न प्रकार के दूध संदूषक

पशुओं द्वारा दूषित चरागाह और पेय पदार्थ के सेवन से ही दूध का संदूषण शुरू हो जाता है। इसके अतिरिक्त, बीमार पशुओं को औषधी देना और उनके विकास को बढ़ावा देने वाली औषधियां भी दूध के संदूषक का कारण होती हैं।

  1. अप्रत्यक्ष संदूषक: अप्रत्यक्ष दूध को संदूषित करने वाले कारकों में कई संभावित स्रोत हो सकते हैं, जिनमें पर्यावरणीय (पानी, मिट्टी, वायु) पशु चारा संदूषण, या डेयरी पशुओं या उनके प्रत्यक्ष रहने वाले वातावरण को रोग वाहकों (माइट्स, चिचड़ियां, कीटों) से बचाने के लिए उपचार करना शामिल हैं। अप्रत्यक्ष संदूषकों में पर्यावरणीय एवं चिकित्सकीय संदूषक शमिल हैं:
    • पर्यावरणीय संदूषक: वायु, चारा और आहार/मिट्टी के माध्यम से फैलने वाले पर्यावरणीय संदूषकों में कार्बनिक प्रदूषक, कृषि रसायन, माइकोटॉक्सिन, भार धातुएं प्रमुख हैं। चिकित्सकीय संदूषकों में रोगाणुरोधी औषधियां, आहारीय दक्षता सुधारक, हॉर्मोन, कृमिनाशक, कृषि रसायन आदि होते हैं।
      • कार्बनिक (ऑग्रेनिक) प्रदूषक / कृषि रसायन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में रोग वाहकों और कीटों को नियंत्रित करने के लिए वाणिज्यिक सिंथेटिक रसायनों अर्थात कीटनाशकों का उपयोग विशेष रूप से तेज हो गया था। ये अग्रणी रसायन ऑर्गेनोक्लोरीन थे जैसे कि डाइक्लोरो-डाई-फेनाइल ट्राइक्लोरोइथेन (डीडीटी), एंड्रिन (कीटनाशक / कृंतकनाशक), और हेक्साक्लोरोबेंजीन (एचसीबी) (कवकनाशी), सभी पर्यावरण में बने रहते हैं और इस प्रकार लंबे समय तक प्रभावकारिता दिखाते हैं। हालांकि, उनकी वसा में घुलनशीलता (लिपोफिलिसिटी) और जैव अवक्रमण (बायोडिग्रेडेशन) के प्रतिरोध के कारण, ये यौगिक जीवमंडल में जमा हो जाते हैं और दूध और दूध उत्पादों सहित कई खाद्य पदार्थों में वैश्विक स्तर पर पता लगाने योग्य स्तर अनिवार्य रूप से पाए जा सकते हैं। हालांकि, ऑर्गेनोक्लोरीन रसायनों को सत्तर के दशक में प्रतिबंधित कर गया था और इनके स्थान पर ऑर्गनोफॉस्फोरस कीटनाशकों का उपयोग बढ़ने लगा फिर भी, कृषि भूमि में सीवरेज पानी का उपयोग, या कुछ देशों से आयातित डेयरी पशु आहारीय सामग्री, जहां कृषि पद्धतियों और/या मलेरिया नियंत्रण में अभी भी लिंडेन और डीडीटी जैसे ऑर्गेनोक्लोरीन रसायनों का उपयोग किया जाता है (Fischer et al. 2011)। प्रतिबंधित होने के बावजूद आज भी ऑर्गेनोक्लोरीन रसायन या चपापचयी तत्व दूध सहित अन्य कृषि उत्पादों में पाये जाते हैं।

यह विधित है कि रसायानिक खेती के उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में रसायनों के जहरीले अवशेष होते हैं (Brandt & Molgaard 2001)। दुधारू पशुओं द्वारा संदूषित चारे का सेवन पशुओं के शरीर में कीटनाशकों के प्रवेश का मुख्य स्रोत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरराष्ट्रीय रासायनिक आकलन दस्तावेज़ के अनुसार, पोलीक्लोरीनयुक्त बाइफेनाइल्ज खाद्य-श्रृंखला में संचित होते हैं। ये गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रेक्ट (Gastrointestinal tract) से तेजी से अवशोषित हो जाते हैं जो यकृत एवं वसा ऊतकों में एकत्रित होते हैं। ये कीटनाशक प्लेसेंटा (Placenta) को भी पार कर जाते हैं व दूध में भी उत्सर्जित होते हैं (Faroon et al. 2003)। चारे के माध्यम से ये जहर रूपी रसायन पशुओं में प्रवेश करते हैं जो उत्पादित दूध के माध्यम से मानवीय खाद्य श्रृंखला में पहुंचकर उपभोक्ताओं को बीमार करते हैं (भास्कर 2017)।

  • माइकोटॉक्सिन: आहारीय माइकोटॉक्सिन संदूषण एक सतत वैश्विक चिंता है। माइकोटॉक्सिन संदूषण को एक अपरिहार्य और अप्रत्याशित समस्या माना जाता है, यहां तक कि जहां अच्छी कृषि, भंडारण और प्रसंस्करण पद्दतियों को भी अपनाया जाता है, तो भी खाद्य सुरक्षा के लिए एक कठिन चुनौती है। माइकोटॉक्सिन कई कवक प्रजातियों द्वारा निर्मित होते हैं जो खाद्य श्रृंखला के पूर्व और बाद के चरणों के दौरान अनाज, सूखे मेवे (मूंगफली खल), मसाले, फल और उप-उत्पादों पर उगते हैं जो आमतौर पर पशु आहार में कच्चे माल के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पशुओं के चारे को संदूषित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण माइकोटॉक्सिन में एफ्लाटॉक्सिन, पेटुलिन, सिट्रीनिन, ओक्रैटॉक्सिन, फ्यूमोनिसिन, ट्राइकोथेसीन, ज़ेरालेनोन और नवीनत्तम मायकोटॉक्सिन जैसे एनियाटिन शामिल हैं (Leiva et al. 2019)। इन पदार्थों में से अधिकांश स्थायी होते हैं और आमतौर पर खाद्य उत्पादन प्रक्रियाओं द्वारा समाप्त नहीं किए जा सकते हैं, इसलिए वे पशु उत्पादकता को कम कर सकते हैं या पशुओं पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। चूंकि वे मांस, दूध या अंडे में जमा हो सकते हैं, और उनमें अंतिम उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य तक पहुंचने और उन्हें प्रभावित करने की क्षमता होती है (Richard 2007, Romero-González 2011)।
  • भारी धातुएं: हालांकि, दूध में कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, मैग्निशियम, लोहा, जस्ता, मैंगनीज, कोबाल्ट इत्यादि कई धातुएं होती हैं जो कई प्रकार की चपापचयी क्रियाओं में सहयोगी होती हैं; लेकिन इनकी अधिकता होने पर दुष्प्रभाव परिलक्षित होने लगते हैं (Rao 2005)। धातु संदूषण के मुख्य स्रोत औद्योगिक या घरेलू अपशिष्ट, दहन, खेतों में आग लगना, रासायनिक उर्वरकों का अपघटन, कीटनाशक आदि हैं (Degnon et al. 2012)। आर्सेनिक, पारा, शीशा जैसी भारी धातुओं के अंश सामुद्रीक आहार सहित दूध में भी पाये गये हैं (Di Bella et al. 2020)।
  • चिकित्सकीय संदूषक: इन औषधियों का उपयोग पशुओं के बीमार, शरीर में कमी होने पर मुख्य रूप से किया जाता है। इस ग्रुप में निम्नलिखित औषधियां इस प्रकार हैं:
  • रोगाणुरोधी औषधियां: एंटिबायोटिक्स सहित रोगाणुरोधी औषधियां वे दवाइयां है जिनका उपयोग पशु के बीमार होने पर किया जाता है। कोई भी रोगाणुरोधी औषधि देने के बाद पशुओं के उत्पादों में इनका एक निश्चित समयावधि के लिए उत्सर्जन होता रहता है। इसलिए उपचाराधीन पशुओं के उत्पादों का उपयोग खास समय के लिए वर्जित होता है। यदि उपचाराधीन पशुओं के उत्पादों का उपयोग किया जाता है तो इन औषधियों के अवशेष उनमें आते हैं और आहार श्रृंखला को संदूषित करते हैं। दूध में एंटीबायोटिक अवशेष का पहली बार 1960 के दशक में पता चला था (Siddique et al. 1965)।
  • आहारीय दक्षता सुधारक: मोनेंसिन और टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीबायोटिक्स को जानबूझकर पशु आहार में संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए (Anadón al. 2018) या आहारीय दक्षता में सुधार के लिए विकास प्रमोटर या फ़ीड एडिटिव्स के रूप में डाला जाता है, जो दूध में रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों का एक अन्य स्रोत है (Lampang et al. 2007, Rojek-Podgórska 2016)।
  • हॉर्मोन: हॉर्मोन का उपयोग पशुओं में गर्भाधान से संबंधित समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। थनैला उपचार में, सिंथेटिक कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स, जैसे कि डेक्सामेथासोन, प्रेडनिसोलोन, और उनके डेरिवेटिव (फ्लुमेथासोन), दुग्ध ग्रंथि की सूजन को दूर करने के लिए पशुओं को दिये जाते हैं।
  • कृमिनाशक: पशुओं के पेट में कीड़े होने पर उनको कृमिनाशक औषधियां दी जाती हैं जिनके कुछ अंश दूध में स्रावित होने पर उसको संदूषित करते हैं। अंतःपरजीवियों के लिए दी जाने वाली मुख्य औषधियों में एल्बेंडाजोल, फेनबेंडाजोल, ऑक्सफेंडाजोल, थियाबेंडाजोल, क्लोसेंटेल, रैफॉक्सैनाइड, नाइट्रोक्सिनिल, ऑक्सिलोजानाइड, लेवमिसोल, टेट्रामिसोल इत्यादि हैं, जिनके अंश दूध एवं अन्य पशुजन्य उत्पादों में 3 से 14 दिनों तक स्रावित होते रहते हैं। आइवरमेक्टिन, एबामेक्टिन, डोरामेक्टिन, और मोक्सीडेक्टिन औषधियां अंतः एवं बाह्य परजीवीयों के लिए दी जाने वाली ऐसी औषधियां जिनके अंश दूध में स्रावित होने पर उसे संदूषित कर मानवीय स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं (Vercruysse & Claerebout 2014)।
  • कृषि रसायन: पशुओं में कृषि रसायनों जैसे कि डेल्टामेथरिन, सायप्रमेथरिन, अमितराज इत्यादि का उपयोग बाह्य परजीवियों से निजात पाने के लिए किया जाता है। कृषि रसायनों के उपयोग के परिणामस्वरूप फसलों और चरागाहों में अवशेष हो सकते हैं जो बाद में पशुओं द्वारा खाए जाते हैं। सूखे की स्थिति के दौरान, संभावित रूप से संदूषित फसल उपोत्पाद, जैसे कि तूड़ी, पराली और चारा, और संसाधित अंश जैसे कि अंगूर मार्क (न घुलनेवाली तलछट), सीट्रस लुगदी, फलों की खली, और कैनरी (डिब्बों में खाद्य पदार्थ भरनेवाला कारखाना) कचरे सहित, अधिक प्रचलित होने की संभावना होती है। सभी मामलों में, रासायनिक अवशेषों के परिणामस्वरूप इन पशुओं से प्राप्त खाद्य ऊतक, दूध, शहद या अंडे संदूषित हो सकते हैं (Reeves 2014)।
  1. प्रत्यक्ष संदूषक: दूध का प्रत्यक्ष संदूषण पशुओं के आस-पास के अनियंत्रित स्वच्छता उपायों, या दूध के बर्तन जिनका उपयोग दूध दुहन या भण्डारण के लिए किया जाता है, के माध्यम से हो सकता है।
  • दूध दोहन
    • दूध के बर्तन: दूध के बर्तनों को साफ करने के लिए साबुन या डिटर्जेंट का उपयोग किया जाता है।
    • थनों का उपचार: आम तौर पर, दूध निकालने के बाद थनों पर कीटाणुनाशकों/ सैनिटाइज़र का उपयोग किया जाता है। आयोडीन एक ऐसा पदार्थ है, जो सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले थनों के कीटाणुनाशकों में से एक है और सबसे प्रभावी रोगाणुरोधी कारकों में से एक है, जिसकी अधिक मात्रा होने पर संभावित स्वास्थ्य चिंता का विषय हो सकता है। हालांकि, 0.5 प्रतिशत से अधिक आयोडीन वाले फार्मूले का उपयोग करके और थनों से दूध निकालने के बाद उनको सुखाकर दूध के संदूषण से काफी हद तक बचा जा सकता है (Fischer et al. 2016)।
    • दूध में बाह्य पदार्थ
      • खाद्य योजक (फूड एडिटिव्स): खाद्य योजक कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिन्हें जानबूझकर आहार की जैविक गुणवत्ता (रंग, रूप, गंध, स्वाद और बनावट) में सुधार करने के लिए उत्पादन या प्रसंस्करण के दौरान कम मात्रा में डाला जाता है (Inetianbor et al. 2015)। सोडियम और कैल्शियम फॉस्फेट, एस्कॉर्बिक एसिड और कैराजीनन और कैल्शियम क्लोराइड जैसे स्टेबलाइजर्स एडिटिव्स को आमतौर पर मक्खन और बिना स्वाद वाले किण्वित (फरमेंटेटड) दूध उत्पादों को छोड़कर डेयरी उत्पादों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
      • खाद्य परिरक्षक (फूड प्रीजर्वेटिव): खाद्य परिरक्षक खाद्य योज्य का एक वर्ग है जो क्लोस्ट्रीडियम प्रजाति, बैसिलस सेरेस और स्टैफिलोकोकस ऑरियस जैसे रोगजनक सूक्ष्मजीवों के विकास और प्रसार को रोककर आहार को खराब होने से बचाने में मदद करते हैं। यह आहार के पीएच को कम करके प्राप्त किया जा सकता है ताकि इन रोगाणुओं के लिए पर्यावरण को प्रतिकूल बनाया जा सके। यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के आहार का लगभग पांचवां हिस्सा जीवाणुओं के कारण खराब होने से नष्ट हो जाता है (Inetianbor et al. 2015। इसलिए, दूध के भण्डारण काल को बढ़ाने के लिए उसमें कुछ सीमित एवं अनुमोदित मात्रा में रासायनिक परिरक्षक मिलाये जाते हैं। रासायनिक परिरक्षक सूक्ष्मजीवों की कोशिका झिल्ली, उनके एंजाइम या उनके आनुवंशिक तंत्र में हस्तक्षेप करते हैं। सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाली अम्लता को कम करने और दूध का भण्डारण काल बढ़ाने के लिए सोडियम बाइकार्बोनेट और सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे निष्क्रिय पदार्थों को दूध में मिलाना; और परिरक्षकों जैसे हाइपोक्लोराइट, क्लोरीन, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, फॉर्मलाडेहाइड, और जीवाणुनाशक या जीवाणुस्तम्भक (बैक्टीरियोस्टेटिक) सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को नियंत्रित करने और उत्पाद की भण्डारण अवधि बढ़ाने के लिए उपयोग किये जाते हैं (Kartheek et al. 2011)।
      • दूध में मिलावट: खाद्य पदार्थों में मिलावट एक वैश्विक चिंता है और जांच एजेंसियों और नीतियों की कमी के कारण विकासशील देश इससे जुड़े जोखिम के दायरे में आते हैं। हालांकि, यह सबसे आम घटनाओं में से एक है जिसे कई देशों में अनदेखा किया गया है। दुर्भाग्य से, आम धारणा के विपरीत, दूध में मिलावट गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा कर सकती है जिससे घातक बीमारियां हो सकती हैं (Azad & Ahmed 2016)। दूध पाउडर जैतून के तेल (ऑलिव ऑयल) के बाद मिलावट का खतरा होने वाला दूसरा सबसे संभावित खाद्य पदार्थ है (Moore et al. 2012)। दूध में पानी के अलावा, वनस्पति प्रोटीन, विभिन्न प्रजातियों के दूध और मट्ठा की मिलावट मुख्य रूप से शामिल हैं जिन्हें आर्थिक रूप से प्रेरित मिलावट के रूप में जाना जाता है (Fischer et al. 2011, Singh & Gandhi 2015)। इन मिलावटों से कोई गंभीर स्वास्थ्य जोखिम नहीं होता है। हालांकि, कुछ पदार्थों की मिलावट की अनदेखी करने पर स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हैं। यूरिया, फॉर्मेलिन, डिटर्जेंट, अमोनियम सल्फेट, बोरिक एसिड, कास्टिक सोडा, बेंजोइक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, शर्करा और मेलामाइन दूध में मिलावट के रूप में मिलाये जाने वाले कुछ प्रमुख रसायन हैं जिनका शरीर पर गंभीर प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव पाया गया है (Singh & Gandhi 2015, Azad & Ahmed 2016)।
    • दूध प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग: दूध दुहन के बाद संपूर्ण या दूध के विभिन्न प्रकार के उत्पादों के रूप में बाजार को बेचा जाता है। बाजार में ले जाने से पहले दूध को प्रसंस्करण प्रकिया से गुजारा जाता है, तत्पश्चात बोतल या केन में भर कर बाजार में बेचा जाता है। प्रसंस्करण और पैकेजिंग प्रक्रियाओं के दौरान दूध का जीवनकाल बढ़ाने के लिए उसमें सरंक्षक या एडिटिव्स मिलाये जाने के साथ-साथ कई अन्य कारणों जैसे धातुओं का संपर्क, माइकोटॉक्सिन उत्पन्न होना या प्रसंस्करण और पैकेजिंग के दौरान संदूषण होने की प्रबल संभावना होती है।
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अधिकतम अनुमत अवशेष सीमा

आधुनिक युग में बढ़ते रोगों के कारण रोगाणुरोधी औषधियों का उपयोग समय की मजबूरी है। हालांकि इनका त्याग करना भी आसान नहीं है, तो इनकी सेवनीय आहार में अधिकता से शरीर पर दुष्प्रभाव होने लगते हैं। अतः इसके लिए स्वीकार्य दैनिक सेवन (Acceptable daily intake) करने योग्य सीमा तय की गई है। स्वीकार्य दैनिक सेवन, किसी भी औषधी की सेवन करने योग्य वह अधिकतम मात्रा है जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं होता है; जिसके लिए पशुओं को दी जाने वाली औषधी की उत्पादित उत्पाद में अधिकतम अवशेष सीमा (Maximum residue limit) और विनिवर्तन अवधि (Withdrawal period) निर्धारित गई हैं। अधिकतम अवशेष सीमा, किसी भी औषधी की मनुष्य द्वारा सेवन किये जाने वाले उत्पाद में वह अधिकतम अनुमोदित मात्रा है जिसका मनुष्य के शरीर पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं पाया गया है। विनिवर्तन अवधि उपचार की समाप्ति के बाद ऐसी आवश्यक समय अवधि है जिसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि पशु उत्पादों में औषधी के अवशेष अधिकतम अनुमत अवशेष सीमा से कम हैं।

पशु चिकित्सा में उपयोग होने वाली औषधियों की दूध में मनुष्यों के लिए स्वीकार्य दैनिक सेवन मात्रा (माइक्रोग्राम/कि.ग्रा.), दूध में अधिकतम अवशेष सीमा (माइक्रोग्राम/लीटर) और विनिवर्तन अवधि (घंटे)
औषधी का नाम स्वीकार्य दैनिक सेवन अधिकतम अवशेष सीमा विनिवर्तन अवधि
एल्बेंडाजोल (कृमिनाशक एजेंट) 0-50 100 72-120
ऐसप्रोमेज़िन मेलेट (शामक – Sedative) 48
एमोक्सिसिलिन (रोगाणुरोधी एजेंट) मि.ग्रा./किग्रा 0–0.002 4 96
एम्पीसिलीन (रोगाणुरोधी एजेंट) मि.ग्रा./किग्रा 0–0.003 4 60
बेंज़िलपेनिसिलिन/प्रोकेन बेंज़िलपेनिसिलिन (रोगाणुरोधी एजेंट) माइक्रोग्राम पेनिसिलिन/व्यक्ति/दिन 30 4 72
सेफापिरिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 72 – 96
सेफक्विनोम (रोगाणुरोधी एजेंट) 20
सेफिटयोफर (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-50 100
क्लोरटेट्रासाइक्लिन/ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन/ टेट्रासाइक्लिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-30 100 96
क्लेनब्यूटेरोल (एड्रेनोसेप्टर एगोनिस्ट) 0-0.004 0.05
क्लॉक्सासिलिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 30 48
कोलिस्टिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-7 50
साइफ्लुथ्रिन (कीटनाशक) 0-20 40
साइहलोथ्रिन (कीटनाशक) 0-5 30
साइपरमेथ्रिन और अल्फा-साइपरमेथ्रिन (कीटनाशक) 0-20 100
डेल्टामेथ्रिन (कीटनाशक) 0-10 30
डेक्सामेथासोन (ग्लुकोकोर्टिकोस्टेरॉइड) 0-0.015 0.3
डाई क्लॉक्सेसिलिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 30
डिमिनाज़ेन (ट्रिपैनोसाइड) 0-100 150
डोरामेक्टिन (कृमिनाशक एजेंट) 0-1 15
एप्रिनोमेक्टिन (कृमिनाशक एजेंट) 0-10 20
इरीथ्रोमाइसीन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-0.7 40 36 – 72
फेबंटेल/फेनबेंडाजोल/ऑक्सफेंडाजोल (कृमिनाशक एजेंट) 0-7 100 72–120
फ्लुनिक्सिन मेगलुमिन 36
फ़्यूरोसेमाइड (रोगाणुरोधी एजेंट) 48
जेंटामाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-20 200
हेटासिलिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 72
इमिडोकार्ब (एंटीप्रोटोजोअल एजेंट) 0-10 50
आइसोमेटामिडियम (ट्रिपैनोसाइड) 0-100 100
आइवरमेक्टिन (कृमिनाशक एजेंट) 0-10 10
लिंकोमाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-30 150
मैग्नेशियम हायड्रॉक्साइड 12–24
मोनेन्सिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0–10 2
नियोमाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-60 100
नाइट्रोफुरन्स (रोगाणुरोधी एजेंट) 0
नाइट्रोमिडाजोल (रोगाणुरोधी एजेंट) 0
ओक्सासिल्लिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 30
ऑक्सीक्लोज़ानाइड (कृमिनाशक एजेंट) 60
पेनिसिलिन जी (रोगाणुरोधी एजेंट) 48
पेनिसिलिन जी प्रोकेन (रोगाणुरोधी एजेंट) 60
पिरलिमाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-8 100 36
पॉलीमीक्सिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 50
प्रोपलीन ग्लाइकोल (रोगाणुरोधी एजेंट) 96
क्विनालोन्स (रोगाणुरोधी एजेंट) 75
स्पैक्टिनोमाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-40 200
स्पिरामाइसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-50 200
स्ट्रेप्टोमाइसिन / डायहाइड्रोस्ट्रेप्टोमाइसिन 0-50 200
सल्फाडीमेथोक्सिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 60
सल्फाडिमिडिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-50 25
थियाबेंडाजोल (कृमिनाशक एजेंट) 0-100 100
ट्राइक्लोरफ़ोन (मेट्रीफोनेट) (कीटनाशक) 0-2 50
ट्राइमेथोप्राइम (रोगाणुरोधी एजेंट) 50
टायलोसिन (रोगाणुरोधी एजेंट) 0-30 50
जाइलाज़ीन (संवेदनाहारी) 24
Sources 1 1, 2 3, 4
1FAO/WHO 2018; 2Nisha 2008; 3Hsu 2008; 4Vercruysse & Claerebout 2014
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सार्वजनिक स्वास्थ्य और डेयरी उद्योग पर औषधीय अवशेषों के संभावित प्रभाव

खाद्य उत्पादकों और खाद्य उपभोक्ताओं द्वारा अंधाधुंध उपयोग के परिणामस्वरूप मनुष्य पर खाद्य योजकों और परिरक्षकों के विभिन्न प्रभावों पर उपलब्ध विभिन्न शोधों में खाद्य एलर्जी, खाद्य असहिष्णुता (Intolerance), कैंसर, बहुभागी काठिन्य (मल्टीपल स्केलेरोसिस), ध्यान में कमी की सक्रियता विकार (Attention deficit hyperactivity disorder), मस्तिष्क क्षति, मतली (Nausea), हृदय रोग जैसे कई प्रभाव बताए गए हैं (Inetianbor et al. 2015)।

  • रोगाणुरोधी औषधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance): दूध और अन्य डेयरी उत्पादों में रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेषों के निम्न स्तर की उपस्थिति के कारण सूक्ष्मजीव रोगाणुरोधी औषधियों के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। प्रतिरोधी रोगाणुओं को सीधे संपर्क के माध्यम से या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण में प्रतिरोधी जीनों के आदान-प्रदान द्वारा व्यक्तियों के बीच प्रेषित किया जा सकता है (Beyene 2016)।
  • एलर्जी प्रतिक्रियाएं (Allergic reactions): विभिन्न रोगाणुरोधी औषधियों (पेनिसिलिन) के अवशेष कई प्रकार की एलर्जी प्रतिक्रियाओं से जुड़े होते हैं, जिनमें रक्तोद (सीरम) बीमारी और तीव्रग्राहिता (एनाफिलेक्सिस) शामिल हैं, खासकर पेनिसिलिन के मामले में (Beyene 2016)।
  • कैंसरजन्यता (Carcinogenicity): सल्फामिथाजिन, ऑक्सीटेट्रासायक्लिन और फयूराजॉलीडॉन जैसी रोगाणुरोधी (Nisha 2008) एंटीबायोटिक औषधियों के अवशेषों में डीएनए और आरएनए जैसे कोशीय तत्वों के साथ मिलकर संभावित कैंसरजन्य प्रभाव होते हैं।
  • उत्परिवर्तजनता (Mutagenicity): उत्परिवर्तजन प्रभाव प्रतिजैविक अवशेषों का एक और खतरनाक प्रभाव है, जो डीएनए अणु के उत्परिवर्तन या गुणसूत्रों की क्षति का कारण बन सकता है (Conzuelo et al. 2014), इस उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप बांझपन भी हो सकता है।
  • जन्मजात विसंगतियाँ (टेराटोजेनिसिटी): गर्भकाल के दौरान रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेषों के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण नवजात बच्चे में विभिन्न जन्मजात विसंगतियाँ देखी जा सकती हैं।
  • आंतों के सामान्य वातावरण में गड़बड़ी: आंतों में पाये जाने वाले सामान्य जीवाणु दूसरों के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं और रोगजनक रोगाणुओं को रोग पैदा करने से रोकने के लिए कालोनियों में रहते हैं। व्यापक वर्णक्रम रोगाणुरोधी औषधियों के उपयोग के परिणामस्वरूप दूध में मौजूद इन औषधियों के अवशेष गैर-रोगजनक जीवों सहित आंतों में सूक्ष्मजीवों की एक विस्तृत श्रृंखला को मार सकते हैं, जो रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को अधिक प्रमुख बना सकता है और सामान्य आंतों के वातावरण को बाधित कर सकता है।
  • वृक्कविकृति (जेंटामाइसिन)
  • यकृत विषाक्तता (हेपटोटोक्सिसिटी)
  • अस्थि मज्जा विषाक्तता (क्लोरैम्फेनिकॉल)
  • डेयरी उद्योग में प्रभाव: दूध में बहुत कम सांद्रता में भी रोगाणुरोधी अवशेषों का अस्तित्व डेयरी उद्योगों में बहुत चिंता का विषय है। एंटीबायोटिक के अवशेष पनीर और दही के उत्पादन के दौरान स्टार्टर कल्चर के जीवाणुओं की बढ़वार को रोककर किण्वन प्रक्रिया में दखल दे सकते हैं।

दूध में रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों की उपस्थिति के मुख्य कारण

  • चिकित्सीय और रोगनिरोधी उपयोग: दूध में रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेषों की उपस्थिति का महत्वपूर्ण कारण संक्रामक रोगों, जैसे थनैला, बुखार, सूजन और वायरल रोगों के उपचार में रोगाणुरोधी औषधियों का अंधाधुंध उपयोग है (Nisha 2008)। कभी-कभी, दूधारू पशुओं को ग्याभिन होने के बाद थनैला रोग से बचाने के लिए और किसी भी कारण से बीमार होने के बाद उनको रोगाणुरोधी औषधियां दी जाती हैं, जो दूध में रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों के लिए भी जिम्मेदार होते हैं (Nisha 2008, Gonzalo et al. 2010)।
  • विविध उद्देश्यों में रोगाणुरोधी: दूध और संबंधित डेयरी उत्पादों के प्रसंस्करण और संरक्षण के दौरान उपयोग किए जाने पर रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों द्वारा दूध को संदूषित करने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके हो सकते हैं (Nisha 2008)।
  • अतिरिक्त-लेबल (Extra label) उपयोग: यदि औषधी के लेबल में दिए गए निर्देशों का तदनुसार पालन नहीं किया जाता है, तो दूध में एंटीबायोटिक के अवशेष पाए जा सकते हैं। जब एक रोगाणुरोधी औषधी को केवल मनुष्यों के लिए अनुमोदित किया जाता है, तो पशुओं में भी इन औषधियों का उपयोग अविवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाता है तो दूध में मौजूद इनके अवशेष मनुष्यों में रोगाणु प्रतिरोध का कारण बनते हैं। इन औषधियों को अतिरिक्त-लेबल उपयोग के रूप में संदर्भित किया जा सकता है (Weaver 1992)।
  • उचित विनिवर्तन अवधि (Withdrawal period) का अभाव: किसी भी दूध देने वाले पशु को दी जाने वाली औषधी को देने के बाद, उस द्वारा उत्पादित दूध का मानवीय सेवन कुछ दिनों के लिए वर्जित होता है और अवधि को विनिवर्तन (विदड्रावल) अवधि कहा जाता है। दूध देने वाले पशुओं में रोगाणुरोधी औषधियों के विनिवर्तन समय के उचित रखरखाव के बिना, उच्च सांद्रता में दूध में रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेष दिखाई देते हैं (Kebede et al. 2014, Ture et al. 2019)।
  • अनुचित निगरानी प्रणाली: सबल नियामक संगठन न होने के कारण रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेषों की सीमित पहचान सुविधाओं और अवशेषों की अनुचित निगरानी प्रणाली को विकासशील देशों के लिए इस मुद्दे में महत्वपूर्ण घटना माना जा सकता है (Kebede et al. 2014)।
  • रोगग्रस्त पशुओं में रोगाणुरोधी औषधियों की सामान्य चयापचय प्रक्रिया बाधित होती है, जिसके कारण वे लंबे समय तक शरीर में खासतौर से ऊतकों में संग्रहित रह सकती हैं, जिससे अंततः दूध में औषधीय अवशेषों का एक उच्च जोखिम बना रहता है (Beyene 2016)।
  • मानव स्वास्थ्य में दूध से रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों के दुष्प्रभावों के बारे में किसानों की जागरूकता का अभाव (Beyene 2016)।
  • स्वयं उपचार करना: आमतौर पर कई पशुपालक अपने पशुओं को स्वयं ही उपचार करते देखा जा सकता है। ऐसी प्रवृति भी दूध में रोगाणुरोधी औषधीय अवशेषों को बढ़ावा देती है।
  • किसानों की अपर्याप्त शिक्षा।
  • पठन सामग्री की छपाई में कुछ अतिरिक्त खर्च होता है। इसलिए कुछ औषधी निर्माताओं द्वारा सीमित पठन सामग्री उपलब्ध कराने से अपर्याप्त औषधी विशेष के बारे में पूर्ण जानकारी के अभाव में दूध में रोगाणुरोधी औषधियों के अवशेष होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  • मिश्रण बनाने या पशुओं को रोगाणुरोधी औषधियां देने की प्रक्रिया में उपयोग करने के बाद संदूषित उपकरणों की उचित सफाई का न होना।
  • रोगाणुरोधी औषधियों के खाली पात्रों का अनुचित निपटान जो पशुओं के चारे को संदूषित कर सकते हैं। पशु उन्हें चाट सकते हैं या गलती से संदूषित आहार के माध्यम से उनकी चपेट में आ सकते हैं।
  • उपचारित दूधारू पशुओं की पहचान न रखना।
  • दूध में रोगाणुरोधी औषधी अवशेषों की उपस्थिति को प्रभावित करने वाले विविध कारक:
  • रोगाणुरोधी दवा का प्रकार और मात्रा।
  • औषधी को तैयारी के दौरान उपयोग किए जाने वाले सहायक पदार्थ।
  • दूध देने की आवृत्ति और दूध संग्रह की मात्रा।
  • दुग्ध ग्रंथि ऊतकों द्वारा औषधीय अवशोषण।
  • दूध का उत्पादन (दूध में रोगाणुरोधी अवशेष दूध के उत्पादन के साथ विपरीत रूप से संबंधित है)।
  • व्यक्तिगत कारक।
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रोगाणुरोधी औषधी अवशेष रोकथाम

  • औषधीय अवशेषों की रोकथाम में पहला कदम पशु चिकित्सा कर्मियों, संगठनों और साहित्य और सरकारी एजेंसियों द्वारा शिक्षा के माध्यम से समस्या के बारे में लोगों और संगठनों को जागरूक करना है।
  • एंटीबायोटिक अवशेषों के विश्लेषण के लिए त्वरित जांच प्रक्रिया और अधिकतम अवशेष सीमा से अधिक एंटीबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थों की तत्काल ग्रेडिंग और उनका निषेध करना।
  • दूध का प्रसंस्करण एंटीबायोटिक दवाओं को निष्क्रिय करने में मदद करता है। प्रशीतन पेनिसिलिन को कम करता है। पाश्चुरीकरण में अधिकांश एंटीबायोटिक्स की क्रियाशीलता कम हो जाती है।
  • सक्रिय चारकोल, रेसिन और पैराबैंगनी विकिरण का उपयोग भी एंटीबायोटिक निष्क्रियता के लिए मदद करता है।
  • खाद्य योजकों और परिरक्षकों को विनियमित मात्रा और सांद्रता में ही दूध में मिलाया जाना चाहिए और स्वीकार्य दैनिक सेवनीय सीमा के अन्दर ही होना चाहिए जिससे वे उपभोक्ता पर दुष्प्रभाव न डाल सकें।
  • पशु चिकित्सा पद्धतियों में रोगाणुरोधी औषधियों के तर्कहीन उपयोग से बचना चाहिए।
  • खाद्य पशु उत्पादों में औषधी अवशेषों की पहचान करने के लिए सरल और किफायती परीक्षणों का विकास।
  • विनिवर्तन अवधि को उचित रूप से लागू किया जाना चाहिए।
  • उपचार अभिलेखों का उचित रखरखाव और उपचारित पशुओं की पहचान को लागू किया जाना चाहिए।
  • प्रबंधन पद्दति और पशु स्वास्थ्य कार्यक्रम को लागू करके औषधीय अवशेषों के जाखिम से बचने का सबसे अच्छा साधन है जिससे पशुओं को स्वस्थ रखने और कुशलता से उत्पादन किया जा सकता है।
  • अनुमोदित दवाओं का उपयोग।
  • अनुचित रूप से औषधी निर्देश, वितरित और बेची गई दवा को विनियमित किया जाना चाहिए।
  • वैध पशु चिकित्सक-ग्राहक-रोगी संबंध की स्थापना; चिकित्सक की पर्ची पर लिखी औषधी का उपयोग और अतिरिक्त-लेबल का उपयोग एक पशु चिकित्सा-ग्राहक रोगी संबंध को आवश्यक बनाता है।
  • उचित औषधी देना और उपचारित पशुओं की पहचान; औषधियों को पशुओं को देने या वितरण से पहले क्षेत्र में सभी प्रकार के पशुओं के लिए अनुमोदित औषधियों को जानना चाहिए और अनुमोदित मात्रा, देने के माध्यम और विनिवर्तन अवधि के बारे में पता होना चाहिए।
  • परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों जैसे कि एथनोवेटरीनरी मेडिसिन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • खाद्य ऊतकों और दूध में सूक्ष्मजीव अवशेषों की राष्ट्रव्यापी निगरानी और आवधिक निगरानी।

निष्कर्ष

बेशक परिवर्तनशील औद्योगिक युग में रोगों के बढ़ते जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों का उपयोग करना समय की आवश्यकता है और इनके अतिप्रयोग और अन्य संदूषकों से बचना मुश्किल सा प्रतीत होता है लेकिन इनका विवेकपूर्वक उपयोग, जागरूकता और उचित निगरानी जांच ऐसे उपाय हैं जिनकी सहायता से इन घातक संदूषकों के दुष्प्रभावों को नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है।

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