कंटकारी / भटकटैया (Solanum Xanthocarpum) के औषधीय गुण

0
2865

कंटकारी / भटकटैया (Solanum Xanthocarpum) के औषधीय गुण

कंटकारी / भटकटैया सोलेनेसी परिवार का एक औषधीय पौधा हैं, जिसको हम मारवाड़ी में रींगणी कहते हैं | इसके पत्ते कांटेनुमा, नीले रंग के पुष्प तथा फल पीले रंग के होते हैं | इसके बीज छोटे तथा  चिकने  होते हैं | यह प्राय: पश्चिमी भारत में पाया जाता हैं | यह पौधा एक चमत्कारी, कांटेदार जड़ी बूटी हैं | इस पौधे को सोलेनम जेंथोकार्पम, येलो बेरीड नाईटशेड, रेंगनी, रींगणी, कंटकारी, भटकटैया, कटाली, छोटी कटेरी के नाम से भी जाना जाता हैं | इस पौधे के पीली बेरी को सितम्बर-अक्टूबर में प्राप्त किया जाता हैं |

कंटकारी (Solanum Xanthocarpum) : पौधा कंटकारी (Solanum Xanthocarpum) : पुष्प

कंटकारी (Solanum Xanthocarpum) : पत्तिया

कंटकारी (Solanum Xanthocarpum) : फल

पौराणिक समय से ही आयुर्वेद में सोलेनम जेंथोकार्पम को कड़वा (Bitter), पाचक (Digestive), तीखा (Pungent) और वैकल्पिक कसैला (Alternative Astringent) बताया हैं । इसके तने, फूल, फल कड़वे तथा वायुनाशक (Carminative) होते हैं। मानव उपभोग के लिए चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित इस पौधे का उपयोग चवनप्राश, दशमूलारिष्ट, व्याघ्री हरितकी अवलेह, व्याघ्री तैलम, व्याघ्रीयादि क्वाथ, व्याघ्री घृतम आदि में एक घटक के रूप में किया जाता है । इस पौधे का उपयोग फल, चूर्ण तथा काढ़े के रूप में सुबह व दोपहर में 500 mg/kg ही करना चाहिए | मधुमेह रोगियो में इसका उपयोग कम करना चाहिए, क्योकि यह रक्त शर्करा को कम करता हैं |

इस पौधे में मोलास्कीसाइड व कीट विकर्षक जैसे गुण भी पाये जाते हैं | इस पौधे का उपयोग रक्त दाब कम करने, केंसर, सालमोनेला टायफीन्यूरीयम संक्रमण, सिकल सेल एनीमिया, मिर्गी, दांत दर्द, उल्टी, एलर्जी आदि के उपचार में किया जाता हैं |

इसकी पत्तिया घाव भरना, जीवाणुनाशी, कवकनाशी, लार्वानाशी, एंटीहाइपरग्लाइसेमिक, एंटीऑक्सिडेंट तथा हिपेटोप्रोटेक्टिव होती हैं । जड़ का काढ़ा एक प्रभावी मूत्रवर्धक, भूख बढ़ाने, कान की सूजन कम करने, कृमिनाशक, ज्वरनाशक, कफनाशक, खांसी, दमा और सीने में दर्द निवारक  के रूप में प्रयोग किया जाता है।

इस पौधे के अन्दर बहुत प्रकार के पौष्टिक तत्व जैसे कॉपर, आयरन, जिंक, कैडमियम आदि पाये जाते हैं | इसके फलों में कई स्टेरॉयडल एल्कलॉइड जैसे सोलेनकार्पिन, सोलनाकार्पिन, सोलेनाकार्पिडाइन, सोलेसोनिन व सोलेमार्जिन, कूमेरिन जैसे एस्क्यूलिन व एस्क्यूलेटिन, स्टेरॉयड जैसे कारपेस्टेरोल, डायोसजेनिन, कैंपस्टेरोल व डोकोस्टेरोल, ट्राईट्रपिन जैसे साइक्लोआर्टेनॉल तथा अन्य घटक जैसे कैफिक एसिड पाये जाते  हैं । इसके फल में कई औषधीय गुण जैसे रेचक (Laxative), सूजनरोधी, दमा-रोधी, ज्वरनाशक, कृमिनाशक होते हैं ।

 

डॉ. अनिता राठौड़, डॉ. ललित कुमार, डॉ. अनिरु) खत्री और डॉ. लक्ष्मी कान्त

पशु औषध एवम् विष विज्ञान विभाग

पशु चिकित्सा एवम् पशु विज्ञान महाविधालय, नवानिया, उदयपुर

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON
READ MORE :  USE OF ALOE VERA AS POTENTIAL HERBAL FEED ADDITIVES IN DAIRY CATTLE