मुर्गियों में रानीखेत रोग के लक्षण और बचाव

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मुर्गियों में रानीखेत रोग के लक्षण और बचाव

DR JITENDRA SINGH, VO, KANPUR DEHAT, UP

रानीखेत रोग: मुर्गियों में रानीखेत रोग के लक्षण और बचाव | Newcastle Disease

रानीखेत एक अत्यअधिक घातक और संक्रामक रोग है यह प्लेग के समान है। यह रोग कुक्कुट-पालन की सबसे गम्भीर विषाणु बीमारियो मे से एक है इस रोग के विषाणु ‘‘पैरामाइक्सो’’ को सबसे पहले वैज्ञानिको ने वर्ष 1939-40 मे उत्तराखंण्ड भारत के रानीखेत शहर मे चिन्हित किया था। रानीखेत रोग बहुत से पक्षियो जैसे- मुर्गी, टर्की, बत्तख आदि मे देखने को मिलता है लेकिन यह रोग प्रमुख रुप से मुर्गियो को प्रभावित करता है। यह सभी उम्र की मुर्गियों को हो सकता है परन्तु इस रोग का प्रकोप प्रथम से तीसरे साप्ताह में ज्यादा देखने को मिलता है। रानीखेत रोग का संक्रमण लगभग दुनिया के सभी देशो मे देखने को मिलता है। भारत मे रानीखेत रोग के नमूने सभी राज्यो के विभिन्न भागो मे देखने को मिलते है, लेकिन मुख्य रुप से दक्षिण एंव पश्चिम भारत जैसे- अंान्ध्र प्रदेश, कर्नााटक, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि में कई बार देखने को मिलता है। इस रोग को हम न्यूकैसल रोग नाम से भी जानते है। इस रोग से मुर्गी पालको को बहुत हानि होती है। यह मुर्गियो की सबसे अधिक खतरनाक बीमारी है। बीमारी के उग्र रुप धारण करने पर बिना किसी लक्षण प्रकट किये हुए बहुत सी मुर्गिया तुरन्त एंव अचानक मर जाती है, क्योकि यह बीमारी अचानक होने लगती है ओर मुर्गियों में जल्दी फैलती है। इस रोग के कारण मुर्गियों को सांस लेने मे कठिनाई होने लगती है यह बीमारी सभी उम्र की मुर्गियों में पायी जाती है। तथा उनमें जल्दी महामारी का रुप धारण कर लेती है। इस रोग के लक्षणो मे आंख सुज जाती है, मुर्गियों की गर्दन एक तरफ मुड़ जाती है, कुछ बीमार मुर्गिया खड़ी नही हो पाती है और पड़ी रहती है। बीमार मुर्गियों को सफेद पीले एंव हरे रंग की दस्त होने लगती है। बीमार मुर्गियां दाना-पानी कम लेती है ओर 24-48 घंटे के अन्दर मर जाती है। बीमारी तीब्र होने पर 50-60 प्रतिशत मुर्गियां मर जाती है। विषाणुजनित रोग मुर्गियांे में अधिक होने के कारण मृत्युदर 75-80 प्रतिशत तक हो सकती है।
डाक्टर के द्वारा मरी हुई मुर्गियों का पोस्टमार्टम (शव परीक्षण) कराना चाहिये शव परीक्षण में प्रोवंेटीकुलस मे रक्त प्रवाह पाया जाता है और अंातो मे अल्सर या घाव दिखाई देता है प्रयोगशाला में प्रभावित मुर्गियों का खुन जंाच करने पर बीमारी को चिन्हित किया जा सकता है। मरी मुर्गियों का फेफड़ा, प्लीहा, और मस्तिस्क को प्रयोगशाला मे परीक्षण द्वारा इस विषाणु की पहचान की जा सकती है।

रानीखेत रोग, जिसे पश्चिम में न्यूकैसल रोग से भी जाना जाता है, संक्रामक और अत्यधिक घातक रोग है। इसके नियंत्रण के लिए किए गए उल्लेखनीय काम के बावजूद, यह रोग अभी भी पोल्ट्री के सबसे गंभीर वायरस रोगों में से एक है। लगभग सभी देशों में यह बीमारी होती है और आम तौर पर सभी उम्र के पक्षियों को प्रभावित करता है, परन्तु इस रोग का प्रकोप प्रथम से तीसरे सप्ताह ज्यादा देखने को मिलता है। रानीखेत रोग में मृत्यु दर 50 से 100 प्रतिशत होती है।

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रानीखेत रोग एक विषाणु जनित वाइरल रोग हैं, यह बहुत घातक और संक्रामक रोग होता हैं. यह न्यूकैसल रोग विषाणु (NDV) के कारण होता हैं जो कि पैरामायोक्सोवाइरस परिवार का वायरस हैं. यह रोग मुख्य रूप से मुर्गी, बतक, कोयल, तितर, कबूतर, गिनी और कौवे जैसे पक्षियों में देखने को मिलता हैं.

वैसे तो यह रोग हर उम्र की मुर्गियों/पक्षियों में देखने को मिलता हैं परंतु इस रोग के लक्षण मुर्गियों में प्रथम सप्ताह से 3 सप्ताह के उम्र के बीच सबसे अधिक दिखाई देता हैं, रानीखेत होने के कारण पक्षी 2 से 3 दिनों में बहुत कमजोर हो जाता हैं और इस रोग से होने वाली मृत्यु दर भी अधिक हैं, इसमें मृत्यु दर 50% से 100% तक होती हैं.

रानीखेत रोग का इतिहास : Newcastle Disease History 

यह विषाणु जनित रोग सबसे पहले जावा (इंडोनेशिया देश का एक द्वीप) में सन 1926 में पाया गया था उसके बाद यह इंग्लैंड के न्यूकैसल शहर में सन 1927 में पाया गया था इसलिए इसे नाम शहर के नाम पर न्यूकैसल रोग (Newcastle Disease) कहा जाता हैं.

भारत में सर्वप्रथम उत्तराखंड के रानीखेत में सन 1939-40 पाया गया था तब से इसे “रानीखेत रोग” के नाम से जाना जाता हैं.

रानीखेत रोग के केस मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में देखने को मिलते हैं तथा अन्य बाकी राज्यों में भी देखने को मिलते हैं. यह एक वैश्विक रोग हैं जो दुनिया के हर देश में पाया जाता हैं.

रानीखेत रोग के लक्षण, उपचार और रोकथाम के उपाय:

पोल्ट्री फार्म संचालकों के लिए यह एक गंभीर विषय हैं इस रोग इन्क्यूबेशन अवधि 2 से 5 दिन के बीच होती हैं और कुछ केसेस में यह 25 दिन तक हो सकती हैं. इस रोग के फैलने से 40 से 50 प्रतिशत तक मुर्गियाँ मर जाती हैं अगर यह रोग इसके पीक पर पहुच जाए तो 100 प्रतिशत तक मुर्गियाँ मर जाती हैं.

बहुत सारे किसान मुर्गियों का पालन करते हैं, इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए किसान और पोल्ट्री फार्म संचालको को सही समय पर रानीखेत रोग का उपचार और रोकथाम के उपाय करने चाहिए.

नीचे रानीखेत रोग के लक्षण, उपचार और रोकथाम के उपाय दिए गए हैं-

रानीखेत रोग के लक्षण : Newcastle Disease Symptoms :

  • खांसी और छिके आना भी इसके लक्षण हैं.
  • इससे मुर्गियों का दिमाग (Brain) प्रभावित होता हैं, जिससे कि वह लड़खड़ाने लगती हैं.
  • गर्दन लुड़कने लगती हैं.
  • सांस नली (Tráquea) इंफेकटेड होने से सांस लेने में कठिनाई होती हैं.
  • मुर्गियाँ, मुहँ को खोलकर सांस लेने लगती हैं.
  • रोग से ग्रस्त मुर्गियाँ ऊपर की और देखने लगती हैं.
  • कभी-कभी इन्हे लकवा (Parálisis) मार जाता हैं.
  • दस्त (Diarrea) की समस्या हो जाती हैं, मुर्गियाँ पतला और हरे रंग का मल करने लगती है.
  • मुर्गियाँ दाना खाना कम कर देती हैं और उन्हे प्यास अधिक लगती हैं.
  • मुर्गियाँ के अंडों में विकृति होती हैं.
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मुर्गियों में रानीखेत रोग का निदान (Diagnosis) करना:

मुर्गी में Newcastle Disease के निदान के लिए निम्न बातों पर ध्यान दे.

  • मुर्गियों के रहन-सहन , खाने-पीने का अवलोकन करे.
  • पोल्ट्री फार्म या घर से आसपास अच्छी तरह से साफ सफाई कर लें.
  • अगर लक्षण दिखाई दे तो लैब में जाकर  एलिशा (Elisa) और पी सी आर (PCR)  विधि से रक्त की जांच करें.
  • रोग से ग्रसित मुर्गियों को बाकी से अलग रखे.

मुर्गीयों में रानीखेत रोग का उपचार: Treatment of Newcastle disease :

https://www.pashudhanpraharee.com/ranikhet-disease-in-poultry/

उपचार:-

निम्नलिखित दवाइयो के उपयोग से रानीखेत रोग का उपचार एंव रोकथाम की जा सकती है।
* टेरामाईसीन, औक्सीस्टेक्लिन, उलीसाइक्लिन, आलसाइक्लिन, टेट्रासाइक्लिन आदि किसी एक दवा का 1-2 मि.ली. बड़ी मुर्गियों कों तथा 0.5 मि.ली. छोटी मुर्गियों कों मांस में सुई देना चाहिये अच्छा रहेगा कि निकट के पशु चिकित्सक से इलाज कराए।
* इस घातक रोग से बचाव के लिये किसानो और मुर्गीपालको के पास सिर्फ टीकाकरण ही एक मात्र उपाय है। यह टीकाकरण स्वस्थ पंक्षियो मे सुबह के समय करना चाहिये और इन्हे रोग से प्रभावित पक्षियो से अलग कर देना चाहिये।

* सबसे पहले इन्हे एफ-वन लाइव या लासोता लाइव स्ट्रेन वैक्सीन की खुराक 5 से 7 दिन पर देना चाहिये और दूसरी आर बी स्ट्रेन की बूस्टर डोज 8 से 9 हफ्ते और 16 से 20 हफ्ते की आयू पर वैक्सीनेशन करना चाहिये।

* रोग उभरने के बाद यदि तुरन्त रानीखेत एफ वन नामक वैक्सीन दी जाय तो 24 से 48 घंटे में मुर्गियों की हालत सुधरने लगती है। वैक्सीन की खुराक हमे पक्षियों की आँख और नांक से देनी चाहिये। अगर मुर्गीफार्म बड़े भाग में किया गया है तो वैक्सीन को पानी के साथ मिलाकर भी दे सकते है।
रोकथाम एंव नियंत्रण:- वर्तमान समय में इस रोग को जड़ से खत्म करने वाली कोई भी दवा विकसित नही हो सकी है। परन्तु दवाइयो के प्रयोग से इस रोग को बड़े क्षेत्र में फैलने से रोका जा सकता है और इस रोग से होने वाले आर्थिक नुकसान का कम किया जा सकता है।
* कुक्कुट पालन शुरु करने से पहले क्षेत्र की जलवायू आदि का अध्धयन अच्छी तरह से कर लेना चाहिये और यह भी मालूम कर लेना चाहिये कि कभी पहले भी यह रोग ज्यादा प्रभावी तो नही रहा है।
* मुर्गी घर के दरवाजे के सामने पैर धोने के लिये उचित व्यवस्था होनी चाहिये।
* मुर्गी पालक कुछ सफाई संबंधी कार्य करने से इस रोग को काफी हद तक रोक सकते है जैसे- मुर्गी घर की सफाई, इन्क्यूबेटर की सफाई, बर्तनो की सफाई आदि। रोगित पक्षियों पर तत्काल ध्यान देना चाहिये और उनका उचित टीकाकरण करना चाहिये।
*रोग से प्रभावित पक्षियो को स्वस्थ पक्षियो से अलग कर देना चाहिये। बाहरी लोगो का  मुर्गी फार्म प्रवेश वर्जित होना चाहिये।
*दो मुर्गी फार्मो के बीच की दूरी कम से कम 100-150 मीटर रखनी चाहिये। रोग से मरे हुए  पक्षियो को गडढे मे दबा या जला देना चाहिये।

  • रानीखेत से बचाव हेतु टीकाकरण (वैक्सीनेशन) ही एकमात्र उपाय हैं.
  • स्वस्थ मुर्गियों में टीकाकरण सुबह के समय करना चाहिए और उन्हे रोग से ग्रसित पक्षियों से दूर रखना चाहियें.
  • सबसे पहले एफ-वन लाइव’ (F-1 Live) या लासोता लाइव’ (Lasota) स्ट्रेन दोनों में से एक वैक्सीन की खुराक 5 से 7 दिन के होने पर देनी हैं.
  • दूसरी वैक्सीन आर-बी स्ट्रेन (RB starin) बूस्टर डोज़ 8 से 9 हफ्ते और 16 से 20 हफ्तों के होने देना चाहिए.
  • रोग के उभरते ही अगर रानीखेत एफ-वन का टीका लगा दे तो 24 से 48 घंटों में मुर्गियों की हालत सुधरने लगती हैं.
  • टीके (Vaccine) की खुराख नाक और आँख से देनी चाहिए.
  • टीकाकरण पोल्ट्री फार्म (अधिक संख्या) में करना हो तो वैक्सीन को पानी के साथ मिलाकर भी दिया जा सकता हैं.
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रोकथाम और नियंत्रण: Prevention and Control:

रानीखेत या न्यूकैसल रोग को पूरी तरह से खत्म करने वाली दवा नहीं बनी हैं परंतु आप दी गई वैक्सीन लगवाकर इस रोग की होने की संभावनाओ को कम कर सकते हैं.

नीचे दिए गए बिंदुओ को ध्यान में रखे-

  • मुर्गी पालन शुरू करने से पहले वातावरण, जलवायु का अच्छे से अध्ययन करे.
  • यह पता करे की भूतकाल में क्षेत्र में यह रोग ज्यादा प्रभावी तो नहीं रहा हैं.
  • सबसे जरूरी साफ-सफाई हैं अतः साफ सफाई पर उचित ध्यान दे.
  • पोल्ट्री फार्म, बर्तन व डिंबौपक (Incubator) की सफाई करते रहना चाहिए.
  • पोल्ट्री फार्म के सामने पैर धोने के लिए उचित व्यवस्था करे.
  • संदिग्ध मुर्गियों तो तुरंत अलग कर देना चाहिए और उनकी जांच करना चाहिए.
  • अगर रोगग्रस्त पाए जाते हैं तो तुरंत उन्हे वैक्सीन लगाना चाहिए.
  • बाहरी लोगों को पोल्ट्री फार्म में सीधे आने से रोकना चाहिए.
  • 2 पोल्ट्री फार्म के बीच की दूरी न्यूनतम 100 फ़ीट रखना चाहियें.
  • मरे हुई मुर्गियों को गहरा गड्डा खोदकर दबा देना चाहिए.

रोग से रोकथाम के साथ साथ स्वयं की भी सुरक्षा करें-

  • पोल्ट्री फार्म में जाते व्यक्त मुहँ को ढके, मास्क व दस्ताने पहने.
  • बाहर आकार साफ पानी से हाथ, पैर व मुहँ को धुले.
  • अपने कपड़े अलग निकाल कर रखे.
  1. क्या रानीखेत रोग ब्रायलर तथा लेयर दोनों मुर्गियों में हो सकता हैं?

हाँ यह दोनों प्रकार की मुर्गियों में हो सकता हैं.

  1. रानीखेत बीमारी से ग्रसित मुर्गी पकाकर खाया जा सकता हैं?

जी नहीं! ऐसी गलती ना करे.

  1. रानीखेत रोग को इंग्लिश में क्या कहते हैं?

रानीखेत रोग को इंग्लिश में न्यूकैसल रोग (Newcastle Disease) कहते हैं.

 

https://agritech.tnau.ac.in/expert_system/poultry/Disease%20Control%20And%20Management.html

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