गोपशुओं में प्रजनन सम्बन्धी समस्यायें एवं प्रबन्धन

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गोपशुओं में प्रजनन सम्बन्धी समस्यायें एवं प्रबन्धन
सुधांशु शेखर 1, शशि भूषण सुधाकर2, संजय कुमार3, रजनी कुमारी4 एवं सविता कुमारी5
1कृषि विज्ञान केन्द्र (भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक), कोडरमा, झारखण्ड, 2 भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान, मध्य प्रदेश, 3 पशु पोषण विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना , बिहार, 4 वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर.-आर.सी.इ.आर.,पटना, बिहार, 5सु़क्ष्मजीवी विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना , बिहार

गोपशुओं से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रजनन तन्त्र का सही व सुचारु होना अत्यन्त आवश्यक है। पशु के नियमित गाभिन होने के लिए आवश्यक है कि डिम्बग्रन्थि सक्रिय हो, पशु सामान्य गर्मी के लक्षण दिखाये, सामान्य तौर पर गर्भित हो और भ्रूण विकास भी सामान्य हो। ये सब प्रबन्धन, बीमारी व आनुवंशिकी से प्रभावित होती हंै। सामान्य प्रजनन में किसी तरह की समस्या आने पर पशु प्रजनन प्रभावित हो सकता है अथवा पशु बाँझ हो सकता है। इससे शुष्क काल बढ़ जाता है तथा पूरे जीवन काल में बच्चे जनने की क्षमता व दूध देने की अवधि भी काफी कम हो जाता है। सामान्य तौर पर गाय व भैंस के बछड़े क्रमशः 15 व 24 माह में किशोर हो जाते हैं और 30 व 40 माह में पहला बच्चा पैदा कर सकते हैं। अगर प्रजनन तन्त्र में किसी तरह की व्याधि होती है तो उपरोक्त परिणाम नहीं मिल पाते हैं। ऐसा देखा जाता है कि प्रजनन में परेशानी या बाँझपन के कारण लगभग 18-40 प्रतिशत पशु बेच देने पड़ते हैं। यद्यपि विज्ञान ने इस क्षेत्र में काफी प्रगति कर ली है और सही जानकारी प्राप्त कर पशुपालक अपने पशुओं को इस तरह की समस्याओं से काफी हद तक बचा सकते हैं।
मादा गोपशु जनन तन्त्र
गोपशुओं की प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने केे लिए मादा जनन तन्त्र के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है। मादा जनन तन्त्र में डिम्ब ग्रन्थि, डिम्बवाहिनी, बच्चेदानी (यूटेरस), सरविक्स (बच्चेदानी का मुख) और योनि सम्मिलित है। डिम्ब ग्रन्थि पशु प्रजनन का एक मुख्य अंग है। सामान्य तौर पर एक बच्चा जनने वाले पशुओं (गाय, भैंस आदि) में प्रत्येक मदचक्र में एक ही डिम्बपुटिका विकास की अंतिम अवस्था तक पहुँचकर डिम्बोत्सर्जन करती है। डिम्बोत्सर्जन के बाद डिम्ब प्रदान करने वाली पुटिका पुनः संगठित होकर एक अस्थाई ग्रन्थिय संरचना पीतकाय में परिवर्तित हो जाती है। यह ग्रन्थि एक हार्माेन प्रोजेस्ट्रान स्रावित करती है। यह हार्मोन निषेचन के फलस्वरूप उत्पन्न भू्रण के प्रारम्भिक विकास के लिए अतिआवश्यक होता है। प्रत्येक डिम्ब ग्रन्थि से एक पतली एवं टेढी-मेढी डिम्बवाहिनी निकल कर दूसरी तरफ बच्चेदानी से जुड़ी रहती है। डिम्बवाहिनी में नर युग्मक व मादा युग्मक का संयुग्मन होता है। डिम्बवाहिनी प्रारम्भिक भू्रण विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है। बच्चेदानी में दो सींग, मुख्यकाय व मुख सम्मिलित हैं। भ्रूण विकास बच्चेदानी में होता है। बच्चेदानी का मुख सामान्य तौर पर पूरी तरह से बन्द रहता है, केवल मदकाल के समय थोड़ा खुलता है या फिर बच्चा जनने के समय पूर्ण रूप से खुलता है। मदकाल में बच्चेदानी का मुख का खुलना एस्ट्राडायाॅल हार्माेन की वजह से होता है। इसी हार्माेन के प्रभाव से बच्चेदानी का मुख की ग्रन्थियों की क्रियाशीलता बढ जाती है और एक मोटा पारदर्शी द्रव योनिद्वार से बाहर निकलने लगता हेै। इस द्रव को काँच की पट्टिका पर रख कर सुखाकर सूक्ष्मदर्शी से देखने पर एक विशेष प्रकार की संरचना दिखाई देती है जिसे “फर्न पैटर्न” कहते हंै। यह फर्न पैटर्न गर्भाधान का सही समय सुनिश्चित करने में काफी सहायक होता हेै।

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प्रमुख प्रजनन समस्यायें एवं उनका प्रबन्धन
(क) गर्मी में न आनाः गाय या बछिया का गर्मी में न आना एक आम समस्या है। इसमें पशु में मद (गर्मी) के लक्षण बिल्कुल नहीं दिखते हैं और डिम्ब ग्रन्थि में महसूस करने योग्य डिम्ब पुटिका या पीतकाय भी नहीं होती है या डिम्ब पुटिका तो बनती है लेकिन पशु मद के लक्षण नहीं दिखाता है या फिर लक्षण इतने कम होते हंै कि दिखायी नहीं देते हंै।
पशु के गर्मी में न आने (जहाँ डिम्ब पुटिका या पीतकाय भी नहीं बन रही हो) का कारण यह हो सकता है कि बछिया की उम्र तो पूरी हो गयी हो, लेकिन पोषण की कमी के कारण उपयुक्त शरीर भार प्राप्त नहीं हुआ हो। पोषण पर्याप्त मात्रा में न मिलने के कारण गाय कमजोर हो या पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, लौह तत्त्व, सेलेनियम, विटामिन ई व ए नहीं मिला हो। कभी-कभी गाय को अत्यधिक ऊर्जायुक्त पोषण मिलने से शरीर में चर्बी की मात्रा अत्यधिक बढ जाती है जिससे हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है। बछियों में फाॅस्फोरस तत्त्व की कमी या अधिकता से भी इस तरह की समस्या हो सकती है।
पशु को पर्याप्त मात्रा में संतुलित आहार देकर या दाने में खनिज मिश्रण देकर इस समस्या को दूर किया जा सकता है। पशुपालक संतुलित आहार अपने घर पर भी बना सकते हंै। इसके लिए अनाज का दाना 30 प्रतिशत, दालों की चूनी 30 प्रतिशत, खली 30 प्रतिशत, गेहँू का चोकर 7 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत और नमक 1 प्रतिशत लेकर अच्छी तरह से मिला लंे और सूखी जगह पर संग्रह कर लें। पशु के निर्वाहन हेतु इस दाने की 1 कि.ग्रा. मात्रा प्रतिदिन तथा दुधारु पशु को अतिरिक्त 1 कि.ग्रा. राशन प्रति 2‐5 कि.ग्रा. दूध उत्पादन पर दें। यदि उपरोक्त सन्तुलित आहार नहीं दे सकते हों तो दाने में प्रतिदिन लगभग 50-60 ग्राम खनिज मिश्रण अवश्य दें।
इसके अलावा कभी-कभी डिम्ब ग्रन्थि की पीतकाय हमेशा के लिए बनी रह जाने से मादा गर्मी में नहीं आती है। इसकी वजह बच्चेदानी में संक्रमण, मवाद या पुराने भ्रूण का बच्चेदानी में मर जाना व सूख जाना हो सकता है। पशु चिकित्सक से पशु के गर्भ की जाँच करायें और तदनुसार चिकित्सा करवायें।
पशुओं में पोषण की कमी की वजह से शरीर में कुछ हार्माेन्स की कमी हो जाती है। अतः यदि बच्चेदानी में संक्रमण इत्यादि नहीं है तो पोषण सुधार के साथ किसी चिकित्सक से हार्माेन चिकित्सा करवायें जिससे काफी लाभ मिल सकता है। इसके साथ-साथ कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ भी पशु को गर्मी में लाने के लिए दी जाती है। कभी-कभी पशु की डिम्ब ग्रन्थि की मालिश करने या ल्युगाल्स आयोडीन के तनु विलयन को बच्चेदानी के मुख पर लगाने से अच्छे परिणाम मिलते हंै।
(ख) डिम्ब ग्रन्थि में स्थाई डिम्ब पुटिका का बननाः यह समस्या सामान्य तौर पर अधिक दूध देने वाली गायों में हार्माेन असंतुलन की वजह से हो जाती है। इसमें हर मदचक्र में बनने वाली डिम्ब पुटिका डिम्ब उत्सर्जित करने के बजाय बड़ी होकर यूँ ही रह जाती है। इससे मादा बार-बार गर्मी के लक्षण दिखाती है। इस तरह की गाय को नीम्फोमेनिक या साँड़ प्रवृत्त्ज्ञिा वाली कहते हैं। अतः इस तरह के लक्षण होने पर पशुचिकित्सक द्वारा अपनी गाय के गर्भाशय व डिम्बग्रन्थि की जाँच करायें। बड़ी डिम्ब पुटिका को दबा कर भी तोड़ दिया जाता है या फिर हार्माेन चिकित्सा द्वारा भी ठीक किया जा सकता है।
(ग) गाय का न रुकना (बार-बार गर्मी में आना)ः इसमें गाय एक नियत अंतराल पर बार-बार गर्मी में आती है और गर्भाधान कराने के बावजूद गर्भित नहीं होती है। यदि ऐसा तीन या अधिक बार होता है तब ही इसे गाय का न रुकना कहतेे हंै।

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कारण
 सही समय पर गर्भाधान न होना (अत्यधिक पहले या ज्यादा देर से)। पशु के गर्भाधान का सही समय उसके गर्मी के शुरूआती लक्षण दिखने के 12 घण्टे से 24 घण्टे तक का होता है।
 गर्भाधान मंे प्रयुक्त वीर्य की गुणवत्ता अच्छी न होना या गर्भाधान करने वाले व्यक्ति को तकनीकी ज्ञान न होना।
 गर्मी का सही आंकलन न कर पाना और द्वितीयक लक्षणों के आधार पर गर्भाधान करवाना।
 साँड़ के वीर्य में गर्भित करने की क्षमता न होना।
 गाय में डिम्बोत्सर्जन देर से होना या बच्चेदानी की कमी जैसे- स्थाई डिम्ब पुटिका, बच्चेदानी का संक्रमण, डिम्बग्रन्थि नलिका का अवरोधित होना, डिम्बोत्सर्जित डिम्ब मंे समस्या या निषेचन के बाद बने भ्रूण का जल्दी ही मर जाना इत्यादि।
उपचार
 पोषण का ध्यान रखें, सही मात्रा में हरा चारा व संतुलित आहार दें।
 पशु की सुबह शाम निगरानी रखें और गर्मी के लक्षणों का सही पता लगायें। अगर एक बार गर्भित न करा पायें तो अगली बार गर्मी में आने की प्रतीक्षा करें। पशु लगभग 21 दिन बाद पुनः गर्मी में आता है।
 सही समय पर पशु को गर्भाधान केन्द्र पर ले जाएं और प्रशिक्षित व्यक्ति से ही गर्भाधान करवायें।
 गर्भ न ठहरने की स्थिति में कुशल पशुचिकित्सक से बच्चेदानी की जाँच करवायें। यदि बच्चेदानी में किसी तरह का संक्रमण है तो उसका उपचार करायें। उपचार के बाद 1-2 गर्मी छोड़ कर ही गर्भाधान करायें।
 कभी-कभी पोषण सन्तुलित न होने के कारण शरीर में कुछ आवश्यक तत्त्वों की कमी हो जाती है और शरीर में हार्माेन असंतुलन हो जाता है। जब चारे की समस्या रहती है उस समय गर्भाधान न करायें। जब पर्याप्त हरा चारा उपलब्ध हो उस समय गर्भाधानकरायें। अत्यधिक मात्रा में दाना न दें।
पशु के फिर भी न ठहरने पर पशुचिकित्सक द्वारा हार्माेन चिकित्सा करायें।
अगर बच्चेदानी में किसी तरह की जन्मजात समस्या है, जैसे-गर्भाशय सही तरह विकसित न होना, नलिका का अवरुद्ध होना या ग्रीवा अत्यधिक मुड़ी होना इत्यादि, त® इन परिस्थितियों में कोई भी उपचार सफल नहीं हो पाता है।
(घ) गर्भपात होनाः कभी-कभी गर्भाधान के 45 दिन के अन्दर ही गर्भपात हो जाता है इसका प्रमुख कारण आनुवंशिक, पोषण की कमी, पशु द्वारा जहरीला पदार्थ खा लेना, संक्रमण या गर्भ जाँच का असुरक्षित तरीका इत्यादि है। कभी-कभी गर्भपात 45-260 दिनों के बीच भी हो सकता है। इसका कारण पोषण की कमी, विटामिन ए की कमी या अत्यधिक मात्रा में नाइटेªट ग्रहण कर लेना (नाइटेªट विषाक्त्ता) अथवा किसी तरह का संक्रमण होना आदि है।
अतः गर्भित पशु की 60 दिन पर चिकित्सक से जाँच करायें और सही मात्रा में संतुलित आहार या हरा चारा दें। गर्भाधान सही उम्र व शरीर भार ग्रहण करने पर ही करायें।
(ड़) पशु का बेल फंेकनाः कभी-कभी गायों में ब्याने के कुछ दिन पहले जननांग बाहर आने की शिकायत हो जाती है, इसे बेल फेंकना कहते हैं। इसमें गुलाबी रंग की गेंद की आकार की संरचना पशु के बैठने पर मूत्रद्वार से बाहर निकली हुई दिखायी देती है। इस संरचना के बाहर निकलने के कारण इसमें बाहरी गंदगी, धूल, धूप, चोट इत्यादि लगने का खतरा रहता है।
इसका कारण वंशानुगत, यानि कि उसकी संतान में भी हो सकता है। इसके अलावा हार्माेन वकैल्शियम/फाॅस्फोरस की कमी भी इसके कारण हो सकते हैं। हालाँकि इस स्मस्या में पशु मरता नहीं है लेकिन बाहर निकले हुए भाग में खून का संचार कम हो जाता है और अगर इसे जल्दी अन्दर नहीं किया गया तो और भी फूल जाता है और फिर अन्दर करना मुश्किल हो जाता है। बाहर निकले भाग क¨ अन्दर करने से पूर्व उसे गुनगुने पानी में फिटकरी घोल कर अच्छी तरह से साफ करें और बाहर रस्सी से इस तरह से बाँधें कि यदि पशु बैठते समय पीछे को दबाव लगाये तो यह बाहर न निकल सके। इसके अलावा बचाव के तौर पर ध्यान दें कि गर्भावस्था में पशु केवल क्ल¨वर वाली घास ही न खाये। गर्भावस्था के अन्तिम चरण में ध्यान दें कि पशु अधिक मोटा न हो जाय, चोकर की मात्रा ज्यादा दंे। पशु के बाँधने की जगह समतल व ढाल पीछे से आगे की ओर ह¨। चारा दिन में एक बार न देकर 3-4 बार में दें। चारा या दाना में फफँूद न हो। जहाँ तक हो सके, इस तरह के पशु क¨ अगली बार गर्भित न करायें क्योंकि अगली बार भी इस तरह की समस्या आ सकती है और उसकी संतानो में भी इस तरह की समस्या हो सकती है।
(च) जेर का न गिरनाः बच्चा देने के बाद यदि पशु 12 घण्टे तक जेर न गिराये तो इस स्थिति को जेर का रुकना कहतेे हंै। इसका कारण ब्याने में समस्या या बच्चा गिरना, दुग्धज्वर, विटामिन ए, ई व सेलेनियम की कमी, ज्यादा मात्रा में सूखी घास खिलाना, हरी घास की कमी, ज्यादा अनाज खिलाने से पशु का ज्यादा चर्बी युक्त हो जाना,कैल्शियम/फाॅस्फोरस की कमी, विटामिन डी की अधिकता और बच्चेदानी का संक्रमण है। यदि पशु 12 घण्टे तक जेर न गिराये तो तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें, खुद इसे बाहर न खीचंे। गर्भवती गाय की जरूरत के अनुसार संतुलित पोषण प्रदान करें जिसमें विटामिन,कैल्शियम, फाॅस्फोरस प्रमुख हो। गाय को ज्यादा मोटी होने से भी बचायें।
इस तरह उचित पशु प्रबन्धन अपना कर अपने पशुअ¨ं को प्रजननकी समस्याओं से बचा सकते हंै अ©र हर वर्ष एक बच्चा प्राप्त कर पशु का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

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