दुधारू पशुओं में जेर रुकने की समस्या एवं प्रबन्धन

0
583

दुधारू पशुओं में जेर रुकने की समस्या एवं प्रबन्धन

 

डॉ शंकर सिंह, भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी, गालूडीह, जमशेदपुर, झारखंड

 

डेयरी पशुओं में जेर रुकने की समस्या एवं प्रबन्धन

सामान्यतः गाभिन पशुओं में ब्याने के 4-6 घंटे के अंदर जेर स्वतः बाहर निकल जाती है, परन्तु अगर ब्याने के 8-12 घंटें के बाद भी अगर जेर नहीं निकली है तो उस स्थिति को जेर का रुकना अथवा रिटेंड प्लेसेंटा कहा जाता है डेरी पशुओं में जेर के अटकने पर पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए व् सलाह अनुसार कार्य करना चाहिए।

कारण

गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय के मासंकुर” जेर के दलों के साथ जुड़ जाते हैं एक कार्यात्मक इकाई का निर्माण करते हैं जिन्हें प्लेसेनटोम कहा जाता है।समान्यतः ब्याने के बाद मासन्कुर एवं दल अलग होने लगते हैं और जेर बाहर निकल आता हिया।कुछ असामान्य स्थितियों में मासन्कुर एवं डल अलग नहीं हो पाते हैं और जुड़े रह जाते हैं, इस स्थिति में जेर अटक जाता है और बाहर नहीं निकल पाता।जेर न निकलने के अनेक कारण हो सकते हैं| संक्रामक करणों में विब्रियोसिस, , लेप्टोस्पाइरोसिस, टी.बी., फफूंदी,विरस तथा कई अन्य वाइरस तथा कई अन्य संक्रमण शामिल है लेकिन ब्रूसेल्लोसिस बीमारी में जेर न निकलने की डर सबसे अधिकहोती है| असंक्रामक कारणों में असंक्रामक गर्भपात, समय से पहले प्रसव, जुड़वाँ बच्चे होना, कष्ट प्रसव, वृधाब्यानेव्स्था के बाद पसु को बहुत जल्दी गर्भित कराना, कुपोषण,हार्मोन्स का असंतुलन आदि प्रमुख है|

जेर अटकने के कारण

गर्भपातसंक्रामक ब्यौने रोग जसे ब्रुसेल्लोसिस, केम्पाईलोबेकटेरी ओसिस आदिपोषक तत्वों का असंतुलनसमय से पहले प्रसवकष्टमय प्रसव

लक्षण

बच्चेदानी से बाहर जेर घुटनों तक लटकी रहती है।जेर के टुकड़े गर्भाशय के अंदर होने पर हाथ डालकर देखे जा सकते है। पेट पर बार-बार पैर मारना तथा पशु को दर्द होना। बुखार होना और पशु का खाना न खाना। बच्चेदानी के बाहर बदबू आना। समय ज्यादा होने पर मवाद का बाहर निकलना। जेर रूकने के कारण बेचैन होना। पशु का बार-बार बैठना और उठना।पशु के योनि द्वार से बदबूदार स्राव निकलता रहता है।पशु के तापमान एवं साँस को गति में वृद्धि हो जाती है।पशु के दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाती है।पशु में भूख की कमी हो जाती है।कभी कभी उसे बुखार भी हो जाता है| जेर के सही समय पर न निकलने से पशु पालक को बेहद हानि होती है।प्रायः पशु को गर्भाशय में संक्रमण हो जाता है और गर्भाशय के साथ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।गर्भाशय के सामान्य अवस्था में आने में देर हो जाती है, प्रसव उपरान्त बढ़ जाता है और पशु बार गर्भाधान कराने पर भी गर्भित नहीं होता है या रिपीट ब्रीडिंग का शिकार हो जाता है।गर्भाशय में संक्रमण के कारण पशु स्ट्रेनिंग(गर्भाशय को बाहर निकालने की कोशिश)करने लगता है जिससे योनि अथवा गर्भाशय तथा कई बार गुदा भी बाहर निकल आटे हैं तथा बीमारी जटिल रूप ले लेती है|

READ MORE :  Impact of COVID-19 On Dairy Farmers

 

चिकित्सीय प्रबन्धन

जेर के अटक जाने के चिकित्सक प्रबन्धन में बुनियादी लक्ष्य यही रहता है की मादा के जनांग जल्द से जल्द अपनी सामने स्थिति में वापस आ जाए।अटके हुए जेर को  योनि मार्ग में हाथ डालकर धीरे-धीरे खींचकर निकालने का तरीका कई सालों से प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन कई शोधों से ये ज्ञात हुआ है की इससे गर्भाशय की नाजुक परत को बेहद नुकशान पहुंचता है।कई बार गर्भाशय में सुजन एवं संक्रमण हो जाता है।सबसे बेहतर उपाय यही है कि योनि के रास्ते बायाँ हाथ डालकर मासन्कुर एवं दलों को छुड़ाया जाए तथा दाएं हाथ से जेर का जितना हिस्सा आसानी से निकलता है उसे धीमे –धीमे निकाला जाए।अगर पूरी तरह जेर नहीं निकल पा रहा है तो खींचतान नहीं करना चाहिए।जेर के बाहर निकल जाने पर बच्चेदानी की सफाई करना अत्यधिक आवश्यक होता है। इसके लाल दवा (पौटेशियम परमैगनेट) का घोल पानी में बनाकर बच्चेदानी की सफाई कर देना चाहिए।जेर को हाथ से निकलने के सन्दर्भ में ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए की अगर पशु का जेर अटका है तो ओर  12 घंटे के बाद ही हाथ डालकर निकाला जाना चाहिए।कई बार पशुपालकर घबराहट में न४-5 घंटे के बाद ही जेर से खींचतान करने लगते हैं।ये एक बहुत बड़ी गलती होती है क्योंकि उस समय प्लेसेंटोम अपरिपक्व होते हिं, इस खींचतान से ढेर सारा खून निकल सकता है, गर्भाशय शोध हो सकता है और पशु हमेशा के लिए बाँझ भी हो सकता है।जेर को निकलने के बाद ३-5 दिन तक गर्भाशय श्रींग में 2-4 घंटी-बायोटिक के बोलस रख दना चाहिए जैसे नाइटोफुराजोन एवं यूरिया के बोलस अथवा सिप्रौफ्लोक्ससिन या टैट्रासाईंक्लीन के बोलस इत्यादि।जेर रूकने से पशु की दूध की मात्रा में कमी हो जाती है इसलिए खनिज पदार्थ जैसे कैल्शियम, फास्फोरस आदि उचित मात्रा में पशु को देना चाहिए।संकरण को रोकने के लिए 3-5 दिन तक अंतपोर्शीय मार्ग से स्ट्रेपटोपेनीसिसलिन या टैट्रासाईंक्लीन एंटी बायोटिक लगाना चाहिए।

READ MORE :  TOTAL UTERINE PROLAPSE IN A COW AND ITS MANAGEMENT

बचाव

ब्याने से 1-2 माह पूर्व दाना मिश्रण के साथ लगभग 150-250 ग्राम सरसों का तेल रोजाना देना चाहिए।यह जेर के सही समय पर निकलने में सहायता प्रदान करता है।ब्याने के तुंरत बाद पशु को 0.5-1 किलो गुड़ व गेहूँ का दलिया देना चाहिए इससे जेर के निकलने में मदद मिलती है।ये पाया गया है की गर्भावस्था के आखरी महीने में अगर पशु को सेलेनियम और विटामिन E दिया जाए हल्का व्यायाम कराया जाए तो जेर बिलकुल सही समय पर निकल जाता है।ब्याने के बाद ओक्सीटोसीन अथवा प्रोस्टाग्लेंड़िन एफ-2 एल्फा टीकों को लगाने से अधिकतर पशु जेर आसानी से गिरा देते हैं| लेकिन ये टीके पशु चिकित्सक की सलाह से ही लगवाने चाहिए| 

पशु की जेर को हाथ से निकालने के समय के बारे में विशेषज्ञों के अलग-अलग मत है| कई लोग ब्याने के 12 घंटे के बाद जेर से निकालने की सलाह देते हैं जबकि अन्य 72 घण्टों तक प्रतीक्षा करने के बाद जेर हाथ से निकलवाने की राय देते हैं| यदि जेर गर्भाशय में ढीली अवस्था में पड़ी है तो उसे हाथ द्वारा बाहर निकलने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन यदि जेर गर्भाशय से मजबूती से जुडी है तो इसे जबरदस्ती निकालने से रक्त स्राव होने तथा अन्य जटिल समस्यायें पैदा होने की पूरी सम्भावना रहती है| पशु की जेर हाथ से निकलने के बाद गर्भाशय में जीवाणु नाशक औषधि अवश्य रखनी चाहिए तथा उसे दवाइयां देने का कं पशु चिकित्सक से ही करवाना चाहिए, पशु पालक को स्वयं अथवा किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति से यह कार्य नहीं करवाना चाहिए| पशु को गर्भावस्था में खनिज मिश्रण तथा सन्तुलित आहार अवश्य देना चाहिए| प्रसव से कुछ दिनों पहले पशु को विटामिन ई का टीका लगवाने से यह रोग किया जा सकता है|

READ MORE :  HAEMOPROTOZOAN OF DAIRY ANIMALS

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON