सूचना एवं संचार तकनीक का ग्रामीण विकास और पशुपालन के क्षेत्र में योगदान

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डॉ. सुमन संत, डॉ. दीपिका डायना सीज़र एवं डॉ. सुलोचना सेन
सहायक प्राध्यापक, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय रीवा , मध्य प्रदेश

प्रस्तावनाः

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी यआईटी ने विश्व स्तर पर दुनिया को एक स्थान पर जोड़ा है जो अब हमारी जीवनशैली को लगातार बदल रहा है। आईटी तकनीकी उपकरण और संसाधनों का एक विविध सेट है जिसमें सूचना का निर्माण ,भंडारण ,पुनर्प्राप्ति, रूपांतरण और संचरण शामिल है। आज मानव जीवन आईटी क्षेत्र से अछूता नहीं है। आईटी क्रांति के इस दौर मे कृषि और पशुपालन भी प्रभावित हुआ है हालांकि कृषि और पशुपालन में आईटी की भागीदारी बेहद कम या नगण्य है। जिसकी वजह से वर्तमान परिदृश्य में भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे जहाँ कृषि एवं पशुपालन एक तरफ भोजन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है और दूसरी तरफ आय और रोजगार के अवसर प्रदान करता हैद्य
इन दिनों जनसंख्या वृद्धि, अधिक शहरीकरण और बढ़ती आय के कारण पशुओं के उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है द्यउक्त मांग की उपलब्धता सुनिश्चित करने मे आईटी सहायक सिद्ध हो सकती है। सूचना की उपलब्धता विस्तार की प्रक्रिया में सहायता करती है और इसे तेज और अधिक प्रभावी बनाती है। पशुपालको को सही समय पर सही तरीके से जानकारी और ज्ञान की उपलब्धता अधिक उत्पादकता और अधिक लाभप्रदता की ओर ले जाती है। इस प्रकार आईटी उपकरणों का उपयोग भारत में पशुपालन के क्षेत्र को बदलने की क्षमता रखते है। पशुपालन क्षेत्र को सूचना संचालित,आधुनिक और प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में बदलने के लिए आईटी की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। इसीलिए ये आईटी उपकरण आज के समय की मांग हैं।

आईटी के उपयोगः

पशुपालन के क्षेत्र में आईटी आधारित सूचना वितरण द्वारा पशुपालक के गुणवत्तापूर्ण निर्णय लेने की समझ एवं ज्ञान मे काफी सुधार किया जा सकता है। इसके अलावा आईटी मौसम पूर्वानुमान, सर्वोत्तम उत्पादन प्रथाओं,आवास में नवाचार, पशुधन रोग नियंत्रण, प्रजातियोंध्नस्ल के विवरण डेयरी झुंड प्रबंधन, टीकाकरण, पशुधन उत्पादन और पशुधन उत्पादों के विपणन इत्यादि के बारे में जानकारी का आदान.प्रदान करता है।
पशुपालन के विभिन्न क्षेत्र जहां वर्तमान मे आईटी उपकरण उपयोग किए जा रहे हैंः

1 पशु प्रजनन
2 पशु प्रबंधन
3 पशु चारा प्रबंधन
4 पशु स्वास्थ्य देखभाल
5 विकास कार्यक्रम
6 परियोजना प्रस्ताव लेखन
7 विपणन
8 प्रशासन
9 सूचना प्रसार
10आपदा प्रबंधन

आईसीटी के लाभः

1. धन और समय की बचतः वैज्ञानिक संदेश नवीन तकनीक एवं आवश्यक सूचनाएं तुरंत इच्छुक उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाने के लिए धन और समय की बचत करता हैं।
2. निरंतर अनवरत उपलब्धताः साइबर एक्सटेंशन की मुख्य विशेषता इसकी उपलब्धता हर समय (24X7) होती है। इसे किसी भी समय उपयोगकर्ताओं द्वारा उनकी जरूरतों के अनुसार कभी भी कही भी देखा जा सकता है।
3. प्रसार प्रक्रिया में अल्प चरणः साइबर पहुँच पारंपरिक विस्तार प्रक्रिया से कई चरणों को हटा देगा। सूचना सीधे इंटरनेट पर डाली जा सकती है जो जिला,सब.डिवीजन, ब्लॉक और ग्राम स्तर पर विस्तार कार्यकर्ताओं और पशुपालको के लिए उपलब्ध होगी। सभी संबंधित सूचना तुरंत प्राप्त करेंगे और प्रश्नध्स्पष्टीकरणध्सुधार को भी उतना ही तेजी से लागू किया जा सकता है।
4. समृद्ध एवं विश्लेषणात्मक सुचना की प्राप्तिः पशुपालको को उनकी आवश्यक जानकारी खोजने और ढूंढने की सहूलियत प्रदान करता है।
5. तत्काल अंतर्राष्ट्रीय पहुंचः आईटी समय और दूरी की बाधा को खत्म कर देगी जो दुनिया के किसी भी हिस्से से किसी विशेष पशुधन समस्या पर नवीनतम जानकारी जानने और सर्वोत्तम वैज्ञानिकध्विशेषज्ञ के साथ चर्चा मे महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

ई-तकनीकों का ग्रामीण विकास में योगदान

आई.सी.टी. के महत्त्व को समझते हुए किसानों तक नवीनतम कृषि सम्बन्धी वैज्ञानिक जानकारियों के प्रसार हेतु कई पहल की गई हैं। वेब-आधारित ‘के.वी.के. पोर्टल’ भी बनाए गए हैं। आई.सी.ए.आर. के संस्थानों के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध करवाने के लिये आई.सी.ए.आर. पोर्टल और कृषि शिक्षा से सम्बन्धित उपयोगी सूचनाएँ प्रदान करने के लिये एग्री यूनिवर्सिटी पोर्टल को विकसित किया गया है। इसके अतिरिक्त के.वी.के. मोबाइल एप भी किसानों को त्वरित व सुलभ सूचनाएँ उपलब्ध करवाने के लिये बनाया गया है। कृषि और ग्रामीण विकास में डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण को साकार करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होगा।

फसल उत्पादन से सम्बन्धित किसी भी समस्या के समाधान के लिये किसान कॉल सेंटर की सुविधा सभी राज्यों में उपलब्ध है। इस सेवा के तहत किसान अपनी समस्या दर्ज करा सकते हैं जिनका समाधान 24 घंटों के अन्दर कृषि विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध करा दिया जाता है। किसान कृषि विश्वविद्यालय और कृषि अनुसन्धान केन्द्रों के विशेषज्ञों के माध्यम से अपने प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये नजदीकी किसान कॉल सेंटर पर टोल फ्री नं. 1800-180-1551 से साल के 365 दिन प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे के बीच सम्पर्क कर सकते हैं।
देश की आधी से अधिक जनसंख्या गाँवों में रहती है जिसकी रोजी-रोटी एवं आजीविका का प्रमुख साधन खेती-बाड़ी एवं पशुपालन है। देश की उन्नति एवं खुशहाली का रास्ता गाँवों से होकर जाता है। यदि भारत को खुशहाल बनाना है, तो गाँवों को भी विकसित करना होगा। आज सरकार ग्रामीण विकास, कृषि एवं भूमिहीन किसानों के कल्याण पर ज्यादा जोर दे रही है। इसलिये यह क्षेत्र बेहतरी की दिशा में परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। प्रौद्योगिकी और पारदर्शिता वर्तमान सरकार की पहचान बन गए हैं। सरकार ने अगले पाँच वर्षों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये परम्परागत तरीकों से हटकर ‘आउट-ऑफ-बॉक्स’ पहल की गई है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये परम्परागत तकनीक के स्थान पर आधुनिक तकनीकों पर जोर दिया जा रहा है। अधिकांश सीमान्त और छोटे किसान पारम्परिक तरीके से खेती करते रहते हैं जिस कारण खेती की लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो जाता है। वैज्ञानिक तरीके के साथ सोच-समझकर खेती की जाए तो फसलों से ज्यादा से ज्यादा उपज ली जा सकती है। साथ ही फसल की बुवाई से पूर्व यदि बाजार की तलाश कर ली जाए तो खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का केन्द्र बिन्दु है जिसके साथ कई चुनौतियाँ जुड़ी हुई हैं। इसलिये जरूरी है कि किसान आधुनिक तकनीकों के साथ-साथ सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं से भी लाभान्वित हो। देश के अनेक भागों में हो रही किसानों की खुदकुशी के अनेक कारण हैं जिनमें से एक कारण सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी न होना भी है। अतः सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं से ग्रामीण और किसानों को अवगत कराया जाना चाहिए ताकि ग्रामीण, पशुपालक, खेतिहर मजदूर व किसान किसी योजना का लाभ लेने के लिये बिचौलियों के चक्कर में न पड़े। खाद-बीज जैसी जरूरी चीजों की आपूर्ति दुरुस्त नहीं होने से किसान गुणवत्ता से लेकर कीमत तक हर जगह ठगा जाता है।

आज भारतीय किसानों के समक्ष सबसे गम्भीर समस्या उत्पादन का सही मूल्य न मिलना है। बिचौलियों और दलालों के कारण किसानों को अपने कृषि उत्पाद बहुत कम दामों में ही बेचने पड़ते हैं क्योंकि कई कृषि उत्पाद जैसे सब्जियाँ, फल, फूल, दूध और दुग्ध पदार्थ बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। इन्हें लम्बे समय तक संग्रह करके नहीं रखा जा सकता है। न ही किसानों के पास इन्हें संग्रह करने की सुविधा होती है। यद्यपि किसानों को आढ़तियों की अवसरवादी कार्य-प्रणाली से बचाने के बारें में भी समय-समय पर ग्रामीणों को उचित परामर्श सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने व किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने की दिशा में सरकार ने हाल ही में कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं, कार्यक्रमों व प्रौद्योगिकियों जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, आई.सी.टी. तकनीक, राष्ट्रीय कृषि बाजार, ई-खेती, ई-पशुहाट व किसान मोबाइल एप आदि की शुरुआत की है जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-

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आई.सी.टी. तकनीक:

उत्पादन बढ़ाने हेतु टिकाऊ कृषि में सूचना एवं संचार आधारित तकनीकों (आई.सी.टी.) का प्रयोग, के.वी.के. मोबाइल एप, कृषि विस्तार कार्यकलापों में के.वी.के. की नई पहल इत्यादि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। आई.सी.टी. के महत्त्व को समझते हुए किसानों तक नवीनतम कृषि सम्बन्धी वैज्ञानिक जानकारियों के प्रसार हेतु कई पहल की गई हैं। वेब-आधारित ‘के.वी.के. पोर्टल’ भी बनाए गए हैं। आई.सी.ए.आर. के संस्थानों के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध करवाने के लिये आई.सी.ए.आर. पोर्टल और कृषि शिक्षा से सम्बन्धित उपयोगी सूचनाएँ प्रदान करने के लिये एग्री यूनिवर्सिटी पोर्टल को विकसित किया गया है। इसके अतिरिक्त के.वी.के. मोबाइल एप भी किसानों को त्वरित व सुलभ सूचनाएँ उपलब्ध करवाने के लिये बनाया गया है। कृषि और ग्रामीण विकास में डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण को साकार करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होगा। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी द्वारा किसानों की सुविधा के लिये अनेक मोबाइल एप जैसे किसान पोर्टल, किसान सुविधा, पूसा कृषि, फसल बीमा पोर्टल, एग्री मार्केट, एम किसान पोर्टल,
कृषि मंडी मोबाइल एप भी शुरू किए गए हैं।

किसान पोर्टल:

किसान पोर्टल एक वेबसाइट है जिसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया। देश का कोई भी किसान इस पोर्टल तक अपनी पहुँच स्थापित कर बीजों, उर्वरकों, कीटनाशकों, फार्म मशीनरी, मौसम, खेत उत्पादों के बाजार मूल्य, योजनाओं एवं कार्यक्रम के पैकेज, बीमा, भंडारण, ऋण एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी स्थानीय भाषा में हासिल कर सकता है। यह सुविधा देश के सभी राज्यों में ब्लॉक-स्तर तक उपलब्ध है। कृषि आदानों जैसे खाद, बीज, उर्वरक व कृषि यंत्रों के डीलर्स की जानकारी ब्लॉक-स्तर पर प्रदान की जाती है।

किसान सुविधा मोबाइल एप – यह एप संवेदनशील मानकों जैसे जलवायु, पौध संरक्षण, खाद, बीज व उर्वरकों के डीलरों, कृषि परामर्श और मंडी मूल्य आदि पर किसनों को सूचना प्रदान करता है।

पूसा कृषि मोबाइल एप – माननीय प्रधानमंत्री के प्रयोगशाला से खेत (लैब टू लैंड) तक के सपने को साकार करने के लिये पूसा कृषि मोबाइल एप किसानों की सहायता के लिये शुरू किया गया। इससे भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी और तकनीक के बारे में किसान सूचना प्राप्त कर सकते हैं। इसके तहत नवीनतम व विकसित तकनीक को किसानों तक पहुँचाने के लिये जोर देने की जरूरत है जिससे किसान नई तकनीकी को अपनाकर अधिक लाभ कमा सकें और अपना जीवन खुशहाल बना सकें।

एम किसान पोर्टल- एम किसान पोर्टल कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लाखों किसानों को परामर्श दिया जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा 100 कृषि विज्ञान केन्द्रों पर स्वचालित मौसम केन्द्र जोड़े गये हैं।

फसल बीमा पोर्टल – खेत में संचालित कटाई उपरान्त प्रयोग की सूचना को डिजिटल कराने के लिये सी.सी.ई. कृषि मोबाइल एप विकसित किया गया है। जी.पी.एस. के माध्यम से यह एप खेत का स्थान स्वतः ही ग्रहण कर लेता है। एप के माध्यम से लिये गये फोटोग्राफ एवं डाटा को वेब सर्वर तुरन्त स्थानान्तरित करता है। यह दावा निपटान समय को कम कर पारदर्शिता को बढ़ाता है। किसानों, बीमा कम्पनियों एवं बैंकों सहित सभी स्टैक होल्डर के लिये एक ही पोर्टल है। इसमें दोनों बीमा योजनाओं जैसे पी.एम.एफ.बी.वाई. और डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस. शामिल है। मोबाइल एप के माध्यम से और वेब पर प्रीमियम की अन्तिम तारीख एवं किसानों को उनकी फसल एवं स्थान के लिये कम्पनी सम्पर्कों की सूचना प्रदान करता है। बीमा प्रीमियम की गणना एवं अधिसूचित डाटाबेस का सृजन करता है। ऋण बीमा हेतु किसानों के आवेदन और बैंकों के साथ इनका संयोजन करता है।

ई-खेती:

आज ग्रामीणों व किसानों के पास सूचनाएँ और नई-नई जानकारियाँ प्राप्त करने के कई माध्यम हैं। परन्तु ग्रामीण विकास व कृषि से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान करने के लिये इंटरनेट सबसे प्रभावी, सरल व आसान माध्यम है। आज किसान देश के किसी भी कोने से ई-मेल कर अपनी कृषि सम्बन्धित किसी भी समस्या का हल पा सकता है। ई-खेती ने वैज्ञानिकों, प्रसार कार्यकर्ताओं और विषय-वस्तु विशेषज्ञों पर ग्रामीणों की निर्भरता को बहुत ही कम कर दिया है। इंटरनेट के प्रयोग से बाजार सुनिश्चित कर खेती की जाए तो निश्चित तौर पर इससे फायदा होगा।

किसान, पशुपालक व अन्य पेशे में लगे ग्रामीण भाई-बहन जब चाहे घर बैठे ही कृषि, पशुपालन या अन्य व्यवसायों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आज सुदूर गाँव में बैठा किसान इंटरनेट के माध्यम से पलक झपकते ही कृषि सम्बन्धी सारी जानकारियाँ हासिल कर रहा है। कृषि विज्ञान सम्बन्धी नवीनतम व अत्याधुनिक जानकारियों के प्रचार-प्रसार में इंटरनेट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इंटरनेट किसानों, वैज्ञानिकों और सरकार के मध्य सम्पर्क सेतु का कार्य करता है। इसके माध्यम से सरकारी योजनाओं और कृषि अनुसन्धान सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ सीधे तौर पर किसानों तक पहुँचती हैं। ग्रामीणों के कल्याण और उनकी प्रगति के लिये इंटरनेट सेवा को ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक दुरुस्त करने की जरूरत है जिससे ग्रामीण भारत विकास व खुशहाली के रास्ते पर निरन्तर आगे बढ़ता रहे।

‘ई-नाम’ पोर्टल की स्थापना:

पहले किसान के पास फसल तैयार होने के बाद बाजार ही नहीं होता था और वह औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने को मजबूर हो जाता था। किसानों को उनकी उपज का अधिकतम लाभ देने और बड़ा बाजार उपलब्ध कराने हेतु पूरे देश में कृषि उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री को प्रोत्साहन देने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) की शुरुआत की गई है। इससे किसान अपने निकट की किसी भी मंडी में अपने उत्पाद को सूचीबद्ध कराकर सर्वाधिक मूल्य पर बेच सकेंगे। इसके तहत पूरे देश में एक कॉमन ई-प्लेटफॉर्म के माध्यम से 585 थोक मंडियों को जोड़ने की पहल की है। इसके लिये 200 करोड़ रुपये के प्रारम्भिक आवंटन से योजना का 1 जुलाई, 2015 को अनुमोदन किया गया था। अब तक 13 राज्यों की 419 मंडियों को ई-नाम के साथ एकीकृत किया गया है।

यह पोर्टल हिंदी और अंग्रेजी सहित अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं। सरकार अंतमंडी और अन्तरराष्ट्रीय व्यापार को सुगम और सुचारु बनाने का भी प्रयास कर रही है जिससे ऑनलाइन व्यापार करने, ई-परमिट जारी करने और ई-भुगतान आदि करने के साथ-साथ बाजार के सम्पूर्ण कार्य के डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित किया जा सके। इसके अलावा सूचना विषमता को दूर करने, लेन-देन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और पूरे देश के बाजारों में पहुँच आसान बनाने में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय कृषि मंडी ‘ई-नाम’ पोर्टल की स्थापना किसानों के लिये एक क्रान्तिकारी कदम है। ‘ई-नाम’ एक अनूठा प्रयास है। इसके तहत ‘ई-नाम’ में ‘एक राष्ट्र एवं एक बाजार’ तथा किसानों की समृद्धि पर जोर दिया गया है जिससे ग्रामीण भारत की दशा और दिशा में सकारात्मक परिवर्तन होगा। ई-मार्केटिंग द्वारा किसानों को बाजार में बढ़ती स्पर्धा और पारदर्शिता के कारण अपने उत्पादों के बेहतर दाम मिल रहे हैं।

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राष्ट्रीय कृषि मंडी के ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से किसानों के लिये बेहतर आय सुनिश्चित की जा सकेगी। शुरू में राष्ट्रीय कृषि मंडी को 8 राज्यों की 23 मंडियों से जोड़ा गया था। अब 10 राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, झारखंड व हरियाणा) की 250 मंडियाँ इस पोर्टल से जुड़ गई हैं। इन बाजारों में ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से काम किया जाएगा। टोल फ्री नम्बर 1800-2700-224 पर हेल्प डेस्क स्थापित व चालू किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में 585 मंडियों को जोड़ने का लक्ष्य है। योजना की विस्तृत जानकारी ूू.मदंउ.हवअ.पद पर उपलब्ध है। फसल उत्पादों की उचित कीमत पाने के लिये फसल की कटाई और गहाई उचित समय पर की जानी चाहिए। साथ ही बिक्री से पूर्व उचित ग्रेडिंग, पैकिंग और लेबलिंग की जानी चाहिए जिससे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना:

जलवायु की बदलती स्थिति से किसान निरन्तर विभिन्न प्रकार के जोखिमों का सामना करते रहते हैं। इन जोखिमों से किसानों को बचाने और नुकसान से उबारने के लिये भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की गई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ग्रामीण भारत के लिये एक सुरक्षा कवच है। इस योजना के तहत किसानों को फसल बीमा प्राप्त करने के लिये न्यूनतम प्रीमियम का भुगतान करना होगा। शेष प्रीमियम का बोझ सरकार द्वारा उठाया जाएगा। प्रतिकूल मौसम स्थितियों के कारण फसल बुवाई ना कर सकने के मामले में भी किसान दावे की प्राप्ति के हकदार होंगे। यह योजना फसल बीमा को आसान बनाती है क्योंकि खाद्यान्न, दालों और तिलहनों के लिये एक ही दर होगी। कई बार किसानों को पैदावार के बाद खराब जलवायु स्थिति से भी नुकसान होता है। पी.एम.एफ.बी.वाई. किसानों को अत्यन्त लाभ देगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.) किसानों के लिये संकटमोचक साबित हो रही है। इस योजना के माध्यम से किसानों के लागत खर्च की पूरी भरपाई की जा रही है।

प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, भूस्खलन और जलभराव आदि से हुए नुकसान की भरपाई के लिये सरकार इस योजना के माध्यम से किसानों की मदद कर रही है। इसके अन्तर्गत खेत-स्तर पर भी क्षति का आकलन किया जाता है। इसके अलावा फसल उपज के सभी जोखिमों जैसे फसल बुवाई के पूर्व नुकसान, खड़ी फसल और फसल कटाई उपरान्त के जोखिम भी इसमें शामिल हैं। आपदा के कारण पहले 50 प्रतिशत या इससे ज्यादा के फसल नुकसान के मामले में ही राहत दी जाती थी। अब ये राहत 33 प्रतिशत फसल के नुकसान पर दी जायेगी विभिन्न मदों के अन्तर्गत क्षति-पूर्ति की राशि में भी 1.5 गुना की वृद्धि की गई है। रबी व खरीफ खाद्यान्न फसलों के लिये बीमित राशि का अधिकतम 1.5 व 2.0 प्रतिशत प्रीमियम है जबकि वार्षिक बागवानी फसलों के लिये अधिकतम 5 प्रतिशत प्रीमियम है। बचा हुआ प्रीमियम सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। अनाज उत्पादक के रूप में यह महत्त्वपूर्ण है कि किसान बड़ी आपदा से अपनी फसल आय को सुरक्षित रखें। इस योजना में बीमा के प्रीमियम का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। इसके तहत चक्रवात एवं बेमौसम वर्षा की वजह से होने वाले नुकसान के अलावा कटाई के बाद 14 दिनों तक नुकसान के जोखिम के साथ स्थानीय आपदाओं को भी शामिल किया गया है। बीमा दावों का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में जमा किया जाएगा।

वर्ष 2016-17 के बजट में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 5,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। किसान भाई प्रीमियम की गणना को ूू.ंहतप-पदेनतंदबम.हवअ.पद एवं क्रॉप इंश्योरेंस मोबाइल एप पर देख सकते हैं। फसल बीमा योजना के अन्तर्गत लाभ प्राप्त करने के लिये अपने क्षेत्र में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारी, कार्यरत बैंक अथवा फसल बीमा कम्पनी की निकटवर्ती शाखा से सम्पर्क करें ताकि किसान सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठा सके। वे कर्ज के जंजाल में न फँसे।

ई-पशुहाट पोर्टल की स्थापना:

देश में पहली बार राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 26 नवम्बर, 2016 के अवसर पर राष्ट्रीय बोवाइन उत्पादकता मिशन के अन्तर्गत ई-पशुधन हाट पोर्टल की शुरुआत की गई है। यह पोर्टल देशी नस्लों के लिये प्रजनकों और किसानों को जोड़ने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस पोर्टल के द्वारा किसानों को देशी नस्लों की नस्लवार सूचना प्राप्त होगी। इससे किसान एवं प्रजनक देशी नस्ल की गाय एवं भैंसों को खरीद एवं बेच सकेंगे। देश में उपलब्ध जर्मप्लाज्मा की सारी सूचना पोर्टल पर देखी जा सकती है जिससे किसान भाई इसका तुरन्त लाभ उठा सकें। इस पोर्टल के द्वारा उच्च देशी नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन को नई दिशा मिलेगी। निकट भविष्य में पशुओं की बेहतर नस्लों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह बोवाइन प्रजनकों, विक्रेताओं और खरीददारों के लिये ‘वन-स्टॉप पोर्टल’ है।

इससे ज्ञात आनुवंशिक लाभ के साथ रोगमुक्त जर्मप्लाज्म की उपलब्धता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही बिचौलियों की भागीदारी को कम-से-कम किया जा सकेगा। इससे केवल नकुल स्वास्थ्य-पत्र से टैग किए गए पशुओं की बिक्री में मदद मिलेगी। अपने स्थान पर पशु की डिलीवरी लेने के लिये ऑनलाइन पैसा अदा कर सकता है। इस वेबसाइट (ूू.मचेंनींज.हवअ.पद) पर किसान और प्रजनकों को जोड़ा जाता है। किसानों को पता चलता है कि कौन-कौन सी नस्लें उपलब्ध हैं तथा उन्हें कहाँ से खरीदा जा सकता है। पशुओं के क्रय-विक्रय के साथ-साथ जर्मप्लाज्म की पूरी जानकारी दी जाती है। इससे देश में विविध देशी बोवाइन नस्लों के परिरक्षण के साथ-साथ पशुपालकों की आय में वृद्धि की जा सकेगी।

किसान एस.एम.एस. पोर्टल:

भारत सरकार ने किसानों के लिये एक एस.एम.एस. पोर्टल की शुरुआत की है। इस सुविधा के माध्यम से किसान कृषि के सम्बन्ध में अपनी आवश्यकताओं, स्थान और अपनी भाषा के अनुरूप सलाह और सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं। कृषि कार्योंध्पसन्द की फसलों के बारे में सन्देश प्राप्त करने के अनुरोध के बाद किसान एस.एम.एस. पोर्टल प्रणाली में किसानों को उनके मोबाइल पर एस.एम.एस. सन्देश मिलते रहते हैं जिनमें सूचना या सेवा की जानकारी या विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और अधिकारियों की आवश्यक सलाह दी जाती है। ये सन्देश उन किसानों को भेजे जाते हैं जिनके आवास सम्बद्ध अधिकारियोंध्वैज्ञानिकोंध्विशेषज्ञों के अधिकार क्षेत्र में पड़ते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी में हुए इस अभूतपूर्व विकास के कारण आज किसान देश के बड़े अनुसन्धान संस्थानों, कृषि प्रतिष्ठानों, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं तथा स्वैच्छिक संगठनों से भी सम्पर्क कायम कर सकता है। कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि तकनीक के विकास पर जोर दिया जा रहा है। संचार सुविधाओं के विस्तार के साथ ही कृषि विकास को संचार से जोड़ने की तैयारी है। इसके लिये भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ने पूर्वोत्तर राज्यों के लिये कृषि में ज्ञान सूचना भंडार योजना का शुभारम्भ किया है।
किसान एस.एम.एस. पोर्टल एक अखिल भारतीय सेवा प्रणाली है जो इसका उपयोग करने वाले विभागध्संगठन के लिये पूरी तरह निःशुल्क है तथा कृषि सम्बन्धी सभी कार्यों के लिये है। प्रारम्भ में मौसम अनुमान, मौसम चेतावनी, पौधों और पशुओं में बीमारी शुरू होने या कीड़े लगने के सम्बन्ध में सलाह, स्थानीय आवश्यकताओं आदि के अनुरूप फसलों के लिये उचित प्रौद्योगिकी सम्बन्धी परामर्श, नई या अत्यधिक उपयुक्त फसल की किस्मध्पशु की नस्ल के सम्बन्ध में परामर्श, बाजार सूचना और मृदा परीक्षण के परिणाम आदि से सम्बन्धित सन्देश भेजे जाते हैं। अपना पंजीकरण कराते समय किसान जिस भाषा में एस.एम.एस. सन्देश चाहते हैं, उसका उल्लेख कर सकते हैं। यदि किसान के मोबाइल में उस भाषा का उत्तर प्राप्त करने की सुविधा नहीं है तो रोमन लिपि में उस भाषा में सन्देश भेजे जा सकते हैं।

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किसान सूचना केन्द्र :

सरकार की ओर से किसानों को कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्द्रों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। इसके लिये विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से किसान सूचना केन्द्र विकसित किए गए हैं। सूचना केन्द्रों से जुड़े किसानों का अनुभव है कि एक तरफ उन्हें खेती में कम क्षेत्रफल में अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है तो दूसरी तरफ उन्हें नवीनतम तकनीकों को सीखने का अवसर मिल रहा है। पंजाब के कई किसानों को जहाँ परम्परागत खेती से अधिक जोखिम व बहुत कम आय प्राप्त होती थी, वहीं अब सूचना केन्द्र के माध्यम से बेबीकॉर्न की खेती में प्रति हेक्टेयर सन्तोषजनक व भरपूर आय प्राप्त हो रही है। बेबीकॉर्न एक अल्प अवधि वाली फसल है जो मात्र 55 दिनों में तैयार हो जाती है। इस तरह एक निश्चित भूमि पर वर्ष भर में 4-5 फसलें ली जा सकती हैं। वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहने पर किसानों को दूसरे लाभ भी मिलते हैं। जैसे किसी भी तरह की समस्या होने पर इधर-उधर भागना नहीं पड़ता है। खेत में खाद से लेकर पानी देने तक की सलाह मिलने के कारण मृदा स्वास्थ्य, मृदा उर्वरकता व उत्पादकता में भी सन्तुलन बना रहता है। इस प्रकार खेती में प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादन लागत घटने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। सरकार व वैज्ञानिकों की ओर से मिले इस सहयोग को देखते हुए अब किसान कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्द्रों से जुड़ रहे हैं।

साइबर कृषि:

कम्प्यूटर तकनीकी के माध्यम से कृषि में सही आवश्यकताओं का पता लगाया जाता है जिससे जल, ऊर्जा, धन और समय की बचत होती है। यह ग्रामीणों, किसानों, मजदूरों व पशुपालकों को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराता है। देश भर में ‘किसान केन्द्रों’ की स्थापना की गई है जहाँ ग्रामीण जीवन से जुड़े आधुनिक अनुसन्धानों की जानकारी किसानों को दी जाती है। ग्रामीण भारत में डिजिटल साइबर कृषि ने एक मूक क्रान्ति का रूप लिया है जो आने वाले समय में ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल सकती है। अतः साइबर कृषि बहुत ही उपयोगी एवं लाभधायक तकनीक है। इससे ग्रामीण जीवन बहुत ही आसान एवं व्यवस्थित बना सकते हैं। अतः ग्रामीणों को इन तकनीकों का लाभ लेकर अपनी जीवनचर्या को और बेहतर बनाना चाहिए।

कृषि तकनीक के स्थानान्तरण पर जोर
सूचना प्रौद्योगिकी के कारण देश के कृषि परिदृश्य में तेजी से बदलाव आ रहा है। लगभग दो दशक पहले देश में कृषि कार्य परम्परागत ज्ञान के आधार पर होता था। नवीनतम व अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का आदान-प्रदान मानवीय-स्तर पर होता था- जिस कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता था। पिछले कई वर्षों में कृषि क्षेत्र में नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से फसलों की उपज बढ़ाने, पादप सुरक्षा, मृदा स्वास्थ्य, नवीनतम उन्नतशील संकर प्रजातियों के प्रयोग इत्यादि विषयों पर किसानों को जानकारी मिलने लगी है। जबकि पूर्व में इन जानकारियों के लिये किसानों के पास रेडियो व टेलीविजन की सुविधा उपलब्ध थी। आज सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार ने कृषि अनुसन्धान और विकास के प्रचार-प्रसार को और अधिक प्रभावी व आसान कर दिया है।

सूचना प्रौद्योगिकी में हुए इस अभूतपूर्व विकास के कारण आज किसान देश के बड़े अनुसन्धान संस्थानों, कृषि प्रतिष्ठानों, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं तथा स्वैच्छिक संगठनों से भी सम्पर्क कायम कर सकता है। कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि तकनीक के विकास पर जोर दिया जा रहा है। संचार सुविधाओं के विस्तार के साथ ही कृषि विकास को संचार से जोड़ने की तैयारी है। इसके लिये भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ने पूर्वोत्तर राज्यों के लिये कृषि में ज्ञान सूचना भंडार योजना का शुभारम्भ किया है। इसका उद्देश्य उन्नत प्रौद्योगिकी और नवीनतम पद्धति का उपयोग करते हुए कृषि स्थानान्तरण तकनीक सहित कृषि उत्पादन व्यवस्था को बेहतर बनाना है। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद द्वारा कृषि अनुसन्धान, शिक्षा, कृषि और कृषि प्रणालियों के विकास की जानकारी देने के लिये एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके अन्तर्गत किसानों को खेती सम्बन्धी विकास की नवीनतम जानकारी उपलब्ध करायी जा रही है।

स्मार्ट फोन:
आजकल स्मार्टफोन का प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। यह हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। स्मार्ट फोन ने खेती-बाड़ी के अलावा रोजमर्रा के अधिकांश कामों को आसान बना दिया है। यह लगभग 24 घंटे हमारे साथ रहता है। इसकी सहायता से ग्रामीण अपने अनेक काम आसानी से निपटाने लगे हैं। मसलन साधारण बातचीत के अलावा मीटिंग करना, घर बैठे बिजली बिलों का भुगतान करना व खेती-बाड़ी की जानकारी वेबसाइटों पर निकाल सकते हैं। ई-मेल अपनी जरूरत के अनुसार कर सकते हैं। इन सब कार्यों के लिये हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। घर पर बैठकर ही इन सब कामों को आसानी से निपटाया जा सकता है। स्मार्ट फोन पर कृषि सम्बन्धी आधुनिक जानकारी विभिन्न एप के माध्यम से उपलब्ध है।
ए.टी.एम.:
ए.टी.एम. जैसे सुविधाएँ भी धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में पैर पसार रही है जिसने ग्रामीण जीवन में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है। जहाँ पहले ग्रामीण, किसान वे खेतीहर मजदूर बैंक में पैसा जमा कराने और निकालने के लिये घंटों समय बर्बाद करते थे। वहीं अब कुछ ही मिनटों में ए.टी.एम. पर यह दोनों काम आसानी से निपटाए जा सकते हैं। डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड से तो मानों ग्रामीण क्षेत्र में क्रान्ति ही आ गई है।

किसान कॉल सेंटर:

फसल उत्पादन से सम्बन्धित किसी भी समस्या के समाधान के लिये किसान कॉल सेंटर की सुविधा सभी राज्यों में उपलब्ध है। इस सेवा के तहत किसान अपनी समस्या दर्ज करा सकते हैं जिनका समाधान 24 घंटों के अन्दर कृषि विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध करा दिया जाता है। किसान कृषि विश्वविद्यालय और कृषि अनुसन्धान केन्द्रों के विशेषज्ञों के माध्यम से अपने प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये नजदीकी किसान कॉल सेंटर पर टोल फ्री नं. 1800-180-1551 से साल के 365 दिन प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे के बीच सम्पर्क कर सकते हैं।

सारांशः:
वर्तमान मे पशुधन प्रबंधन के लिए उभरती प्रासंगिक आईटी तकनीक पर जोर दिया जा रहा है। हालांकि वित्तीय संसाधन आईटी उपकरणों के प्रसारण को सीमित कर सकते हैंद्य आईटी प्रणालियों को मजबूत करने से सूचना प्रवाहध्संचरण और सहयोग में काफी हद तक सुधार होगा। इसलिए पशुपालको को अधिक सशक्त बनाने का एकमात्र विकल्प आईटी उपकरण का कम लागत पर उपयोग सूचना प्राप्त करने में मौजूद बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है और अनुप्रयोगों को व्यवहार्य और लाभदायक बना सकता है।

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