सारकोप्टीस स्केबिआई मेंज- एक परिचय

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सारकोप्टीस स्केबिआई मेंज- एक परिचय

डॉ. अजीत कुमार1 एवं डॉ. अंजना कुमारी2
1विभागाध्यक्ष, परजीवी विज्ञान विभाग
2सहायक प्राध्यापक, भैषज एवं विष विज्ञान विभाग
बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय,पटना
बिहार पशु विज्ञान विष्वविद्यालय,पटना- 800014

पशुओं में माइट् के संक्रमण को मेन्ज कहते हैं । पशुओं के शरीर पर पाये जाने वाले माइट्ों में से सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् का संक्रमण, संक्रमित पशु के स्वास्थ्य एवं उत्पादन क्षमता को अत्याधिक कुप्रभावित करता हैं । सारकोप्टीस माइट् एक जूनोटिक माइट् हैं, जिसके संक्रमण के फलस्वरूप मनुष्य में हाने वाले रोग को स्केबीज कहते हें । सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् का शरीर लगभग गोल एवं पैर छोटा होता हैं । इस माइट् का तीसरा एवं चौथा पैरों का जेड़ा बहुत छोटा होता है जिसके कारण शरीर से पैर बाहर नही निकला होता हैं । सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् के पृष्ठीय सतह पर अनुप्रस्थ रूप से पतला परत एवं गडढें बना रहता हैं तथा न्निभुजाकार छिलका शरीर के पृष्ठीय सतह पर मौजूद रहता हैं।
जीवन-चक्र – सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् पोषक के शरीर मे माँद बनाता है एवं मादा माइट् बनाये गये सुरंग मे 40 -50 अंडें देती हैं । मादा माइट् एक समय में एक या दो अंडें देती है और प्रत्येक दिन 3-5 अंडें देती है । सुरंग में अंडें से लार्वायें 3-5 दिनों में निकलता हैं । कुछ लार्वायें प्रजनन सुरंग मे ही रहता है एवं इसी जगह लार्वा विकसित होकर निम्फ में परिवर्तित हो जाता हैं । कुछ लार्वायें प्रजनन सुरंग से निकलकर संक्रमित पशु के त्वचा पर घुमता हैं । त्वचा पर घुमने वाले लार्वायों में से कुछ खत्म हो जाता है तथा कुछ त्वचा के स्ट्रेटम कोरनियम को छेद कर अदृष्टिगोचर माउलटिंग जेबे बनाता हैं । निम्फ की दो अवस्थायें होती हैं – प्रोटोनिम्फ एवं डिउटोनिम्फ । निम्फ के ये दोनो अवस्थायें या तो लार्वा के द्वारा बनाये गये जेबे ;चवबामजेद्ध में रहता है या संक्रमित पशु के त्वचा पर घुमता है एवं खुद के लिए नया जेबे बनाता हैं । माइट् के लार्वा में तीन जोड़े पैरे यानि छः पैर एवं निम्फ में चार जोड़े पैरे यानि आठ पैर मौजूद रहता हैं । फिर नर एवं मादा माइटें निम्फें से विकसित होता हैं । अंडा से लेकर नर एवं माइट् के विकसित होने मे लगभग 17 दिनों का समय लगता हैं । व्यस्क मादा माइट् निषेचन होने तक माउलटिंग जेब में ही रहता हैं। मादा माइट् जेब को फैलाकर सुरंग या नया सुरंग बनाता है । 4 से 5 दिनों बाद मादा माइट् अंडा देना शुरू करती हैं । मादा माइट् 3 से 4 सप्ताहों से ज्यादा नही जिंदा रहता है ।
माइट् का प्रसार – पशुओं में माइट् का प्रसार संक्रमित पशु के सम्पर्क मे आने से होता हैं । संक्रमित पशु के सम्पर्क में आने पर लार्वा, निम्फ एवं निषेचित जवान मादा माइट् दूसरे पशु के त्वचा पर पहुँच जाता हैं । विछावन, कपड़ा, उपकरणें आदि के द्वारा भी माइट् का प्रसार पशुओं में अप्रत्यक्ष प्रसार होता हैं । माइट् एक स्थायी परजीवी है । पोषक के बिना कुछ दिनों से ज्यादा जिंदा नही रह सकता हैं । प्रयोगशाला में सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् को तीन सप्ताहों तक जिंदा रखा जा सकता हैं ।
रोगजनक एवं लक्षणें – सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् संक्रमित पशु के त्वचा को छेद कर लसिका को चुसता एवं नया बाह्यत्वचीय कोशिकाओं को भी खाता हैं । इस माइट् से संक्रमित पशु को बहुत ज्यादा खुजली होती है एवं पशु अपने त्वचा को खरोचता है जिसके फलस्वरूप संक्रमित पशु में त्वचीय शोथ एवं त्वचा से निकलने वाले निःस्त्राव के जमने पर त्वचा पर पपड़ी बन जाता हैं । इसके बाद संयोजी ऊतकों के वृठ्ठि एवं अत्याधिक केरेटिन के जमा होने के कारण सारकोप्टीस माइट् संक्रमित पशु का त्वचा बहुत ज्यादा मोटा एवं मुड़ा हुआ हो जाता हैं । इसके साथ-साथ शरीर पर के बाल खत्म हो जाता है । प्रायः सारकोप्टीस माइट् के संक्रमण के प्रथम दो या तीन सप्ताहों तक खुजली पशु को नही होता हैं । कुछ पशुओं एवं मनुष्य में भी शरीर पर मौजूद पपड़ीयुक्त विकृती में सारकोप्टीस माइट् बहुत संख्या में मौजूद रहता है लेकिन संक्रमित पशु एवं मनुष्य को खुजली नही होता हैं ।
कुत्ता – सारकोप्टीस स्केबिआई माइट् का संक्रमण कुत्ता में प्रायः काँख, सिर पर, कानों के चारो ओर या आँख के उपर, केहुनी आदि पर होता हैं । इस माइट् का संक्रमण होने पर सबसे पहले इरीदमा संक्रिमत कुत्ता के त्वचा पर मिलता हैं । इसके बाद फुंसीयुक्त त्वचीय शोथ, लसिका के जमने के कारण त्वचा पर पपड़ीयों का मौजूद रहना तथा संक्रमित कुत्ता को खुजली होता हैं । फिर इसके बाद सारकोप्टीस माइट् संक्रमित कुत्ता का त्वचा सुखा, मोटा तथा शरीर पर के बाल खत्म हो जाता है । द्वितीयक संक्रमण होने पर त्वचा मे मवाद बन जाता हैं जिसे पयोडरमा कहते हैं।
सुअर – सारकोप्टीस माइट् का कम संक्रमण होने पर सुअर मे पता नही चल पाता है लेकिन इस माइट् के अधिक संक्रमण होने पर संक्रमित सुअर में खुजली, मुख्यतः कानों के त्वचा का पपड़ी या शल्कयुक्त हो जाना एवं इसके बाद संक्रमित सुअर के शरीर का त्वचा अत्याधिक मोटा हो जाना । इस माइट् के संक्रमण मे त्वचा के फटने के कारण गहरा घाव हो जाता है जिसमे द्वितीयक संक्रमण भी हो जाता हैं । वैसे सारकोप्टीस मेन्ज संक्रमित वयस्क सुअर जिसमे सारकोप्टीस माइट् के संक्रमण का लक्षण नही दिखाई देता हो, वह सुअर जवान सुअरों के संक्रमण का प्रायः स्त्रोत हैं । इस माइट् का संक्रमण कान, सुअर के पिछला एवं पार्श्व भाग तथा उदरीय क्षेन्नों में अधिक देखने को मिलता हैं ।
घेड़ा – घेड़ा में सारकोप्टीस माइट् के संक्रमण का शुरूआत सिर, गर्दन एवं कंधें या घोड़ें के शरीर पर बैठने वाले स्थानों से होता हैं । फुंसी बनना एवं खुजली होना शुरूआती चिकित्सीय लक्षण सारकोप्टीस माइट् के संक्रमण का हैं । फिर निःस्त्राव के सतह मोटा शल्क से ढ़क जाता है। इसके बाद पुरे त्वचा पर पपड़ी बन जाता है तथा शरीर के बालो का खत्म हो जाता हैं । त्वचा अत्याधिक मोटा हो जाना तथा फटे त्वचा में द्वितीयक संक्रमण हो जाता हैं । सारकोप्टीस मेन्ज के अन्तिम अवस्था में दुर्बलता, रूग्णावस्था तथा जिसके फलस्वरूप संक्रमित घेड़ा का मृत्यु हो जाता हैं ।
गाय-भैंस – सारकोप्टीस मेन्ज का संक्रमण गाय-भैंस में बहुत कम होता हैं । प्रायः घरों में रहने वाले गाय-भैंसों में इस मेन्ज का संक्रमण होता हैं । गाय-भैंस में सारकोप्टीस माइट् के संक्रमण होने पर खुजली तथा सिर एवं गर्दन के क्षेन्नों मे बाल उड़ा स्थानें मिलता हैं । संक्रमित गाय-भैंस का त्वचा मोटा हो जाता हैं । फिर सारकोप्टीस मेन्ज का संक्रमण गाय-भैंस के पुरे शरीर में फैल जाता हैं ।ं
भेड़ – सारकोप्टीस मेन्ज का संक्रमण भेड़ में भी बहुत कम होता हैं । सारकोप्टीस मेन्ज के संक्रमण भेड़ के शरीर पर ऊल नही पाये जाने वाले क्षेन्नों जैसे- चेहरा, कानों, काँख आदि में होता हैं । इस मेन्ज के संक्रमण का शुरूआत प्रायः मुँह के नजदीक के क्षेन्नों से होता है तथा चेहरा के दूसरे भागों मे फैलता हैं।
मनुष्य – सारकोप्टीस स्केबीआई माइट्स के संक्रमण होने पर स्केबीज रोग मनुष्य में होता हैं । जूनोटिक स्केबीज रोग मनुष्य में अधिकतर सारकोप्टीस मेन्ज संक्रमित कुत्ता से होता हैं । मनुष्य के शरीर का जो क्षेन्न पशु से सीधा सम्पर्क मे रहता है जैसे-हाथ की हथेली, कलाई, बाँह एवं छाती उस क्षेन्नों में सारकोप्टीस स्केबीआई माइट्स का संक्रमण अधिक होता हैं । प्राथमिक स्केबीज जो मनुष्य में पशु के सारकोप्टीस स्केबीआई जाति के संक्रमण से होता है का दुष्प्रभाव मनुष्य के सारकोप्टीस स्केबीआई जाति के अपेक्षा कम होता है । स्केबीज रोग से ग्रसित मनुष्य के शरीर पर लाल फुंसी, खुजली, फफोला आदि लक्षणें दिखाई पड़ता हैं ।
सारकोप्टीक स्केबिआई मेन्ज की पहचान – सारकोप्टीस मेन्ज का रोग-निदान या माइट्स के पता लगाने हेतु त्वचा खरांज विधि अपनाई जाती हैं । सारकोप्टीस माइट्स एक प्रकार सुक्ष्मदर्शी से देखे जाने वाले वाह्य-परजावी हैं जो पशुओं के चमड़े के नीचे डरमीस मे रहता हैं । इस विधि मे स्कालपेल की सहायता से प्रभावित चमड़ी के किनारे के घाव को खरोंचते हैं एवं खून निकलना शुरू होने पर खरांचना बंद कर देते हैं और खरोंचे हुये चमड़े को उजला कागज या काँच के छोटे प्लेट पर जमा करते हैं । फिर खरोंचे हुये चमड़े को 10 प्रतिशत पोटेशियम हायड्रोक्साइड के घोल के साथ एक परीक्षण नली में लेकर उबालते हैं एवं ठंडा होने के बाद सेन्ट्रीफ्यूज करते हैं । इसके बाद परीक्षण नली की सतह पर जमे हुए पदार्थ में से एक-दो बूँद ग्लास स्लाइड पर लेकर उस पर ऊपर से कवर-स्लिप रखकर सुक्ष्मदर्शी की सहायता से देखकर सारकोप्टीस माइट्स का पता लगाया जा सकता हैं ।
बचाव – 1. सारकोप्टीस मेन्ज के उपचार मे आइवरमेक्टिन 200 माइक्रोग्राम/किलोग्राम शरीर भार पर गाय-भैंस, कुत्ता, घोड़ा, भेड़, बकरी तथा 300-500 माइक्रोग्राम/किलोग्राम शरीर भार पर सुअर में सुई त्वचा में लगानी चाहिए । अमितराज दवा का 4 मिलिलीटर मात्रा एक लीटर पानी में मिलाकर मेन्ज संक्रमित गाय-भैंस, कुत्ता, भेड़ एवं बकरी के शरीर पर लगाना भी फायदेमंद साबित होता है ।
2. बेन्जाइल बेन्जोयेट मिला हुआ औषधि का प्रयोग लाभदायक सिद्व होता है।
3. औषधियों के प्रयोग करने से पहले शरीर के प्रभावित चमड़ी के साबुन या शेम्पु की सहायता से अच्छी तरह साफ करना एवं बालो को काटकर हटा देना चाहिए ।
4. कुत्ता में सारकोप्टीस मेन्ज के उपचार मे टेटमोसोल आदि साबुनों का उपयोग करना चाहिए ।
बचाव – सारकोप्टीस माइट् संक्रमित पशु के रहने के स्थानों पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए । बच्चा देने के पहले सुअरी को ईलाज करने पर इसके बच्चों में सारकोप्टीस मेन्ज होने का खतरा बहुत कम रहता हैं ।

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