स्वस्थ पशु प्रबंधन से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन

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डॉ. प्रणय भारती, वैज्ञानिक (पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन)
डॉ. विशाल मेश्राम (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख)
कृषि विज्ञान केंद्र मंडला (म.प्र.)

स्वच्छ दूध से हमारा तात्पर्य ऐसे दूध से है जिसे स्वस्थ्य गाय या भैंस के थन से प्राप्त किया गया हो और उसमें अच्छी खुशबू के साथ-साथ कम से कम जीवाणु हों और बाह्य पदार्थों, जैसे मिट्टी, धूल, मक्खियों तथा रोगजनकों से मुक्त हो। स्वच्छ दूध की गुणवत्ता को लम्बे समय तक बनाए रखा जा सकता है तथा उसे संरक्षित करने की समयावधि भी अधिक होती है। शुद्ध दूध की व्यावसायिक कीमत अधिक होती है और उससे उच्च गुणवत्ता युक्त दुग्ध पदार्थों को बनाया जा सकता है। इसलिए दूध की शुद्धता को सुनिश्चित करने के लिए दूध में होने वाली गंदगी को दुग्ध उत्पादन स्तर पर ही नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि शुद्ध दूध न केवल उपभोक्ता के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि दुग्ध उत्पादन की आर्थिक दृष्टि से भी फायदेमंद हैं।
स्वच्छ दुग्ध का उत्पादन कैसे करें
स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के तरीकों का वर्णन करने से पहले हमे दूध को दूषित करने वाले स्रोत्रों के बारे मे पता होना आवश्यक है। दूध को दूषित करने वाले स्रोत्रों को मुख्यतः दो भागों मे बांटा गया है।
1. आंतरिक कारक- आंतरिक कारकों मे पशु के थन से होने वाली गंदगी और थनैला रोग मुख्य हैं। दुहान के शुरूआती दूध में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है, इसलिए शुरूआती एक दो छांछ को हटाना अच्छा रहता है।
2. बाह्य कारक- बाह्य कारकों मे पशु का शरीर, दूध दूहने का स्थान, ग्वाला एवं आहार व पानी मुख्य है। इसके साथ-साथ दूध संग्रहण मे उपयुक्त होने वाले बर्तनों एवं उपकरणों से भी दूध के दूषित होने की सम्भावना रहती ळें स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के उपाय स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए दिए गए तरीकों को अपनाया जा सकता है।
1. डेयरी फार्म पर आहार, आवास एवं स्वास्थ्य पशु प्रबंधन
2. दूध के संग्रह हेतु उपयोग किए जाने वाले उपकरणों एव बर्तनों की साफ-सफाई
3. दूध दूहने की अच्छी आदतें
4. दूध के भंडारण, वितरण एवं कूलिंग की समुचित व्यवस्था
पशु आहार प्रबंधन
डेयरी पशुओं को संतुलित आहार दिया जाना चाहिए, जिसमे हरे चारे, सूखे और सांद्रण का उचित लवण भी दिया जाना चाहिए। चारे मे कवक सक्रमण को रोकने के लिए चारे का भंडारण सूखे स्थान पर किया जाना चाहिए। पशु आहार को कीटाणुओं और कवकों के संदूषण से बचाया जाना चाहिए। चारे की कमी के दौरान पशुओं को सूखा चारा जैसे सूखी घास या भूसा दिया जाना चाहिए। साथ ही साथ पशु राशन में खनिज लवण व विटामिन भी दिया जाना चाहिए, ताकि इनकी कमी को पूरा किया जा सके। गाय या भैंस को ब्यांत के आसपास की अवधि मे विटामिन ई और सिलेनियम दिया जाना चाहिए, ताकि पशु थन स्वास्थ्य को सुधारा जा सके। पशु को दूध निकालने के एक घंटे पहले चारा दिया जाना चाहिए, ताकि दूध मे चारे के द्वारा होने वाली गंदगी से बचा जा सके, तथा पशु को दूध निकालने के दौरान व्यस्त रखने के लिए सांद्रित मिश्रण दिया जाना चाहिए। दूध निकालते समय पशु को साइलेज और गीला चारा नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे दूध मे साइलेज की गंध आने की सम्भावना रहती है।
पशु आवास प्रंबधन
पशु आवास से भी दूध के दूषित होने की सम्भावना रहती है, इसलिए पशु आवास का साफ-सुथरा होना अति आवश्यक है। पशु आवास दूध को दूषित करने वाले कारकों जैसे बाहरी पशुओं, व्यक्तियों, वायु, वर्षा और अधिक गर्मी से रक्षा प्रदान करता है। अतः दूध की गुणवत्ता को भी बनाए रखने में मदद करता है। दूध निकालने की जगह मे पर्याप्त हवा का आदान-प्रदान होना चाहिए तथा प्रकाश की भी व्यवस्था होनी चाहिए। जल निकासी की भी पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए। नमी वाले स्थानो मे फर्श को सूखा रखने के लिए बुझे चूने का इस्तेमाल किया जा सकता है। पशुओं को पीने के लिए साफ पानी 24 घंटे उपलब्ध होना चाहिए। डेयरी फार्म और पशु आवास की साफ-सफाई के लिए भी पर्याप्त मात्रा मे पानी उपलब्ध होना चाहिए। पशु आवास की छत अच्छी होनी चाहिए और पर्याप्त मात्रा में हवा का आदान-प्रदान होना चाहिए। बन्द बाड़ों को आरामदायक बनाने हेतु पर्याप्त ऊँचाई होनी चाहिए। यदि खुला बाड़ा है तो उसकी फर्श साफ व शुष्क होनी चाहिए। पशु के गोबर और बचे हुए चारे को हटाने का प्रंबध किया जाना चाहिए।
पशु स्वास्थ्य
स्वच्छ दूध और लाभकारी डेयरी के लिए पशु स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। बीमार पशु से प्राप्त दूध में हानिकारक जीवाणु होते हैं, जो दूध के गुणवत्ता व उसके भंडारण की अवधि को कम कर देते हैं। पशुओं को छुआछूत बीमारियों जैसे खुरपका मुँहपका, टी0बी0 और थनैला के प्रति नियमित जाँच होनी चाहिए। जो पशु बीमारियों से ग्रसित हों अलग रखना चाहिए। पशु आवास को संक्रमण से मुक्त करने के लिए रोगाणुनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए। दुहान के दौरान थन और थनैला रोग के लिए नियमित जांच करना चाहिए। डेरी पशुओं मे खुरपका-मुँहपका और एन्थ्रैक्स के खिलाफ नियमित टीकाकरण कराया जाना चाहिए। शुद्ध दूध के साथ-साथ पशु की साफ-सफाई भी अति आवश्यक है। पशुओं की त्वचा दूध को दूषित करने वाले जीवाणुओं को अधिक सतह प्रदान करते है। इसलिए पशु के पिछले हिस्से के बालों, पैर व पूँछ के बालों को नियमित अंतराल पर काटते रहना चाहिए, जिससे धूल और गोबर को चिपकने से बचाया जा सके। इसके अलावा यदि थन साफ दिखाई दे रहा है तो भी उसे अच्छी तरह से साफ किया जाना चाहिए।
दुग्ध उपकरणों व बर्तनों की साफ-सफाई
डेरी उपकरणों व बर्तनों की साफ-सफाई व देखभाल शुद्ध दुग्ध उत्पादन के लिए सबसे कारगर तरीका है। सामान्यतः दुग्ध उपकरणों जैसे दुहान (मिल्किंग), मशीन, दुग्ध टैंक आदि को दुहान से लेकर भंडारण तक उपयोग मे लाया जाता है। दूध निकालने से पहले और बाद मे बर्तनों की अच्छी तरह सफाई करने से धूल और कीटाणु हट जाते है, दूध दुहने के पंद्रह मिनट पहले दूध के उपकरणों को सफाई वाले घोल से धो लेना उसके भंडारण अवधि को कम कर देते है। इसलिए पशु के खानपान, आवास और स्वास्थ्य प्रंबधन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, जिससे पशु स्वस्थ्य रहे और दूध में हानिकारक जीवाणुओं को कम किया जा सके।
स्वच्छ दुहान (हाइजेनिक मिल्किंग)
दूध मे सूक्ष्मजीव, मशीन मिल्किंग व हैण्ड मिल्किंग दोनों के द्वारा भी प्रवेश कर सकते है। हाथ से दुहान के दौरान, ग्वाले से होने वाला संदूषण मशीन मिल्किंग की तुलना में अधिक होता है। इसलिए ग्वाले का संक्रमित बीमारियों जैसे तपेदिक से मुक्त होना चाहिए। ग्वाले के नाखून साफ व कटे हुए होने चाहिए तथा साफ कपडे़ पहने होना चाहिए और दुहान से पहले हांथों को साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए तथा बाद में साफ एवं सूखे तौलिए से पोंछना चाहिए। नियमित अंतराल पर दुहान करना, थनों से पूरा दूध निकालना और दुहान के दौरान साफ-सफाई सभी महत्वपूर्ण पहलू है, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। थन को अच्छी तरह साफ करना चाहिए और 30 सेकंड तक मालिश की जानी चाहिए तथा दूध निकालने से पहले थन को सूखे कपडे़ से पोंछ लेना चाहिए। शुरूआत में निकाले गए दूध को परीक्षण के लिए एक अलग बर्तन मे इकट्ठा करना चाहिए तथा खराब दूध को हटा देना चाहिए। दूध को फर्श मे नहीं गिरने देना चाहिए क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा होता है। दूध को जल्दी से जल्दी दूध वाले बर्तन मे निकालना चाहिए और दुहान की पूरी प्रक्रिया को 6 से 8 मिनट में पूरा कर लेना चाहिए। ग्वाले को अपने हाथ को पशु के शरीर से नही पोंछना चाहिए। दुहान के बाद निप्पल को एंटीसेप्टिक घोल जैसे पोटैशियम परमैंगनेट या आयोडीन घोल मे डुबोया जाना चाहिए। प्रत्येक दुहान के बाद दुहान क्षेत्र (मिल्किंग एरिया) की अच्छे से सफाई की जानी चाहिए। दूध को साफ कपड़े या छलनी से छान लेना चाहिए और कपडे़ को धोकर सूखा लेना चाहिए।

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भंडारण, वहन व कूलिंग
दूध मे जीवाणुओं की वृद्धि को रोकने में दूध भंडारण तापमान की मुख्य भूमिका होती है। शुद्ध दुग्ध उत्पादन का फायदा तब तक नहीं होगा, जब तक कि दूध के भंडारण तापमाप को उचित नहीं रखा जाएगा। दूध निकालने के बाद जितना शीघ्र ठंडा किया जाएगा, दूध की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी रहेगी। दुहान के 2 घंटे के अंदर दूध को ठंडा करने से जीवाणुओं की वृद्धि को रोका जा सकता है। यदि दूध को ठंडा करना सम्भव न हो तो परिरक्षकों जैसे लैक्टोपराक्सिडेज का उपयोग किया जाना चाहिए जिससे दूध को खराब होने से बचाया जा सके। दूध को साफ ढ़क्कन लगे बर्तन तथा छायादार जगह में रखना चाहिए ताकि संदूषण को कम किया जा सके और उसे छायादार जगह में रखना चाहिए। दूध के वहन हेतु साफ कंटेनर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और दूध के वहन का समय कम से कम होना चाहिए। दूध को वहन के समय अधिक झटकों से बचाना चाहिए, क्योंकि दूध की वसा आक्सीजन के सम्पर्क में खराब हो जाती है।
एक आदर्श मशीन मिल्किंग के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान मे रखना चाहिएः
1. गाय या भैंस के थन को पोंछकर 1 से 2 मिनट मालिश की जानी चाहिए। सामान्यतः गाय के लिए 30 से 60 सेकण्ड और भैंस के लिए 60 से120 सेकण्ड मालिश करना चाहिए।
2. स्ट्रिप कप की सहायता से दूध की असमान्यता की जाँच की जानी चाहिए।
3. मिल्किगं मशीन के कप को अच्छी तरह लगाना चाहिए।
4. मिल्किंग मशीन को अच्छी तरह से जाँच लेना चाहिए।
5. निप्पल डिप का इस्तेमाल करना चाहिए।
6. दूध की मात्रा को रिकार्ड किया जाना चाहिए।
7. मिल्किंग मशीन के उचित क्रियान्वन के लिए मशीन निर्माता के निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
शुद्ध दुग्ध उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण कदम
शुद्ध दुग्ध उत्पादन के लिए डेरी फार्म की दैनिक गतिविधियाँ जैसे- 1.फार्म स्तर पर प्रबंधन, 2.दुग्ध उपकरणों एवं बर्तनों की सफाई, 3.दूध निकालने के उचित तरीके, 4.भंडारण, वहन व कूलिंग की समुचित व्यवस्था आदि अहम भूमिका निभाती है। इसके साथ-साथ शुद्ध दुग्ध उत्पादन के लिए निम्नलिखित सामान्य कदम उठाए जा सकते हैं।
1. दूध दुहान की प्रक्रिया एक निश्चित समय पर की जानी चाहिए और यदि दुहान के समय को परिवर्तित करने की आवश्यकता हो तो उसे धीरे-धीरे बदलना चाहिए।
2. दूध के बर्तनों व उपकरणों को प्रयोग में लाने से पहले और बाद में अच्छी तरह साफ करके सुखा लेना चाहिए। थन और निप्पल को गुनगुने पोटैशियम घोल से साफ करना चाहिए और धोते समय अच्छे से मालिश करने के बाद साफ व सूखे तौलिए से पोंछना चाहिए।
3. थनैला रोग की पहचान के लिए स्ट्रिप विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए। इस विधि में चारो स्तनों के दूध को काले कपडे़ से ढ़के कप में निकालना चाहिए। यदि पशु थनैला रोग से पीड़ित है, तो दूध के गुच्छे काले कपडे़ मे दिखाई देंगे। कैलीफोर्निया थनैला परीक्षण (सी.एम.टी.) उप-निदानिक थनैला को पहचानने का सबसे पुराना स्वर्णिम तरीका है और इससे थनैला रोग युक्त दूध तथा शुद्ध दूध को पहचाना जा सकता है।
4. ग्वाले का संक्रमित रोगों से मुक्त होना अति आवश्यक है अन्यथा ग्वाले से पशु को तपेदिक जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है। ग्वाले के नाखून कटे हुए होने चाहिए तथा हाथों को अच्छी तरह से साबुन से साफ किया जाना चाहिए तथा सिर पर टोपी लगाई जानी चाहिए, ताकि बालों को दूध में गिरने से रोका जा सके। दुहान के दौरान ग्वाले को अपने हाथ पानी, दूध, लार या तेल से गीले नही करने चाहिए।
5. तुरंत ब्यात वाले एवं अधिक दूध देने वाले पशुओं का दूध, कम दूध देने वाले पशुओं से पहले निकाला जाना चाहिए। 10 लीटर तक दूध देने वाले पशुओं का दूध दिन में दो बार निकालना चाहिए जबकि 12 से 15 लीटर तक दूध देने वाले पशुओं मे दूध निकालने की आवृत्ति को 3 बार तक बढाया जा सकता है।
6. दुहान के लिए दूध निकालने की सबसे उत्तम विधि फुल हैंड को अपनाया जाना चाहिए तथा दूध निकालते समय अँगूठे को नहीं मोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे स्तन में घाव होने का खतरा रहता है। ताजे दूध को मसलिन क्लॅाथ से छान लेना चाहिए। दूध को ठंडा करने के लिए दुग्ध कैन के आसपास बर्फ रख सकते हैं और इसे संग्रह केन्द्रों से सहकारी केन्द्रों तक जल्द से जल्द पहुँचाया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
सभी खाद्य पदार्थों में से दूध को इकट्ठा करना और उसे स्वच्छ तरीके से वितरित करना सबसे कठिन कार्य है। शुद्ध दूध के लिए पशु और ग्वाला दोनों ही मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनका साफ-सुथरा होना अति आवश्यक है। पशुओं के स्वास्थ्य के लिए एक प्रभावी स्वास्थ्य सर्विस दी जानी चाहिए। इसके अलावा पशुओं मे समय से टीकाकरण की व्यवस्था की जानी चाहिए और छुआछूत वाली बीमारियों के लिए एक प्रमाणिक पशु चिकित्सक से जाँच करवाई जानी चाहिए। गाँव स्तर पर पूरे समय पशु चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। दूध को खराब होने से बचाने के लिए दुग्ध संग्रह केन्द्रों को आसानी से पहुँचने योग्य जगह पर स्थापित किया जाना चाहिए। शुद्ध दुग्ध उत्पादन के लिए साफ-सफाई के साथ-साथ किसानों को जानकारी दिए जाने की भी आवश्यकता है। हमारा मुख्य उद्देश्य दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध शेड की सफाई, शुद्ध दुग्ध उत्पादन के तरीके, पशु स्वास्थ्य एवं दूध निकालने की सही विधि के बारे मे अवगत कराना है। दुग्ध उत्पादन मे महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि पशुधन प्रबंधन मे महिलाओं की मुख्य भूमिका होती है। स्वच्छ दुग्ध उत्पादन व उच्च गुणवत्ता युक्त दुग्ध पदार्थों के उत्पादन को सुनिश्चित कर किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सकता है।

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