पशु रोगों के निदान हेतु की जाने वाली जाचें

0
155

पशु रोगों के निदान हेतु की जाने वाली जाचें

गोबर की जांच :
पशु में अफारा, दस्त, कब्ज, खुजली, दूध में कमी, कमजोरी, कम खाना, ताव में न आना, मिट्टी खाना, मल के साथ खून आना, जबड़े के नीचे पानी भरना, अत्यधिक चिकनाई युक्त मल आना आदि लक्षण दिखने पर पशु के मल या गोबर की जांच करवानी चाहिए।
गोबर की जांच द्वारा कृमि रोगों का पता लगाया जा सकता है। गोबर में परजीवी के अंडे, लार्वा, उसीस्ट आदि देखकर परजीवी के प्रकार की जानकारी मिल जाती है जिससे उसके विरूद्ध प्रभावी दवा का अनुमान लगता है। चिरकालिक कमजोरी या लगातार दस्त में रेक्टल पिंच या गोबर के स्मीयर की स्टेनिंग द्वारा जोहनीज़ रोग का भी पता लगाया जा सकता है। फफूंद लगे चारे को खाने से होने वाले फफूंद जनित आन्त्र शोध का गोबर की लेक्टोफिनोल काॅटन ब्लू स्टेनिंग द्वारा पता लगाया जा सकता है।

नमूने लेते समय ध्यान में रखने के बिन्दु :
जहां तक संभव हो गोबर के नमूने सीधे पशु के रेक्ट्म से ही लें।
नमूने ताजा एवं बाहरी तत्वों से मुक्त होने चाहिए।
नमूने हवा तंग क्ंटेनर्स या पोलीथीन बेग्स में लेने चाहिए।
यदि नमूने को प्रयोगषाला में भेजने में समय लगे तो उसे फ्रिज में रखना चाहिए या उसमें 10 प्रतिशत फोर्मल सेलाइन डालना चाहिए (4 भाग फोर्मल सेलाइन तथा एक भाग गोबर)। यदि गोबर की जांच कोक्सिडियोसिस या फेफड़ों के कीड़ों हेतु की जानी है तो नमूनों में फोर्मलीन नहीं मिलानी चाहिए।
कोक्सिडियोसिस रोग की जांच हेतु गोबर के नमूने में 2.5 प्रतिशत पोटेषियम डाइक्रोमेंट मिलाया जा सकता है।
नमूनों को सही तरीके से चिन्हित करना चाहिए, जिससे पता चल सके की उक्त नमूना किस पशु का है।

READ MORE :  गाय भैसों में सींग व पूंछ संबंधी मुख्य बीमारियां एवं उपचार

मूत्र की जांच :
जब मूत्र के रंग, बनावट, मात्रा, आदि में असामान्य परिवर्तन हो। गुर्दे, मूत्राषय और जिगर से संबंन्धित रोग के लक्षण दिखाई दें। एसिडोसिस, एल्केलोसिस, डायबिटीज, किटोसिस आदि रोगों की संभावना हो सकती है। पशुु की शल्य चिकित्सा करवाने से पहले या जब पशुु ऐसी बीमारी से ग्रसित हो जिसका निदान नहीं हो पा रहा हो, इस प्रकार की सभी अवस्थाओं में मूत्र परीक्षण करवाना चाहिए।

नमूने लेते समय ध्यान में रखने के बिन्दु :
मूत्र के नमूनों को साफ ग्लास या प्लास्टिक वायल्स में पशु के मूत्र करते समय लेना चाहिए। मझधार का मूत्र इक्कट्ठा करना चाहिए।
गुर्दे से संबंन्धित रोगों की जांच हेतु सुबह के समय का नमूना लेना चाहिए।
डाईबीटिज की जांच के लिए खाने से पहले व खाने से दो घंटे बाद का नमूना लेना चाहिए।
बेक्टीरियल कल्चर सेंसिटिविटी जांच के लिए मूत्र का नमूना मादाओं में केथेटर की सहायता से स्टेरलाइज्ड टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किया जाना चाहिए एवं इसमें कोई प्रीजरवेटिव नहीं मिलाना चाहिए। इसे बर्फ पर भेजा जाता है।
मूत्र नमूने की जांच जितना जल्दी संभव हो करवा लेनी चाहिए। देर होने से मूत्र की एलकेलिनिटी (छारता) तथा उसमें गठन तत्व बढ़ जाते हैं।
मूत्र को सही स्थिति में रखने के लिए हम टोल्युईन या फोर्मलीन का इस्तेमाल कर सकते हैं। फोर्मलीन-एक आउंस (1 ounce = 28.35ml ) में एक बूंद टोल्युईन-नमूने की सतह को टोल्युईन से ढकना।

रक्त की जांच :
बीमारी की स्थिति में इसमें परिवर्तन होना स्वाभाविक है क्योंकि रक्त प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शरीर में होने वाली समस्त जैव रासायनिक एवं रोग प्रतिरोधात्मक प्रक्रियाओं में भाग लेता है। जब भी पशु को ज्वर, रक्त की कमी, जिगर, गुर्दे, हृदय से सम्बन्धित रोग हो, रक्त परजीवी रोग, हिमेंचूरिया (रक्त वाला), बार-बार अफारा आदि के लक्षण पाये जाएं, ऐसी बीमारी हो जिसका निदान नहीं हो पा रहा हो तो रक्त की जांच करवानी चाहिए।

READ MORE :  दुग्ध ज्वर (milk fever)

सामान्य जांच हेतु 2-3 मि.ली. रक्त पर्याप्त होता है। रक्त लेने से पूर्व पशु की नस को हाथ या अंगूठे के दबाव से या टोर्नीकेट की मदद से उभार कर उसे स्प्रिट या 95 प्रतिशत एल्काहेल से साफ़ करके लेना चाहिए। रक्त लेते ही वायल पर ढक्कन लगाकर, उसे हथेलियों के बीच गोल घूमकर रक्त को ई.डी.टी.ए में सही तरह मिलाना चाहिए। ढक्कन पर एड्हीसिव टेप लगाकर नंबर आदि लिखकर चिन्हित करें व एक कागज पर पशु एवं उसकी बीमारी आदि के संबंध में जानकारी भेजनी चाहिए। देरी की स्थिति में इसे फ्रिज में या बर्फ पर रखना चाहिए। रक्त के नमूने साफ, सूखी, ग्लास या प्लास्टिक वायल में लाने चाहिए।
वायल में आवष्यकता अनुसार एंटीकोएगुलेंट (जमारोधी) रक्त लेने से पूर्व ही डाल लेना चाहिए। सामान्य एंटीकोएगुलेंट के रूप में ई.डी.टी.ए का उपयोग किया जाता है। इसे 1-2 ग्राम प्रति मि.ली. रक्त के हिसाब से मिलाया जाता है।
यदि रक्त सिरीजं की सहायता से एकत्रित किया जाए तो से एकत्रित किया जाए तो इसे वायल में डालने से पूर्व सिरीजं पर से निडिल (सुई) हटा लेनी चाहिए।
पशुओं की बीमारी के निदान हेतु पशुपालकों को समय पर जांच एवं रोग का उपचार करवाना चाहिए। पशु के गोबर, मूत्र या रक्त के नमूने भेजने से पहले उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे समय पर सही तरीके से जांच हो सके।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON