हर्बल जड़ी-बूटियों का प्रयोग पशुओं को हीट-स्ट्रोक से बचाएंगा”

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हर्बल जड़ी-बूटियों का प्रयोग पशुओं को हीट-स्ट्रोक से बचाएंगा

डॉ. योगेश आर्य (नीम का थाना)

पशुओं के छोटे और बड़े सभी रोगों मे पशुपालक प्राचीन काल से ही हर्बल जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते आ रहे हैं| ये आज भी प्रासंगिक हैं| गर्मियों में जब तापमान 45-50 डिग्री तक हो जाता हैं, तब पशुओं की शारीरिक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं| तेज गर्मियों में पशुओ को अपच, चारा खाने में अरुचि, दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी इत्यादि समस्या हो जाती हैं और पशु “गर्मी जन्य तनाव” (heat stress) में रहता हैं| परंतु अगर पशु आहार मे हर्बल जड़ी-बूंटियों प्रयोग करे तो पशुओं की पाचन क्षमता, शारीरिक भार, उत्पादकता एवं प्रजनन क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं|

गर्मियों में पशुओ पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव-

  1. डिहाइड्रेशन:- तेज धूप और अधिक गर्मी के कारण पशुओ में पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है| ऐसे मे पर्याप्त पानी नही देने पर पशु डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाता है|
  2. कम आहार लेना:- गर्मियों में पशुओ की सुखा चारा खाने की दर कम हो जाती है, फलस्वरूप उसकी उत्पादन क्षमता में कमी आ सकती है|
  3. अपच:- पशुओ की पाचन क्रिया में बदलाव होता है, रुमन में किण्वन क्रिया प्रभावित होने से अपच हो सकती हैं|
  4. हीट-स्ट्रोक:- गर्मियों में लू चलने के कारण पशु ताप-घात का शिकार हो सकता हैं|
  5. प्रजनन क्षमता मे कमी:- तेज गर्मियों में भैंस, ताव/हीट में नही आती हैं, नर पशु के वीर्य की भी गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे पशुओं की प्रजनन क्षमता में कमी आती हैं|
  6. दूध-उत्पादन मे कमी:- गर्मियों में दुधारू पशुओ के दूध उत्पादन में भारी कमी आती हैं|
  7. पानी और खनिज-तत्वों की कमी के कारण पशु सुस्त, थका हुआ और कमजोर दिखाई देने लगता हैं| पशुओं के “गर्मी जन्य तनाव” में रहने से शरीर भार कम होने लगता हैं|
  8. तेज धूप में पशुओ के शरीर की त्वचा सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आती है जिससे त्वचा रुखी, खुश्क और डिहाइड्रेटेड हो जाती हैं|
  9. पशु की श्वसन दर बढ़ जाती है, पशु हाँफने लगता है, जिससे भी उर्जा का क्षय होता है|
  10. पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने से रोग ग्रस्त होने की अधिक सम्भावना रहती हैं|
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गर्मियों में पशु पालन एवं प्रबंधन के तरीके-

  1. पशुओ की छायादार एवं हवादार स्थानों पर बांधे| आसपास पेड़ होने पर पशु-आवास का तापमान कम रहता हैं|
  2. पशु आवास में खिड़की और दरवाजों पर टांट/ जूट के बोरे बांधे और उनको समय-समय पर गीला करते रहे ताकि लू चलने पर वो ठंडी हवा बन अन्दर जाये|
  3. पशु आवास की छत ऊष्मा की कुचालक हो इसके लिए एस्बेस्टस शीट की बनाई जाये परन्तु, अगर कंक्रीट या टीनशेड की बनी हो तो उस पर 5-6 इंच मोटी घास की परत अथवा नीचे कार्ड-बोर्ड/ गत्ते की परत बना देने से आवास ठंडा रहता है| छप्पर भी अच्छा रहता हैं|
  4. पशुओ को पीने के लिए पर्याप्त साफ़ पानी देवें और प्रतिदिन 3-4  बार पानी पिलाये|
  5. पशुओं को प्रतिदिन 1-2 बार जरुर नहलाएं|
  6. पशुओं को अगर उपलब्ध हो सके तो हरा चारा नियमित रूप से देवे क्योंकि ये पोष्टिक भी होता हैं और शरीर में जल की पूर्ति भी करता हैं|
  7. पशु-आहार सुबह और शाम के समय (Cool hours) ही दिया जाना चाहिए| ज्यादा खिलाने की बजाय पशुओं को संतुलित आहार देवें और पशु आहार में नमक और मिनरल-मिक्सचर अवश्य शामिल करें| मिनरल मिक्सचर नही देने पर “पाइका” (due to phosphorus deficiency) रोग हो सकता है जिसमे कि पशु मिट्टी, हड्डियाँ, कपडे और अपशिष्ट पदार्थ खाने लगता है|
  8. गर्मी के बाद मानसून आते ही पशुओं में गलघोंटू, लंगड़ा बुखार और फड़किया रोग होने की संभावना रहती है अतः इन रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण पूर्व में ही ग्रीष्म ऋतू में ही करवा लेना चाहिए|
  9. पशुओ को हर 3 माह के अन्तराल में पशु-चिकित्सक की सलाह पर कृमिनाशक दवाई अवश्य देवें| पशु के जूं-चिचड़ होने पर बाह्य-परजीवी-नाशक दवा का इस्तेमाल बहुत ही सावधानी से करें|
  10. पशु आवास में मक्खी-मच्छर मारने हेतु सावधानी से दवा का छिडकाव करे|
  11. देशी नस्लें तो गर्मी सहन कर लेती हैं परन्तु, उपलब्धता के अनुसार विदेशी और संकर नस्ल के पशुओं के लिए पंखे और कूलर भी काम में लिए जा सकते हैं|
  12. निआसीन (Niacin) पावडर के प्रयोग से भी गर्मियों मे पशुओ को राहत मिलती हैं|
  13. तेज गर्मियों में पशु को मेटाबोलिक-एसिडोसिस (Metabolic acidosis) हो जाने पर सोडा-बाईकार्बोनेट देना चाहिए|
  14. जौ के छिलके उतारकर (मशीन से या फिर ऊखल-मूसल की मदद से) उसको चक्की मे दलकर, इसको बांटे/दाना-मिश्रण (Concentrate) मे मिलाकर गर्म करने के बाद दिया जा सकता हैं| इससे भी गर्मी मे राहत मिलती हैं|
  15. कतीरा गोंद (Tragacanth gum) भी ताप-घात से बचाता हैं| गर्मियों मे सरसों की खल (Mustard cake) देना भी फायदेमंद रहता हैं|
  16. गर्मियों में सामान्यतया ताप-घात, दस्त, और बंद-लगना/कब्ज इत्यादि रोग हो जाते है जिनका तुरंत पशु-चिकित्सक से इलाज करवाना चाहिए|
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गर्मियों में पशु आहार-

पशु आहार में मौसम के अनुसार धीरे धीरे बदलाव किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं| पशुओ को प्रतिदिन 50 ग्राम मिनरल-मिक्सचर जरुर देवे| दाना-मिश्रण में पिसे हुए जौ (crushed barley) और गेहूं की चोकर की मात्रा बढ़ाई जा सकती हैं| खल और दाल-चूरी के अलावा रिजका और बरसीम भी प्रोटीन के उत्तम स्त्रोत होते हैं| हरे चारे हेतु ज्वार, बाजरा, मक्का और हाइब्रिड नेपियर इत्यादि चारा फसलों का प्रयोग किया जाना चाहिए| पहले से तैयार की गयी ‘साइलेज’ और ‘हें’ भी खिलाई जा सकती हैं| पशुपालक मोटे तौर पर देखे तो सान्द्र आहार/ बांटा (concentrate feed) घर पर भी निम्न अनुसार बना सकता है-

“एक तिहाई भाग अनाज/ दाने + एक तिहाई भाग मूंगफली/तिल/सरसों की खल + एक तिहाई भाग चापड-चूरी”

हर्बल जड़ी-बूटियों का प्रयोग बचाएगा ताप-घात से

रिसर्च ये बता रहे हैं कि हर्बल जड़ी-बूटियों का प्रयोग करने से पाचन क्षमता, शारीरिक भार, उत्पादकता एवं प्रजनन क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं| हर्बस मिलाने पर पोष्ठिकता मे वृद्धि होने से ना केवल पशु अधिक आहार खाने लगता हैं, बल्कि पशु आहार का पाचन भी अच्छे से होता है और पोषक पदार्थो के साथ-साथ खनिज लवणों के अवशोषण मे भी वृद्धि होती हैं| हर्बस के प्रयोग से गर्मियों मे पशु ताप-घात से भी बचा रहता हैं| खास बात है कि ज़्यादातर हर्बस की, कुल पशु आहार का केवल 0.5-5.0 प्रतिशत मात्रा (according to herbs) ही मिलानी होती हैं| हर्बस (Herbs) में पॉलीफिनोलिक यौगिक पाये जाते हैं| हर्बस (Herbs) में एल्केलोइड, टेनिन, पॉलीफिनोलिक यौगिक, खनिज लवण, कार्बनिक अम्ल, एस्कोर्बिक-अम्ल और एमिनो-अम्ल इत्यादि अलग-अलग संघटक पाये जाते हैं| इनमे पाये जाने वाले पॉलीफिनोलिक यौगिक, ना केवल एंटी-ऑक्सीडेंट सक्रियता मे योगदान देते हैं, बल्कि ताप-घात से बेहतर तरीके से लड़ने मे मदद करते हैं| गर्मियों मे आँवला, नींबू, तुलसी, पुदीना, कच्ची प्याज और बिलपत्र का फल इत्यादि के प्रयोग से ताप-घात से बचाव होता हैं|

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