प्रदर्शनी में दिखा विभिन्न प्रजाति का बकरी
- बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पशु प्रक्षेत्र परिसर के सिरोही नस्ल की बकरी रहा ओवरआल चैंपियन
- पटना के जाकिर हुसैन का जमुनापारी नस्ल ‘सुल्तान’ बना चैंपियन
बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में बकरी प्रदर्शनी-सह-गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस प्रदर्शनी में पटना, मुजफ्फरपुर, शेखपुरा व पटना के आस-पास के क्षेत्रों से लगभग 95 बकरी पलकों ने पंजीकरण कराया। प्रदर्शनी में 34 पुरुष बकरी और 90 मादा बकरियों को लाया गया। इस अवसर पर आयोजित गोष्ठी में किसान और पशुपालकों को बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय के प्राध्यापकों द्वारा बकरी पालन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां दी गयी। पशु पोषण विभाग के डॉ.संजय कुमार ने बकरियों में चारा का प्रबंधन और उनके खानपान की वैज्ञानिक विधि के बारे में बताया। उन्होंने बच्चे देने वाली बकरियों में कमजोरी के समाधान पर बोलते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में बकरी को गुड़ और गेहूं का भूंसा खिलाएं। डॉ. रमेश कुमार सिंह ने नस्लों के चयन पर व्याख्यान दिया उन्होंने कहा कि ऐसे ब्रीड का चयन करना जरूरी है जिनके खाने का खर्च कम हो, बच्चा ज्यादा हो और लागत कम आये, उन्होंने ब्लैक बंगाल को सबसे सर्वोत्तम ब्रीड बताया।डॉ. संजीव कुमार ने ब्रूसेल्स, एफ.एम.डी, पीपीआर और चेचक जैसे बकरियों के बीमारी के बारे में बताया साथ ही उनके लक्षण को पहचानने की विधि और उनके उपचार के बारे में बताया, उन्होंने कहा की बकरियों में पीपीआर बहुत ही गंभीर बीमारी है जिसमे तेज़ बुखार, आँख, नाक, मुँह से पानी गिरना, और मुख खोलकर देखने में जीभ और मुँह के अंदर धब्बे का नज़र आना और दस्त होना मुख्य लक्षण है। उन्होंने आगे कहा की अगर बकरी मर जाती है तो उसके शव को जांच कराकर इसकी पुष्टि कर सकते साथ ही पीपीआर पाए जाने पर अन्य बकरियों को अलग रखा जाये। समय-समय पर टीकाकरण से इन बीमारियों से बकरियों को बचाया जा सकता है। कंप्यूटर इंजीनियर से बकरीपालक बने संतोष कुमार ने कहा कि अभी तक बिहार की कोई ब्रीड का पंजीकरण नहीं हुआ है जो दुर्भाग्य की बात है, हम आज तक बाहर की ब्रीड को प्रमोट करते है। उन्होंने कहा की बकरीपालन में उद्यम स्थापित करने के लिए देशी नस्लों से शुरुआत करें, साथ ही कहा की किसान उत्पादन कर सकते हैं मगर उन्हें मार्केटिंग करने गुर सिखाने की जरूरत है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित बिहार के पूर्व डीजीपी एस.के.भारद्वाज ने कहा कि बकरी का दूध बहुत पौष्टिक होता है जिसे बढ़-चढ़कर उपयोग में लाने की जरुरत है, उन्होंने बताया की जमुनापारी और तोतापरी को दुग्ध उत्पादन के दृष्टिकोण से पाले और दूध के विपणन में जोर लगाए। बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. जे.के. प्रसाद ने कहा की नस्ल के सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है, साथ ही किसानों को इस और जागरूक करना आवश्यक है, ये एक ऐसी उद्यम है जिसमे कम लागत से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। इस अवसर पर महाविद्यालय के पशुधन उत्पादन प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से बकरी के दूध से बने पनीर, सॉफ्ट-ड्रिंक्स, मीटबॉल्स, सेवई आदि का डिस्प्ले किया गया।
इस कार्यक्रम में डीन बिहार वेटनरी कॉलेज, डॉ जे.के. प्रसाद, निदेशक अनुसंधान डॉ रविन्द्र कुमार, निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. ए.के ठाकुर, निदेशक छात्र कल्याण डॉ. रमण त्रिवेदी, डॉ.आर.एन.सिंह, एंटरप्रेन्योर संतोष कुमार, डॉ. पंकज कुमार, डॉ. सरोज रजक, डॉ. पुष्पेंद्र, डॉ. संजय भारती, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. सुषमा, डॉ. गार्गी, डॉ. रोहित, डॉ. अंजय, डॉ. अजीत, डॉ. पल्लव, डॉ. बिपिन, डॉ. दीपक, डॉ. कौशिक, डॉ. एस.पी.साहू, डॉ. प्रमोद, डॉ. सूचित, डॉ. दुष्यंत, डॉ. सुधा, डॉ. सविता, डॉ. अवनीश गौतम आदि मौजूद थे।
रिजल्ट
ब्लैक बंगाल नस्ल में:
अमित कुमार, बिपिन कुमार झा, नेहाल आलम
बरबेरी नस्ल में:
स्वस्तिक फाउंडेशन, प्रमोद कुमार, अंजलीका फार्म
सिरोही नस्ल में:
आनंद कुमार, सुदामा देवी
देशी नस्ल में:
फ़याज़ अहमद, इरफ़ान आलम, राहुल कुमार, मो. सोनू
जमुनापारी नस्ल में
बंटी अली, मीनू कुमारी, जाकिर हुसैन
तोतापरी:
डेविस
सांत्वना पुरस्कार
शिव कुमार सिंह, शीतल यादव, कासिम खान, मधु इंटीग्रेटेड, शीतल प्रसाद, शिव कुमार
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