पशुओं में बाह्य परजीवी से नुकसान, बचाव एवं उपचार

0
334

पशुओं में बाह्य परजीवी से नुकसान, बचाव एवं उपचार

डा0 पंकज कुमार1, डा0 राज किशोर शर्मा1, डा0 सुधा कुमारी,2 डा0 अनिल कुमार3 एवं डा0 सरोज कुमार रजक4

1 – सह प्राध्यापक, परजीवी विज्ञान विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना – 800014.

2 – सह प्राध्यापक, सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना – 800014.

3 – सह प्राध्यापक, औषधी विज्ञान विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना – 800014.

4 – सह प्राध्यापक, प्रसार शिक्षा विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना – 800014.

 

परिचय –

बाह्य परजीवी का संक्रमण पशु के शरीर के बाहरी अंगों एवं त्वचा पर होता है। इसमें किलनी, चमोकन, मक्खी, मच्छर, जोंक इत्यादि आते है। इसके लम्बें समय तक खून चूसने से शरीर में रक्त की कमी हो जाती है।

नुकसान/हानि – 

  1. किलनी (Tick) जानवरों के शरीर पर चिपककर उनको काटती हैं और खुजली उत्पन्न करती है। यदि किलनियों की अधिकता हो जाये तो जानवर दुबला – पतला हो जाता है उसके बाल झड़ने लगते हैं।

त्वचा को काट कर घाव बनाते है जिससे जीवाणु का इन्फेकसन भी हो सकता है। यह पशु का खून चूसकर एनिमिक कर देता है। जिसको एनिमिया कहते है। यह कुछ जहर भी पशु के शरीर में छोड़ता है। जिससे पशु में लकवा भी मार देता है। यह बहुत सारे रक्त प्रोटोजोआ, (जैसे- बैबेसिया, थिलेरिया, एनाप्लाज्मा), जीवाणु, विषाणु रोग को भी फैलाता है।

  1. कुटकी (Mite) यह भी किलनी जैसी होती है जो जानवरों को बिल्कुल उसी प्रकार हानि पहुचाती है।

3.पिस्सू (Fleas) ये बहुत छोटे प्रकर के पतंगें हैं जो जानवरों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें बेचैन कर देते हैं।

READ MORE :  पशुओं में खुर और मुंह पका रोग के लक्षण, इलाज एवम् रोकथाम के उपाय

  1. मच्छर (Mosquitos) ये भी जानवरों को बुरी तरह परेशान करते हैं।

  1. रेत मक्खी (Sand Fly) ये छोटी – छोटी मक्खियॉ होती हैं जो जानवरों के शरीर पर चिपक कर उनका रक्त चूसती हैं और बीमारी भी फैलाते है।

  1. द्रष्टव्य – मक्खियों के बहुत प्रकार हैं जो जानवरों को परेशान करने के साथ – साथ खून पीते हैं और बीमारी भी फैलाते है। जैसे – डांस (होर्स फ्लाई), बोट फ्लाई इत्यादि।

  1. जॅूं (Lice) विभिन्न प्रकार की होती हैं और जानवरो का रक्त पीकर उनको दुर्बल कर देती हैं।

चूंकि पशु को काटती रहती है अतः जानवर को हर समय खुजली होती रहती है।

  1. खटमल (Bug) भी कभी – कभी जानवरों को परेशान कर देते हैं जो उनकी बेचैनी के कारण होते हैं। साथ – साथ उनका खून पीता है।

बचाव एवं उपचार :-

  1. हर प्रकार के कीड़े मकोड़ो से सुरक्षा के लिए जानवरों के रहने के स्थान भली – भॉंति स्वस्छ रखें। वहॉं पर डी.डी.टी. छिड़ककर उनको आने का रास्ता बन्द कर देतें हैं।
  2. पीड़ित जानवरों की किलनियों, चिचड़ियों, कुटकी और जॅूं आदि को नष्ट करने के लिए 5 मि0ली0 साइपर-माईथीन का घोल 10 लीटर पानी में घोलकर जानवरों के शरीर पर मलें।
  3. इस हेतु अैर भी दवायें बाजार से प्राप्त हो जाती हैं जैसे BHC, अल्ड्रीजन (Aldrigen), डायल्ड्रीन, क्लोरडेन(Chlordane), टॉक्सेफेन Toxaphen) इत्यादि।
  4. मेलाथियान 50 प्रतिषत भार/आयतन का 0.1 प्रतिशत विलयन पषु के षरीर पर छिड़के तथा इसका 0.2 प्रतिषत विलयन पशुओं के निवास स्थान एवं ओसारे पर सर्वत्र छिड़के। इसे आप कभी भी घास, चारा, दाना, पानी एवं नांद पर मत छिड़के।
  5. सुमिथिऑन – 50 प्रतिषत मि0ली0 दवा 20 लीटर जल में घोलकर जॅूं पिस्सू और कुटकी का नाश करने के लिए छिड़के तथा 100 मि0ली0 दवा 10 लीटर जल में घोलकर किलनियों को नष्ट करने के लिए छिड़के। यह दवा विषेषकर मुर्गी पालन व्यवसाय के लिए अधिक उपयोगी है किन्तु सावधान रहें कि यदि किसी जीव को इस दवा का विषैला प्रभाव लग गया हो तो इसका प्रतिविश हमेशा पास में रखें और उसके तत्क्षण उपचार कर दें। प्रतिदिन विष रूप में एट्रोपीन सल्फेट 30 से 50 मि0ग्रा0 बड़े मवेशी एवं पशुओं को तथा 0.6 मि0ग्रा0 कुत्तों के लिए प्रयोग करें।
  6. लोरेक्सेन भी जॅूंओं को नष्ट करने के लिए बहुत लाभप्रद है। इससे पिस्सू किलनी और कुटकी इत्यादि भी मर जाती है। यह दवा पाउडर, क्रीम और लोषण तीनों रूपों में मिलती है। पाउडर पानी में घोलकर शरीर पर मला जाता है।
  7. फलेमैटिक – स्किन वेजी. ऑयल – पिस्सू, किलनी, कुटकी और जॅू द्वारा मवेशी और जानवरों को परेशान करने पर इसे उनके शरीर पर लगायें।
  8. पेक्टोसाइड सॉल्यूशन (Pektocide Solution) – मवेशी, ऊॅंट को 1 मि0ली0 दवा 1 लिटर जल में मिलाकर सम्पूर्ण शरीर पर स्प्रे करें। गहरे रूप से धोयें तथा पुनः लगाएं। पशुओं को कम से कम 1 मिनट तक इसमें डुबाये रखें।
  9. आइभर-मेकटीन – 1 मि0ली0/50 कि0ग्रा0 के शरीर भार के हिसाव से चमड़ी/ त्वचा में देने अंतः परजीवी के साथ – साथ बाह्य परजीवी भी मर जाता है।
  10. पशु शरीर, पशु आवास एवं बैठने के स्थान पर 5 प्रतिशत गैमैक्सिन घोल या डी0डी0टी0 का छिड़काव करना लाभदायक होता है।
  11. बुटक्स जैसे प्रभावकारी दवाइयॉं चमोकन के लिए 2 मि0ली0, माइट्स के लिए 4 मि0ली0, जॅूं के लिए 1 मि0ली0 तथा मक्खी के लिए 2 मि0ली0 एक लीटर पानी में मिला, घोल बनाकर एवं हाथों में ग्लबस पहनकर, पशु शरीर पर रगड़ कर लगाना लाभकारी होता है।
  12. टेटमोसोल साबुन भी काफी फायदेमंद होता है।
READ MORE :  Heart Attack( Heart Failure) in Dogs

इन दवाओं को लगाते समय निन्म बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

  1. दवा लगाते समय या छिड़काव करते समय औषधि ऑख, कान, नाक और मुँह पर नहीं पड़नी चाहिए।
  2. दवा छिड़काव या लगाने के समय पशु के मुख पर जाली लगा देने चाहिए, जिससे पशु उसे चाट न सके।
  3. दवाओं का घोल या छिड़काव चारा, दाना, घास या किसी खाद्य सामग्री पर नहीं पड़ना चाहिए।

पशुओं में बाह्य परजीवीयो की रोकथाम

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON