अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिये-भाग 20

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*अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिये – भाग 20*

आज बात करते हैं गाय के बाह्य परजीवियों की। ये परजीवी गाय के शरीर पर रहकर उसके खून पर पलते हैं। ये मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं

1. टिक्स (चिचड़ी)
2. लाइस (जूँ)
3. माइट्स (जमजूँ)
4. मक्खी और
5. मच्छर

अगर आपका पशु बाह्य परजीवियों से ग्रसित है तो वह कमजोर हो जाएगा। उसका उत्पादन घट जाएगा। उसकी त्वचा बदरंग हो जाएगी और बाल झड़ जाएंगे। इन परजीवियों के काटने से उसे खुजली आएगी और वह अपना शरीर दीवार या पेड़ के निकले हुए नुकीले कोने से रगड़ता हुआ मिलेगा और कई बार इसी कोशिश में खुद को जख्मी भी कर लेगा।

कभी कभी यह भी देखने में आता है कि पशु के शरीर पर बाह्य परजीवी लगे होने की स्थिति में कुछ पक्षी भी आकर उन्हें अपना निवाला बनाना चाहते हैं और इसी जद्दोजहद में वह पशु के शरीर को अपनी चोंच से घायल भी कर देते हैं।

*ये बाह्य परजीवी लगते किन पशुओं को हैं?*

पहले तीन बाह्य परजीवी अक्सर कमजोर पशुओं को ही लगते हैं। स्वस्थ पशु को इनसे त्रस्त होते कम ही देखा जाता है। चौथे परजीवी अर्थात मक्खी को भी कमजोर और रोगग्रस्त पशु के आस पास ही ज्यादा देखा जाता है। स्वस्थ पशु तो इनको भी अपनी पूंछ से उड़ाता रहता है। रही बात पांचवे परजीवी की। यह भी उसी वातावरण में ज्यादा पैदा होते हैं जहां गन्दगी का साम्राज्य होता है।

ये परजीवी पशु का खून तो चूसते ही हैं साथ में खून चूसने की प्रक्रिया के दौरान बहुत से अन्य परजीवी पशु के शरीर में छोड़ देते हैं जिनसे पशु विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है।

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टिक्स (चिचड़ी) जमीन पर अंडे देती है जबकि लाइस (जूँ) और माइट्स (जमजूँ) पशु के शरीर पर अंडे देती है। मक्खी गोबर पर अंडे देती है और मच्छर पशुशाला के आसपास रुके हुए पानी में।

पशु के पोषण स्तर और उसमें बाह्य परजीवी लगने में बहुत ही गहरा सम्बन्ध है। अगर पशु को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन दी गई है तो उसके अंदर कुछ विशेष इम्युनोग्लोबुलिन्स बनती है और पशु के खून में घूमती रहती हैं। जब उस पशु के ऊपर कोई बाह्य परजीवी आक्रमण करके खून चूसता है तो उन इम्युनोग्लोबुलिन्स की उपस्थिति के कारण बाह्य परजीवी को वह खून अच्छा नहीं लगता और वह परजीवी उस पशु को छोड़कर ऐसे पशु की तलाश में निकल जाता है जिसका खून वह आराम से पी सके।

इसलिए अगर अपने पशुओं को बाह्य परजीवियों से बचाना चाहते हो तो उसे पर्याप्त मात्रा में हरा चारा और रातिब मिश्रण खिलाइए ताकि पशु को कभी भी प्रोटीन की कमी ना होने पाए। पशु में प्रोटीन की कमी होगी तो वह कमजोर हो जाएगा। उसे बाह्य परजीवी ज्यादा लगेंगे। परजीवी लगे तो उसका खून चूसेंगे और उसे और कमजोर करेंगे और यह चक्र चलता ही रहेगा।

अब बात करते हैं इनकी *रोकथाम* की। पशुओं को बाह्य परजीवियों से बचाने के लिए अपने पशु और पशुशाला की साफ सफाई रखिये। पशु को नियमित रूप से खुरेरा कीजिये। अगर पशु को बाह्य परजीवी लग ही जाएं तो उसका पोषण का स्तर सुधारिये और पशु के शरीर पर बाह्य परजीवी मारने वाली दवा लगाइए। ना केवल शरीर पर बल्कि उसे बांधने की रस्सी और पशुशाला की दीवारों और फर्श तक पर दवा का छिड़काव कीजिये।

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ना केवल अपने पशु और पशुशाला में उपचार करिए बल्कि अपने पड़ोसियों को भी उसी समय यही उपचार करने के लिए कहिए। क्योंकि जब आप उपचार करेंगे तो हो सकता है कुछ परजीवी पड़ोसी के पशुओं में पहुंच जाए और बाद में फिर से आपके यहां आ धमके। तो इसका कम्युनिटी लेवल पर उपचार करना सबसे बेहतर है।

मक्खी और मच्छर से बचाव के लिए पशुशाला में सफाई रखिये। गोबर और मूत्र को तुरंत ही वहां से हटा दीजिये क्योंकि मक्खी मच्छर इन्हीं सबमें अंडे देते हैं। पशुशाला के फर्श पर चूने का प्रयोग कीजिये। साथ ही हर तीन माह बाद पशुशाला की दीवारें चूने से पोतते रहिये।

आज के लिए बस इतना ही।

*डॉ संजीव कुमार वर्मा*
*प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)*
*केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ*

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