भारत में बर्ड फ्लू: मीडिया का बनाया हुआ हाउवा

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भारत में बर्ड फ्लू: मीडिया का बनाया हुआ हाउवा

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), राजस्थान, हरियाणा और केरल में बर्ड फ्लू (Bird Flu) दस्तक दे चुका है। बर्ड फ्लू से इन्ह राज्यों में सैंकड़ों प्रवासी पक्षियों, कौवों और मुर्गियों की मौत (Death) हो चुकी है। ये सभी राज्य और इन राज्यों में जहां-जहां भी बर्ड फ्लू से पक्षियों या कौवों की मौतें हुईं हैं वो सभी अलर्ट पर हैं। इसके अलावा ऐसे इलाकों में पोलट्री उत्पादों पर बैन लगा दिया गया है। यानी ऐसे इलाकों में मछली, (Fish) चिकन या अंडों (Chicken or Egg) की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि बर्ड फ्लू क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और आखिर क्यों पक्षियों या मुर्गियों को इस बीमारी के कारण मारना पड़ता है।

क्या है बर्ड फ्लू:-

बर्ड फ्लू (Bird Flu) जिसे एवियन इन्फ्लुएंजा (Avian Influenza) भी कहा जाता है एक वायरल संक्रमण है। इसके स्ट्रेन भी कोरोना की तरह कई तरह के होते हैं, लेकिन (H5N1) बर्ड फ्लू पक्षियों से इनसानों में फैल सकता है। यह पक्षियों में फैलता है। एवियन इन्फ्ल्युएंजा या बर्ड फ्लू चिकन, टर्की, गीस, मोर और बत्तख जैसे पक्षियों में तेजी से फैलता है। यह इतना जानलेवा है कि पक्षियों के अलावा इससे इनसानों की भी मौत हो सकती है। हालांकि इनसानों को वायरस होने की आशंका कम रहती है, लेकिन अगर यह इनसान को हो जाए तो उसकी मौत भी हो सकती है। बर्ड फ्लू का पहला मामला 1997 में हॉन्ग-कॉन्ग में सामने आया था।

अभी हाल ही में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), राजस्थान, हरियाणा और केरल से आई बर्ड फ्लू की ख़बरों ने सरकार तथा मुर्गी पालकों के माथे पर चिंता की लकीरें डालने के साथ ही आम जन मानस में पोल्ट्री उत्पादों को लेकर भय का वातावरण बना दिया है| मानव स्वास्थ या पोल्ट्री बर्ड्स के नजरिये से देखें तो स्थिती उतनी डरावनी नहीं है, जितनी प्रचारित की जा रही है | कहते हैं अज्ञानता ही भय का कारण है, इसलिए आईये जानते हैं, बर्ड फ्लू और इसके कारक H5N1 तथा H5N8 वायरस के बारे में|

बर्ड फ्लू वायरस से होने वाला एक रोग है, जो इन्फ्लुएंजा A वायरस द्वारा पक्षियों के संक्रमण से शुरू होता है| इन्फ्लुएंजा A वायरस के कई प्रकार हो सकते हैं, जिन्हें वायरस कण के ऊपर पाए जाने वाले 2 प्रोटीन्स हीमएग्लुटिनिन H (heamagglutinin) और न्युरामिनीडेज N (neuraminidase) के द्वारा पहचाना जाता है| इस आधार पर 18 प्रकार के हीमएग्लुटिनिन H और 11 प्रकार के न्युरामिनीडेज N चिन्हित किये गये हैं | इस हिसाब से इन्फ्लुएंजा A वायरस के कई उपप्रकार (sub type) हो सकते हैं| मसलन ग्वालियर जू के मृत पक्षियों के सैंपल में H5N8 टाइप का इन्फ्लुएंजा A वायरस पाया गया है|

संक्रमण के लिए अधिक ज़िम्मेदार इन्फ्लुएंजा A वायरस के प्रकार – इन्फ्लुएंजा A वायरस के पांच ही प्रकार मनुष्यों में संक्रमण के लिए अधिक ज़िम्मेदार हैं जैसे H5N1, H7N3, H7N7, H7N9, और H9N2 | पशु पक्षियों में इन्फ्लुएंजा वायरस की पहचान करने के लिए विशेष प्रयोग शालाएं अधिकृत हैं, जिनमे भोपाल की राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संसथान(NIHSADL) प्रमुख है| गौरतलब है की हाल ही में दिल्ली तथा ग्वालियर जू के संक्रमित पक्षियों के सेम्पल्स NIHSADL भेजे गए थे, जिसमे H5N8 प्रकार के इन्फ्लुएंजा वायरस होने की पुष्टि की गयी है | यही राहत की सबसे बड़ी बात है, क्योंकि विश्व भर में अभी तक मनुष्यों में H5N8 से संक्रमण की कोई घटना सामने नहीं आई है | इन्फ्लुएंजा A वायरस का यह स्ट्रेन फ़िलहाल मुख्यतः जलीय पक्षियों तक ही सीमित है | इस के अलावा मनुष्यों को बर्ड फ्लू संक्रमण से बचाने के लिए वैक्सीन तथा संक्रमण की स्थिति में कारगर दवाएं भी उपलब्ध हैं|

पक्षियों में बर्ड फ्लू के लक्षण – पक्षियों में संक्रमण के दौरान परों का झड़ना, परों का बिखरना, भूख न लगना, सुस्त पड़े रहना, कलगी तथा ललरी का नीला पड़ना, अंडे कम देना, अण्डों में पतलापन, हरे रंग के दस्त, ठीक से खड़े न हो पाना व न चल पाना , नाक से पानी आना तथा सांस लेने में तकलीफ होना आदि प्रमुख लक्षण हैं|

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मनुष्यों में फ्लू के लक्षण – मनुष्यों में यह रोग संक्रमित पक्षियों के संपर्क में आने से फैलता है| मनुष्यों में रोग के मुख्य लक्षण तेज़ बुखार आँख नाक से पानी आना,खांसी तथा सांस लेने में दिक्कत होना है| कुछ गंभीर मामलों में मरीज़ की जान तक जा सकती है , ख़ास तौर पर बच्चे तथा बूढों के लिए फ्लू अधिक घातक है|

कैसे फैलता है यह वायरस – इन्फ्लुएंजा A वायरस संक्रमित पक्षी के संपर्क में आने से फैलता है | कई बार यह वायरस पक्षी को बिना नुक्सान पहुँचाये उसके शरीर में पड़ा रहता है, पर पक्षियों के अधिक घनत्व वाले स्थानों में जैसे पोल्ट्री फार्म्स में ये गंभीर रूप धारण कर लेता है | यही कारण है कि, कोमर्शिअल पोल्ट्री फार्म्स में यह संक्रमण तेज़ी से फैलता है और बड़ी संख्या में मुर्गियों की मौत होती है| मनुष्यों में संक्रमण, रोगी पक्षी को हैंडल करने के दौरान फैलता है तथा कई बार महामारी का रूप ले लेता है| बर्ड फ्लू को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित तथा संक्रमण की आशंका वाले सभी पक्षियों को मारना पड़ता है , इस प्रक्रिया को कल्लिंग (culling) कहते हैं| कल्लिंग के बाद मृत पक्षियों को चूने तथा ब्लीचिंग पाउडर के साथ गाड़ दिया जाता है| जो भी व्यक्ति संक्रमित पक्षियों के संपर्क में आता है उसे मास्क, दस्ताने आदि अनिवार्य रूप से पहनना चाहिए|

बर्ड फ्लू होने पर क्यों मारे जाते हैं चिकन
दरअसल पोलट्री या चिकन के साथ व्यक्तियों का सीधा संपर्क रहता है और चिकन में यह संक्रमण तेजी से फैलता है। इसलिए पोलट्री फार्म में बर्ड फ्लू फैलने पर इनहें मारना पड़ता हैताकि यह संक्रमण ज्यादा ना फैले और इनसान तक ना पहुंचे। इसके अलावा पर्यटन स्थलों में जहां बत्तखें होती हैं और वहां सैलानियों की संख्या काफी ज्यादा रहती है अगर उस जगह भी बर्ड फ्लू फैलता है तो उन्हें मारना पड़ता है। इसे कलिंग (Culling) कहा जाता है।

क्या हैं बर्ड फ्लू लक्षण
बर्ड फ्लू या एवियन इन्फ्लुएंजा के लक्षण भी सर्दी जुकाम की तरह ही होते हैं। बर्ड फ्लू होने पर गले में सूजन, मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में समस्या, कफ, बुखार या डायरिया जैसी समस्या हो सकती है।

एशिया में मारे गए थे 10 करोड़ से ज्यादा चिकन
बर्ड फ्लू अब तक कई बार फैल चुका है। एक मामले में बर्ड फ्लू इनसान से इनसान को फैल चुका है। साल 2004 और 2005 में बर्ड फ्लू (H5N1) को रोकने के लिए एशिया में ही 10 करोड़ से ज्यादा मुर्गियों को मारा गया था। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तरीका उतना कारगर नहीं है। पक्षियों या चिकन को मारने से फ्लू के फैलाव को नहीं रोका जा सकता है। बर्ड फ्लू (H5N1) दस दिनों तक भी संक्रमित पक्षियों की लार या मल में जीवित रहता है।

बर्ड फ्लू से बचने के लिए ऐसे क्षेत्र जहां इसके मामले सामने आ चुके हैं वहां चिकन, मीट, मछली या अंडा खाने से परहेज करें। हालांकि आप यदि फिर भी नॉनवेज से खाने से परहेज नहीं कर पा रहे हैं तो चिकन, मीट या अंडे को पूरी तरह से उबालें। ऐसे चिनक, मीट या अंडा जो बर्ड फ्लू से संक्रमित है उसे आधा कच्चा या बिना पूरी तरह से पकाए बिना खाने से भी बर्ड फ्लू हो सकता है। इसके अलावा जिस जगह पर बर्ड फ्लू के मामले सामने आए हैं और उसे सरकार या प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित किया गया है वहां ना जाएं।

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पक्षियों को बर्ड फ्लू एवं अन्य कई (बिमारियों) हो सकती है | ये बिमारियों एक पक्षी से दूसरे पक्षी में व दूषित पानी से अथवा प्रभावित पक्षी के मल – मूत्र पंखों आदि के जरिये पूरे झूंड को तेजी से प्रभावित कर सकती है |

बचाव के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाएं |:-
दूरी बनाये रखें :- पक्षियों को बाड़े में बंद रखिये केवल पोल्ट्री फार्म की देखभाल करने वालों को ही पक्षियों के पास जाना चाहिए | अनावश्यक लोगों को बाड़े में प्रवेश न करने दें | मुर्गे – मुर्गी को दुसरे पक्षियों / पशुओं से न मिलने दें

साफ सफाई रखें :- बाड़े में और उसके आस – पास साफ – सफाई बहुत जरुरी है |इस प्रकार जीवाणु और विषाणुओं से बचा जा सकता है | पक्षियों के बाड़े को साफ – सुथरा रखें और पक्षियों का भोजन और पानी रोजाना बदलें | पौल्ट्री फार्म – बाड़े को नियमित रूप से संक्रमण मुक्त करते रहें |
पौल्ट्री फार्म में बिमारियों को प्रवेश करने से रोकें :-

अपने आप को और बाजार या अन्य फार्मों में अन्य पक्षियों के सम्पर्क में आनेवाली हर चीज की साफ – सफाई रखें | नये पक्षी को कम से कम 30 दिन तक स्वस्थ पक्षियों से दूर रखें | बीमारी को फैलने से रोकने या बचाव के लिये पौल्ट्री के सम्पर्क में आने से पहले और बाद में अपने हाथ कपड़ों और जूतों को धोये तथा संक्रमण मुक्त करें | बीमारी उधार न लें :- यदि आप अन्य फार्मों से उपकरणों औजारों या पोल्ट्री को उधार लेते हैं तो अपने स्वस्थ पक्षियों के सम्पर्क में आने से पहले भली – भांति उनकी सफाई करें और संक्रमण मुक्त करें |

संकेतों को जाने :- पक्षियों पर नजर रखें, यदि अधिक पक्षी मार रहें हैं आँखों, गर्दन और सर के आसपास सूजन हैं, रिसाव हो रहा है, पंखों कलगी और टांगों का रंग बदल रहा हो और पक्षी अंडे कम देने लगे है तो यह सब खतरे के संकेत है | पक्षियों में अचानक कमजोरी, पंख गिरने और हरकत कम होने पर नजर रखें |

बर्ड फ्लू एक ज़ूनोटिक रोग है और यह मनुष्यों को भी प्रभावित करता है। मनुष्यों में बर्ड फ्लू संक्रमित मुर्गियों और उनके दूषित कचरे के संपर्क में आने से फैलता है। वायरस का प्रसार बीमार मुर्गियों के अंडों से भी होता है। मनुष्यों में वायरस मुंह, नाक और आंखों के माध्यम से प्रवेश कर सकता है, इसलिए पोल्ट्री किसान सावधानी बरतें।

पोल्ट्री में बर्ड फ्लू को कैसे रोकें?

रोकथाम का पहला और सबसे महत्वपूर्ण साधन जैव-सुरक्षा (बायो-सिक्योरिटी) है। पोल्ट्री में बर्ड फ्लू और अन्य बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए पोल्ट्री किसान जैव-सुरक्षा उपायों को जानें और उनका पालन करें।

अपने फार्म में जंगली पक्षियों के आकर्षण को कम करें। जंगली पक्षी फीड और पानी की तलाश में पोल्ट्री फार्म में आ सकते हैं, इसलिए अपने फार्म में खुले में फीड और पानी न रखें।

पोल्ट्री फार्म में आने वाले लोगों और उपकरणों की पहुंच को नियंत्रित करें। यदि बर्ड फ्लू से संक्रमित पक्षी किसी क्षेत्र में पाए जाते हैं, तो उस क्षेत्र के किसान अपने पोल्ट्री फार्म पर आने वाले लोगों, वाहनों या उपकरणों की आवाजाही को कम कर दें।

उपकरण, वाहन और शेड को नियमित रूप से साफ और कीटाणुरहित रखें। वाणिज्यिक पोल्ट्री उत्पादन चक्र के अंत में शेड को साफ करें। शेड से निकलने वाले कचरे को फार्म से दूर फेंके।

विश्वस्त स्रोतों से चूज़े खरीदें। केवल उन स्रोतों से चूज़े प्राप्त करें जो यह सत्यापित कर सकें कि वे रोग मुक्त हैं। नए पक्षियों को दो सप्ताह (क्वारंटाइन) के लिए अलग-अलग शेड में रखें ताकि वे स्वस्थ रहें।

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स्वास्थ्य और पशुपालन विभाग को बीमारी और पक्षियों की मौत की रिपोर्ट करें। यदि बीमारी की पुष्टि हो जाती है, तो तत्काल कार्रवाई से क्षेत्र के अन्य पक्षियों को बचाने में मदद मिलेगी।

रोगों के प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए आहार में विशेष दवाओं का उपयोग करें। आहार में खनिज (जस्ता और तांबा) और विटामिन (ई और सी) की मात्रा बढ़ाएं।
जल संसाधनों (झीलों, तालाबों, नदियों) के साथ रहने वाले किसानों के लिए संदेश
भारत के अधिकतर भू-भाग में प्राकृतिक और गैर-प्राकृतिक झीलें / तालाब / दलदली क्षेत्र हैं जहाँ हर साल बड़ी संख्या में पक्षी प्रवास करते हैं। इन भागों में पोल्ट्री फार्म बर्ड फ्लू की चपेट में आ सकते हैं इसलिए किसानों को संवेदनशील रहना चाहिए। यदि पोल्ट्री फार्म के आस-पास मृत पक्षी पाए जाते हैं, तो वन विभाग और पशुपालन विभाग से तुरंत संपर्क करना जरूरी है।

यदि आप एक मृत पक्षी पाते हैं तो क्या करें?

मृत पक्षियों की रिपोर्ट अपने राज्य के स्वास्थ्य विभाग, पशुपालन विभाग या वन विभाग को दें। कभी भी संक्रमित मुर्गी को न छुएँ और किसी विशेषज्ञ की सलाह लें। यदि आवश्यक हो तो व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण जैसे कि मास्क, दस्ताने, सुरक्षा चश्मे, पीपीई किट, रेस्पिरेटर आदि पहनकर ही फार्म में जाएं।

रोकथाम के उपायों का सख्ती से पालन करके बर्ड फ्लू को रोका जा सकता है। डरें नहीं, सावधान रहें।

अफवाहों से बचें- जैसा कि हम जानते हैं मुर्गियों में होने वाला बर्ड फ्लू एक सामान्य बीमारी ही है जिसे आज तक पूरे भारत में एक भी आदमी नहीं मरा है लेकिन मीडिया के द्वारा इस रोग को इतना भयावह बता दिया जाता है कि लोगो में भ्रम तथा डर की स्थिति पैदा हो जाती है। जो भी लोग अंडा तथा मुर्गी मांस का उपयोग करते हैं वो इसका उपयोग करना बंद कर देते हैं जिससे कि पशुपालन व्यवसाय से जुड़े करूंगा व्यवसाय बिल्कुल चौपट हो जाता है। बर्ड फ्लू मुर्गियों मे होने वाला अन्य बीमारियों की तरह ही एक बीमारी है जिससे कि रोका जा सकता है वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करके। हमारी भारतीय पद्धति में मुर्गी मांस को पकाने का तरीका भी इतना अच्छा है कि उसको उच्च तापक्रम पर पकाया जाता है जिससे कि बैक्टीरिया या वायरस उस तापक्रम पर 100% मर जाते हैं अतः अगर इसको अच्छी तरह से पकाकर खाया जाए तो मनुष्य इस बीमारी से 100% सुरक्षित है। हम यह भी जानते हैं कि भारत मैं मुर्गी पालन व्यवसाय एक बहुत ही व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक तरीके से किए जाने वाला व्यवसाय है इसी की बदौलत आज मुर्गी पालन व्यवसाय में भारत , विश्व के अग्रणी देशों में से अव्वल है तथा इसका स्थान अंडा उत्पादन में तीसरा और मुर्गी मांस उत्पादन में चौथा है। हमारे देश की मुर्गी उत्पादक बहुत ही अच्छी तरीके से मुर्गियों का प्रबंधन श्रेष्ठ मानकों को अपनाकर मुर्गी पालन करते हैं तथा उच्च कोटि का बायोसिक्योरिटी मेजर को अपनाते हैं। मुर्गी पालकों के हित को देखते हुए सरकार को ही पशुपालन विभाग को दिशा निर्देश जारी करना चाहिए जिससे कि लोग अफवाहों से बचें तथा बर्ड फ्लू को हव्वा न बनाएं। अतः मेरा मानना है कि बर्ड फ्लू के दौरान भी आप मुर्गी मांस खाइए, अंडा खाइए, अच्छी तरह पक्का कर खाइए ,अपना रोग से लेने की क्षमता को बढ़ाइए ,सुरक्षित रहिए। साथ ही देश के मीडिया समूहों को भी इस बात का ध्यान देना होगा कि वह ऐसी खबरों को ना प्रचारित एवं प्रसारित करें जिससे कि देश में बर्ड फ्लू के प्रति भय का वातावरण हो

डॉ राजेश कुमार सिंह, पशुधन विशेषज्ञ ,जमशेदपुर, झारखंड

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