लम्पी स्किन डिजीज – वर्तमान संदर्भ में एक उभरती हुई बीमारी

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लम्पी स्किन डिजीजवर्तमान संदर्भ में एक उभरती हुई बीमारी

डॉ. भूपेंद्र कस्वां

सहायक आचार्य खालसा पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय अमृतसर

परिचय:  लम्पी स्किन डिजीज एक वाहक जनित (मच्छर, मखियों, चिंचड़ द्वारा सूक्ष्मजीव का संचरण होता है) विषाणु जनित रोग है जो मुख्यतः गोवंश एवं भैंस वंश को प्रभावित करता है। इस रोग का रोग कारक केप्रीपॉक्स वायरस (लम्पीस्किन डिजीज वायरस) है जो की पॉक्सविरिडी परिवार एवं कॉर्डोपॉक्सविरिडी उपपरिवार एवं केप्रीपॉक्स वायरस वंश से संबंध रखता है। इस रोग का मुख्य लक्षण तेज बुखार, शरीर पर बड़ी गाँठो का बनना, श्वसन तंत्र का प्रभावित होना इत्यादि है।लम्पी  स्किन रोग का फैलाव वाहक जैसे चिंचड, मच्छर मक्खियां इत्यादि द्वारा होता है अर्थात वायरस के लिए चिंचड़, मच्छर, मक्खियां वाहक का कार्य करते हैं।

रोग कारक:  लम्पी स्किन डिजीज वायरस पोक्सविरिडी परिवार एवं कॉर्डोपॉक्सविरिडी उपपरिवार का सदस्य है। उक्त विषाणु केप्रीपोक्स वायरस वंश से संबंध रखता है।

फैलाव: उक्त रोग के विषाणु के फैलाव का मुख्य तरीका आर्थोपोडा (मच्छर, मख्खीया, चिंचड़) इत्यादि है

उक्त रोग का फैलाव रोगी पशु के सीधे संपर्क में आने से, रोगी पशु से संक्रमित चारा, पानी इत्यादि से भी हो सकता है।

रोग का इतिहास एवं वर्तमान स्थिति:  लम्पी स्किन रोग सर्वप्रथम 1929 मे जांबिया (अफ्रीका) में देखा गया तत्पश्चात 1943 मे बोटसवाना में एवं तत्पश्चात संपूर्ण दक्षिण अफ्रीका में फैल गया था। भारतवर्ष में सर्वप्रथम 2019 मे इस बीमारी को देखा गया। वर्तमान स्थिति में राजस्थान राज्य में इस रोग का फैलाव देखा गया है।

रोग के लक्षण:

* शरीर का उच्च तापमान होना (105-106 ०F)

  1. सत्तही लिंफ नोड के आकार में वृद्धि होना
  2. शरीर पर बड़ी गाँठो का बनना
  3. आंख, नाक से पानी का आना, श्वसन तंत्र प्रभावित होता है।
  4. शरीर पर उक्त बनी गाँठे फूट जाती है जिन से मवाद निकलती रहती है उक्त बने घावों में मक्खियों द्वारा अंडे छोड़ दिए जाते हैं जिससे घाव में कीड़े पड़ने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
  5. मुंह की श्लेष्मा झिली में छाले पड़ जाते हैं। वायरस के अधिक संक्रमण की स्थिति में उक्त छाले आंत और फेफड़ों इत्यादि में भी बन जाते हैं।
  6. दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है।
  7. नर पशुओं में अपूर्ण अथवा पूर्णतया बांझपन
  8. ग्याभिन मादा पशु में गर्भपात
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रोग का उपचार: क्योंकि उक्त बीमारी वायरस जनित है अतः इसका कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। परंतु द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक, एंटीपायरेटिक्स इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है।

त्वचा पर बनी जो गाँठे फूट गई है उन्हें गेंदे के फूल के रस में हल्दी एवं तेल मिश्रित कर लगाई जाए तो काफी अच्छा असर देखने को मिलता है।

रोग के बचाव एवं रोकथाम के उपाय:

  1. वर्तमान में इस बीमारी के बचाव हेतु कोई विशिष्ट टीका नहीं बना है परंतु केप्रीपॉक्स वैक्सीन का उपयोग इस रोग की रोकथाम के लिए भारतीय सरकार द्वारा लम्पी स्किन डिजीज  से बचाव हेतू उपाय की एडवाइजरी में बताया गया है।
  2. इस रोग से प्रभावित पशु को खुले में घूमने से रोकना चाहिए
  3. चूँकि रोग का फैलाव चिचड़ो, मच्छर, मक्खियों इत्यादि द्वारा होता है अतः पशुओं के बाह्य परजीवियों को नष्ट करने हेतु- साइपरमैथरीन का उपयोग किया जाना चाहिए।
  4. उक्त रोग के उपचार हेतु अपने निकटतम पशु चिकित्सालय से संपर्क कर रोग का उपचार करवाना चाहिए।
  5. पशुशाला के निष्क्रमण के लिये डिसइन्फैक्टैंट, सैनिटाइजर इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है।
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