वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन :बकरियों के लिए चारा प्रबंधन और स्वास्थ्य प्रबंधन

0
519
वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन

वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन :बकरियों के लिए चारा प्रबंधन और स्वास्थ्य प्रबंधन

बकरी पालन पौराणिक समय से ही पशुपालन का एक अभिन्न अंग रहा है। भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे सीमांत किसान तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों में बकरी पालन की लोकप्रियता अत्यधिक है। बहुउद्देशीय उपयोगिता एवं सरल प्रबंधन पशुपालकों में बकरी पालन की ओर बढ़ते रुझान के प्रमुख कारण हैं। भारत में बकरियों की संख्या 1351.7 लाख है, जिसमें से अधिकांश (95.5 प्रतिशत) ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। केवल अल्प भाग (4.5 प्रतिशत) ही शहरी क्षेत्रों में है। भारत में होने वाले कुल दुग्ध और मांस उत्पादन में बकरी का उत्कृष्ट योगदान है। बकरी का दूध और मांस का भारत में उत्पादित कुल दुग्ध और मांस में क्रमशः 3 प्रतिशत (46.7 लाख टन) और 13 प्रतिशत (9.4 लाख टन) हिस्सा है। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से भारतीय समाज में बकरी पालन के व्यवसाय के महत्व को प्रमाणित करते हैं।बकरी पालन व्यवसाय से लाभ कमाने के लिए बकरियों में पोषण, स्वास्थ्य एवं पज्रनन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वज्ञैानिक तरीकों को अपनाकर बकरी पालन से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

गाय से भी पहले बकरी पहला पालतू जानवर है. हम अभी भी जंगल में बकरियों से संबंधित जानवरों की प्रजातियाँ पाते हैं. भेड़ और मवेशियों की तुलना में बकरी अधिक साहसी प्राणी है. यह सबसे शुष्क जलवायु पसंद करता है, फिर भी यह संरक्षित पालन प्रणाली के तहत भारी वर्षा वाले क्षेत्र में भी जीवित रह सकता है. हमें वन क्षेत्र और तटीय बेल्ट में भेड़ें नहीं मिलती हैं. लेकिन बकरी फार्म हर जगह देखने को मिलते हैं.

 बकरियों की आहार व्यवस्था

बकरी किसी भी अन्य दूसरे जानवर (गाय) की अपेक्षा प्रति किलो शरीर भार पर कम दाना खाकर अधिक दूध देती है। पोषक पदार्थ को दूध में बदलने की दर 45.71% होती है, जबकि गाय में 38% होती है। बकरी, भेड़ की अपेक्षा 4.04%, भैंस की अपेक्षा 7.09 और गाय की अपेक्षा 8.60% अधिक रेशेदार फसल को उपयोग कर सकती है। गाय की अपेक्षा बकरी बेकार पदार्थ को आसानी से खा लेती हैं।

बकरी का राशन वहां पाए जाने वाले लोकल खाद्य पदार्थ, दाम, पाचकता पर निर्भर करता है। साफ एवं स्वच्छ पानी पर्याप्त मात्रा में सुबह शाम पीने को दें। गन्ध पानी पीने न दे। पानी के बर्तन को महीनें में दो बार धोएं। दूध देने वाली बकरी को ज्यादा मात्रा में एवं कम से कम दिन में दो बार पीने का पानी दें।

खाने की आदत: बकरी अपने लचीले उपर ओठों तथा घुमावदार जीभ के अकारण बहुत छोटे घास को भी खा सकती है। खाने के बर्तन को सप्ताह में एक बार जरुर धो लें। बकरी दूसरे पशु की अपेक्षा बहुत तेजी से खाती है। बकरी गंदा, भींगा एवं बचा हुए खाना खा लेती है। बकरी को भोजन या पत्ती बंडल बनाकर लटका कर दें। खाना को थोड़ा-थोड़ा कर खाने को दें।

बकरी एक जुगाली करने वाल पशु हैं परन्तु अन्य पशुओं की तुलना में इसकी खान-पान भिन्न हैं। बकरी घूम-घूमकर झाड़ियाँ एंव छोटे वृक्षों  की पत्तियों को पिछलों पैरों पर खड़े होकर आनंदपूर्वक खाती हैं। बकरी अपने शरीर के 2-8% तक सूखा पदार्थ खा सकती हैं। अपने ऊपरी होठों की मदद से बकरियों उन छोटी पत्तियों को भी खा सकती है जिसे दूसरे पशु नहीं खा सकते, परन्तु यह उन चारों को नहीं खाती तो दूसरे जानवर द्वारा छोड़ा या गंदा किया हो। बकरी चारागाह में 70% समय पट्टे एवं झाड़ियों को खाने में व्यतीत करती है। बकरियों को सूखा पदार्थ 50% से अधिक दाने के रूप में नहीं देना चाहिए।

मांस उत्पादन के लिए बकरियों को शारीरक वजन का 3: व दुग्ध उत्पादन हेतु शारीरिक वजन का 5-7% सूखे चारे के रूप में देना चाहिए। इसके बाद बाकी चारा घास के  रूप में देना चाहिए। अच्छी किस्म के चारे के लिए बरसीम या रिजका दुधारू पशु को देना चाहिए।बकरी के चारे को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।

  1. मोटा चारा
  2. दाना

पौधों की पत्तियों व ठंडल, मोटे चारे के रूप में कच्चे रेशे से भरपूर होते हैं, जबकि दाने और अन्य पदार्थ में बहुत कम मात्रा में कच्चा रेशा पाया जाता है।

मोटा चारा

बकरियां प्रायः फली फसलों को चारे के रूप में अधिक पसंद करती है जबकि ज्वार, मक्का एवं भूसे को कम पसंद करती है जो दूध देने वाले पशुओं को दिया जाता है। सभी प्रकार के चारों को बकरियों को देने से पहले बंडल बनाकर लटका कर रखना चाहिए जिससे उन्हें गन्दा होने से बचाया जा सके। प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा चारा क 3 से4 बार देना चाहिए। बकरियों को गीला घास देने से बचना चाहिए एवं जहाँ तक संभव हो उन्हें धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाए। पुराने हरे चारे न दिए जाए क्योंकि उनमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते हैं।

धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाएं पुराने हरे चारे न दिय जाए क्योंकि उमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते है।

रिजका – या अक्तूबर में बोया जाता है एवं दिसंबर से मई तक कटाई के लिए तैयार   रहता है।  यह वयस्क बकरी को प्रतिदिन 4 से 6 किलो रिजका की आवश्यकता होती है।

बरसीम – बरसीम में 3-5% तक पाचक प्रोटीन पाया जाता है। यह अक्टूबर में बोया जाता है एवं दिसम्बर में तैयार हो जाता है। एक वयस्क बकरी को 4-6 किलो बरसीम की आवश्यकता होती है।

अरहर – अरहर की फलियाँ के साथ लगभग 5 किलो सूखी पतियाँ प्रतिदिन दुधारू बकरी के लिए काफी है।

नेपियर व गिनी घास – यह दोनों बहुवर्षीय घास है एवं 5 किलो प्रतिदिन दिया जा सकता है।

जई – यह वयस्क दुधारू बकरी के लिए 4-6 किलो जई की आवश्यकता होती है।

पेड़ों की पत्तियां – बकरियों को पेड़ों की पत्तियां बहुत अधिक पसंद है। इन्हें चारे में 2 से 3 किलो पेड़ों के पत्तियां प्रतिदिन देनी चाहिए। शहतूत, नीम, बेर, झरबेरी, मकोई, आम, जामुन, इमली, पीपल, गुलर, कटहल, बबूल, महुआ आदि पेड़ों की पत्तियां बकरियों बहुत पसंद करती है। बंधागोभी एवं फूलगोभी की पत्तियों को भी बकरी बहुत पसंद एवं चाव से खाती है।

विषम परिस्थितियों में उगाये जाने वाले वृक्ष -उसर भूमि – इस दशा में ये वृक्ष पनपते हैं जिनकी अम्लरोधी क्षमता अधिक होती है। इन वृक्षों से भी बकरियों को उचित मात्रा में पत्ते व् कोमल टहनियां चारे के रूप में मिल सकती है। इन वृक्षों में बबूल, सीरस, नीम शीशम, करंज व अर्जुन आदि प्रमुख है।

जल भराव वाले क्षेत्र – देश के कुछ हिस्सों में भूमि की सतह नीचे रहने के कारण, जलभराव की प्रमुख समस्या है। इन क्षेत्रों में केवल चारा वृक्ष ही पनप सकते हैं जिनकों बकरियां आहार के रूप में उपयोग कर सकती हैं। इनमें शीशम, करंज व ज्रुल प्रमुख है।

कटाव वाली बीहड़ जमीन – कटाव वाली बीहड़ जमीन में फसल उत्पादन प्रमुख हिं अतः इनमें चारा उत्पादन करने वाली वृक्षों को लगाकर बकरी पालन में प्रोत्साहित किया जा सकता है। इन वृक्षों में बेर, बबूल, नीम, झरबेरी, सीरस, अमलतास शहतूत, झरबेरी आदि प्रमुख है।

विभिन्न वर्ग की बकरियों की आहार आवश्यकता

  1. कम उम्र की बकरी – इनमें 1 से 2 महीना की आयु वाली बकरियां आती है। वृद्धिकाल होने के कारण इस वर्ग की बकरियों के लिए दाना मिश्रण की विभिन्न मात्राओं की आवश्यकता होती है।
आयु वर्ग बड़ी नस्ल ग्राम/दिन/बकरी छोटी नस्ल ग्राम.दिन.बकरी
0-1 माह स्वेच्छानुसार स्वेच्छानुसार
2-3 माह 200 250
3-6 माह 250 300
6-9 माह 300 400
9-12 माह 350 400
सूखी बकरी व वयस्क बकरे 200 250
ग्याभिन बकरियां 6000 700
प्रजनक बकरे 600 700
दुधारू बकरियां 200-400/किलो दूध 200-450/किलो दूध

 

जवान बकरी के लिए दाना

शरीर बहार (किलो) दूध सान्ध्र दाना मिश्रण.दिन.(ग्राम) हरा चारा (लुर्सन.बरसीम) किलो
सुबह (ml) शाम (ml)
2.5 200 200
3.0 250 250
3.5 300 300
4.0 300 30
5.0 300 300 50 इच्छा के अनुसार
6.0 350 350 100 इच्छा के अनुसार
7.0 350 350 150 इच्छा के अनुसार
8.0 300 300 200 इच्छा के अनुसार
9.0 250 240 250 इच्छा के अनुसार
1.0 150 150 350 इच्छा के अनुसार
15.0 100 100 350 इच्छा के अनुसार
20.0 350 इच्छा के अनुसार
25.0 350 1.5
30.0 350 2.0
40.0 350 2.5
50.0 350 4.0
60.0 350 5.0
70.0 350 5.5

 

  • सान्ध्र दाना मिश्रण की मात्रा-चना (20%) मूंगफली की खल्ली (35%) गेंहूँ का चोकर (20%) खनिज मिश्रण (2.5%) एवं नमक (0.5%)
  1. सूखी बकरियां व् वयस्क बकरे – सूखी बकरियां एवं प्रजनन हेतु उपयोग में न लाये वाले बकरों को दाने की लगभग सामान मात्रा दी जाती है। इसमें छोटी नस्लों को 200 ग्राम तथा बड़ी नस्लों को 250 ग्राम दाना मिश्रण प्रति पशु प्रति दिन राशन के रूप में देना चाहिए। इसमें बकरियों का स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता बनी रहती है।
  2. दूध देने वाली बकरियाँ – इनका निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 ग्राम दाना प्रति किलो दूध के हिसाब से देना चाहिए। इसके साथ दलहनी एवं गैर दलहनी हरा चारा भी देना चाहिए।
  3. ग्याभिन बकरियाँ – गर्भकाल के अंतिम डेढ़ माह में छोटे नस्ल की बकरियों को 400 ग्राम तथा बड़ी नस्ल के बकरियों को 500 ग्राम मिश्रण देना चाहिए। इसके साथ उन्हें निर्वाह राशन एवं चारा भी देना चाहिए जिससे गर्भाशय के बच्चे की बढ़ोत्तरी के साथ –साथ बकरी के स्वस्थ्य भी अच्छी तरह हो सकें एवं उनमें दूध देने की क्षमता बनी रहें।
  4. प्रजनक बकरें – प्रजनन व्यवहार एवं शुक्राणुओं की संख्या को नियमित रखने हेतु प्रजनन काल के समय निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 एवं 500 ग्राम दाना क्रमशः छोटे एवं बड़े बकरे को प्रतिदिन देना चाहिए।

बढ़ोत्तरी करने वाले पशुओं के लिए

  • शरीर वृद्धि के लिए कैल्शियम, फास्फोरस, प्रोटीन, सम्पूर्ण पाचक तत्व एवं विटामिन युक्त राशन।
  • हड्डियों के वृद्धि  के लिए कैल्शियम, फास्फोरस एवं विटामिन डी की आवश्यकता\
  • पूर्ण वृद्धि के उपरान्त राशन में प्रोटीन की मात्रा कम एवं कार्बोहाईडेट्स की मात्रा अधिक हों।
  • वृद्धि करने वाले पशुओं के राशन में खाने वाला नमक (9%) अत्यंत आवश्यक हो।
  • मेमने के वृद्धि हेतु प्रोटीन युक्त माँ का दूध अवश्य पिलावें।
READ MORE :  ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का स़्त्रोत: बकरी पालन

अधिक उत्पादकता हेतु निम्न बिंदु पर ध्यान देना

  • जन्म के समय
  • माँ से अलग करना
  • बढ़ते बच्चे का प्रबन्धन
  • प्रजनन से पहले
  • प्रजनन के समय
  • गर्भकाल के पहले भाग से
  • गर्भकाल के अंतिम भाग में
  • बच्चे देने के समय
  • दूध देने के समय

जन्म के समय

  • मुंह में लगे चिकनाई यूक्त शेल्श्मा को बकरी के साफ नहीं करने पर स्वयं साफ कपड़े पोछें
  • 10-15 मिनट के अंदर मेमने को उसके माँ का गाढ़ा दूध (कोलस्ट्रम पिलावें) इसमें बच्चा में ताकत के साथ रोग से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।
  • नाभि-काटना- जन्म के बाद मेमने के शरीर से 2 इंच की दुरी नाभि को साफ ब्लेड से काटे।
  • अन्तः परजीवी दवा-1 सप्ताह की उम्र में पिपराजिन सल्फेट/एडिपेट 5 मिली मेमने को खाली पेट में पिलावें।
  • 1 से 3 महीने के बीच नर मेमने (जिसको प्रजनन के लिए नहीं रखना है) को बरडिजो कास्ट्रेटर से बध्या (खस्सी कर दें जिससे कि उसका तेजी से बढ़ने के साथ मांस का गुणवत्ता भी बढ़े।
  • ठंड के महीने में मेमनों को बाहर से ऊष्मा (बल्ब/अंगीठी) प्रदान करने तथा ठण्ड हवा से बचाव करें।
  • सींग दागना (3-14 दिन)

माँ से  विलगाव

  • उम्र-लगभग 1.5 किलो शरीर बहार या 8-10 सप्ताह का उम्र
  • माँ से विलगाव से पहले या विलगाव के समय कोक्सिडिया का उपचार
  • सुनिश्चित होना कि मेमना है या कीप राशन खाना शुरू कर दिया हो।
  • सूखी बकरी- दाना कम देना एवं उसे चारागाह में चरने देना शुरू का देना चाहिए।

बढ़ते बच्चे का प्रबन्धन

  • चूँकि रुमेन का विकास होना शूरू हो जाता है, तथा इस समय खाने में 4% DM दें।
  • खाने में प्रोटीन, विटामिन एवं कैल्शियम के साथ पूरा व्यायाम कराएँ।
  • नाख़ून समय-समय पर काटे।
  • खून की कमी की जाँच हेतु हमेशा आँख की म्यूक्स मेम्ब्रेन को हमेशा देखते रहे।
  • वजन बढ़ाने के लिए खाना भरपूर दें।

प्रजनन से पहले

  • झारखंड के परिवेश में हमारे अपने देशी (ब्लैक बंगाल) बकरी को उन्नत नस्ल के बकरे (जमुनापारी/बीटल) से संभोग कराएँ जिससे कि देशी बकरे का वजन ज्यादा बढ़ सके।
  • उम्र कम से कम 8-10 महीना का हो।
  • बकरी को साफ़ कराएं। प्रजनन कराने से 2-3 सप्ताह पहले बकरी को अच्छे चारागाह में चराने के साथ साथ दाना भी खाने को दें। इससे ओवोलेशन ज्यादा होने से मेमने की संख्या ज्यादा होगी।
  • बकरी को नर बकरे से दूर रखें एवं अचानक इसे बकरे के साथ मिलन कराए।

गर्भकाल के पहले तथा अंतिम भाग में

  • गर्भकाल के पहले तथा अंतिम भाग में बकरी को विशेष सावधानी की आवश्यकता होती  है अन्यथा गर्भपात की संभावना बनी रहती है। इस समय बकरी को विशेष दाना तथा हरा चारा की आवश्यकता होती है।

शुरूआती दूध देने के समय

  • मादा बकरी को अपने शरीर भार के 5-7% भाग खाना की जरूरत होती है।
  • खाद्य पदार्थ में प्रोटीन एंव कैल्शियम की बहुलता
  • पर्याप्त मात्रा में रेशेदार खाना (60%)
  • मेमने को कृमिनाशक (पिपराजिन सल्फेट-10 मिली) दवा दें।

भेड़ एवं बकरी के लिए राशन

दो महीने से ऊपर की भेड़ के लिए राशन

खाद्य पदार्थ की मात्र (%) विलगाव से पहले-3 महीना तक बढ़ते मेमना

(3-6 किलो)

फिनिसर राशन
मकई का चुरा 65 27 25
मूंगफली का केक 10 35 20
गेंहूँ का चोकर 12 35 52
मछली का चुरा 10
नमक 1 1 1
खनिज लवण 2 2 2
संभावित शरीर वृदि दर (ग्राम) 110-125 100-120 100-120

 

खिलाने की दर

वजन(किलो) सान्द्र दाना (ग्राम) सूखा चारा
जब दलहनी फसल उपबल्ध जब दलहनी फसल न उपबल्ध
12-15 50 300 इच्छा के अनुसार
15-25 100 400 इच्छा के अनुसार
25-35 150 600 इच्छा के अनुसार

 

दूध पिलाने वाली भेड़ के लिये राशन

पोषक तत्व राशन-1 राशन 2
दाना मिश्रण 400 ग्राम 400 ग्राम
लुग्यम 700 ग्राम 1400 ग्राम
हरा चारा/साइलेज 1400 ग्राम

बकरियों की आवास व्यवस्था

पारम्परिक रूप से बकरियां प्रायः घरों में या उसके आसपास रखकर पाली जाती है जों कि स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के दृष्टि से उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें बकरियों से मनुष्यों में फैलने वाले (जोनोटिक) रोगों की संभावना बनी रहती है एवं साथ ही बकरियों को समुचित सुरक्षा एवं आराम नहीं मिल पाता है।

पशु आवश्यक भूमि वर्ग मीटर/पशु
वयस्क बकरी 1.0
वयस्क बकरा 2.0
बकरी का बच्चा 0.4

आवास की स्थिति

जगह सूखी एवं ऊँची हो, जल निकास की उचित व्यवस्था हो एवं तेज हवा और अत्यधिक सर्दी या गर्मी का प्रकोप न हो। मनुष्य के आवास के नजदीक न हो।

विभिन्न प्रकार के आवास

  1. खुला बाड़ा
  2. अर्द्ध खुला बड़ा
  3. भूमि से सम्युन्न्त एवं ढका हुआ बाड़ा

आवास गृह में निम्न साधन होने चाहिए

  1. चारा एवं दाना खिलाने हेतु फीडर या नाद
  2. मेंजर
  3. पानी की चरही
  4. पर्याप्त प्रकाश
  5. भंडार घर

बाड़ा बनाने समय निम्न बातों का ध्यान दें

  1. फर्श- भूमि से 1-1.5 फीट ऊपर एवं प्रति फीट 1 इंच का ढलान हो।
  2. दीवारें – 1-15 मीटर तक सीमेंट एवं उसके ऊपर तार की जाली हो।

गर्म क्षेत्रों में बकरियों की आवास व्यवस्था

  • गर्म क्षेत्रों में द्वार पूर्व पश्चिम दिशा में ओर होर तथा छत ऊँची हो।
  • आवास का छत इस प्रकार होना चाहिए कि छत का एक भाग दूसरे को सूर्य की सीधी किरणों से बचाएं।
  • खुले बाडा, बंद बाडा की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए।
  • गर्म हवा से बचाने के लिए पूर्व पश्चिम की तरफ 1 मी. ऊँची दीवार होनी चाहिए।
  • छत की दीवारें बाहर से सफेद एवं अंदर से रंगीन होनी चाहिए।
  • अधिक गर्मी के समय दीवारों एवं छत पर पानी का छिड़काव् करें।
  • 10-12 के समूह में अलग-अलग चारा देना चाहिए।

बकरियों की प्रबंध व्यवस्था

बकरी में गर्मी के आने के लक्षण

  • विशेष तरह का आवाज निकालना एवं चारा खाना कम कर देना
  • योनी द्वार पर लालिमा एवं सुजन
  • योनी द्वार पारदर्शी लसलसा स्राव का निकलना
  • थोड़े-थोड़े समय पर पेशाब करना।
  • दूसरे पशुओं पर चढ़ना या उन्हें चढने देना।
  • बकरी समान्यतः 2 से 3 दिन तक गर्म रहती है एवं सफल प्रजनन हेतु गर्म होने के 12 घंटे के बाद संभोग करावें।
  1. गर्भित बकरी की लक्षण
  • मदकाल का समाप्त हो जाना यानि बकरी का पुनः गर्मी में नहीं आना।
  • बकरी शांत हो जाती है एवं दूध उत्पादन भी कम जाता है।
  • तीन महीने में लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसके आकार में वृद्धि हो जाती है एवं उसके पेट से बच्चे को स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।
  1. गर्भावस्था के समय देखरेख : गावों में बकरियां एक बार बच्चा देती हैं एवं इसका गर्भकाल लगभग 5 महीने का होता है। गर्भावस्था में बकरी का पोषण, आवास एवं बीमारियों बचाव एवं रोकथाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • गर्भकाल के समय कुपोषण से बचने के लिए ठीक ढंग से खिलाने चाहिए ताकि बच्चे स्वस्थ हो तथा मृत्यु कम हो।
  • इस समय चराई के आलावे 300-500 ग्राम/बकरी/दिन दाना मिश्रण देना चाहिए। इसके अलावे उन्हें दलहनी हरा चारा खनिज मिश्रण भी देना चाहिए। बच्चा देने के अनुमानित 1 सप्ताह पूर्व इसे चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए।

दैनिक कार्य-क्यों?

  • समय का सदुपयोग
  • मजदूर एवं स्रोत का सदुपयोग
  • अच्छी प्रबन्धन से उचित एवं पर्याप्त मात्रा में धन की प्राप्ति
सुबह 7 बजे दाना पानी में देना

बीमार पशु का पहचान

सुबह 8 बजे चराई
सुबह 8.30 बजे पशुशाला की सफाई

पहले का बचा हुआ खाना को हटाना

सुबह 9 बजे से  11 बजे तक बीमार पशु का पहचान

रिकार्ड जैसे कि वजन ज्ञात करना, बच्चे की स्थिति, टीकाकरण, चिकित्सा, सींग दागना, छांटना,बेचना इत्यादि

शाम 4 बजे पशु को घर के अंदर लाना
दाना पानी चारागाह में देना
हरा कता चारा देना
सहूलियत के हिसाब से दिन में दो बार दूध दुहना चाहिए।

 

महीना के हिसाब कार्य

महीना कार्य
जनवरी स्टाक रजिस्टर सही करना, ठंड से बचाव, दाना कुछ अधिक मात्रा में देना , मेमना का बचाव , प्रजनन हेतु कुछ अलग से दाना देना, टीकाकरण-क्लोस्ट्रीडयम
फरवरी मेमना पैदा करना, दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, बसंत ऋतु में प्रजनन के लिए अलग से खाना खिलाना, चेचक का टीका
मार्च दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, मेमना को कीप राशन देना, काँ में निशान लगाना, भेड़ को धोना
अप्रैल उन काटना चेचक का टीका, उन का नमूना लेना, विलगाव के समय मेमना का वजन लेना, बीमार एवं वृद्ध बकरी को झुडं से अलग करना, खुरहा का टीका
मई मेमना का विलगाव, मेमना को अलग खाना देना, सुबह के समय के चराई,साफ एवं ठंडा पानी पिलान, कोमल पत्ती खिलना, गलघोटू एवं लगड़िया का टीका
जून गर्भवती बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना, गर्भवती, घर का व्यवस्था, टेटनस का एवं इंटेरोटोक्सिमिया का टीका,  गलघोटू एवं लगड़िया का टीका
जुलाई धोना ऊन कटाई, जहर से स्नान, गर्भवती बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना, शरद ऋतू में बच्चा लेने हेतु अधिक खिलाना
अगस्त शरद ऋतु में बच्चा लेने अधिक खिलाना, मेमना पैदा करने वाली बकरी को अलग से राशन देना, अतः कृमिनाशक दवा देना।
सिंतबर दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, मेमना को कीप राशन देना,  कान में निशान लगाना, भेड़ को धोना,
अक्टूबर बीमार एवं वृद्ध बकरी को अझुण्ड से अलग करना, दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, खुरहा का टीका, इंटेरोटोक्सिमिया का टीका
नवंबर ठण्ड का चराई, अन्तः कृमि नाशक दवा देना।
दिसंबर ठण्ड से बचाव, दाना कुछ अधिक मात्रा में देना, मेमना का बचाव, अत्यधिक मेमनों को बेचना, दूध देने वाली बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना।

रोगी एवं स्वस्थ पशु की पहचान

लक्षण स्वस्थ बकरी
सामान्य प्रकृति चौकन्ना
तापमान 102+5 फारनहाईट
व्यवहार सामान्य, खाना पीना पूरा खाना
श्वास 10-12 बार/मिनट
पैखाना, पेशाब सामान्य
आँख श्लेष्मा समान्य लाल
नाड़ी 70-80 धड़कन

नोट: रोगी बकरी – ऊपर दिए गए लक्षणों में अगर बदलाव हो तो बकरी बीमार है।

बकरी का टीकाकरण तालिका

संभावित महीना रोग प्राथमिक टीकाकरण नियमित टीकाकरण मात्रा एवं विधि
जनवरी काँटाजियस कैपराइन प्लूरो न्यूमोनिया 3 महीना सलाना 0.2 मि.ली. चमड़े के सतह पर
फरवरी एनोरोटोक्सिमिया 4 महीना एवं उसके बाद सलाना 2.5 मि.ली. चमड़े में
फरवरी पी.पी. आर. 3 महीना एवं उसके ऊपर 1 मि.ली. चमड़े में
जुलाई गलाघोंटू 6 महीना एवं उसके ऊपर सलाना 2 .ली. चमड़े में
मार्च/सितम्बर खुरपका मुंहपका 4 महीना एवं उसके ऊपर सलाना में दो बार मार्च-सितम्बर 2-3 .ली. चमड़े में
दिसम्बर पॉक्स 3 महीना एवं उसके ऊपर सलाना 0.5 .ली. चमड़े में
एंथ्रेक्स 6 महीना एवं उसके ऊपर प्रभावित स्थान में सलाना 1 .ली. चमड़े में

बकरियों के लिए चारा प्रबंधन

आइए अब हम बकरियों में चारा प्रबंधन का अध्ययन करें. बकरी फार्मों में साइलेज अभी तक लोकप्रिय नहीं है. बकरियों को दिन में दो बार हरा चारा और एक बार सांद्रण खिलाया जाता है. यह सूखा चारा जैसे धान का भूसा खाता है. लेकिन यह बकरी के विकास के लिए सहायक नहीं है. हालाँकि, द्विबीजपत्री पौधों की जड़ी-बूटियाँ जैसे कुलथी, लोबिया, उड़द, मूंगफली आदि उत्कृष्ट हैं. अधिकांश खेतों में CO-4, AP-01 और गिनी जैसी उन्नत हरे चारे की किस्मों का उपयोग किया जाता है. एपी-01 की उपज एवं गुणवत्ता अन्य किस्मों से बेहतर है. आप घास के साथ मिश्रित फसल में हेज ल्यूसर्न उगा सकते हैं.बकरी पालन से लागत कम आती है. बकरियों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध फल दिये जा सकते हैं. शरीर के 10 किलोग्राम वजन के लिए 1 किलोग्राम चारा और 100 ग्राम चारा आवश्यक है. एक वयस्क बकरी के लिए 4 से 5 किलोग्राम हरा चारा और 400 से 500 ग्राम सांद्रण पर्याप्त होता है. चारे को विभाजित करके चारे के साथ दो बार या अलग-अलग खिलाया जा सकता है. चारे के साथ प्रति बकरी प्रतिदिन 10 ग्राम खनिज मिश्रण अनिवार्य है. रेडीमेड फ़ीड की कीमत बहुत अधिक है तथा पोषक तत्वों की मात्रा भी सुनिश्चित नहीं है. इसलिए चारा खेत पर ही तैयार किया जा सकता है. पशु पोषण विशेषज्ञों के अनुसार चारे की संरचना इस प्रकार होनी चाहिए- टूटी हुई मक्का- 40%, गेहूं की पॉलिश 30%, डायकोट चने का पाउडर- 10%, टूटे हुए चावल 10% और सोया 10%। 100 किलोग्राम मुख्य चारा मिश्रण में 1 किलोग्राम सामान्य नमक, 2 किलोग्राम खनिज मिश्रण और 1 किलोग्राम सुपाच्य कच्चा प्रोटीन या डीसीपी मिलाएं. गर्भवती एवं प्रसूता को सामान्य मात्रा में ही आहार दिया जाता है. यदि उसके 3 से अधिक बच्चे हों तो उसे अधिक आहार की आवश्यकता होती है. आमतौर पर पीने के पानी में थोड़ी मात्रा में खली मिलाई जाती है. कुछ किसान साधारण नमक भी डालते हैं.

बकरियां पानी कम पीती हैं. फिर भी भीषण गर्मी में प्रति बकरी प्रतिदिन 4 से 5 लीटर पानी आवश्यक है. इसलिए पानी के कुंडों को बाड़े में फीडरों के साथ रखा जाता है. कुछ खेतों में शेड के अंदर पानी के टब रखे जाते हैं. गर्मियों में बकरियों को सप्ताह में एक बार और सर्दियों में महीने में एक बार नहलाया जाता है. महीने में एक बार चबूतरे और नीचे फर्श पर चूना पाउडर और ब्लीचिंग पाउडर का मिश्रण फैलाया जाता है. फिर प्लेटफॉर्म को पानी से अच्छी तरह धो लें. वर्ष में कम से कम एक बार दीवारों पर सफेदी अवश्य कराएं. 1 लीटर पानी में 10 मिलीलीटर 5% फॉर्मेलिन डालें और शेड में सभी तरफ अच्छी तरह से स्प्रे करें. फार्मेलिन का छिड़काव करते हुए बकरियों को बाहर भेजें. ये सभी कदम शेड में स्वच्छता की स्थिति बनाए रखते हैं और इस तरह बकरियों को स्वस्थ रखते हैं.

इनकी गोली सर्वोत्तम खाद है. इसमें 2.4% नाइट्रोजन, 0.88% फास्फोरस और 1.99% पोटाश होता है. एक वयस्क बकरी एक वर्ष में लगभग 500 किलोग्राम गोलियां पैदा करती है. अपशिष्ट चारे एवं दानों को नियमित रूप से एकत्र कर दूर-दूर ढेर लगाएं. इस खाद का उपयोग चारे या अन्य फसलों के लिए किया जा सकता है. इसकी मांग और कीमत अच्छी है. बकरी की उम्र का आकलन करने की एक सरल विधि है. अन्य जानवरों की तरह, बच्चे के भी दूध के दांत होंगे. 12 से 14 महीने की उम्र में दो स्थायी दांत निकल आते हैं. 18 से 20 महीने तक बकरी के पास स्थायी दांतों का एक और जोड़ा होगा. 26 से 28 महीने तक बकरी के 6 स्थायी दांत आ जाते हैं. स्थायी दांतों की आखिरी जोड़ी 36 महीने या 3 साल में निकल आएगी, जो विकास के पूरा होने का संकेत देती है। 7 से 8 साल तक दांत कमजोर होने लगते हैं.

स्वास्थ्य प्रबंधन एवं टीकाकरण

बकरियों पर भेड़ की तरह ऊन का आवरण नहीं होता. यहां एक्टो-परजीवियों जैसे जूँ के कण आदि का प्रकोप अधिक होता है. बकरी को उपयुक्त रसायन के साथ पानी की टंकी में डुबोया जा सकता है. कीटनाशक या इंजेक्शन का छिड़काव भी चलन में है. अन्त: परजीवियों के नियंत्रण के लिए कृमि मुक्ति सबसे महत्वपूर्ण है. कृमि से ग्रसित बकरियों में दुर्बलता आ जाती है और उनका वजन भी कम हो जाता है. नवजात बच्चों को कृमिनाशक दवा की पहली खुराक 4 से 7 दिन की अवस्था में दें. बाद में 1 वर्ष तक महीने में एक बार कृमि मुक्ति करें. वयस्क बकरियों को 3 महीने में एक बार कीड़े मुक्त करें. गर्भधारण के 2 महीने बाद गर्भवती मादा को कृमि मुक्त करें. इससे पहले कृमि मुक्ति कराने से गर्भपात हो सकता है. दवा डालने के बाद बकरियों पर डाई से निशान लगा दें. यह दोहरी खुराक या चूक से बचने के लिए है. हर बार अलग-अलग दवाओं का प्रयोग करें. कई अंतःपरजीवियों के लिए बहुत सारे रसायन और ब्रांड हैं जो कृमिनाशक इंजेक्शन और संयुक्त दवाएं अब उपलब्ध कराती हैं. खुराक पशु के शरीर के वजन पर निर्भर करती है. इसलिए किसी भी दवा के लिए विशेषज्ञ पशुचिकित्सक पर निर्भर रहना बेहतर है. एंडो-परजीवियों के लिए छर्रों का प्रयोगशाला में 6 महीने में एक बार परीक्षण करें. बकरियों के अच्छे स्वास्थ्य और विकास के लिए कृमि मुक्ति सबसे महत्वपूर्ण है.

भेड़ों की अधिकतर बीमारियाँ बकरियों में भी देखी जाती हैं. पीपीआर, ईटी, गोट पॉक्स, एफएमडी, एचएस, एंथ्रेक्स आदि आम हैं. इन सभी बीमारियों के लिए टीके उपलब्ध हैं. टीकाकरण का एक कार्यक्रम तैयार करें और उसका अनिवार्य रूप से पालन करें. इसलिए स्टॉल पर भोजन करने वाली बकरियां इनमें से अधिकतर बीमारियों से बच जाती हैं. आवश्यकता पड़ने पर आकस्मिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे सर्दी, खांसी, बुखार, घाव आदि का इलाज करें.

स्टाल फीड बकरियों के लिए पीपीआर और ईटी टीके साल में दो बार अनिवार्य हैं. 2-2 महीने के बच्चे को पीपीआर वैक्सीन की पहली खुराक लगाएं. 17 से 21 दिन के बाद बूस्टर डोज भी जरूरी है. ईटी वैक्सीन की पहली खुराक 2 महीने की अवस्था में दें. 17 से 21 दिन के बाद बूस्टर खुराक भी दी जा सकती है. 3 महीने की अवस्था में बच्चे को एचएस का टीका लगाएं. वयस्क बकरियों को प्रति वर्ष पीपीआर टीके की 1 खुराक और ईटी और एचएस टीके की 2 खुराक दें. खुरपका और मुंहपका रोग या एफएमडी भेड़ की तुलना में बकरियों में अधिक आम है. प्रकोप वाले क्षेत्रों में वर्ष में दो बार एफएमडी का टीका लगाएं. गोट पॉक्स भी एक खतरनाक बीमारी है. संक्रमित क्षेत्रों में साल में एक बार यह टीका लगाना जरूरी है. उत्तर प्रदेश के मकरेश्वर बकरी अनुसंधान केंद्र ने बकरी चेचक के लिए एक परीक्षण टीका विकसित किया है और इसे प्रभावी पाया गया है. दूसरे खेतों और क्षेत्रों से बकरियाँ लाते समय बीमारियों के प्रवेश से बचें. इन बीमारियों की संभावना और तीव्रता अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है. इसलिए टीकाकरण कार्यक्रम की योजना बनाते समय इलाके के विशेषज्ञ पशुचिकित्सक से परामर्श करना बेहतर है. मैस्टाइटिस बकरियों की एक और प्रमुख समस्या है. अतिरिक्त दूध निकाल दें और स्तनदाह की संभावना से बचें. नियमित टीकाकरण से स्टॉल पर पलने वाली बकरियों में इन सभी बीमारियों से बचाव होता है.

टीकाकरण अनुसूची

बकरीपालन का आर्थिक महत्व

बकरी तेजी से बढ़ने वाला जानवर है. पौष्टिक भोजन और अच्छे प्रबंधन के साथ स्टाल फीडिंग में इसका वजन प्रति माह 4 किलोग्राम बढ़ जाता है. विकास की यह गति 6 से 8 महीने की उम्र तक होती है. 7 से 8 महीने की अवस्था में या 20 से 25 किलोग्राम शरीर के वजन पर मांस की गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है. इसलिए इसे प्रीमियम कीमत और मांग मिलती है. वृद्ध बकरी से रेशेदार कठोर मांस प्राप्त होता है. प्रजनन के लिए उपयोग की जाने वाली बकरियों में सजे हुए मांस का प्रतिशत कम होता है. इसलिए 8 महीने की उम्र हत्या के लिए सही चरण है. जीवित बकरे को सजे हुए मांस की आधी कीमत मिलती है. इसका मतलब है कि अगर मांस की कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम है, तो जीवित बकरी को प्रति किलोग्राम शरीर के वजन के हिसाब से 150 से 175 रुपये मिलते हैं. नस्ल, उम्र, शरीर की स्थिति और ग्राहकों की पसंद आदि से बकरों की कीमत तय होती है. भारत में पारंपरिक बकरी पालन बहुत आम है.

लेकिन व्यवस्थित और व्यावसायिक स्टॉल फीडिंग प्रणाली बहुत दुर्लभ है. बकरी के मांस की विपणन क्षमता उत्कृष्ट है. भेड़ और बकरी को एक साथ पालना भी अच्छा है. हालाँकि बकरी को अधिक भोजन और ध्यान की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी तीव्र वृद्धि से अधिक आय होती है. बकरी पालन में व्यवस्थित स्टॉल फीडिंग से हम बेहतर उपलब्धि हासिल कर सकते हैं. बकरी पालन के सर्वोत्तम अवसर का लाभ उठाने का यह सही समय है. आइए आशा करें कि हमारे किसान आगे आएंगे और आने वाले वर्षों में भारत को बकरी पालन में नंबर एक स्थान पर लाएंगे.

बकरी फार्म शुरू करने से पहले उठाए जाने वाले कदम

1 . भूमि का चयन जहां आप बकरी फार्म शुरू करने के इच्छुक हैं

बकरी पालन शुरू करने के लिए भूमि का चयन सबसे पहला कदम है जो आप उठाने जा रहे हैं. भूमि चयन के लिए कोई सख्त नियम नहीं है, आपके पास जो भी भूमि है, उसे लेना अच्छा है या यह बेहतर होगा कि आपके पास हरियाली और चरागाह क्षेत्र के साथ शहर के बाहरी इलाके में अतिरिक्त भूमि हो. मेरे मामले में मेरे पास विशाल चरागाह वाली केवल 32 डेसीमील भूमि है, जिसमें से मैं 21 डेसीमील का उपयोग शेड और बाड़ वाले क्षेत्र के लिए कर रहा हूं और शेष को नौकर क्वार्टर के लिए उपयोग कर रहा हूं क्योंकि आपको देखभाल करने वाले के लिए कमरे उपलब्ध कराने होंगे जो वहां रहने वाले हैं. 24×7. भूमि की उचित बाड़बंदी चारदीवारी या बांस की बाड़ से करें, लेकिन मेरा सुझाव है कि ईंट और सीमेंट वाली सीमा से जगह को अधिक सुरक्षा प्रदान करें या यह आपकी पसंद हो सकती है, यह मुख्य रूप से आसपास के वातावरण और खेत की सुरक्षा चिंता पर निर्भर करता है. अब आपके पास एक अच्छी बाड़ यानी उचित प्रवेश द्वार वाली चारदीवारी है. अब बकरी शेड निर्माण का समय आ गया है.

  1. बकरी शेड निर्माण योजना

आपकी बकरियों के बेहतर विकास के लिए एक उचित साफ, स्वच्छ और विशाल शेड की आवश्यकता होती है. आपके भूमि क्षेत्र, व्यय और खेत की ताकत के आधार पर शेड क्षेत्र भिन्न हो सकता है. जैसा कि मेरे मामले में मेरे पास 100 बकरियों के लिए एक शेड है जिसके लिए मैंने 60×18 फीट (यानी 60 फीट लंबाई और 18 फीट चौड़ाई) का उपयोग किया है. शेड का आयाम आपकी पसंद पर निर्भर करता है कि यह कम या ज्यादा हो सकता है, जैसा कि मैंने बताया है, लेकिन मैं कम ताकत के साथ प्रयास करने का सुझाव दूंगा यानी 100 बकरियों के लिए एक शेड. सामान्य तौर पर यह सुझाव दिया जा रहा है कि एक बकरी के लिए 10 वर्ग फुट जगह होनी चाहिए, लेकिन यह कम या ज्यादा हो सकती है, यह मुख्य रूप से बकरी की नस्ल और उम्र पर निर्भर करता है कि वह वयस्क है या बच्चा. मैं मानता हूं कि आपने शेड का अपना आयाम चुन लिया है, अब शेड बनाने का समय आ गया है. शेड की दीवार के लिए ईंटों और सीमेंट का प्रयोग करें. 12 फीट की ऊंचाई बनाए रखी जानी चाहिए और उचित वेंटिलेशन की आवश्यकता है. छत क्षेत्र के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले एस्बेस्टस का उपयोग करें जो गर्मियों में अच्छी गर्मी अवशोषक है. बकरियों को हर समय ताजा पेयजल आपूर्ति प्रदान करने के लिए एक जलाशय या सीमेंटेड टैंक बनाएं. यह शेड क्षेत्र के बाहर होना चाहिए. बकरियों की उचित आवाजाही के लिए शेड के बाहर बांस की बाड़ बनाएं. बकरी को चारा खिलाने के लिए उचित सीमेंटेड या स्टील स्टॉल की आवश्यकता होती है, यह शेड के अंदर या बाहर होना चाहिए.

संक्षेप में .

100 बकरियों के लिए शेड निर्माण योजना….

1 . मेरे मामले में शेड का आयाम 60×18 फीट है.

  1. दीवार की ऊंचाई 12 फीट है.
  2. शेड के बाहर बाँस की बाड़ा.
  3. शेड के लिए प्रयुक्त सामग्री ईंट, सीमेंट और एस्बेस्टस है.
  4. बकरियों के लिए ताजे पीने के पानी के लिए सीमेंटेड टैंक (बांस की बाड़ के अंदर शेड के बाहर).
  5. बकरियों के लिए ताजे पीने के पानी के लिए मोटर या सबमर्सिबल पंप से सुसज्जित बोरवेल.
  6. फीडिंग के लिए फीडर स्टॉल, सीमेंटेड या स्टील मेन्जर हो सकता है. शेड के अंदर लंबे समय तक सीमेंटेड फीडिंग स्टॉल रखें और बाहर फीडिंग के लिए स्टील मेनजर या फीडर रखें.
  7. बकरियों की नस्ल का चयन.

बकरी फार्म में बकरियों की नस्ल का चयन बहुत महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि यह आपके व्यवसाय की मुख्य संपत्ति है जो आपके व्यवसाय को तेजी और अच्छा उत्थान देगी. लाभदायक बकरी पालन व्यवसाय योजना में नस्ल का चयन बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है. वहाँ विभिन्न नस्लें हैं जिन्हें लाभदायक नस्ल चयन माना जाता है, मूल रूप से यह क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है, कई नस्लें उपलब्ध हैं लेकिन मैं उनमें से कुछ को कवर कर रहा हूं जो उत्तर भारत क्षेत्र के लिए लाभदायक मानी जाती हैं. इन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया गया है.

शुद्ध नस्ल का चयन

  • सिरोही,
  • जमनापारी,
  • तोतापारी,
  • बारबरी,
  • बीटल,
  • काला बंगाल,

क्रॉस ब्रीड चयन.

  • सिरोही और ब्लैक बंगाल की संकर नस्ल (सिरोही हिरन और ब्लैक बंगाल डो)
  • जमनापारी और सिरोही की संकर नस्ल (जमनपारी हिरन और सिरोही डो)
  • ब्लैक बंगाल और बीटल की संकर नस्ल। (बीटल हिरन और ब्लैक बंगाल डो)

कई प्रकार की संकर नस्लों का चयन हो सकता है जो बक और डो की नस्ल पर निर्भर करता है. नस्ल चयन में मुख्य नियम पर्यावरण और जलवायु की स्थिति है जहां नस्ल सबसे उपयुक्त है. उदाहरण के लिए……

  1. बकरियों में क्रॉस ब्रीड अवधारणा

राजस्थान के सिरोही जिले की सिरोही बकरी की नस्ल राजस्थान की गर्म और शुष्क जलवायु के लिए उपयुक्त है. यदि आप राजस्थान के अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में शुद्ध सिरोही नस्ल को पालना चाहते हैं तो जलवायु परिस्थितियों के कारण मृत्यु दर बढ़ जाती है जिसके साथ वे अनुकूलित नहीं होते हैं. लेकिन क्या होगा अगर हमें अपने खेत में सिरोही नस्ल चाहिए. जैसा कि मेरे मामले में मेरे पास भी सिरोही नस्ल है, यहां क्रॉस ब्रीड अवधारणा आती है. आपको बस एक क्रॉस ब्रीड सिरोही की आवश्यकता है यानी अपने क्षेत्र की एक मादा बकरी (हिरनी) लें. उदाहरण के लिए, झारखंड की जलवायु गर्मियों में बहुत गर्म और सर्दियों में ठंडी होती है, ब्लैक बंगाल नस्ल झारखंड की जलवायु के साथ अच्छी तरह से अनुकूलित है. तो ब्लैक बंगाल हिरण और सिरोही बक लें, उत्पाद का पहला क्रॉस 70% सिरोही या 30% ब्लैक बंगाल होगा (नोट: आनुवंशिक व्यवहार का प्रतिशत भिन्न हो सकता है, संभोग नस्ल पर निर्भर करता है.) अब यह नस्ल झारखंड के साथ अच्छी तरह से अनुकूलित जलवायु होगी. यही बात अन्य नस्लों पर भी लागू होती है.

  1. टीकाकरण कार्यक्रम

बकरियों में मृत्यु दर पर काबू पाने के लिए उचित निर्धारित टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण है. यहां मैं प्रत्येक वैक्सीन शेड्यूल को कवर करूंगा जिसका मैं अपने फार्म में पालन कर रहा हूं. बकरी खरीदने के बाद और बकरी फार्म में प्रवेश करने से पहले कृमि मुक्ति अनिवार्य है और निम्नलिखित टीका अवश्य लगवाना चाहिए.

डॉक्टरों द्वारा निर्धारित सामान्य टीका कार्यक्रम हैं –

  • एफएमडी (फुट एंड माउथ डिजीज) वैक्सीन का नाम पॉलीवेलेंट एफएमडी वैक्सीन है, जो साल में एक बार दी जाती है. इसकी खुराक 3 मि.ली. अन्तः त्वचा दिया जाता है और इसे फरवरी और दिसंबर में लगाया जाता है.
  • एंथ्रेक्स वैक्सीन का नाम एंथ्रेक्स स्पोर वैक्सीन है जो साल में एक बार दी जाती है. इसकी खुराक मई-जून के महीने में अन्तः त्वचा दिया जाता है.
  • ET (एंटरोटॉक्सिमिया) वैक्सीन का नाम ईटी वैक्सीन है, साल में एक बार खुराक मई-जून के महीने में 5 मिली. अन्तः त्वचा दिया जाता है.
  • सीसीपीपी (संक्रामक कैप्रिन प्लुरो निमोनिया) या आईवीआरआई वैक्सीन की खुराक साल में एक बार 2 मिली अन्तः त्वचा दिया जाता है.
  • पीपीआर (पेस्ट डेस पेटीस रूमिनेंट्स) या पीपीआर वैक्सीन 1 मिलीलीटर अन्तः त्वचा की खुराक के साथ 3 साल में एक बार दी जाती है.

बकरियों के लिए चारे की योजना

बकरी पालन योजना बकरी पालन का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है, इस बकरी पालन व्यवसाय में अच्छा लाभ कमाने के लिए उचित चारा योजना और चारे की लागत प्रबंधन की आवश्यकता होती है. यहां इस खंड में मैं चर्चा करूंगा कि कम समय में अपनी बकरियों के विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी चारा कैसे बनाया जाए, साथ ही मैं अलग-अलग भोजन शैली जैसे पूर्ण स्टाल फेड सिस्टम और आंशिक स्टाल फेड सिस्टम पर भी चर्चा करूंगा. बकरियों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए सूखे चारे के साथ-साथ हरा चारा भी बहुत महत्वपूर्ण है. बकरियों को चराना बहुत महत्वपूर्ण है, इसके लिए आपके पास हरियाली के साथ एक अधिशेष चरागाह क्षेत्र होना चाहिए ताकि बकरियों की उचित आवाजाही हो सके जो उनके पाचन में मदद करता है और चयापचय को बढ़ाता है. आमतौर पर मैं अपने बकरी फार्म में आंशिक रूप से स्टॉल फेड प्रणाली को प्राथमिकता देता हूं, जिसमें बकरियों को स्टॉल फेड स्थिति में सूखा चारा या बूस्टर दिया जाता है और सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक चरने के लिए मुक्त किया जाता है. फिर वे खेत में प्रवेश करते हैं और फिर से खाना खिलाना शुरू कर देते हैं.

बकरी का सूखा चारा कैसे बनायें?

रचना और तैयारी तकनीक – 100 किलोग्राम चारा बनाने के लिए संरचना का अनुपात निम्नलिखित है (नोट: मैं सामग्री का वर्णन करने के लिए स्थानीय क्षेत्रीय भाषा का उपयोग कर रहा हूं ताकि क्षेत्रीय पाठकों को लाभ मिल सके.)

  • चोकर – 45 किग्रा.
  • मकई दर्रा – 25 किग्रा.
  • बादाम खल्ली – 15 किग्रा.
  • कोराई (चना छिलका)- 12 किग्रा.
  • खनिज मिश्रण – 2 कि.ग्रा.
  • नमक – 1 किलो.

ये वे अनुपात हैं जिनका मैं उपयोग कर रहा हूं और सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर रहा हूं और खेत में बकरियों की वृद्धि भी बहुत अधिक है, लगभग 8 महीने में बच्चे वयस्क हो जाते हैं और अधिकतम वजन हासिल कर लेते हैं. यह 100 किग्रा अनुपात है और इसका उपयोग किसी भी मात्रा में चारा तैयार करने में किया जा सकता है. इस चारे को आधे अनुपात में कुट्टी के साथ मिलाकर देना चाहिए.

उदाहरण के लिए यदि कुट्टी 1 किलो है तो यह ½ किलो चारा मिला दीजिये. आंशिक रूप से स्टाल फीड की स्थिति के तहत, इस सांद्रण को कुट्टी के साथ चराने से लगभग सभी पोषक तत्वों की आपूर्ति दिन में दो बार यानी सुबह और शाम एक बकरी के लिए दो बार 1 ½ किग्रा यानी हर दिन 3 किग्रा (2 किग्रा कुट्टी और 1 किग्रा सांद्रण) होती है. इसके अलावा सांद्रित हरा चारा भी बहुत महत्वपूर्ण है बकरियों को प्रतिदिन हरा चारा उपलब्ध कराएं या उन्हें चरने के लिए छोड़ दें. चर्चा करने के लिए कई चीजें हैं और उन्हें कवर करने की आवश्यकता है इसलिए मैं हर विषय को अलग-अलग पोस्ट में लिखूंगा, यह एकमात्र सामान्य विचार था जिसे आपको बकरी फार्म शुरू करने के लिए अपनाना चाहिए.

  1. जोखिम कारकों को कम करें आपको हर चीज की ठीक से योजना बनानी होगी और बकरी पालन में लाभ के लिए एक महत्वपूर्ण कारक इस व्यवसाय में शामिल जोखिमों को कम करना है.

वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन

विभिन्न मौसमों तथा विभिन्न अवस्थाओं में बकरियों का प्रबंध

पशुओं के ठंडी के समय होने वाली प्रमुख बीमारियाँ

विभिन्न मौसमों तथा विभिन्न अवस्थाओं में बकरियों का प्रबंध

वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन

 Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the

Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

 Reference-On Request

   वैज्ञानिक बकरी पालन के नवीनतम सिद्धांत

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON