भारत में व्यवसायिक सूकर पालन के आधुनिक तरीके

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भारत में व्यवसायिक सूकर पालन के आधुनिक तरीके

आज की वर्तमान स्थिति में शूकर पालन , पिग फार्मिंग – हॉग इंडस्ट्री के रूप में परिवर्तित हो चुका है।  यह कहना अतिश्योक्ति न होगी की आजकल पिग फार्मिंग का स्वरुप बिलकुल बदल  चुका है।  परम्परागत तरीके से खुले में पलने वाले काले सूकरों की जगह अब उन्नत किस्म के सूकरों ने कमर्शियल फार्मों में ले ली है, जिनमे मुख्य रूप से दो नस्लों का इस्तेमाल उत्तर भारत में ज्यादा हो रहा है।
१. लार्ज व्हाइट यॉर्कशायर ,
२. लैंडरेस

वर्तमान भारतीय बाज़ार में लगातार पोर्क (सूकर  का मीट) की बढ़ती मांग के कारण इस व्यवसाय में प्रॉफिट का अनुपात अन्य व्यवसायों के अपेक्षा काफी ज्यादा है।
पिग फार्मिंग को अपना मुख्य व्यवसाय बनाने में कई तरह की  बातें महत्वपूर्ण होती हैं जैसे कि नस्ल, राशन, टीकाकरण , साफ़ सफाई और स्ट्रक्चर (शेड) की बनावट।

आजकल सबसे ज्यादा समस्या सूकर पालको को फीड की होती है , क्यूंकि सही और वैज्ञानिक आधार पर पिग फीड बनाना बहुत से किसान भाइयो को नहीं आता है और पुराने सफल पिग फार्मर अपनी फार्मूलेशन नहीं देते हैं। आज इसी समस्या को ख़त्म करने के लिए मैंने यहाँ पिग फीड बनाने के कई फॉर्मूले बताये हैं ,आप भी अब किसी रेडीमेड फीड कम्पनी को अपने हिस्से की प्रॉफिट के पैसे को देने से बच सकते हैं।

ड्राई फीड

पिग फीड चार तरह की होती है।

  1. ब्रीडर फीड ( बच्चे देने वाली मादाओं के लिए )
  2. स्टार्टर फीड ( पिग्लेट्स को माँ के दूध से हटाने के बाद )
  3. ग्रोवर फीड (३० किलो शारीरिक बजन से ६० किलो बजन तक )
  4. फिनिशर फीड ( 60 किलो शारीरिक बजन से ऊपर बिकने तक

पिग फीड के प्रकार : पिग फीड मुख्य रूप से तीन भागों में है।

  1. होटल फीड / किचिन फीड और होटल वेस्टेज / किचिन वेस्ट,
  2. ड्राई फीड ,
  3. हरा चारा

होटल फीड और होटल वेस्ट में अंतर 

 

एक बात भारतीय पिग फार्मिंग में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है , वह है होटल फीड / होटल वेस्ट के बारे में समझना।

होटल फीड : होटल फीड या किचिन फीड वह राशन होता है जो किसी बड़ी रसोई में बना होता है और मुख्य रूप से मानव योग्य होता है बस किसी कारणवश वह बच जाता है , उसमें किसी भी प्रकार की गंदगी , छिलके या कुछ अन्य नहीं होता है। इस बात को हम इस तरह भी समझ सकते हैं जैसे किसी मेगा किचिन में ५०० लोगों का खाना बना लेकिन वहां ४०० लोग आये तो १०० लोगों का खाना बिलकुल शुद्ध बच गया जिसमे किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं मिली हुई होती।  इस तरह के राशन को होटल फीड कहेंगे न कि होटल वेस्ट। यह राशन पिग्स के लिए बहुत उपयुक्त है बशर्ते वह एक या दो दिन ज्यादा पुराना न हो , मतलब खराब न हो।

 

होटल वेस्ट

                                                                                                                               होटल वेस्ट : होटल वेस्ट वह राशन होता है , जो किसी बड़ी रसोई में बनता है लेकिन इसमें बनने वाली सभी सब्जियों , सब्जियों के छिलके , खराब सब्जी, बची हुई खराब चीजें जैसे आलू के छिलके, गोभी के डंठल, ख़राब दूध , जली हुई रोटियां जैसी चीजें शामिल होती हैं।  इस तरह के राशन में कुछ हिस्सा तो पिग्स के खाने लायक होता है और अधिकांश नहीं लेकिन जानकारी के आभाव और पैसे बचाने के लालच और शॉर्टकट की वजह से कुछ किसान इसका इस्तेमाल करते हैं। मेरे निजी अनुभव के आधार पर मेरा मानना है कि होटल वेस्ट पिग्स की सेहत के लिए ठीक नहीं होता। 

 

ड्राई फीड (ड्राई ग्रेन फीड) : ड्राई फीड वह राशन होता है जो वैज्ञानिक आधार पर आधारित होता है जिसमे संतुलित मात्रा में कार्बोहट्रैड , प्रोटीन, फैट , विटामिन व मिनरल आदि सब चीजे होती हैं इसमें मुख्य रूप से अनाजों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे पोल्ट्री फीड।  इसे दो तरीके से बनाया जाता है , पहला दलिया जैसा और दूसरा पेलेट फॉर्म में।

पेलेट फॉर्म ड्राई फीड 

 

दलिया फॉर्म ड्राई फीड

हरा चारा (ग्रीन फीड): हरा चारा मुख्य रूप से दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है , जैसे बरसीम, हरे पत्ते, बाजरा, मक्का आदि आदि।  पिग्स के लिए हम लोग हरी सब्जियों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं जैसे फूल गोभी , बंध गोभी, गाजर, पालक आदि आदि।  कई बार मौसम में हरी सब्जिया काफी सस्ती मिल जाती हैं तो उनका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन मेरा मानना है कि हरी सब्जिया व हरा चारा मुख्यतः ब्रेकफास्ट के तरीके से खिलाया जाना चाहिए नकि बजन बढ़ने के लिए क्यूंकि मुख्यरूप से हरे चारे में नमी/पानी की मात्रा काफी ज्यादा होती है और इनमे विटामिन्स की मात्रा भी पाई जाती है।

ड्राई पिग फीड बनाने के सही वैज्ञानिक तरीका 

 

ड्राई पिग फीड निम्नलिखित चार तरीके की होती है जोकि क्रमशः हैं…

  1. ब्रीडिंग फीड
  2. क्रीप फीड
  3. ग्रोवर फीड
  4. फिनिशर फीड

ब्रीडिंग फीड 

ब्रीडिंग फीड बनाने का सही तरीका जिसके द्वारा आप अपनी साउ / गिल्ट (मादा शूकर ) से अच्छा प्रजनन ले सकते हैं।

  1. नमक (आयोडीन युक्त)          –     500 ग्राम
  2. मिनरल विटामिन पाउडर        –     1.5 किलोग्राम
  3. मीठा खाना सोड़ा                    –     500 ग्राम
  4. टॉक्सिक बाइंडर पाउडर         –     100 ग्राम
  5. ज़िंक सल्फेट पाउडर              –     100 ग्राम
  6. डी. सी. पी. पाउडर                 –      1 किलोग्राम (DCP – डाई  कैल्शियम फॉस्फेट)
  7.  मार्बल पाउडर / कैल्साइट       –      1. 3  किलोग्राम
  8. सीरा / मोल्हेसिस                     –      5 किलोग्राम
  9. सोया खली / मूंगफली खली      –      10 किलोग्राम
  10. मक्का (बिलकुल फ्रेश )           –       35 किलोग्राम
  11. जौ                                         –       25 किलोग्राम
  12. राइस पोलिश + किनकी          –       20 किलोग्राम

नोट : बच्चे देने वाली मादाओं के लिए जौ काफी ज्यादा लाभदायक होता है। राइश पोलिश, किनकी और जौ  की मात्रा को कीमतों के अनुसार या फिर उपलब्धता के अनुसार घटाया या बढ़ाया जा सकता है।  मक्का को आप अपनी सुविधनुसार बढ़ा सकते हैं।

 

खिलाने का सही तरीका 

  1. गाभिन मादा को 2 किलो सूखा राशन प्रतिदिनदें , इससे ज्यादा नहीं।
  2. गाभिन मादा को दोपहर में हरा चारा , नाश्ता बतौर दिया जा सकता है।
  3. यदि फार्म में वाटर निपल लगे हुए हों तो गर्मियों में सूखा राशनही दें।
  4. सर्दियों में जानवर पानी कम पीते हैं इसलिए उन्हें राशन गीला देंगे तो उनके शरीर में पानी की कमी नहीं होगी।  आप १ किलो सूखे राशन में तीन से चार लीटर पानी मिला सकते हैं।
  5. मादाओं के बच्चे देने के बाद , राशन को फ्री स्टाइल में खिला चाहिए, मतलब जितना मादा चाहे उतना।

स्टार्टर फीड फार्मूला :

स्टार्टर फीड फार्मूला बहुत ही ज्यादा महत्व रखता है  अक्सर आपने देखा होगा कि पिग्लेट्स को दूध से हटाने के बाद ज्यादातर पिग्लेट्स की सेहत में गिरावट  होती है। जैसी उनके शरीर पर चमक अपनी माँ का दूध पीते वक्त होती है वो कहीं गायब सी हो जाती है। अब आप स्टार्टर फीड अपने फार्म पर खुद तैयार कर सकते हैं , जिसकी जानकारी नीचे है।

विनर्स 

स्टार्टर पिग फीड फार्मूला नंबर 01 :

  • नमक                         –           01 किलो
  • मिनरल पाउडर           –           03 किलो
  • सूखा दूध                    –            02 किलो
  • लाइसीन पाउडर         –            150 ग्राम
  • मिथायोनाइन पाउडर   –            150 ग्राम
  • ज़िंक सल्फेट               –            100 ग्राम
  • डी सी पी  पाउडर        –            01 किलो
  • मार्बल पाउडर             –            1.1  किलो   (केल्साइट पाउडर)
  •  मीठा सोडा                 –            500 ग्राम
  • अनाज (मक्का /गेंहू )    –            40  किलो
  • राईस पोलिश / किनकी –            18  किलो
  • गेंहू की चोकर               –            08 किलो
  • सोया खली                    –            25 किलो

स्टार्टर पिग फीड फार्मूला नंबर 02 :

  • मक्का                         –             56.6 किलो
  • फिशमील                    –             17.4 किलो
  • सोया खली                   –             20.2 किलो
  • मार्बल पाउडर              –             05.6 किलो
  • लाइसीन पाउडर           –             50 ग्राम
  • थ्रायोनाइन पाउडर        –             50 ग्राम
  • प्री मिक्स                      –              01 किलो
  • नमक                           –             500 ग्राम

 

ग्रोवर फीड :

ग्रोवर पिग फीड 30 किलो शारीरिक बजन हो जाने के बाद देना शुरू करना चाहिए और 60 किलो शारीरिक बजन हो जाने तक देना चाहिए और इसका फार्मूला निम्नलिखित है। 

ग्रोवर पिग्स 

 

फार्मूला नंबर 01 

  • नमक                         –            01 किलो
  • मिनरल पाउडर           –            02 किलो
  • लाइसीन पाउडर         –            100 ग्राम
  • मिथायोनाइन पाउडर   –            100 ग्राम
  • ज़िंक सल्फेट               –            100 ग्राम
  • डी सी पी  पाउडर        –            01 किलो
  • मार्बल पाउडर             –            1.2 किलो   (केल्साइट पाउडर)
  •  मीठा सोडा                 –            500 ग्राम
  • अनाज (मक्का /गेंहू )    –            44 किलो
  • राईस पोलिश / किनकी –            20 किलो
  • गेंहू की चोकर               –           10 किलो
  • सोया खली                    –           20 किलो

 

फिनिशर पिग फीड :

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फिनिशर पिग फीड 60 किलो शारीरिक बजन के बाद देना ज्यादा फायदेमंद रहता है। 

  • नमक                         –            01 किलो
  • मिनरल पाउडर           –            01 किलो
  • लाइसीन पाउडर         –            100 ग्राम
  • मिथायोनाइन पाउडर   –            100 ग्राम
  • ज़िंक सल्फेट               –            100 ग्राम
  • डी सी पी  पाउडर        –            01 किलो
  • मार्बल पाउडर             –            1.2 किलो   (केल्साइट पाउडर)
  •  मीठा सोडा                 –            500 ग्राम
  • अनाज (मक्का /गेंहू )    –            50 किलो
  • राईस पोलिश / किनकी –            25 किलो  (तेल वाली पॉलिश )
  • गेंहू की चोकर               –           10 किलो
  • सोया खली                    –           10 किलो

 

मोरिंगा / सहजन 

मोरिंगा को हम सभी मुनगा या फिर सहजन के नाम से भी जानते हैं , उत्तर भारत के राज्यों में इसे सहजन के नाम से ही जाना जाता है जबकि मध्य भारत के राज्य जैसे मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इसे प्रायः मुनगा  के नाम से जाना जाता है।  इस पौधे को अगर संजीवनी बृक्ष के नाम से परिभाषित किया जाय तो भी कम न होगा। हमने देखा है कि दक्षिण भारत के अधिकतर राज्यों में इस पेड़ के पत्तियों और इसकी कच्ची फलिओं जिन्हे ड्रमस्टिक के नाम से भी जाना जाता है का प्रयोग अक्सर अपने खाने की सब्जियों के रूप में किया जाता है। जो लोग सहजन के गुणों के बारे में जानते हैं वे इसको जादुई बृक्ष कहते हैं ,

 

आप लोगों को अपनी पिग पिग फीड बनाते समय इस पेड़ की पत्तो का प्रयोग जरूर करना चाहिए। इसका इस्तेमाल आप नीचे लिखे तरीके से बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। 

  1. सबसे पहले आप हरी पत्तियों को इकठ्ठा कर ले , और किसी भी छाया / शेड में उसे २ से ३ दिन के लिए सूखने दें।  ध्यान रहे कि धुप में न सुखायें।
  2. सूखने के बाद पत्तियों को आप अपनी फीड में मिलाएं।
  3. १०० किलो ड्राई फीड में ५ किलो हरी पत्ती से जितनी सुखी पत्तियां मिली हो मिला लें।
  4. अगर आप हरी पत्तियों को ही सीधे अपने फीड में मिलाना चाहें तो ५ किलो हरी पत्ती सीधे १०० किलो राशन में मिलाकर अपने पिग फीड में खिलाएं।

ऐसा करने से आपको अपनी फीड में किसी भी तरह का विटामिन मिनरल पाउडर / एमिनोएसिड या फिर किसी भी तरह का सप्लीमेंट पाउडर मिलाने की जरुरत नहीं रहेगी।

 

सहजन / मोरिंगा के फायदे और गुण 

  1.  सहजन के पत्तो को पिग फीड में ही नहीं बल्कि गाय , भैंस और बकरों की फीड में में भी मिला सकते हैं। इन पत्तियों को फीड में मिलाने से जानवर की ग्रोथ बहुत अच्छी होती है और गाय भैंसो की फीड में मिलाने से जानवर बहुत ही हेल्दी हो जाते हैं।
  2. सहजन की पत्तियों में विटामिन गाजर से दस गुना ज्यादा होता है,।
  3. सहजन की पत्तियों में प्रोटीन दही से दो गुना , पोटेशियम केले से पंद्रह गुना  होता है
  4. सहजन की पत्तियों में विटामिन ई बादाम से बारह गुना ज्यादा पाया जाता है।
  5. सहजन की पत्तियों में कैल्शियम दूध से सत्रह गुना ज्यादा होता है।
  6. सहजन की पत्तियों का रास निकल कर अगर फसलों पर स्प्रे किया जय तो पैदावार में बढ़ोत्तरी भी होती होती है।
  7. सहजन की पत्तियां ही नहीं बल्कि टहनिया,छाल , ड्रमस्टिक सब कुछ काम में आता है। इस पेड़ से निकलने वाली हर चीज बहुत काम की होती है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यह पौधा एक साल के अंदर ही एक बड़ा पेड़ भी बन जाता है , पहली बार आपको इस पौधे के बीज लगाने पड़ेंगे उसके बाद आप अगर चाहें तो इसको कलम/टहनी से भी जमीन में लगा सकते हैं। 

एक क्विंटल फीड में अगर ५ किलो हरी पत्तियां मिलाने से अगर हमारी फीड ३०० से ३५० रूपये तक सस्ती हो सकती है तो फिर हमें इसके बारे में गंभीरता से सोचना भी चाहिये  और अमल में भी लाना चाहिए। उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में बरसीम काफी बड़ी मात्रा में पैदा होती है जिसे काफी मात्रा में पिग फार्मर अपने जानवरो को खिलाते भी हैं। ठीक उसी तरह सहजन / मोरिंगा की बुवाई भी जमीन में करि जा सकती है , और हमें किसी भी तरह से सहजन की पत्तियों की कमी भी नहीं पड़ेगी। इसकी पैदावार करने के लिए आप एक निश्चित दुरी जैसे हर पाँचफुट की दुरी पर इसका बीज लगा सकते हैं और जब आपके पौधे तक़रीबन  दो दो फुट के हो जाएँ तो आप उन्हें काट सकते हैं , जिन पौधों को आपने कटा है बही पौधे अगली बार पांच से छह जगह से अपनी नई टहनियां निकालेगा और फिर इस तरह से आपकी सहजन की पत्तियों की कमी कभी नहीं होगी।

 

सहजन / मोरिंगा की खेती

 

 इसलिए दोस्तों अपनी फीड की कमसे कम ३ से ४ रु प्रति किलो की कीमत को काम करने के लिए आप अपनी फार्म के पास की जमीन में मोरिंगा / सहजन की खेती जरूर करें।

 

वैसे तो पिग फार्मिंग एक अच्छे प्रॉफिट को देने वाला व्यवसाय माना जाता है और भारत में पिग फार्म बहुत बड़े पैमाने पर शुरू हुए लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि पिग फार्म शुरू होने के डेढ़ से दो सालों के अंदर बंद भी बहुत बड़े पैमाने पर हुए है।  ऐसी स्थिति किसी एक राज्य में नहीं बल्कि लगभग उत्तर भारत के सभी राज्यों में देखि गई है। वैसे तो पिग्स की डिमांड और सप्लाई में जमीन आसमान का अंतर है आज 2022 में भी, लेकिन फिर भी इस सेक्टर में उतनी तरक्की नहीं हो सकी जिसकी उम्मीद लगाकर हम सभी लोग बैठे हुए थे। जब हमने अपने अनुभव और बहुत से किसान भाइयों से उनके अनुभव लिए तो पाया कि इस पिग फार्मिंग बिजनेस में असफलता के कई कारन रहे, जोकि विस्तार से नीचे बताये जा रहे हैं। 

 

इन बताये हुए कारणों को अगर कोई नया फार्मर अपने ध्यान में रखे तो वह शायद फेल नहीं होगा

 

पिग फार्मिंग में फेल होने के कारण 

(FAILURE REASONS OF PIG FARMING IN INDIA)

 

  1. गलत प्रोजेक्ट कॉस्ट।
  2. पिग फार्मिंग को पार्ट टाइम बिजनेस समझना।
  3. लेबर की समस्या।
  4. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियां।
  5. सही ब्रीड का न मिल पाना औरसंतुलित फीड का न होना।
  6. टीकाकरण की जानकारी का अभाव।
  7. जानवरों को बेचने की समस्या।

गलत प्रोजेक्ट कॉस्ट

 

पिछले कई सालों में हमने देखा है कि कोई भी (लगभग 95%) नया फार्मर अपने नए प्रोजेक्ट की सही केलकुलेशन नहीं लगाता है वे अक्सर यही सोचते है कि पिग फार्म बहुत ही आसानी से लगाया जा सकता है बस थोड़ा सा बाड़ा बनाकर फार्म आसानी से शुरू हो जायेगा बस जो भी खर्चा होगा वह ब्रीड को खरीदने में ही होगा बाकि सभी इंतजाम तो बहुत ही ज्यादा आसान है , और अगर 20 मादाओं (दो यूनिट) से शुरुआत करने में सात से आठ लाख रुपये खर्च होंगे , जबकि ये कॅल्क्युलेशन सरासर गलत है। दो यूनिट के प्रोजेक्ट की सही केलकुलेशन मैंने नीचे दी है , आप इसे आसानी से समझ सकते हैं यदि समझने में किसी तरह की कोई समस्या हो तो आप हमें संपर्क कर सकते हैं।

इस चार्ट से आप समझ सकते हैं की दो यूनिट का पिग फार्मिंग प्रोजेक्ट लगभग 29 लाख से 30 लाख के आसपास पहुँच जाता है। इस पूरी प्रोजेक्ट कॉस्ट में जमीन की कीमत नहीं लगाई गई है यहाँ ऐसा माना गया है की जमीन आपकी अपनी है अगर इसमें जमीन (एग्रीकल्चर लैंड) की खरीदने की कीमत कोई शामिल कर लिया जाय तो शायद यही उन्तीस लाख की कीमत 50 लाख तक कैसे पहुँच जाएगी आप आसानी से समझ सकते हैं।

हमारी सलाह है प्रोजेक्ट की सही कीमत को जांचने की लिए आप जितनी मादाओं से फार्म शुरू कर रहे हैं उसमे कम से कम 1.5 लाख की गुना जरूर कर लें। 

जैसे की आप अगर 10 मादाओं से अपना प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं तब….

 

10 मादा X 1.50 लाख = 15 लाख

 कुल प्रोजेक्ट कॉस्ट    = 15 लाख  

 

पिग फार्मिंग को पार्ट टाइम बिजनेस समझना 

अधिकतर देखा गया है कि पिग फार्मिंग व्यवसाय में आने वाले नए लोग इस व्यवसाय को पार्ट टाइम व्यवसाय

समझते हैं जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है , यह व्यवसाय आपका पूरा समय मांगता है। जीवित जानवरों / पशुपालन का कोई भी व्यवसाय हो जैसे की पोल्ट्री, बकरा पालन, डेयरी व्यवसाय, फिशरी या शूकर पालन ये सभी काम आपका रोज का समय मांगते हैं।

बहुत सारी ऐसी छोटी छोटी बातें / समस्यांए फार्म पर डैलयय बेसिस पर सामने आती रहती हैं जिनको आप ही सही तरीके से हेंडल कर पाते हैं।  मेरा मानना है की रोज की छोटी छोटी समस्याओं को आपका लेबर मैनेज नहीं कर सकता इसलिए ध्यान रखे कि इस पिग फार्मिंग  को आप अपनी जिम्मेदारी पर रखे।

हमने कई नए किसानो को देखा है जो केवल शनिवार / रविवार को अपने फार्म पर विजिट करते हैं और उन्हें अपने फार्म से जिन फायदों की उम्मीद होती है वह उन्हें नहीं मिल पाती।  हाँ, अगर आप काम को एक या दो साल करने के बाद अच्छे से सीख चुके हैं तो ऐसी परिस्थिति में आप सप्ताह में काम से दो बार जाकर मैनेज कर सकते हैं और जरुरत होगी कि आप अपने फार्म को सीसीटीवी कैमरे से अपने स्मार्ट फोन पर देखते रहें और लेबर को जरुरत की हिसाब से गाइड करते रहें।

लापरवाही मतलब बर्बादी 

अगर आपका फार्म आपके घर से कही नजदीक ही है तो पूरा दिन फार्म पर न रूककर आप केवल फीडिंग के वक्त अपने फार्म पर रहें क्यूंकि इसी वक्त आपको अपने फार्म के किसी भी जानवर में यदि कोई कमी होगी तो नजर आएगी।

लेबर की समस्या 

पिग फार्मिंग व्यवसाय में लेबर की समस्या भी बहुत आम देखी गई है कई बार ऐसे भी नए फार्मर होतेहोते हैं जो पूरी तरह से अपनी लेबर पर ही निर्भर होते हैं इस स्थिति में कई बार लेबर भी फार्म मालिक को फिजूल नखरे दिखाते हैं और कई बार तो किसी दूसरी जगह काम पर भी बिना बताये जाते हैं , इसलिए नए फार्मर चाहिए कि उसके पास रिजर्व में या तो लेबर उपलब्ध हो या फिर किसी अचानक लेबर के न होने की परिस्थिति में खुद भी काम कर सके।

ध्यान रखने की बात यह है कि अगर संभव हो तो फार्म की लेबर दूसरे राज्यों की बुलानी चाहिए वो भी पुरे परिवार  के साथ जोकि आपके फ़ार्म पर अच्छे तरीके से रूककर काम करेंगे जबकि लोकल की लेबर अक्सर बहानेबाजी करके छुट्टियां करते रहते हैं।

इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियां 

जानवर को स्वस्थ रखने के लिए चाहिए की उनके रहने सहने की जगह यानि उनका शेड सही होना चाहिए। पिग्स को सही और स्वस्थ रहने के लिए एक ऐसे शेड की जरुरत होती है जिसमे हवा की निकासी सही हो और धुप भी आती जाती रहती हो। इसके लिए दो तरीके के शेड भारत में आजकल बनाये जा रहे हैं।

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1 .  आधा खुला आधा ढका हुआ शेड

2  पूरा ढका हुआ शेड

 

इसलिए फार्म की डिजाइन हमेशा ऐसी बनानी चाहिए जिसमे जानवर भी अच्छे से रहें खुश रहें क्यूंकि जब जानवर स्ट्रेस में नहीं होगा तभ ही वह अच्छे से ग्रोथ करेगा। थोड़ा और जानकारी के लिए आप इस विडिओ को भी देख सकते हैं।

 

अच्छी ब्रीड और संतुलित फीड का न मिल पाना 

सही ब्रीड/नस्ल और वैज्ञानिक आधार पर बनी हुई फीड ही फार्म की सफलता की कुंजी हैं इसलिए नए फार्मर को अपना काम शुरू करने से पहले किसी भी अच्छे ब्रीडर से अच्छी जानकारी जुटाकर अच्छी नस्ल की ही खरीद करनी चाहिए।  अपने अनुभवों के आधार पर हम मानते हैं कि लार्ज व्हाइट यॉर्कशायर , लेंडरेस और इनकी हाइब्रिड ऍफ़ 1 नस्ल ही सबसे बेहतर होती है।

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण चीज है संतुलित आहार , फीड मुख्यरूप से दो तरीके की होती हैं पहली ब्रीडर फीड और दूसरी फेटनर फीड। जिसकी जानकारी नीचे है।

कई बार बहुत सारे नए फार्मर अपने पिग्स को कुछ भी खिला देने का सोचते हैं यह सोचकर कि यह तो सूअर है कुछ भी खा लेगा लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है अगर आप अपने फार्म को सफल बनाना चाहते हैं तो एकदम संतुलित आहार ही अपने जानवरों को खिलाएं। खली हरी सब्जियां या वेस्टेज खिलाकर आप कभी भी एक सफल फार्म नहीं चला सकते। इसलिए हमेशा अपने फार्म में साफ़ सफाई रखे और संतित पिग फीड ही अपने जानवरों को दें। 

 

ब्रीडर फीड 

  1.      ब्रीडर फीड (प्रेग्नेंसी में )
  2. फेरोवर फीड (दूध पिलाते समय/ लेक्टेशन टाइम में)

फेटनिंग फीड :

1.स्टार्टर पिग फीड

  1. ग्रोवर पिग फीड
  2. फिनिशर पिग फीड

 

  1. स्टार्टर पिग फीड :यह फीड दूध से अलग हुए पिग्लेट्स जिन्हे विनर कहा जाता है उन्हें दी जाती है।  इस स्टार्टर फीड को दूध से अलग हटाने के बाद से लेकर ३० किलो के हो जाने तक खिलाया जाता है। अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 02:01 का आता है।

स्टार्टर पिग फीड ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण फीड है यह एक हाई प्रोटीन हाई एनर्जी फीड होता है।

2 . ग्रोवर पिग फीड : यह फीड लगभग ३० किलो के बच्चे को खिला शुरू किया जाता है और उसके 60 किलो बजन होने तक दिया जाता है।  अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 02:01 का आता है।

3.फिनिशर पिग फीड :यह फीड लगभग 60 किलो के बच्चे को खिला शुरू किया जाता है और उसके 100  किलो बजन या फिर उसके बिकने तक दिया जाता है।  अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 02.5 – 3.0 :01 का आता है।

 

फीडिंग कैसे दी जानी है, इसके लिए नीचे दिया हुआ चार्ट पढ़ें।

 टीकाकरण / दवाइयों की सही जानकारी 

सही समय पर टीकाकरण न करना भी फार्म के सफल न हो पाने का कारण है इसलिए सही समय पर किसी भी तरह की लापरवाही को दरकिनार करते हुए टीकाकरण कर देना चाहिए। कुछ दवाइयों और टीकाकरण जो कि समय पर करनी चाहिए की जानकारी नीचे दी गई है।

  1. आयरन डोज (जन्म के चौथे दिन 1 एम एल + जन्म के ग्यारहवे दिन 2 एम एल)
  2. मल्टीविटामिन डोज (जन्म की पांचवे दिन 1 एम एल + जन्म के बारहवे दिन 2 एम एल)
  3. डीवॉर्मिंग (जन्म के21 से 25 दिन के भीतर )
  4. स्वाइन फीवर (2 माह की उम्र में )

इसके अलावा सही जानकारी के लिए अपने डॉक्टर सलाह जरूर लेते रहें।

 

जानवरों को बेचने की समस्या 

जानवरो को बेचने की वैसे तो मार्किट में कोई समस्या नहीं है समय पर फेटनिंग के जानवर आसानी से बिकते रहते हैं क्यूंकि भारतीय बाजार में पिग्स की डिमांड  सप्लाई में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन अच्छा होगा कि आप काम से काम एक बार में 18 टन (लगभग 180 जानवर / बजन 100 किलो ) एकसाथ ही तैयार करें और भारत के सबसे बड़े बाजार नागालैंड , गुवाहाटी जैसे उत्तर पूर्व के शहरों में बेचें वहां आपको इनकी जानवरों की कीमत यहाँ उत्तर भारत से ज्यादा मिलती है।

उत्तर पूर्व के राज्यों में आप जिन्दा जानवरो को ट्रक (रोड ) और ट्रेन के माध्यम से लेकर जा सकते हैं , इसकी जानकारी के लिए एक बार आपको असम , नागालैंड , दीमापुर , गुवाहाटी की तरग घूम आना चाहिए।

अगर आप इन सभी बातो का ध्यान रखते हैं तो आप निश्चित  सफल किसान बनेंगे। दो यूनिट से पिग फार्म शुरू करने से आपको कितना फायदा होता है इसकी जानकारी  नीचे दे रहा हूँ , जरूर ध्यान से  स्टडी करें। 

से शुरू करें शूकर पालन / पिग फार्मिंग  

 

नए पिग फार्म को शुरू करते वक्त जिन बातो का मुख्यरूप से ध्यान रखना चाहिए , निम्न हैं।

  1. लीगल फॉर्मेलिटीज।
  2. सही जगह का चुनाव करना।
  3. सही शेड का निर्माण।
  4. ड्रेनेज की व्यवस्था।
  5. नस्ल का चुनाव।
  6. राशन / फीड।

 

१. लीगल फॉर्मेलिटीज ( जरुरी कागज़ात )

फार्म को शुरू करने से पहले आप अगर नीचे लिखे प्रमाण पत्र आदि बनवा लेते हैं तो आपको भविष्य में अनावश्यक परेशानियों को नहीं झेलना पड़ेगा।

  • अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) [नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट] – यह प्रमाण पत्र आपकी जमीन जिस ग्राम पंचायत / नगर पंचायत / गाँव में आती होगी , वहां का प्रधान/सरपंच/चेयरमेन अपने लेटर हेड पर बनाकर देगा।
  • प्रशिक्षण प्रमाण पत्र (शूकर पालन ट्रेनिंग सर्टिफिकेट) को अपने पास रखे , उसके लिए आप किसी भी मान्यता प्राप्त सरकारी प्रशिक्षण केंद्र से ट्रेनिंग ले लें।
  • आपके फार्म के खुलने / होने की जानकारी अपने ब्लॉक के सरकारी डॉक्टर (पशुपालन विभाग ) को होनी चाहिए।  इसके लिए आवश्यक है कि आप एक लेटर लिखकर अपने  ब्लॉक के सरकारी डॉक्टर (पशुपालन विभाग ) को अपने फार्म पर आमंत्रित करें और उस लेटर की एक कॉपी अपने पास अटेस्ट करा कर अपने रिकॉर्ड में रखे और ब्लॉक के सरकारी डॉक्टर (पशुपालन विभाग ) की विजिट के कुछ फोटो भी अपने पास रिकॉर्ड में रखें।
  • अपने जिले के सी वी ओ (चीफ वेटेनरी ऑफिसर) को भी एक बार अपने फार्म पर विजिट करवाएं और पहले की ही तरह रिकॉर्ड मेंटेन करें।
  • यदि कोई भी सरकारी अधिकारी किसी भी विभाग के आपके फार्म पर आते हों तो आप रिकॉर्ड जरूर मेंटेन करें।

२. सही जगह का चुनाव करना 

पिग फार्म शुरु करने से पहले सबसे महत्वपूर्ण है फार्म के लिए सही जगह को चुनना। सही जगज को चुनने से हमारा यह मतलब है कि जिससे आप को काम शुरू करने के बाद भविष्य में किसी तरह की कोई परेशानी न आये।  अतः भाइयो नीचे लिखी बातों का ध्यान जरूर रखें

  • आप जब अपना पिग फार्म शुरू करें तो यह जरूर देख लें की उस जमीन पर आवाजाही , ट्रक की लोडिंग अनलोडिंग के लिए रास्ता जरूर हो।
  • जिस भी जमीन पर फार्म लगाया जा रहा हो , वहां वाटर लेबल (भू-जल स्तर) सही हो , क्यूंकि पिग फार्मिंग में पानी की जरुरत डेली बेसिस पर होती है।
  • फार्म की जमीन आबादी से हटकर ही होनी चाहिए , क्यूंकि कई बार देखा गया है कि भारतीय ग्रामीण परिवेश में शूकर पालन का विरोध भी कर दिया जाता है जो की जमे हुए फार्म के लिए और उसके मालिक के लिए मुसीबत का सबब बन जाता है।
  • जमीन की लेवलिंग सही होनी चाहिए।
  • बरसात के दिनों में या बाढ़ आने की स्थिति में आपके फार्म में पानी का भराव न हो , इसके लिए आपके फार्म को जमीन से थोड़ा ऊंचाई पर ही होना चाहिए। कितनी ऊंचाई ठीक रहेगी यह आप अपने उस क्षेत्र के की जानकारी के बाद तय कर सकते हैं।

सही शेड का निर्माण 

व्यावसायिक स्तर पर पिग फार्मिंग करने के लिए आप दो तरीके से शेड बना सकते हैं।

  • आधा खुला आधा ढका हुआ शेड। [Half shaded and half covered shade] 

 

इस तरीके से बने हुए शेड कई मायनों में फायदेमंद होते हैं जैसे कि गर्मी के दिनों में जानवर आसानी से बहार आकर खुले में बैठ जाता है और सर्दियों और बरसात के दिनों में अंदर अपने पेन्स / कमरों में जाकर बैठ जाते हैं। छोटे बच्चो के लिए भी इस तरह का शेड काफी अच्छा रहता है क्यूंकि छोटी उम्र में उनकी सेहत अच्छी रखने के लिए धुप की जरुरत इस तरह के शेड में न आसानी से पूरी हो जाती है।

  • पूरा ढका हुआ शेड।  [Fully covered shade]

इस तरह के फार्म से कई तरीके का फायदा होता है जैसे कि ज्यादा जगह का उपयोग होना। ऐसे फार्म आजकल काफी प्रचलन में हैं। इन फार्म्स में कम जगह में ज्यादा जानवरों की प्रोडक्शन ली जा सकती है। खास तौर पर ऐसे फार्म फेटनिंग प्रोडक्शन के लिए बहुत बेहतर सिद्ध हो सकते हैं।

 

सही ड्रेनेज की व्यवस्था [पानी की निकासी]

फार्म बनाते समय इस बात का बेहद गंभीरता से ध्यान रखा जाना चाहिए की फार्म में प्रयोग होने वाला पानी चाहे वह पीने के लिए हो या फिर साफ़ सफाई का किसी भी तरीके से फार्म के फर्श पर इकठ्ठा नहीं होना चाहिए।  इसके फार्म का फर्श हमेशा एक तरफ या बाहर की तरफ ढालू बनवाना चाहिए।

फार्म में अगर किसी भी तरह का पानी अंदर रुकेगा तो वह पानी कई तरीके से जानवरो को नुक्सान पहुंचा सकता है जैसे की ;

  • सर्दियों में नए पैदा हुए बच्चो को सर्दी होना।
  • फर्श पर फिसलन का बन जाना , जिससे न केवल छोटेबच्चों को नुक्सान होगा बल्कि बड़े जानवर भी फिसलकर घायल हो सकते है।
  • पानी का ठहराव कई तरह की बीमारियों को शुरू करने का कारन भी बन सकता है।

नस्ल का सही चुनाव (ब्रीड सलेक्शन)

अक्सर व्यावसायिक रूप से पिग फार्मिंग करने के लिए निम्न तीन या चार तरीके की नस्लों का चुनाव करना चाहिए।

  • लार्ज व्हाइट यॉर्कशायर
  • लैंडरेस
  • हाइब्रिड ऍफ़ १
  • ड्यूरोक
  • हैम्पशायर

आमतौर पर फार्मर लार्ज व्हाइट यॉर्कशायर और लेंडरेस नस्ल को ही अपने फार्म पर रखने की प्राथमिकता देते हैं क्यूंकि अनुभव के आधार पर हमने भी ऐसा देखा है कि ये दोनों नस्लें सही समय में तेजी से ग्रोथ करती हैं जोकि लगभग माह में 100 किलो का शारीरिक बजन बढा लेते हैं  और प्रोडक्शन के हिसाब से भी इनका लिटर साइज़ भी दूसरी नस्लों की तुलना में ज्यादा होता है।

उत्तर भारत के राज्यों के हिसाब से ही नहीं बल्कि ये नस्ले लगभग पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद करि जाती हैं, इसलिए हम भी आपको नए फार्म के लिए इन दोनों नस्लों के चुनाव का ही सुझाव देंगे।

 

राशन / पिग फीड 

पिग फार्मिंग में मुख्य रूप से राशन / पिग फीड दो तरह की होती है जोकि निम्न है।

  1. ब्रीडिंग फीड
  2. फेटनिंग फीड

ब्रीडिंग फीड :  ब्रीडिंग फीड भी दो तरीके की होती है जिसकी जानकारी नीचे है

  1. ब्रीडिंग फीड (गर्भावस्था के लिए)
  2. फेरोअर फीड (डिलीवरी के पिग्लेट्स को दूध पिलाते समय)

 

फेटनिंग फीड : फेटनिंग फीड तीन तरीके की होती है जिसकी जानकारी नीचे दी गई है

  1. स्टार्टर पिग फीड :यह फीड दूध से अलग हुए पिग्लेट्स जिन्हे विनर कहा जाता है उन्हें दी जाती है।  इस स्टार्टर फीड को दूध से अलग हटाने के बाद से लेकर ३० किलो के हो जाने तक खिलाया जाता है। अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 02:01 का आता है।
  2. ग्रोवर पिग फीड :यह फीड लगभग ३० किलो के बच्चे को खिला शुरू किया जाता है और उसके 60 किलो बजन होने तक दिया जाता है।  अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 02:01 का आता है।
  3. फिनिशर पिग फीड :यह फीड लगभग 60 किलो के बच्चे को खिला शुरू किया जाता है और उसके 100  किलो बजन या फिर उसके बिकने तक दिया जाता है।  अगर फीड वैज्ञानिक आधार पर सही और संतुलित फॉर्मूले पर बनाई गई हो तो इसका एफ सी आर 5 – 3.0 :01 का आता है।
READ MORE :  सूअर पालन एक लाभकारी व्यवसाय

 

इन सभी जानकारी के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात है फार्म के प्रॉफिट की केलकुलेशन , जोकि मै नीचे बता रहा हूँ।  इस जानकारी को आप बहुत ध्यान से समझे। 

२० मादाओं (०२ यूनिट ) के प्रोजेक्ट की केलकुलेशन 

जब आप दो यूनिट यानि 20 मादा + 02 नर के साथ अपना प्रोजेक्ट शुरू करते हैं तो आपके पूरे प्रोजेक्ट की लागत लगभग 29 लाख के आस पास आती है जिसे आप नीचे दी हुई कैलकुलेशन से समझ सकते हैं, ये पूरी केलकुलेशन पुरे साल की हैं।  ये सारी  केलकुलेशन आज (मई 2021) की कीमतों के हिसाब से है जो की भविष्य में बदल सकती है।

प्रॉफिट केलकुलेशन

 तो इस तरह दो यूनिट से पिग फार्मिंग करने पर कोई भी किसान आसानी से लगभग 11 लाख रुपये सालाना कमा सकता है। 

 खून में इंफेक्शन / Blood Infection in Pigs

खून में इन्फेक्शन हो जाना पिग फार्मिंग में होने वाली एक गंभीर बीमारी है, खून में इन्फेक्शन होने पर नीचे लिखे हुए लक्षण दिखाई देते हैं

  • लगातार बुखार का रहना।
  • राशन कम खाना या कई बार न खाना।
  • शरीर में कमजोरी आते रहना।
  • शरीर पर लाल या नीले चकते बनना।
  • शरीर पर बने धब्बो में पास पड़ना या गलाव पड़ना।

 

ऐसी स्थिति आ जाने पर बिना देर किये सबसे पहले किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लें , अपने आप कोई ट्रीटमेंट न शुरू करें। ठीक इसी तरह के लक्षण एक और बीमारी में भी दीखते हैं जिसका नाम “स्वाइन ऐरिसेप्लास/ 

Erysipelas” होता है। “स्वाइन ऐरिसेप्लास” भी एक बहुत खतरनाक बीमारी है जिसे यदि समय पर न रोका जाय तो यह पुरे फार्म में भी फ़ैल जाती है। आम तौर पर “स्वाइन ऐरिसेप्लास” को बहुत सारे किसान स्वाइन फीवर / स्वाइन फ्लू समझ लेते हैं और उसी के हिसाब से इलाज भी करने लगते हैं। “स्वाइन ऐरिसेप्लास” बीमारी हवा से नहीं बल्कि जानवर के लार से ही फैलती है।

अगर किसी भी जानवर को यह बीमारी लग जाती है तो वह जानवर जिस जगह खाना खाता है या जिस बाड़े में खाना पीना करता है संभव है उस बाड़े के सभी जानवरों को यह संक्रमण फ़ैल सकता है क्यूंकि जानवर एक दूसरे को सूंघते ही अक्सर।  इसलिए अगर आपके किसी भी जानवर को यह दिक्कत होती है तो सबसे पहले उस जानवर को बाड़े से निकाल कर एक अलग कमरे में भेज दें जहा उसका किसी भी दूसरे जानवर से शारीरिक संपर्क न होता हो। इससे संक्रमित जानवर कुछ नीचे दिए हुए जानवरों जैसे दिखाई देते हैं।

जैसा कि इन फोटो में आप देख सकते ठीक इसी तरह के लक्षण पिग्स में दिखाई देने लगते हैं।

 “स्वाइन ऐरिसेप्लास”  को ठीक करने के लिए इलाज है “पेनिसिलिन “

पेनिसिलिन का इंजेक्शन भी बाजार में आसानी से उपलब्ध है और यह साल्ट पाउडर फॉर्म में भी आता है। अगर जानवर ने खाना पीना काम कर दिया है तो लगातार तीन दिन तक इंजेक्शन लगा दें और साथ में एक आइवरमेक्टिन का इंजेक्शन भी लगा दें उसके बाद अगले 21 दिनों तक “पेनिसिलीन” पाउडर फीड में मिला कर देते रहें।

आयुर्वेदिक देशी इलाज 

अगर आप अपने फार्म के पिग्स में खून के इन्फेक्शन से जूझ रहे हैं तो आप अपने सभी जानवरों के राशन में करीपत्ता / मीठा नीम नाम के पेड़ के पत्तों को मिला सकते हैं। खून की सफाई के लिए यह पत्तियां बहुत ही अच्छा फायदा देती हैं।

हम भी अपने फार्म पर दो माह में एक बार कम से कम एक सप्ताह के लिए करीपत्ते राशन में जरूर मिला लेते है इससे जानवर की स्किन काफी हेल्दी हो जाती है और इसे जानवर बहुत चाव से खता भी है। मीठा नीम अक्सर सभी जगह आसानी से मिल जाता है और अगर आपके आस पास न भी हो तो पास की किसी भी सरकारी नरसरी से लेकर इसे लगा सकते हैं।

से करें अपने पिग्स की अच्छी ग्रोथ 

आजकल देखा जा रहा है कि जितनी सफलता पिग फार्मर्स को मिलनी चाहिए उतनी सफलता किसानो को नहीं मिल पा रही है जिसके कई कारण हैं जैसे कि …

  1. सही फीड फार्मूला का न मिल पाना।
  2. फीड कंपनियां फीड की कीमत को लगातार बढ़ाते जा रही हैं और जो मुनाफा किसान को होना चाहिए उसका लगभग आधा या उससे अधिक मुनाफा फीड कम्पनियो की जेब में चला जाता है।
  3. फेटनिंग के जानवरों को ब्रोकर सही कीमतों पर नहीं खरीदते , आज के समय में (जनवरी 2020) में जब फेटनिंग के जानवरो की कीमत 120 रु प्रति किलोग्राम (जीवित) है तब भी अधिकतम ब्रोकर / ट्रेडर ऐसे हैं जो ड्राई फीड बेस्ड जानवरो की कीमत 105 रु प्रति किलोग्राम से शुरू करते हैं।
  4. जानवरों को सही तरीके से रखरखाव की व्यवस्था का न होना।
  5. पिग फार्मर्स में एकता न होना।

अब आते हैं आज के मुद्दे पर , कि सही मुनाफा लेने के लिए किस तरह की व्यवस्था करी जाय जिससे सही समय में सही ग्रोथ हो और फीड की कीमत भी अनाप शनाप तरीके से न बढे।

अच्छी बढ़वार के लिए पिग फीड में संतुलित मात्रा में सोया खली जरूर होनी चाहिए आप सोया खली के अलावा फिश मील / मीट बॉन मील को भी प्रोटीन के मात्रा संतुलित करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं लेकिन सोया खली को पूरी तरह हटाने के विषय में न सोचें, जहांतक मीट बोन मील का सवाल है आप इसका प्रयोग अधिक न करें।

अब मैं आपको बताता हूँ फीड को सस्ता और जानवर की ग्रोथ के लिए रामबाड प्रोडक्ट , इसका नाम है सीरा

सीरा एक ऐसा पदार्थ है जो गन्ने से बनाया जाता है दिखने में यह तरल रूप में गुड़ के जैसा होता है। इसका रंग कुछ चॉकलेटी / गहरा कत्थई होता है।  इसका स्वाद मीठा होता है जिसे सूअर बहुत पसंद करता है। अधिकतर स्थितियों में देखा गया है कि जितनी भी केटल फीड बनाने वाली कम्पनियाँ हैं वे फीड को पेलट फॉर्म में बदलने के लिए इसी सीरा / मोल्हासिस का ही इस्तेमाल करती हैं।  ऐसा करने से फीड को कोई भी जानवर बड़े ही चाव से खाता है और इसके फायदे तो हैं ही अनगिनत।

सबसे महत्वपूर्ण बात है सीरा की कीमत का सस्ता होना , आजकल इसका रेट लगभग 10 रु/किलोग्राम चल रहा है। इस तरह कीमतों के परपेक्छ में भी यदि हम सीरा को देखें तो यह सबसे सस्ती दरों पर उपलब्ध है। सीरा न केवल आपकी फीड की कीमत को काम करता है बल्कि इसमें उपलब्ध न्यूट्रिशन की मात्रा इतनी अच्छी होती है जो शायद किसी और चीज में उपलब्ध नहीं होती है।

 

न्यूट्रिशनल वैल्यूज़ :

सीरा में बहुत अधिक मात्रा में एनर्जी होती है या फिर कह सकते हैं कि सीरा पिगफीड में इस्तेमाल किये जाने वाले अनाज और अलग तरीके की सभी चीजों में सबसे ज्यादा एनर्जी देने वाला इंग्रेडिएंट है साथ ही सीरा में जबरदस्त मात्रा में सोडियम , आयरन , मैग्नीशियम , कैल्शियम , पोटेशियम , मैगनीज आदि तत्व पाए जाते हैं जो  कि शूअर की न केवल ग्रोथ बल्कि उसके पुरे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता है। इसमें प्रति 100 ग्राम मात्रा में कैल्शियम 942 मिलीग्राम , आयरन 2.1 मिलीग्राम , मैगनीज 29 मिलिग्राम, ज़िंक 6 मिलीग्राम होता है जो कि और दूसरी चीजों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

कैसे करे सीरा का सही उपयोग 

सीरा का प्रयोग आप पिग्स की हर तरह की फीड (स्टार्टर पिग फीड , ग्रोवर पिगफीड, फिनिशर पिगफीड, ब्रीडर पिगफीड और फेरोवर पिगफीड) में कर सकते हैं। इसका प्रयोग फीड में करने के लिए आप नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें।

  1. कम से कम सीरा की 5 किलो की मात्रा प्रति क्विंटल आप सभी फीड में मिला सकते हैं।
  2. फिनिशर्स पिग्स में सीरा की मात्रा 20-25 किलो/क्विंटल तक मिला सकते हैं।
  3. शुरुआत में फीड में केवल 5 किलो प्रति क्विंटल सीरा ही फीड में मिलाएं उसके बाद सीरा की मात्रा धीरे धीरे बढ़ाते रहे। पहले 5 किलो देना शुरू करें फिर चार से पांच दिन बाद सीरा की मात्रा 7 किलो कर दें फिर फिर चार से पांच दिन बाद सीरा की मात्रा 10 किलो कर दें , इसी अनुपात में धीरे धीरे जानवर के पाचन को ध्यान में रखते हुए मात्रा बढ़ाते चले जाएँ।
  4. एकसाथ सीरा की मात्रा न बढ़ाएं , ऐसा करने से जानवर की पाचन स्थिति बिगड़ जाएगी और पिग्स को दस्त (लूज मोशन) हो जायेंगे।
  5. सीरा के साथ अपने फीड में प्रोटीन के मात्रा को सही अनुपात में रखने के लिए सोया खली और फिश मील का उपयोग करें। यदि फिशमील उपलब्ध हो तो सोया खली और फिश मील उपयोग बराबर बराबर अनुपात में करें।  फिश मील में प्रोटीन की मात्रा सोयाखली से अधिक होती है इसलिए आप सोयाखली को पूरी तरह से फीड से न हटाएँ।
  6. फीड में सही अनुपात में विटामिन मिनरल पावडर का इस्तेमाल करें।
  7. फीड में सही अनुपात में टॉक्सिन बाइंडर , जिंक सल्फेट, डाय कैल्शियम फॉस्फेट का इस्तेमाल करें।
  8. फीड यदि चाहें तो तरल रूप (लिक्यूड फॉर्म ) में दे सकते हैं। किसान अपनी सुविधा देखकर इस बिंदु पर ध्यान दे सकते हैं।

सोयाखली और फिशमील पॉवडर दोनों ही पिग पिग फीड में प्रोटीन को संतुलित करने के लिए शानदार विकल्प हैं। सोयाखली वेज प्रोटीन है वहीँ फिशमील एनिमल प्रोटीन है। कीमतों का यदि हम थोड़ा ध्यान रखे तो पाएंगे कि प्रोटीन के लिए MBM भी एक अच्छा विकल्प है लेकिन हमारे अनुभव में MBM से बेहतर और भरोसेमंद फिशमील है।

पिग्स की अच्छी ग्रोथ के लिए नीचे लिखी बातो का ध्यान भी रखें। 

  • फार्म में साफ़ सफाई रखें। सफाई न होने की स्थिति में गोबर और गंदगी मीथेन (CH4) और अमोनिया (NH3) पैदा होती हैं जिससे खासकर पिग्लेट्स की ग्रोथ रूकती है कई बार छोटे पिग्लेट्स की मृत्यु भी ऐसी स्थति में देखि गई है।
  • जानवरो के पेट की सफाई (डीवॉर्मिंग) समय पर करते रहें।
  • फार्म के शेड का तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेटसे 30 डिग्री सेंटीग्रेट तक रखें।
  • अच्छी फीड जोकि संतुलित और वैज्ञानिक आधार पर बनाई गई हो , ही दें।
  • समय पर फीड दें।
  • ऐसी फीड दें जिसे जानवर ज्यादा पसंद करे।

Dr.Jitendra Singh,
Dy.C.V.O-Kerakat, Jaunpur (U.P)

REFERENCE-ON REQUEST

PHOTO CREDIT -GOOGLE

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