धान की पुराली: पशु आहार के रूप में खिलाने से इसका लाभ एवं दुष्प्रभाव

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धान की पुराली: पशु आहार के रूप में खिलाने से इसका लाभ एवं दुष्प्रभाव

डॉ संजीव कुमार वर्मा,
प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण),
*भाकृअनुप – केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ छावनी*
*9933221103

अक्सर देखा गया है कि किसान भाई धान की कटाई के बाद धान की पुराली को वहीं खेत में ही जला देते हैं। धान की पुराली खेत में जलाने से वायु प्रदूषण तो करती ही है साथ ही साथ वातावरण के तापमान में भी वृद्धि करती है। धान की पुराली को खेत में जलाने से तो बेहतर है कि यह पशुओं को खिलाने के काम में ली जाए। इससे एक तो वायु प्रदूषण नहीं होगा दूसरे हरे चारे और सूखे चारे की कमी की समस्या से जूझते भारत को कुछ राहत मिलेगी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय हमारे देश में जहां सूखे चारे की *23.4 प्रतिशत कमी* है वहीं हरे चारे की *11.24 प्रतिशत कमी* है और रातिब मिश्रण की *28.9 प्रतिशत कमी* है। चारे और दाने की कमी से जूझते देश में धान की पुराली को जलाकर नष्ट कर देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

धान की पुराली में पोषक तत्वों की मात्रा देखें तो इसमें पोषक तत्व नाम मात्र के ही हैं। धान की पुराली में *शुष्क पदार्थ* की मात्रा है 90 प्रतिशत और नमी है 10 प्रतिशत। धान की पुराली में *क्रूड प्रोटीन* मात्र 3 प्रतिशत ही है जबकि इसमें *फाइबर* की मात्रा हैं 30 प्रतिशत। धान की पुराली में 17 प्रतिशत तक *सिलिका* भी पाई जाती है। इसमें आधा प्रतिशत *कैल्शियम* और 0.1 प्रतिशत *फॉस्फोरस* भी है। धान की पुराली की पाचकता 30 से 50 प्रतिशत तक ही होती है।

*सिलिका* की उपस्थिति के कारण वैसे तो इसका अंतर्ग्रहण कम ही होता है मगर पशु के सामने कोई अन्य चारा उपस्थित न होने की स्थिति में धान की पुराली खाना उसकी मजबूरी हो जाती है।

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अगर पशु को केवल धान की पुराली के ही भरोसे रखा जाएगा तो उसकी पोषण आवश्यकताएं पूरी होना सम्भव नही है। आजकल गोआश्रय स्थलों पर भी निराश्रित पशुओं को धान की पुराली के भरोसे पाला जा रहा है। धान की पुराली उनका पेट तो भर सकती है मगर उन्हें वांछित पोषण प्रदान नहीं कर सकती। अगर पशु दूध नहीं भी दे रहा है तो इस स्थिति में भी उनकी दैनिक पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति केवल धान की पुराली से होना सम्भव नहीं है।

धान की पुराली में क्रूड प्रोटीन की मात्रा बहुत ही कम है और साथ ही इसकी पाचकता कम होने के कारण धान की पुराली पर रखे गए पशुओं में *प्रोटीन की कमी* हो जाती है इसलिए इन पशुओं को प्रोटीन की आवश्यक मात्रा की पूर्ति के लिए रातिब मिश्रण देना अति आवश्यक हो जाता है।

धान की पुराली के साथ एक और दुर्गुण लगा हुआ है। धान की कटाई के समय मौसम ठंडा होने लगता है और धूप की तीव्रता भी कम होने लगती है। ऐसे समय में धान काटने के बाद बची पुराली में अगर नमी ज्यादा हो तो उसमें सड़न पैदा होने लगती है और उसमें एक *फंगस* लग जाती है जिसे *फ्यूजेरियम* कहते हैं।

धान की पुराली खाने वाले पशुओं में पुराली के साथ यह फंगस भी पशु के पेट में चली जाती हैं जिसके कारण पशुओं को *डगनेला* नामक बीमारी हो जाती है। इस बीमारी से ग्रसित पशु के दोनों कानों और पूँछ में गैंगरीन हो जाता है। कभी कभी नाक के अगले हिस्से और जीभ के अगले हिस्से में भी गैंगरीन के लक्षण दिखाई देते हैं। खुरों में सूजन आ जाती है और कभी कभी यह सूजन घुटने तक चढ़ आती है। पशु के बाल गिरने लगते हैं। खाल में दरारें पड़ जाती हैं। वृद्धिशील पशु की वृद्धि रुक जाती है। रोग की अधिकता में खुर गिर जाते हैं और पैरों में घाव हो जाते हैं। पशु में कमजोरी आ जाती है। दुधारू पशु का दूध उत्पादन कम हो जाता है।

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इसलिए कोशिश यह की जानी चाहिए कि किसी भी पशु को मात्र धान की पुराली के ही भरोसे ना पालें और अगर धान की पुराली खिलाना मजबूरी हो तो ध्यान रखें कि इसके अंदर नमी बहुत ज्यादा ना हो और नमी के कारण फंगस लगने की बदबू न आ रही हो। अगर पुराली में फंगस लगा है तो ऐसी पुराली पशुओं को बिल्कुल न खिलाएं।

अगर अज्ञानता वश फंगस लगी पुराली खिलाने से पशु के अंदर उपरोक्त लक्षण दिखाई दे तो धान की फंगस लगी पुराली खिलाना तुरंत बंद कर दें। और ऐसे पशु का समुचित इलाज कराएं।

डगनेला रोग से ग्रसित पशु में *पेंटासल्फेट मिक्सचर* से आशातीत लाभ होता है। पेंटासल्फेट मिक्सचर बनाने के लिए *फेरस सल्फेट* 166 ग्राम, *कॉपर सल्फेट* 24 ग्राम, *जिंक सल्फ़ेट* 75 ग्राम, *कोबाल्ट सल्फ़ेट* 5 ग्राम, *मैग्नीशियम सल्फ़ेट* 100 ग्राम मिलाकर एक मिश्रण बनाया जाता है। इस मिश्रण की 30 ग्राम मात्रा रोज़ाना 30 दिन तक देने से लाभ होता है। इसके साथ 50 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का खनिज मिश्रण देना भी लाभकर है।

धान की पुराली की पोषकता और पाचकता में वृद्धि करने के साथ साथ फ्यूजेरियम फंगस से छुटकारा पाने के लिए धान की पुराली का *यूरिया (अमोनिया) उपचार* करके ही खिलाना चाहिए। धान की पुराली को यूरिया द्वारा उपचार करने के लिए प्रति 100 किलोग्राम धान की पुराली के लिए 33 लीटर पानी और 4 किलो यूरिया खाद की आवश्यकता होगी।

उपचार करने के लिए 33 लीटर पानी में 4 किलोग्राम यूरिया का घोल बनाकर धान की पुराली के ऊपर छिड़क देना है और पुराली को पैरों से दबाकर बीच में मौजूद हवा को निकाल देना है और उपचारित धान की पुराली को पॉलीथिन से ढककर 21 दिनों के लिए रख देना है। इन 21 दिनों के दौरान यूरिया खाद अमोनिया में बदल जाएगी जो धान की पुराली का उपचार करके उसकी पोषकता में वृद्धि करने के साथ साथ उसकी पाचकता में वृद्धि करेगी और फंगस के स्पोर्स को भी मार देगी।

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इस तरह यूरिया से उपचारित धान की पुराली 21 दिनों बाद पशुओं को खिलाई जा सकेगी। इसे खिलाने से पशु को अधिक पोषक तत्वों की प्राप्ति होगी और पुराली की पाचकता अधिक होगी और फ्यूजेरियम फंगस के कारण डगनेला रोग के होने की आशंका भी समाप्त हो जाएगी।

अंत में यही निष्कर्ष निकलता है कि धान की पुराली को खेतों में न जलाकर पशुओं के खाने के लिए प्रयोग करें मगर केवल धान की पुराली के भरोसे ही दूध उत्पादन की कामना ना करें। साथ ही धान की पुराली पशुओं को तभी खिलाएं अगर उसके अंदर फंगस न लगी हो। फंगस लगी धान की पुराली खिलाने से पशुओं में डगनेला रोग हो जाएगा जो पशु के लिए बहुत ही हानिकारक होगा। डगनेला रोग होने की स्थिति में पेंटासल्फेट मिक्स्चर का प्रयोग करें। साथ ही कोशिश करें कि धान की पुराली को यूरिया द्वारा उपचारित करने के बाद ही खिलाएं।

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