पशुओं में हरा चारा का महत्व, स्रोत एवं प्रबन्धन

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*डा0 विशुद्धानन्द, *डा0 के0 डी0 सिंह, **डा0 नीरज यादव एवं ***डा0 एस.एस. कश्यप
*सहायक प्राध्यापक, पशुधन प्रक्षेत्र विभाग, पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय
**सह प्राध्यापक, मृदा विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय
***विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, संत कबीर नगर
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज-अयोध्या (उ0प्र0)

भारत देश की लगभग 65-70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। जो अपनी आजीविका के लिए कृषि के साथ -साथ पशु पालन पर निर्भर रहते है। भारत देश में अधिकतर पशुओं को केवल गेंहूँ का सूखा भूसा या धान का पुआल खिलाकर जिन्दा रखा जाता है। गेहूँ के सूखे भूसे एवं पुआल में सिलका एवं ऑक्जेलिक अम्ल प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। जिसको लगातार खिलाने से पशुओं में विभिन्न प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती है। इसके कारण पशु का समय से गर्मी न आना, गर्भ न ठहरना, पशुओं की त्वचा खुरदरी हो जाना, पशु कमजोर हो जाना तथा दूध देने वाले पशुओं में दूध की मात्रा घट जाना आदि। पशुओं में कुल दुग्ध उत्पादन लागत का 60-70 प्रतिशत लागत केवल आहार पर आती है। हरे चारे से आहार क्रय में आने वाली लागतों को कम कर आय को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा पशुओं से प्राप्त गोबर, मूत्र एवं उसके बिछावन से कम्पोस्ट तैयार कर इसको हरे चारे की फसलों में प्रयोग करने से रासायनिक उर्वरकों के क्रय में आने वाली लागत को भी कम किया जा सकता है।
हरे चारे का महत्व
1. हरे चारे में विभिन्न पोषक तत्व जैसे, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
2. प्रोटीन पशुओं में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है।
3. हरे चारे में प्रचुर मात्रा में केरोटीन पाया जाता है। जो विटामिन ए का अपरूप है। जो पशुओं में अन्धेपन की बीमारी से मुक्ति दिलाता है।
4. पशुओं को हरा चारा खिलाने से पशुओं के रक्त संचार में वृद्धि हो जाती है।
5. हरा चारा स्वादिष्ट होने के साथ- साथ पाचनशील होता है जिससे पशुओं में पाचनशीलता बढ़ जाती हैं।
6. हरा चारा खिलाने से पशुओं की त्वचा मुलायम एवं चिकनी हो जाती है।
7. हरा चारा खिलाने से दूध देने वाले पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।
8. हरा चारा खिलाने से पशु समय से गर्मी में आने लगते है तथा गर्भ धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
पशु आहार में चारे की मात्रा की गणना
पशुओं को प्रतिदिन हरा चारा उसके शरीर भार का 1/10 भाग ही खिलाना चाहिए। यदि किसी पशु का भार 400 किगा्र0 है। तो उसको प्रतिदिन 40 किग्रा0 हरा चारा उपलब्ध कराना चाहिए।
भूसा पशु के शरीर भार का 1/40 भाग खिलाना चाहिए। यदि किसी पशु का भार 400 किग्रा0 है। तो उसको प्रतिदिन 10 किग्रा0 गेंहॅू का भूसा उपलब्ध कराना चाहिए।
हरा चारा के प्रमुख स्रोत
अधिक उपज देने वाली फसलों की उन्नतशील प्रजातियाँ
क्रम सं0 फसल का नाम उन्नतशील प्रजातियाँ
1. बहु कट बाजरा जायन्ट बाजराए राज बाजरा चरी-2
2. एकल कट बाजरा राज.171ए जे0पी0बी0.2ए जे0पी0बी0-3, ए0वी0के0बी0-19, पूसा-266
3. बहु कट ज्वार सी0एम0एच0-24 एम0एफ0, एस0एस0जी0-59-3,एम0पी0चरी,सी0ओ0एस0एफ-29, पी0सी0-6
4. एकल कट ज्वार एस0ओ01080
5. मक्का प्रताप मक्का चरी-6, जे0-1006,अफ्रीकन टाल
6. नैपियर हाईव्रिड बाजरा एम0पी0बी0एन0-1, सी0ओ0-4
7. लोबिया बुन्देल लोबिया-1, यू0पी0सी0-9202, ई0सी0-4216
8. ग्वार एच0सी0-75, बुन्देल ग्वार-1, बुन्देल ग्वार-2,आर0जी0सी0-1031, र0जी0सी0-986
9. जई यू0पी0ओ0-212,ओ0एल0-125, केन्ट, ओ0एस0-6, आर0ओ0-19,जे0एच0ओ0
10. लूसर्न आनन्द-2, आनन्द-3, आर0एल0-88
11. बरसीम मिसकावी, वरदान, बुन्देल बरसीम-1, बुन्देल बरसीम-2, लुधियाना बरसीम1, बरसीम-2
12. मैथी एच0एफ0एम0-65, टी0-8
13. सरसों जापानी राई, चाइनीज केबेज

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द्वि-उद्देश्यी फसलों की किस्मों का चयन
भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर सड़कों के निर्माण, भवनों के निर्माण एवं कल-कारखानों के निर्माण में बढोत्तरी होती जा रही है। जिसके कारण भारत में कृषि जोत का आकार छोटा होता जा रहा है। खाद्यान्न की आपूर्ति हेतु केवल अनाज वाली फसलों पर अधिक महत्व दिया जा रहा है। जिसके कारण हरे चारे के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रफल में निरन्तर कमी होती जा रही है। इसलिए आवश्यक है, कि ऐसी किस्मों का चयन करें जो हरा चारा उत्पादन के साथ-साथ दाना का भी उत्पादन कर सके। इसमें खाद्यान की कुछ ऐसी फसल की प्रजातियाँ विकसित की गयी है जिनको एक कट काटकर किसान भाई हरे चारे के रूप में प्रयोग कर सकते है तथा उसी फसल की दूसरी कट को दाने हेतु छोड़ देते है जो निम्नवत है।
फसल द्वि-उद्देश्यी प्रजातियाँ
जौ आर0डी0-2035, आर0डी0-2552, आर0डी0-2715, आनन्द, एन0डी0बी0-443
बजरा राज-171, जे0बी0वी0-2, जे0बी0वी0-3, पूसा-266, पूसा कम्पोजिट-443
ज्वार सी0एस0वी0-15, सी0एस0वी0-20, सी0एस0वी0-23

अदलहनी एवं दलहनी फसलों की मिश्रित बुआई
दलहनी फसलें प्रोटीन का जब कि अदलहनी फसलें कार्बोहाइट्रेड का अच्छा स्रोत है। अच्छी गुणवत्ता युक्त हरा चारा प्राप्त करने के लिए अदलहनी एवं दलहनी फसलों की 2:1 मे मिश्रित करके बुआई करनी चाहिए। इसके अलावा दलहनी फसलें वातावरण की स्वतंत्र नाइट्रोजन को भूमि में स्थरीकरण करने में सहायक होती है तथा अघुलनशील फास्फोरस को घुलशील अवस्था में परिवर्तित करके पौधे को उपलब्ध कराती है। अदलहनी एवं दलहनी फसलों की मिश्रित बुआई से लगभग 25-30 प्रतिशत नाइट्रोजन जो कि रासायनिक उर्वरक के रूप में फसलों को देना पडता है की बचत भी हो जाती है। इसके विपरीत अदलहनी फसलें, दलहनी फसलों को चढ़ने में सहारा प्रदान करती है।
1. ज्चाऱ़+लोबिया, जई+लूसर्न
2. बाजरा+लोबिया, जई़+बरसीम
3. मक्का+लोबिया, जई+मैथी
4. ज्वार+ग्वार, बरसीम+सरसों
5. मकचरी+ग्वार, जौ+बरसीम
बहुबर्षीय घासों की बुआई/रोपाई
किसान भाई वहुबर्षीय घासों को लगाकर हरे चारे में आने बाली लागत को कम कर सकते है चूंकि बहुवर्षीय घासें एक बार लगाने के पश्चात प्रति वर्ष लगभग 1500-3000 कु0 प्रति हे0 प्रति वर्ष हरा चारा उत्पादन करतीं है सुपर नैपियर घास से लगभग 9000 -10000 कु0 प्रति हहे0 प्रति वर्ष उत्पादन होता है जो अन्य हरे चारे की तुलना में काफी अधिक है। किसान भाई निम्न घासों एवं उनकी विभिन्न प्रजातियों को लगा सकते है।
1. नैपियर घास (हाथी घास)
2. दीनानाथ घास
3. धामा घास
4. गुनिया घास
5. अनजन घास
बहुवर्षीय वृक्षों का रोपड़
किसान भाई बहुवर्षीय वृक्षों जैसे- सुबबूल, सहजन, गूलर तथा उनकी प्रजाजियों को परती एवं बंजर पड़ी भूमि एवं खेतों के चारों ओर मेंड़ों पर लगाकर उससे हरा चारा प्राप्त सकते हैं इससे अनुउपयोगी जमीन का भी उपयोग हो जाता है तथा भरपूर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन, आयरन, जिंक, प्रोटीन एवं खनिज लवण आदि पोषक तत्व भी मिलते है जो अन्य हरे चारे की तुलना में काफी अधिक होते है जिससे पशुओं को अलग से इन तत्वों को नहीं देना पड़ता इसके अतिरिक्त किसानों को जलाने हेतु लकड़ी भी प्राप्त हो जाती है।
हे (Hey)
जब चारा प्रचुर मात्रा में हो तब हरे चारे की खेत से कटाई कर खेत में अथवा शुष्क स्थान पर रखकर सूखने के लिए छोड़ देते हैं तथा जब चारे में 12 से 15 प्रतिशत नमी शेष रह जाये तब इसके बण्ड़ल बनाकर किसी ऐसे स्थान पर संरक्षित कर लेना चाहिए जहाँ वर्षा का जल एवं नमी न पहुचे इस प्रकार हरे चारे को किसान भाई नष्ट होने से बचा सकते है तथा इस चारे को कभी भी आवश्यकता अनुसार पशुओं को खिला सकते है। सामान्यतः हे बनाने के लिए पतले तना वाली हरे चारे की फसलों का चुनाव करते हैं जैसे- लूसर्न, बरसीम, जई, एम0पी0 चरी आदि। इसमें हरे चारे के समान ही पोषक तत्व पाये जाते हैं।
साइलेज
यह मुलायम, स्वादिष्ट तथा पाचनशील अवायुवीय दशा में उचित नमी (65 से 70 प्रतिशत) पर तैयार किण्वत हरा चारा होता है। जिसमें हरे चारे के समान ही पोषक तत्व होते है। सामान्यतः साइलेज बनाने के लिए मोटे तना वाली फसल जैसे- मक्का, ज्वार चरी, बाजरा, नैपियर, जई का प्रयोग करते है।

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