बाघ संरक्षण – प्राकृतिक संतुलन एवं मानव विकास का समन्वय

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बाघ संरक्षण – प्राकृतिक संतुलन एवं मानव विकास का समन्वय
डॉ. माधवी धैर्यकर, डॉ. अमोल रोकड़े
एस.डब्ल्यू.एफ.एच., नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

भारत में बाघ एवं वन्य प्राणी संरक्षण एक प्राचीन परंपरा रही है, जो कि हमारी आस्था के साथ साथ पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। भारत में दुनिया की लगभग 17-18 जनसंख्या निवास करती है, जबकि उसके पास विष्व का 2.61 क्षेत्रफल है एवं इसमें भी 60ः से अधिक भारतीय हाथी, 75 : से अधिक बाघ, 100ः एषियाई षेर, 85ः से अधिक 1 सींग वाला गेडा एवं अन्य वन्यप्राणी अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहे है। जुलाई 2019 सभी भारत वासियो के लिए गौरवषाली रहा, क्योकि भारत ने ग्लोबल टाईगर फोरम 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में बाघों की गिनती दोगुनी करने का जो लक्ष्य 2022 तक रखा था,ु भारत ने वह आयाम निर्धारित समय के पहले ही पूर्ण कर लिया है। अब लगभग दुनिया के 75 : से अधिक बाघ भारत के वनो में स्वछंद विचरण कर रहे है। इसी के साथ ही मध्यप्रदेष ने टाइगर स्टेट होने का दर्जा पुनः प्राप्त कर लिया है जो कि कर्नाटक से लगभग निकटतम है पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से गतिमान बनाये रहने के लिये बाघ एवं वन्य प्राणी संरक्षण कितना जरूरी है ये बात किसी से छिपी नहीं है प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए प्रत्येक जीव का अपना महत्व है परन्तु मनुष्यो द्वारा अंधाधुन्ध विकास इस संतुलन को बिगाड़ रहा है दुनिया से लगभग 3 प्रकार के बाघ पहले ही विलुप्त हो चुके है भारत में वन्य प्राणियों के सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद उन पर अत्याचार कम नही हुए है यवतमाल के अवनि बाघ को जिस प्रकार मारा गया और उस घटना ने पूरे विष्व को झकझोर के रख दिया था। मीडिया ने भी इस घटना को प्रमुखता दी थी, पर अवनि का बचाने के प्रयास नाकाफी साबित हुए। “दि वाइल्ड लाइफ ट्र्ेड मानिटरिंग नेटवर्क” ट्रेफिक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो कि विष्व में वाइल्डलाईफ ट्रेड इष्यू और जैव विविधता पर पड़ रहे मानवीय प्रभावों और दबावो पर अपना अनुसंधान करती है इसके अनुसार कोरोना के कारण देषव्यापी लोकडाउन में प्रतिवंधित वन्य क्षेत्रों में वन्य प्राणियों के अपराध में दुगनी से अधिक की वृद्धि हुई है केरल में गर्भवती हथनी को फल में विस्फोटक मिला कर मार देना अत्यंत दुखदायक रहा। वहीं पीलीभीत के पास एक निरीह बाघ की लाठियों से पीट पीटकर निर्मम हत्या ने मानवता को षर्मषार किया है, परंतु पिछले दषक में पन्ना एवं सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघो को पुनः स्थापित करना गौरवान्वित करता है। वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम के अनुसार पिछले 50 वर्षो में दुनिया के 60 प्रतिषत जंगली जीव खत्म हुये है। मनुष्यों द्वारा जंगल में अत्यधिक हस्तक्षेप एवं वन्यप्राणियों के करीब आने से महामारीयों में भी कुछ दषको में अत्यधिक बढ़ोत्तरी हुई है एवं इस समय की वैष्विक समस्या बवअपक.19 इसी की उपज माना जा रहा है। इसके साथा ही इबोला, एड्स, सार्स जैसे वायरस इंसानें के लिए घातक सावित हुये है।
मध्यप्रदेष से उड़ीसा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व में बाघों की पुर्नस्थापना करने का प्रयास विगत वर्ष में किये गए, परन्तु वह असफल रहा, पर हमें ऐसे प्रयास जारी रखने होंगे। हमारे पास लगभग 73,000 वर्ग किमी के क्षेत्र के साथ 50 टाइगर रिजर्व है। हालिया अखिल भारतीय बाघ जनगणना आँकलन 2019 के अनुसार देष में बाघो की आबादी में 2967 है जिसकी न्यूनतम एवं अधिकतम सीमा प्रवृत्ति क्रमषः 2603 और 3346 है। भारत ने अपना पहला राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2006 में किया था एवं तब 1,411 बाघ थे जो बढ़कर 2011 में 1706, 2015 में 2226 हो गये थे। बाघों की निगरानी, टाइगर रिजर्व के अच्छे प्रबंधन और बाघ संरक्षण पर जागरूकता और षिक्षा ने बाघों की संख्या दुगुनी करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। परन्तु कुछ सरफिरों द्वारा बाघों का करंट लगाकर एवं जहरखुरानी करके मारना आज भी आम बात है। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, 2019 में भारत में 95 बाघो की मौत हुई थी जिसमें से अवैध षिकार की 22 घटनाएं हुई। पिछले कुछ वर्षो में बाघों को जहर देकर मारने के मामले भी पाए गए है। राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण ने बाघो के अवैध षिकार की घटनाओं के लिए इलेक्ट्रोक्यूषन को प्रमुख कारण माना है। पिछली सदी में लगभग 40000 के आस पास बाघ संपूर्ण भारत में स्वछंद विचरण कर रहे थे परन्तु आज वह लगभग 1ः हिस्से में सिमट कर रह गये हैं। बाघ पारिस्थतिक खाद्य पिरामिड में सर्वोच्च उपभोक्ता है, और उनके संरक्षण के परिणामस्वरूप एक पारिस्थितिक तंत्र में सभी ट्रॉफिक स्तरों का संरक्षण होता है। आज हमारी पृथ्वी जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या से जूझ रही है। बाघ संरक्षण जलवायु परिवर्तन के विनाषकारी प्रभाव से बचने के लिए भी अत्यंत आवष्यक है। इसलिए बाघ बचाने से पारिस्थितिक रूप से पूरे जंगल और वन पारिस्थितिकीय तंत्र के अन्य सभी घटक बचे रहते है। हमारे संरक्षित क्षेत्रों से सैकड़ों नदियों का उदगम होता है, साथ ही हमारे जीवन के लिए ऑक्सीजन का मुख्य स्त्रोत हमारे वन ही हैं।
ग्लोबल टाइगर फोरम एक मात्र अंतः-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो बाघ संरक्षण के लिए वैष्विक अभियान पर सदस्य देषों के साथ समन्वय स्थापित करता है। ग्लोबल टाईगर फोरम 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट के लक्ष्य के अनुसार, भारत, बांग्लादेष, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेषिया, लाओस, मलेषिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम अपने बाघों की आबादी को 2022 तक दोगुना करने के प्रयासों के लिए सहमत हुए थे। नवीनतम बाघ जनगणना वृद्धि देष के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। भारत के साथ पड़ोसी देष नेपाल ने भी अपनी बाघों की संख्या को भी दुगना कर लिया है। भारत के 25-35 : बाघ अब भी टाईगर रिजर्व संरक्षित क्षेत्र के बाहर रहते हैं जिनकी सुरक्षा एवं जीवन यापन के बेहतर मौके उपलब्ध करना भी अत्यंत आवष्यक है। विषेषज्ञों के अनुसार बाघ सबसे अधिक असुरक्षित टाईगर रिजर्व के बाहर होते है क्योंकि वे सतत् निगरानी में नहीं होते हैं एवं ऐसे बाघ स्वछंद विचरण के लिए अधिक दूरी तय करते है, जिससे कि वह मानव आवादी के पास, कृषि क्षेत्र, राजमार्ग के पास विचरण करते रहते है एवं पषुधन पर निर्भर होते है। अंधाधुंध विकास, जनसंख्या वृद्वि, कृषि एवं पषुपालन क्षेत्र के विस्तार का दबाव हमारे संरक्षित वन क्षेत्रों पर है इन कारणों से वन सिकुडते जा रहे है एवं वन्यप्राणी क्षेत्रों में व्यवधान उत्पन्न हो रहे है। जिसके कारण बाघ एवं वन्यप्राणियों का मानव के साथ प्रतिस्पर्धा बढती जा रही है जिसके कारण मनुष्य एवं बाघों की मृत्यु की घटनाएँ सामने आ रही हैं। घटते हुए वन, अवैध षिकार, मानव-पषु संघर्ष की पारंपरिक चुनौतियों के साथ- साथ टाईगर कॉरिडोर को विकसित करने की चुनौतियाँ भी हैं। अब हम सब भारतीयां को साथ आकर ना सिर्फ बाघ संरक्षण बल्कि प्रत्येक वन्यप्राणी की सुरक्षा में आगे आना पडेगा बढ़ते हुए बाघों के लिए कोर एरिया से गॉवों के विस्थापन के साथ हमें नए टाईगर रिजर्व बनाने होंगे। वन्यप्राणियों को हमें पहले रास्ता देना होगा क्योंकि यह उनका अधिकार है। बाघों की आबादी में वृद्धि भारत के साथ पूरी दुनिया के लिए अच्छी खबर है, परन्तु बाघ अभी भी मानव जनसंख्या वृद्धि, षहरीकरण, मानव-वन्यजीव संघर्ष,ं घटते हुये प्राकृतिक आवास, षिकार, पर्यावरण प्रदूषण, अधिक सडको का निर्माण, संक्रामक बीमारियाँ षाकाहारी वन्यप्राणियों के आखेट एवं कई पारंपरिक चुनौतियो से संघर्ष कर रहा है। बाघ राष्ट्रीय पषु होने के साथ ऊर्जा, षक्ति, वन समृद्धि, बुद्धिमत्ता एवं धीरज का प्रतीक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में हम बाघों को हजारों वर्षों से पूजते आ रहे है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि हमें स्थिरता और विकास के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना होगा। अधिक सड़कों और स्वच्छ नदियों तथ नागरिकों के लिए अधिक घर और एक ही समय में प्राणियों के लिए गुणवत्ता वाले प्राकृतिक आवास एक मजबूत, समावेषी भारत के लिए आवष्यक हैं। अतः समय आ गया है कि भारत के राष्ट्रीय पषु को स्वछंद विचरण के सर्वश्रेष्ठ मौके उपलब्ध कराने होगे ताकि यह हमारे पर्यावरण संरक्षण के लिये वरदान साबित हो और यह हम सबके जीवन के लिये भी लाभकारी होगा।

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