दुधारू पशुओ में गर्भाशय का बाहर निकल आना या फूल दिखाने का उपचार

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दुधारू पशुओ में गर्भाशय का बाहर निकल आना या फूल दिखाने का उपचार-
दुधारू पशुओ में गर्भाशय का बाहर निकल आना या फूल दिखाने का उपचार-
दुधारू पशुओ में गर्भाशय का बाहर निकल आना या फूल दिखाने का उपचार
Post no 1126 Dt 01 /03 /2019

Compiled & shared by-DR. RAJESH KUMAR SINGH, (LIVESTOCK & POULTRY CONSULTANT), JAMSHEDPUR, JHARKHAND,INDIA

9431309542, rajeshsinghvet@gmail.com
फूल दिखाना या गर्भाशय का बाहर निकल आना की समस्या वैसे दुधारू पशुओ जैसे की गाय तथा भैस मे अक्सर देखने को मिलता है जिनका प्रबंधन खानपान की ड्रिसटी से ठीक नहीं होता है । जिन पशुओ को उनके आव्स्क्ता से कम पौस्टिक पशु आहार तथा मिनरल मिक्सचर , विटामिन्स उपल्भ्ध होता है । येसे पशु बहुत ही कमजोर होते है ।
गाय /भैंसों में फूल दिखाने की समस्या मुख्य रूप से बच्चा जनने से पहले ही होती है। आमतौर पर यह समस्या प्रसव के 15-60 दिन पहले शुरू होती है। रोग की शुरूआत में भैंस के बैठने पर छोटी गेंद के समान रचना योनिद्वार पर दिखार्इ देती है। भैंस के खड़ा होने पर यह योनिद्वार के अन्दर चली जाती है। धीरे -धीरे इसका आकार बढ़ता रहता है तथा इसमें मिट्टी, भूसा व कचरा चिपकने लगता है। इसके कारण भैंस को जलन होती है और वह पीछे की ओर जोर लगाने लगती है। जिस कारण से समस्या बढ़ती जाती है एवम् और जटिल हो जाती है। कभी-कभी तो कुत्ते और कौवे इसकी ओर आकर्षित होकर शरीर के बाहर निकले हुए भाग को काटने लगते हैं।
प्रोलेप्स दो तरह का ब्याने से पहले तथा ब्याने के बाद होता है। पशु के पेट में पल रहे बच्चे की नाल से इस्ट्रोजन हार्मोंन ज्यादा निकलता है। पैल्विक लिगामेंट ढीले हो जाते हैं। पैल्विक संरचना ढीली होने से पशु फूल दिखाना शुरू कर देता है।
वेजाइनलप्रोलेप्स के प्रकार ———–
}प्रथम डिग्री: जबपशु बैठता है तो थोड़ा सा फूल दिखाई देता है।
}द्वितीयडिग्री: पशुबार बार फूल दिखाना शुरू कर देता है।
}तृतीय डिग्री:पशुको गर्भपात भी हो सकता है।
}चतुर्थडिग्री: इसमेंवेजाइना सर्विक्स सड़ गल जाती है। इसमें सुधार की संभावना कम होती है।
गर्भाशय का बाहर आजाना (प्रोलैप्स ऑफ यूटरस):——-
कई बार गाय व भैंसों में प्रसव के 4-6 घंटे के अंदर गर्भाशय बाहर निकल आता है जिसका उचित समय पर उपचार न होने पर स्थिति उत्पन्न हो जाती है।कष्ट प्रसव के बाद गर्भाशय के बाहर निकलने की संभावना अधिक रहती है।इसमें गर्भाशय उल्टा होकर योनि से बाहर आ जाता हैं तथा पशु इसमें प्राय: बैठ जाता है।गर्भाशय तथा अंदर के अन्य अंगों को बाहर निकलने की कोशिश में पशु जोर लगाता रहता है जिससे कई बार गुददा भी बहार आ जाता है तथा स्थिति और गम्भीर हो जाती है।
गर्भाशय के बाहर निकलने के मुख्य कारण निम्नलिखित है:-
(क) पशु की वृद्धावस्था
(ख) कैलसियम की कमी
(ग) कष्ट प्रसव जिसके उपचार के लिए बच्चे को खींचना पड़ता है
(घ) प्रसव से पूर्व योनि का बाहर आना
(ड़) जेर का गर्भाशय से बाहर न निकलना
उपचार व रोकथाम:———–
जैसे ही पशु में गर्भाशय के बाहर निकलने का पता चले उसे दूसरे पशुओं से अलग कर देना चाहिए ताकि बाहर निकले अंग को दूसरे पशुओं से नुक्सान न हो । बाहर निकले अंग को गीले तौलिए अथवा चादर से ढक देना चाहिए तथा यदि संभव हो तो बाहर निकले अंग को योनि के लेवल से थोड़ा ऊँचा रखना चाहिए ताकि बाहर निकले अंग में खून इकट्ठा न हो। बाहर निकले अंग को अप्रशिक्षित व्यक्ति से अंदर नहीं करवाना चाहिए बल्कि उपचार हेतू शीघ्रातिशीघ्र पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए।यदि पशु में कैल्शियम की कमी है तो कैल्शियम सुबह और शाम में नियमित रूप से दिया जाता है।बाहर निकले अंग को गर्म पानी अथवा सेलाइनके पानी से ठीक प्रकार साफ कर लिया जाता है।यदि ग्र्भाह्य के साथ जेर भी लगी हुई है टो उसे जबरदस्ती निकलने की आवश्यकता नहीं होती।हथेली के साथ सावधानी पूर्वक गर्भाशय को अंदर किया जाता है तथा उसे अपने स्थान पर रखने के उपरांत योनि द्वार में टांके लगा दिए जाते हैं।इस बीमारी में यदि पशु का ठीक प्रकार से इलाज न करवाया जाए टो पशु स्थायी बांझपन का शिकार हो सकता है।अत: पशु पालक को इस बारे में कभी ढील नहीं बरतनी चाहिए।गर्भावस्था में पशु की उचित देख भाल करने तथा उसे अच्छे किस्म के खनिज मिश्रण से साथ सन्तुलित आहार देने से इस बीमारी की सम्भावना को कम किया जा सकता है।पशुओं को कैल्शियम तथा विटामिन ई व सेलेनियम देने से भी लाभ हो सकता है।
उपचार की बिधी :————-
 गाय / भैंस को साफ-सुथरी जगह बाँधें, जिससे निकले हुए भाग पर भूसा व गंदगी न लग सके। कुत्ते और कौवे ऐसे स्थान पर न जा सकें। अन्य पशु भी उससे दूर रहें।
 भैंस को ऐसी जगह बाँधें, जो आगे से नीचा तथा पीछे से 2-6 इंच ऊँचा हो। इससे पेट का वजन बच्चेदानी/ योनि पर दवाब नहीं डाल पाता है।
 भैंस को सूखा चारा (तूड़ी/भूसा) न खिलायें। चारा हरा होना चाहिए तथा दाने में चोकर व दलिया प्रयोग करें। प्रसव तक चारे की मात्रा थोड़ी कम ही रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भैंस को कब्ज न होने पाए व गोबर पतला ही रहे।
 भैंस के आहार में रोजाना 50-70 ग्राम कैल्शियम युक्त खनिज लवण मिश्रण अवश्य मिलायें। ये खनिज मिश्रण दवा विक्रेता के यहाँ अनेक नामों (एग्रीमिन, मिनीमिन, मिल्कमिन इत्यादि) से मिलते हैं। खनिज लवण मिश्रण पर ISI मार्क लिखा होना चाहिये।
 शरीर निकलने पर योनि को साफ व ठण्डे पानी से धोएँ, जिससे उस पर भूसा व मिट्टी न लगी रहे। पानी में लाल दवार्इ डाल सकते हैं। पानी में ऐसी कोर्इ दवा न डालें जिससे योनि में जलन होने लगे।
 नाखून काटकर साफ हाथों से योनि को अंदर धकेल दें तथा नर्म रस्सी की ऐंड़ी बाँध दें। ऐंडी बांधते समय यह ध्यान रखें कि यह अधिक कसी न हो तथा पेशाब करने के लिए 3-4 अंगुलियों जितनी जगह रहे।
 रोग की प्रारंभिक अवस्था में आयुर्वेदिक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है (प्रोलेप्स-इन, कैटिल रिमेडीज अथवा प्रोलेप्स-क्योर) । इसके अतिरिक्त, होम्योपैथिक दवार्इ (सीपिया 200X की 10 बूँदें रोजाना) पिलाने से भी लाभ मिल सकता है।
 गंभीर स्थिति होने पर पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें। पशुचिकित्सक इस स्थिति में दर्दनाशक व संवेदनाहरण के लिए टीका लगाते हैं। जिससे पशु जोर लगाना बंद कर देता है। अब शरीर के बाहर निकले हुए भाग को साफ कर तथा अंदर करके टाँके लगा देते हैं। इसके बाद भैंस को कैल्शियम की बोतल, आधी रक्त में तथा आधी त्वचा के नीचे लगा देते हैं। कभी-कभी प्रोजेस्ट्रोन का टीका भी भैंस को लगा दिया जाता है। परन्तु इसमें यह सावधानी रखी जाती है कि बच्चा देने में अभी 10 दिन से ज्यादा बचे हों। योनि के उपर लगे टाँकों को बच्चा देने के समय खोल दिया जाता है।
प्रसवकालीन अपभ्रंश ———-
सभी अपभ्रंश में यह सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। समय पर उपचार न होने के कारण भैंस मर सकती है। यह बच्चा जनने के तुरन्त बाद या 4-6 घंटे के अंदर हो जाता है। बड़े आकार के अथवा विकृत बच्चे को जबरदस्ती जनन नलिका से बाहर खींचने के कारण प्रसव के बाद गर्भाशय बाहर आ जाता है। ब्याने के बाद जेर को जबरन खींचने से भी अपभ्रंश की सम्भावना रहती है। इसमें भैंस बैठी रहती है तथा गर्भाशय के लटके भाग पर लड्डू जैसी संरचनाएं स्पष्ट नजर आती है। इन पर जेर भी चिपकी हो सकती है। थोड़ा सा छेड़ने पर इनमें से खून भी निकलने लगता है।
उपचार:———–
 भैंस को अलग बांध कर रखें।
 गर्भाशय को लाल दवा युक्त ठण्डे/बर्फीले पानी से धोकर, एक गीले तौलिए से ढक दें ताकि गर्भाशय सूखने न पाये तथा उस पर मक्खियाँ न बैठें एवम् भूसा व गोबर भी न चिपके।
 इसके बाद तुरन्त पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें।
 पशुचिकित्सक गर्भाशय को साफ करके, जेर निकालकर गर्भाशय को उचित विधि द्वारा अंदर कर देते हैं तथा योनि पर टाँकें लगा देते हैं ताकि गर्भाशय पुन: बाहर न निकले।
 इसके बाद भैंस को कैल्शियम, ऑक्सिटोसिन व एंटीबायोटिक दवाइयाँ आवश्यकतानुसार लगार्इ जाती हैं।
प्रसवोपरांत अपभ्रंश —————-
यह मुख्य रूप से बच्चा देने के कुछ दिनों बाद शुरू होता है। इसका मुख्य कारण जनन नलिका में कोर्इ घाव या संक्रमण होता है। यह घाव व संक्रमण प्रसूति के समय गलत तरीके से बच्चा निकालने से, अथवा गंदे हाथों से जेर निकालने से हो जाता है। योनि से अक्सर बदबूदार मवाद निकलता है तथा भैंस अक्सर पीछे की ओर जोर लगाती है।
उपचार :————
1. उपचार के लिए तत्काल पशुचिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
2. पशुचिकित्सक गर्भाशय व योनि को साफ करके उसमें एंटीबायोटिक गोलियाँ / द्रव रख देते हैं।
3. संक्रमण समाप्त होने तक इलाज करवाना चाहिए।
4. कैल्शियम आदि के टीके भी आवश्यकतानुसार लगाये जा सकते हैं।
सावधानियाँ एवम् रोकथाम :————–
1. योनि अपभ्रंश अक्सर वंशानुगत देखने को मिलता है। अत: प्रजनन में सावधानी बरतें।
2. भैंस को 40-50ग्राम कैल्शियम युक्त खनिज लवण मिश्रण नियमित रूप से खिलायें।
3. गर्भाशय में बच्चा फंसने पर उसे जबरदस्ती अथवा गलत विधि द्वारा न निकालें/निकलवाएं। जेर निकलवाने के लिए अधिक जोर न लगाया जाए।
4. शरीर के निकले भाग की सफार्इ का विशेष ध्यान रखें। उसे जूती द्वारा कभी अन्दर न करें।
5. अपभ्रंश होने पर शीघ्र पशुचिकित्सक की सलाह लें।
घरेलू उपचार———–
पशुओंमें प्रोलेप्स बीमारी के उपचार के साथ घरेलू बचाव प्रयास भी किए जा सकते हैं। ये प्रयास, उपचार से भी अधिक प्रभावशाली होते हैं। पशुओं में प्रोलेप्स या फूल दिखाना घातक समस्या है। ब्यात के दौरान बहुत से पशुओं में प्रोलेप्स की समस्या शुरू हो जाती है। कई बार तो यह समस्या पशु की जान भी ले लेती है। समस्या से ग्रस्त पशु अगर मालिक की नजरों से दूर बंधा हो तो पशु-पक्षी प्रोलेप्स को खा जाते हैं। भैंस या गाय में गर्भाशय बच्चे समेत बाहर जाए तो पशु को बचाना संभव नहीं हो पाता।
इस बीमारी में कई देशी हर्बल दवाइयां काफी फायदेमंद हैं लेकिन अधिक प्रोलेप्स वाले पशुओं को सप्ताह में एक बार कैल्शियम जरूर चढवाएं। अगर पशु अधिक जोर लगा रहा है तो एपीडयूरेल एनेस्थिसिया दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एंटीबायोटिक, एंटीइंफ्लेमेटरी से उपचार इंजेक्शन लगवाए जा सकते हैं।
पशु को ऐसे स्थान पर बांधे कि जिससे कि पीछे का हिस्सा उपर रहे। रात के समय पशु को भरपेट चारा दें। 24 घंटे निगरानी में रखें। फूल दिखाए तो ठंडे पानी में लाल दवाई या लाल पोटास से साफ कर चढ़ाए। पशु को 100 ग्राम गुड , 150 मिली लीटर कैल्सियम ,50 ग्राम लहसुन , 50 ग्राम हल्दी पाउडर , 100 ग्राम प्याज़ 200 ग्राम एसबगोल का पाउडर तथा 50 ग्राम काला नमक के साथ पेस्ट बनाकर 250 ग्राम बेसन 150 ग्राम सरसों के तेल मे मिलकर रोज खिलाये कम से कम 7 दिन तथा ईसको पुनः रिपिट करे अगले महीने मे । ईससे ईस समस्या का समाधान जल्दी मिलने लगता है । ईसके साथ साथ पशुचिकित्सक के सलाह से 15 दिन के अंतराल पे 10 एमएल फोस्फोरोस , 10 एमएल नेऊरोक्सीन 12 , तथा 20 एमएल कैल्सियम का इंजेक्टीओन ( लगातार 3 दिन ) लगवाए ।
नोट –सिकुइल , प्रोजेस्ट्रोन तथा एपिदुरल अनेस्थेसीय का टीका पशुचिकित्सक से ही दिलवाए उनके प्रमर्स के बाद ।
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