गौ संवर्धन से पर्यावरण संरक्षण

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गौ संवर्धन से पर्यावरण संरक्षण में हाथ बटाइए :डॉ. वल्लभभाई कथिरिया


रिपोर्ट : डॉक्टर आरबी चौधरी
( विज्ञान लेखक एवं पत्रकार ; पूर्व मीडिया हेड एवं प्रधान संपादक- भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड, भारत सरकार)


4 जून 2019, नई दिल्ली*
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन पूर्व सांसद एवं केंद्रीय मंत्री डॉ वल्लभभाई कथिरिया पर्यावरण संरक्षण के आंदोलन में गौ संवर्धन का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण का एक नया आयाम जोड़ दिया है। डॉक्टर कथिरिया विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर पशु प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहां की आम तौर पर, हम नए पेड़ों के रोपण और पेड़ों के पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी वार्तालाप जैसी गतिविधियों से संतुष्ट रहते हैं, लेकिन वास्तव में, पर्यावरण संरक्षण का अर्थ है भूमि, जल, वन्य जीवन, जंगलों और हर जीव की सुरक्षा! इस संदर्भ में, भूमि, जल, वन्यजीवों, वनों और प्रत्येक जीवित प्राणी की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान गौमाता का है। इसीलिए गाय को “मातर :सर्वभूतानां गावः सर्व सुखप्रदाः” कहा जाता है। आइए ,हम पर्यावरण की सुरक्षा में गौमाता के विशेष महत्व को समझे।

जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण की निरंतर बढ़ती चुनौतियों पर जोर देते हुए डॉक्टर कथिरिया ने कहा कि आज पूरी दुनिया लगातार भय के खतरे में जी रही है। हम सभी जो 21 वीं सदी के दौरान विकास और उपलब्धियों पर गर्व करते हैं लेकिन यह महसूस करते है और भयभीत भी है कि ये विश्वास कितना विनाशकारी हो सकता है । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, विनाश के द्वार भी खोले गए हैं। हमने इस बारे में बहुत कम जानकारी हासिल की है कि बिना ज्यादा समझ के विज्ञान का असीम उपयोग हमें कहां ले जाएगा। पर्यावरणीय उपेक्षा के कारण, पूरी दुनिया उन प्राकृतिक आपदाओं को देख रही है जिनकी कभी कल्पना नहीं की गई थी समझ में ने आनेवाली सभी प्राकृतिक चहलपहल शुरू हो गयी है और ये पूरी दुनिया पर भारी पड रही है ।

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि भूकंप, सुनामी, तूफान, घातक, सूखा, ठंडी-गर्मी चक्र, हिमखंडों का पिघलना, ओजोन परत में अंतराल, जंगलो में आग जैसे कई प्राकृतिक विपदा आज आम हो गएं हैं। दूसरी ओर, दुनिया भर के 150 से अधिकतर देशों के बीच लड़ाई चल रही है। आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद से लेकर पारिवारिक संघर्ष, हत्या, डकैती, चोरी, बलात्कार, जल प्रदूषण, खाद्य अपमिश्रण, मीडिया द्वारा फैलाया जाने वाला मानसिक प्रदूषण, नई बीमारियाँ की वृद्धि, दवाओं और रसायन के दुष्प्रभाव आदि; यह सब हमें “2012” फिल्म में दुनिया के विनाशकारी आघात को दर्शाया गया है, उनकी याद दिलाता है।

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राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन का मानना है कि वर्ष 2012 बीतने के बाद कई भविष्यवाणियां गलत साबित हो रही हैं। यहां तक ​​कि अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री एल गोर ने पर्यावरण असमानताओं की स्थिति को दर्शाते हुए “द इनकन्वेनिएंट ट्रुथ” पुस्तक लिखी जबकि आज जब दुनिया विकास की दिशा में आगे बढ़ रही है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि क्या दुनिया विनाश की ओर भी तेजी से नहीं बढ़ रही है?
यह कहना शायद जल्दबाजी होगी। लेकिन क्या विनाश की गति तेज होने से पहले जागना जरूरी नहीं है? अन्यथा फिर वहां से लौटने का रास्ता शायद नहीं बचेगा l

उन्होंने महात्मा गांधीजी और उनकी फिलसुफी “सरल जीवन और उच्च विचार” तथा उनके दर्शन को याद दिलाते हुए यह कहा कि एक सभ्य, स्थानीय, प्रकृति-आधारित, आत्मनिर्भर जीवन प्रणाली की ओर मुड़ने का समय आ गया है। भारतीय जीवन शैली में, व्यक्ति के जीवन से लेकर सर्वशक्तिमान तक, हर जीवित प्राणी का कल्याण – “वसुधैव कुटुम्बकम” के अंतर्गत “सर्वजीव हितावह, सर्व मंगलकारी, सर्व कल्याणकारी” – एक आदर्श प्रणाली थी, जिससे उच्च जीवन शैली विकसित हुई। मनुष्यों एक साथ जुड़े हुए थे और उनके पास प्रत्येक जीवित प्राणी और प्रकृति की दूरदर्शिता थी।

पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर कई महत्वपूर्ण हिदायतो को बताते हुए डॉक्टर कथिरिया ने यह भी कहा कि वर्तमान समय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पूर्ण उपयोग के साथ-साथ धर्म और नैतिक मूल्यों के आधारित आहार और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के संयोजन युक्त इस प्रणाली को फिर से व्यवस्थित करने का समय आ गया है। ‘सुखी जीवन जीने का सबसे अच्छा और बढ़िया तरीक़ा’ – भय विकास के लिए चिंतन और काम करने का समय आ गया है।

डॉक्टर कथिरिया ने बताया कि गाय का दूध अमृत है। उत्तम आहार और स्वास्थ्य के लिए उत्तम। दवाओं पर लाखों रुपये खर्च में कमी आएगी। गाय का दूध मधुमेह, हृदय रोग, लकवा, कैंसर, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं आदि को कम करने में मदद करेगा। सकारात्मक जीवनशैली में बदलाव से तनाव कम होगा और बीमारियों से छुटकारा मिलेगा। होभी दवा और रासायनिक दुष्प्रभाव बहुत कम हो जाएंगे, परिणामस्वरूप पर्यावरण की रक्षा।

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वैज्ञानिक कसौटी पर खरा पाए जाने वाले कई गो- उत्पादों की महत्ता बताते हुए डॉक्टर कथिरिया ने बताया कि गाय का घी सबसे श्रेष्ठ और बहुत फायदेमंद है। घी से जलाये गए दिए और हवन से एसीटिलिक एसिड, फॉर्मलाडिहाइड और कई ऐसी गैसों का उत्पादन होता हैं जो पर्यावरण को शुद्ध रखने में उपयोगी हैं, ओजोन परत की रक्षा होती हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं।

उन्होंने बताया कि गोमूत्र में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटीकैंसर गुण हैं। गोमूत्र का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है और यह कई बीमारियों को ठीक करता है। यह अन्य रसायनों के हानिकारक और खतरनाक प्रभावों को कम करने के साथ-साथ दवाओं के उपयोग को कम करने में मदद करता है। गोमूत्र के छिड़काव से घर के आसपास का वातावरण स्वच्छ रहता है। डेंगू, बर्ड फ़्लू, स्वाइन फ़्लू आदि रोग ऐसे घरों के पास कभी दिखाई नहीं हैं! गोमूत्र जैविक खाद्य पदार्थ के लिए कीटनाशक के रूप में उपयोगी है। इसके अलावा रासायनिक दवाओं के जहरीले प्रभाव से और मिट्टी की ताकत बढ़ाकर लाखों जीवों की जान बचाता है।

चेयरमैन राष्ट्रीय कामधेनु आयोग रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि गाय के गोबर को जैव-उर्वरक के रूप में उपयोग करने से रासायनिक उर्वरक के घातक प्रभावों से बचा जा सकता है। कारखानों से प्रदूषण कम होगा, करोड़ों जीवन स्वस्थ रह सकेंगे, और मिट्टी की नमी पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

पृथ्वी पर ग्रीन कवर अर्थात हरित पट्टी के निरंतर विनाश पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कई पेड़ और वनस्पतियाँ हरी रहेंगी या भूमि पर छिड़के जाने वाले गोमूत्र से हरी हो जाएँगी। सैकड़ों किसान आत्महत्या करना बंद कर देंगे, अरबों रुपये के डीजल के आयात पर रोक लगेगी और परिणामस्वरूप देश के लिए राजस्व की बचत होगी। गोबर राहत देगा और हानिकारक रसायनों को अवशोषित करके लाखों लोगों की जान बचाएगा। इसीलिए हम घर के आंगन को गोबर से कोट करते थे। लाखों रुपये के डीजल की बचत के अलावा, खेती की तकनीक और बैलगाड़ियों पर निर्भर परिवहन से डीजल से धुआं कम होगा और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी। जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा।

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उन्होंने बताया कि एक गाय के 8 से 10 लीटर गोमूत्र और 8 से 10 किलोग्राम गोबर रोजाना होती है। पूरे देश की ग्रामीण आबादी को बायोगैस और बिजली प्रदान करने की क्षमता रखती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग की गैस के लिए 7 करोड़ मवेशियों की आवश्यकता है; वाहनों के पेट्रोल-डीजल के लिए 4 करोड़ मवेशी, और बिजली पैदा करने के लिए 8 करोड़ मवेशी; आज, हमारे देश में पहले से ही 22 करोड़ से अधिक मवेशी हैं, अन्य जानवर अलग हैं! इन मवेशियों द्वारा उर्वरक की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकता है। देश की कृषि समृद्ध होगी, गाँव समृद्ध होंगे, देश समृद्ध होगा, और पर्यावरण की रक्षा होगी, तो विश्व बच जाएगा l

डॉक्टर कथिरिया का विश्वास है कि गौरक्षा (मवेशियों की रक्षा), गोपालन (मवेशियों का पालन) और गौसंवर्धन (मवेशी प्रजनन) सबसे अच्छा पर्यावरण का संरक्षण है। गाय एक मोबाइल फ़ार्मेसी, मोबाइल हेल्थ केयर सेंटर, मोबाइल मंदिर-पूजा स्थल है। गाय का दिव्य सार वातावरण को 15-20 मीटर तक शुद्ध और स्वच्छ रखता है। पर्यावरण की शुद्धता के अलावा, यह मन की शांति और पवित्रता को बढ़ावा देता है और बुरे विचारों, बुरे स्पंदनों को रोकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यक्ति, परिवार, गाँव, समाज और वैश्विक भाईचारे की भावना के वास्तविक अर्थ को साधार करने का वैज्ञानिक गुण गौमाता में है।

उन्होंने सभी देशवासियों पशु प्रेमियों और गौ संवर्धन में लगे लोगों से अपील किया कि पर्यावरण दिवस’ पर सभी को एक साथ हाथ से हाथ मिला कर आगे बढ़ना चाहिए. साथ ही साथ गौसेवा (गौ रक्षा) से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में शामिल हो कर.. ‘inconvenient इनकन्वीनियंस टूथ को कनिविनी अनट्रुथ में बदलना चाहिए ताकि हम भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी के आधुनिक भारत के सपने को साकार कर सकें .


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