जैविक खाद – आधुनिक युग की मांग    

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जैविक खाद – आधुनिक युग की मांग    

 

 

बढ़ती जनसंख्या व जलवायु परिवर्तन के कारण भारत जैसे कृषि प्रधान देश को भी खेती के लिए कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए बदलते समय के साथ कृषि की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए जैविक खाद सबसे अच्छा विकल्प है। जैविक खाद से न केवल उत्पादकता में सकारात्मक असर देखने को मिलता है बल्कि पर्यावरण भी अनुकुल बने रहता है। डेयरी ज्ञान आपको इस लेख में विभिन्न प्रकार के जैविक खादों के बारे में विस्तार से बताएगा। जिससे किसान भाई अपनी कृषि उपयोग में लायी जाने वाली जमीन की उर्वरकता बनाए रखऩे में सक्षम रहेंगे।

सबसे पहले बात करते हैं कि जैविक खेती या खाद किसे कहते हैं।

जैविक खेती या खाद का तात्पर्य यह है कि खेती के साथ – साथ पर्यावरण के साथ सामंजस्य बना कर रखना। यानि की खेती के लिए ऐसी तकनीक उपयोग करना जिसका प्रकृति पर प्रकिकुल प्रभाव न पड़े।

जैविक खाद के उपयोग से न केवल जमीन की उर्वरता बढ़ती है बल्कि उसमें पायी जाने वाली नमी के कारण सूखे की समस्या भी हल हो जाती है। इतना ही घटते भूजल के लिए भी जैविक खेती एक वरदान है। क्योंकि जैविक खाद के इस्तेमाल से मित्र कीट संरक्षित होते है औऱ भूजल धारण क्षमता बढ़ने लगती है।

एक अनुमान के अनुसार किसान अपनी उत्पादित फसल का 25-40 प्रतिशत ही उपयोग कर पाते हैं। भारत में प्रतिवर्ष 600 मिलियन टन कृषि अवशेष पैदा होता है, इसमें से अधिकांश अवशेषों को किसान अगली फसल हेतु खेत तैयार करने के लिए खेत में ही जला देते हैं जबकि इसका उपयोग जैविक खाद को तैयार करने के लिए आसानी से किया जा सकता है। जैविक खेती में हम कंपोस्ट खाद के अलावा नाडेप, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद, नीम खली, लेमन ग्रास एवं फसल अवशेषों को शामिल करते हैं।

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जैविक खेती या खाद एक ऐसा उदाहरण है जिसमें किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशकों या पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जैविक खाद के लिए केवल जैविक अपशिष्ट, पशु अपशिष्ट जैसे प्राकृतिक खाद आदि का उपयोग किया जाता है। यह मूल रूप से मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ उसे अच्छा और उपजाऊ बनाने में भी मदद करती है। जैविक खेती में फसल परिक्रमण, मिश्रित फसल और जैविक कीट नियंत्रण आदि जैसे कुछ प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। भारत में, अच्छे एवं स्वस्थ फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्राचीन समय से ही जैविक खेती का पालन किया जाता रहा है।

 

जैविक खाद या खेती के विभिन्न विधियाँ

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, देश के विभिन्न राज्यों में खेती के लिए फसलों के आधार पर विभिन्न तरहों से खेती के लिए खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए हम आपको विभिन्न प्रकारों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं –

  1. मृदा प्रबंधन मृदा प्रबंधन जैविक खाद बनाने की प्रक्रियाओं में से सबसे महत्वपूर्ण है। हम सब जानते हैं कि एक बार फसले के उपजाऊ होने के बाद, मिट्टी अपने अधिकतर पोषक तत्वों को खो देती है। इसलिए किसानभाईयों को दूसरी दफा कृषि की भूमि तैयार करने में मशक्कत का सामना करना पड़ता है। इसलिए मृदा प्रबंधन यानि कि मिट्टी प्रबंधन के जरिए एक बार फिर किसानभाई अपनी जमीन को कृषि योग्य बना सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए, आवश्यक पोषक तत्वों के साथ मिट्टी को रीचार्ज करने के लिए पशु अपशिष्टों का उपयोग किया जाता है। पशु अपशिष्ट में मौजूद बैक्टीरिया एक बार फिर मिट्टी को उपजाऊ बना देते हैं।
  2. खरपतवारों का प्रबंधन: खरपतवार वह पौधें हैं जो कृषि क्षेत्रों में फसलों के साथ उपजते हैं व मिट्टी में मौजूद अधिकांश पोषक तत्वों को खत्म कर देते हैं, जिससे फसल की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खरपतवारों के प्रभाव को कम करने के लिए किसनाभाईयों को गीली घास का उपयोग करना चाहिए। जिसमें खरपतवारों को रोकने के लिए मिट्टी की सतह पर पौधों के अवशेषों या प्लास्टिक की परत लगा देते हैं। जबकि काटई या खेतों की लवाई प्रक्रिया में खरपतवारों के विकास को कम करने के लिए उन्हें काट दिया जाता है।
  3. फसल विविधता: यह जैविक खेती में सबसे महत्वपूर्ण व प्रचलिति तरीकों में से एक है। इस विधि के लिए किसानभाईयों को मोनोकल्चर और पॉलीकल्चर जैसे दो विभिन्न अभ्यास करना चाहिए। मोनोकल्चर विधि में एक समय में एक ही फसल का उत्पादन किया जाता है जबकि पॉलीकल्चर में विभिन्न प्रकार के फसलों को उत्पादित किया जा सकता है। जैविक खेती के पॉलीकल्चर विधी द्वार मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को और अधिक उपजाऊ बनाने में सहायता मिलती है।
  4. हानिकारक जीवों को नियंत्रित करना: जैविक खेती फसल उत्पादन क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाली कृषि खेतीं में मौजूद हानिकारक जीवों को नियंत्रित करने पर अधिक जोर देती है। किसान इसके लिए कीटनाशकों और जड़ी-बूटियों का उपयोग करते हैं।
  5. हरित खाद का उपयोग: जैविक खेती में, किसान मृत पौधों का उपयोग हरित खाद के रूप में करते हैं। मिट्टी की प्रजनन क्षमता तथा पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए इन पौधों को खाद के रुप में मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  6. मिश्रित खाद का उपयोग: इस प्रक्रिया में किसान एक गड्ढा खोदकर उसमें हरे अपशिष्ट और पानी के क्षय को मिलाकर खाद तैयार करता हैं और बाद में इस समृद्ध खाद और पोषक तत्वों को मिट्टी की प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए खेतों में उर्वरक के रूप में प्रयोग करता है।
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यह थे जैविक खाद की विशेषताएं व प्रकार के बारे में जानकारी। जिसकी सहायता से हमारे किसान भाईयों सही तरह से जैविक खेती को क्रियान्वित कर अपनी जमीन को समय – समय पर ऊपजाऊ बना कर आर्थिक हानि से बच सकते हैं।

 

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