दुधारू पशुओं के भोजन में हरा चारा एक महत्वपूर्ण भूमिका

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दुधारू पशुओं के भोजन में हरा चारा एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जिससे दुधारु पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन में जरूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाती है। हरे चारे का उत्पादन पशुओं के लिए चारा खरीद रहे वैसे किसानों को एक बेहतर विकल्प प्रदान करता है जो भेड़ पालन, बकरी पालन या फिर डेयरी उद्योग के लिए योजना बना रहे हैं। यहां तक कि कुछ किसान दूसरी फसलों की तरह हरे चारे के उत्पादन पर निर्भर करते हैं और उसे बाजार में बेच देते हैं। कुछ दूसरी तरह की हरी घासों को स्थानीय घास काटने वाली मशीन से छोटा-छोटा काट लिया जाता है और परिरक्षित चारा तैयार कर लिया जाता है जिसे सालों तक भंडार किया जा सकता है और उसका इस्तेमाल अकाल के दौरान चारे के तौर पर किया जाता है। हरे चारे की खेती खुले मैदान में संकर की उचित सदाबहार किस्म के घास का चुनाव करते हुए किया जा सकता है। यहां तक कि हरे चारे का उत्पादन जलकृषि पद्धति का इस्तेमाल करते हुए भी किया जा सकता है।

 

हरा चारा क्या है ?

कोई भी चारा जो हरी फसल जैसे कि फलीदार पौधा, घास की फसल, अनाज की फसल या पेड़ आधारित फसल, हरा चारा कहलाता है। मुख्यतौर पर तीन तरह का हरा चारा उपलब्ध है और वो है-

 

फलीदार फसल आधारित, अनाज की फसल आधारित और पेड़ आधारित हरा चारा।

 

हरे चारे का प्राथमिक कार्य निम्न हैः-
– हरा चारा पशुओं को प्राकृतिक तरीके से पोषक तत्व प्रदान करता है और साथ ही मवेशियों के विकास और स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका अदा करता है।

– हरे चारे का उत्पादन पशुओं के चारे के खर्च में कटौती करता है।

– उत्पादित हरे चारे का इस्तेमाल परिरक्षित चारा बनाने में किया जाता है जिसका इस्तेमाल भविष्य में किया जाता है।

– हरे चारे के उत्पादन और रखरखाव का खर्च बेहद कम होता है।

 

हरे चारे की किस्में या प्रकारः-

– फलीदार चारा

– अनाज का चारा

– घास का चारा

– पेड़ का चारा

 

फलीदार पौधे से हरे चारे का उत्पादनः-

राजमा या लोबियाः-

– राजमा या लोबिया एक वार्षिक फसल है और इसका उत्पादन उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और गर्म वातावरण वाले क्षेत्रों में होता है।

– राजमा या लोबिया का इस्तेमाल हरे चारे, घास काटकर सुखाने का कार्य या ज्वार या मक्का के मिश्रण को गड्ढे में दबाकर रखना

– सिंचाई के तहत तैयार होनेवाले चारे के लिए co 5 फसल अनुकूल है।

– इस फसल का उत्पादन खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में किया जा सकता है।

– राजमा या लोबिया की खेती पूरे साल की जा सकती है।

– राजमा या लोबिया की मुख्य फसल में co 5, रसियन जायंट, ईसी 4216, यूपीसी-287 और दूसरे स्थानीय फसल।

– राजमा या लोबिया की कटाई फसल बुआई के 45 से 50 दिनों के बाद की जा सकती है।

 

सीओ 5 की किस्मों की विशेषताएं-

– यह किस्म प्रति हेक्टेयर 20 टन हरे चारे का उत्पादन करती है।

– पौधे की ऊंचाई लगभग 95 सेमी और इसमे दो से तीन शाखाएं और 10 से 12 पत्तियां होती हैं।

– इस फसल में अर्ध फैलाव की प्रवृत्ति होती है।

 

स्टाइलो फसलः-

– स्टाइलो एक सालो भर बढ़नेवाला लंबवत चारा है जो फलीदार पौधा है और यह चारा ब्राजील का देसी पौधा है।

– आमतौर पर, स्टाइलो दो मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है।

– स्टाइलो अकाल प्रतिरोधी और फलीदार फसल का एक अच्छा चारा है और इसके लिए कम बारिश की जरूरत पड़ती है।

– स्टाइलो का उत्पादन उष्णकटिबंधीय मौसम में किया जा सकता है। यह फसल कम उत्पादकता वाली अम्लीय मिट्टी और कम जलनिकासी वाली मिट्टी में भी सहनशील होती है।

– स्टाइलो में अपरिष्कृत प्रोटीन की मात्रा 16 से 18 फीसदी होती है।

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– स्टाइलो के लिए सबसे अच्छा मौसम जून-जुलाई से सितंबर-अक्टूबर होता है।

– जब बुआई की दर की बात आती है तो, एक कतार में बुआई की दर 30×15 सेमी होती है, आवश्यक बीज दर 6 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है और प्रसारण या फैलाव 10 से 11 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है।

– पुष्पण के स्तर पर बुआई के 70 से 75 दिनों के बाद स्टाइलो कटाई के लिए तैयार हो जाता है और बाद वाली कटाई बढ़त के उपर निर्भर करती है।

– फसल के पहले साल के दौरान (स्थापना का दौर), फसल की कम पैदावार हो सकती है और आनेवाली फसल ज्यादा हो सकती है और तीसरे साल से पैदावार प्रति हेक्टेयर 25 से 40 टन प्रति वर्ष प्राप्त की जा सकती है।

 

देसमेंथसः-

– यह फसल सदाबहार है और कोई भी इसकी पैदावार सालों भर कर सकता है। इस फसल को वर्षा सिंचित और सिंचिंत स्थिति में उगाया जा सकता है।

– इस फसल को प्रति हेक्टेयर 18 से 20 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है और टीले पर ठोस स्थान पर कतार में जहां दो सेमी की गहराई में खाद और ऊर्वरक डाला गया हो बीज को बोना चाहिए।

 

इस बात को सुनिश्चित करें कि बीज को ऊपरी मिट्टी से ढंका गया हो। बीज की बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए। तीसरे दिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए और उसके बाद 6 से 7 दिन में एक बार पानी डालना चाहिए। बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है।

– बुआई के तीन महीने के बाद जब फसल की लंबाई 45 से 50 सेमी हो जाए तब यह फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। अगली कटाई 35 से 40 दिनों के अंतराल के बाद और फसल के विकास को देखते हुए करना चाहिए।

– हरे चारे की पैदावार 80 से 90 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त की जा सकती है।

 

लुसर्न यानी गरारीः-

–  लुसर्न यानी गरारी चारे की रानी के तौर पर मशहूर है और इस फलीदार फसल की जड़ें गहरी होती हैं जो सदाबहार चारा होती है जिसे विस्तृत मौसम जैसे कि उष्णकटिबन्धीय से उच्च पर्वतीय क्षेत्र में उपजाई जाती है।

– लुसर्न यानी गरारी बहुत स्वादिष्ट और पोष्टिक हरा चारा होती है और उसमे सूखे पदार्थ के जैसा करीब 15 से 20 फीसदी कच्चा प्रोटीन पाया जाता है।

– इन सभी फायदों के अलावा, लुसर्न यानी गरारी मिट्टी में नाइट्रोजन मिलाता है और मिट्टी को और ऊपजाऊ बनाता है।

– इस फसल को आमतौर पर हरे चारे, सूखी घास और परिरक्षित चारा के लिए उपजाया जाता है। हालांकि यह नजदीकी चराई को बर्दाश्त नहीं कर पाती है।

– मुख्य लुसर्न यानी गरारी की किस्में हैं, आनंद-2, सिरसा-9, आईजीएफआरआई एस- 244, और सीओ 1

– 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है।

– सीओ 1 फसल की पैदावार जुलाई से दिसंबर महीने में अनुकूल होती है और इसे बहुत ज्यादा गर्मी या ठंडा में उपजाया नहीं जाता है।

– बीजारोपण के 70 से 80 दिनों के बाद पहली कटाई की जाती है और उसके बाद अगली कटाई 21 से 30 दिनों के बाद की जाती है।

 

अनाज की फसल से हरे चारे का उत्पादनः-

मक्का (मुट्टा या मकई) चाराः-

– खासतौर पर मक्का एक वार्षिक फसल है और जिसका उत्पादन कई तरह की मिट्टी में हो सकता है।

– मक्का की मुख्य किस्में अफ्रीकन टॉल, विजय कम्पोजिट, मोती कम्पोजिट, गंगा-5 और जवाहर हैं।

– इस फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 40 से 45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और 15 सेमी के अंतराल पर एक-एक बीज खोदकर लगाएं और कतार के बीच 30 सेमी की दूरी होनी चाहिए।

– औसत हरे चारे की पैदावार 45 से 50 टन प्रति हेक्टेयर होती है और सूखी सामाग्री की पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।

– क्रमबद्ध तरीके से बीजारोपन की सलाह दी जाती है ताकि हरे चारे की आपूर्ति लंबे समय के लिए की जा सके।

– आमतौर पर गुल्ली या ढेला जब दूधिया स्तर पर पहुंच जाता है तब दो महीने के बाद कटाई का वक्त आता है।

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ज्वार चाराः-

– इस फसल की खेती अनाज और चारे दोनों के लिए होता है।

– ज्वार एक अकाल प्रतिरोधी वार्षिक फसल है और उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में जहां तापमान का स्तर 25 से 36 डिग्री तापमान होता है वहां इसका अच्छा उत्पादन होता है।

– इस फसल को वार्षिक बारिश 300 से 400 एमएम चाहिए। इसका उत्पादन कई तरह की मिट्टी में हो सकता है, हालांकि बहुत अधिक बलुई मिट्टी से बचना चाहिए।

– ज्वार की किस्म के लिए सिंचाई की स्थिति सीओ.11, सीओ.27 और सीओ.एफएस.29 है।

– वर्षा वाली स्थिति के लिए ज्वार की किस्में हैं सीओ.11, सीओ27, सीओ.एफ.एस.29, के7, सीओ.27, सीओ.एफ.एस.29 और के 10 है।

– इस फसल के लिए 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर चाहिए और सीओ.एफ.एस.29 किस्म के लिए 12 से 13 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए।

– हरे चारे के लिए इस फसल की कटाई पुष्पण के स्तर पर पहुंचने के बाद की जा सकती है।

– बुआई के बाद अगर इसकी एक बार कटाई हुई है तो दूसरी कटाई 60 से 65 दिन पर हो सकती है (जब पुष्पण 50 फीसदी हो चुका हो) और अगर इसकी कई बार कटाई होती है तो, बुआई के दो महीने बाद पहली कटाई होनी चाहिए और अगली कटाई 45 दिन में एक बार।

– सीओ. एफएस. 29 के लिए प्रत्येक कटाई 65 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए (एक साल में 5 बार कटाई होती है)।

 

संकर नेपियर चाराः-

– मूलत: यह (संकर नेपियर घास) एक सदाबहार चारे वाली घास है और जिसमे नेपियर घास के मुकाबले ज्यादा पौधे और पत्ते होते हैं और ज्यादा बलशाली, भरपूर फसल और उच्च गुणवत्ता वाली होती है।

– इस फसल में कच्चा प्रोटीन 8 से 10 फीसदी होता है।

– संकर नेपियर घास की मुख्य किस्में, पुसा जायंट, आईजीएफआरआई 5, एनबी 21, एनबी 37, आईजीएफआरआई 7 और आजीएफआरआई 10 है।

– सीओ 1, सीओ 2 और सीओ 3 उच्च गुणवत्ता वाली किस्में हैं और सालों पर उगाई जाने के लिए अनुकूल हैं।

– आमतौर पर एक हेक्टेयर जमीन में 40,000 से 45,000 डालियां लगाने की जरूरत होती है।

– पौधारोपण के बाद पहली कटाई 70 से 80 दिनों के बाद की जाती है और अगली कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल पर की जाती है।

– संकर नेपियर घास को देसमेंथस के साथ अंतर-फसल के तौर 3:1 के अनुपात पर उगाया जा सकता है और दोनों को एक साथ काटा जा सकता है और मवेशियों को खिलाया जा सकता है।

 

गिनी घासः-

– यह घास 5 मीटर की लंबाई तक बढ़ता है और कलगीदार और तेजी से बढ़ने वाला स्वादिस्ट सदाबहार घास है।

– यह एक धीरे-धीरे बढ़ता हुआ छोटा राइजोम है और स्थापित डालियों या इसका बीज तेजी के साथ स्थापित हो जाता है।

– इस घास में कच्चा प्रोटीन 4 से 15 फीसदी होता है।

– इस घास की मुख्य फसल हमाल, पीपीजी-14, माकुनी और रिवर्स-डेल है।

– इस घास को सभी प्रकार की मिट्टी, जिसमे पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, में उगाया जा सकता है। हालांकि, यह भारी मिट्टी या बाढ़वाली या अप्रवाह वाली स्थिति में अच्छा विकास नहीं करता है।

– इस फसल में प्रति हेक्टेयर दो से ढाई किलोग्राम बीज की जरूरत होती है और प्रति हेक्टेयर 65,000 की संख्या में डालियों की जरूरत होती है जिसमे 50सेमी x 30सेमी जगह की होनी चाहिए।

– आमतौर पर, फसल पहली कटाई के लिए अंकुरण के 70 से 80 दिनों के बाद या डालियों के लगाने के 40 से 45 दिनों के बाद तैयार हो जाती है। उसके बाद अगली कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल के बाद की जानी चाहिए।

– 8 बार की कटाई के बाद हरे चारे की पैदावार 17 से 180 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष होती है।

– गिनी घास को हेड लुसर्न के साथ बीच की फसल के तौर पर उगाया जा सकता है जिसमे तीन और एक अनुपात रखा जाता है और दोनों की एक साथ कटाई कर ली जाती है और पशुओं को खिलाया जाता है।

 

पारा घासः-

– यह घास चारा सदाबहार और आदर्श है और आर्द्र वातावरण में बढ़ने के लिए आदर्श है।

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– इसकी पैदावार मौसम के अनुसार जलमग्न घाटियों और तराई या निचले क्षेत्रों में की जा सकती है। यह घास जल जमाव और लंबे समय तक बाढ़ को सहने में सक्षम है।

– बंजर या अर्ध बंजर इलाकों में शुष्क भूमि से बचना चाहिए क्योंकि इस तरह की मिट्टी में यह विकसित नहीं होता है।

– यह घास ठंड को लेकर बेहद संवेदनशील है और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसका विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।

– हरे चारे की उच्च पैदावार के लिए यह जल जमाव वाली मिट्टी को पसंद करती है। यह बलुई मिट्टी में भी विकसित हो जाती है।

– इस घास की सबसे बड़ी खामी ये है कि, इसमे बीज समायोजन बहुत कमजोर है और खासकर तना के कलम की वजह से इसका फैलाव हो पाता है।

– इसे पूरे साल किसी भी वक्त लगाया जा सकता है और सिर्फ यह ध्यान रखना है कि सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो।

– इस घास में, कोई भी संकर फसल उपलब्ध नहीं है।

– पतली टहनियों का इस्तेमाल पौधा रोपण सामग्री के तौर पर किया जा सकता है और दो-तीन गांठों के साथ तने को 45 से 60 सेमी की कतार में 20 सेमी की दूरी में लगाना चाहिए। तना को भीगी मिट्टी में दबाकर लगाया जा सकता है और ऊपर की ओर निकले दो किनारे बाहर छोड़ देना चाहिए।

– एक हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपन के लिए 900 से 1000 किलोग्राम तने की कलम की जरूरत पड़ेगी।

– पहली कटाई पौधारोपण के 70 से 80 दिनों के बाद तैयार हो जाती है उसके बाद कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल के बाद की जा सकती है। एक साल में करीब 6 से 9 बार फसल की कटाई होती है और एक साल में प्रति हेक्टेयर 90 से 100 टन हरे चारे का उत्पादन हो जाता है।

– आमतौर पर इस घास को हरे चारे के तौर पर ही खिलाया जाता है और यह संरक्षण करने या पुआल या परिरक्षित करने के मकसद से अच्छा नहीं होता है।

 

ब्लू बफेल घासः-

– इस तरह घास की किस्म चरागाह की भूमि के लिए अनुकूल है और सदाबहार होती है।

– इस घास की खेती के लिए अच्छी तरह से सूखी हुई मिट्टी जिसमे कैल्सियम की उच्च मात्रा शामिल हो वह अनुकूल होती है।

– इस फसल में प्रति हेक्टेयर 5 से 7 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है।

– आमतौर पर, पहली कटाई बुआई के 70 से 75 दिनों के बाद की जा सकती है और अगली 4 से 5 कटाई फसल की बढ़ोत्तरी पर निर्भर करती है।

– इस घास की पैदावार एक साल में 4 से 5 बार की कटाई के बाद प्रति हेक्टेयर 35 टन तक होती है।

 

पेड़ वाली फसल से हरे चारे का उत्पादनः-

  1. सुबाबुल चाराः-

– यह सबसे तेज गति से बढ़ने वाला चारे वाला पेड़ है जो अधिकांशतौर पर बीज का उत्पादन करता है।

– इस पौधे को लगाने का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई का महीना है।

– सुबाबुल की मुख्य किस्म में हवाईयन जायंट और सीओ 1 शामिल है।

– वर्षा प्रभावित क्षेत्र में अनुकूल किस्में के 8, जायंट आईपीएल और सीओ 1 है।

– बीजारोपन के 6 महीने के बाद इसके पौधे पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। हालांकि, शुरुआती कटाई तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि तना का व्यास कम से कम तीन मीटर ना हो जाए या फिर पौधा एक बीज उत्पादन का चक्र पूरा कर ले।

– दूसरी कटाई मौसम और विकास को देखते हुए 45 से 80 दिनों के भीतर किया जा सकता है।

– अगर क्षेत्र अकाल पीड़ित है तो पेड़ को दो साल तक बढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए ताकि उसकी जड़ें गहराई तक समा सके।

– पेड़ की लंबाई जमीन के स्तर से 95 से 100 सेमी की ऊंचाई तक होनी चाहिए।

 

 

 

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