बकरियों के खानपान में देखरेख

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बकरियों को खायचारे के शुष्क पदार्थ की मात्रा का चार गुना पानी की आवश्यकता होती है, परन्तु दुधारू बकरियों को प्रत्येक लीटर दूध के लिये 1.3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पूरे समय साफ पानी उपलब्ध करायें।
पानी के संरक्षण एवं उपयोग की दृष्टि से बकरियाँ अन्य पशुओं की अपेक्षा अधिक योग्य पशुु है, क्योंकि बकरी शरीर में जल का उपयोग धीमी दर से होता है, इसी कारण बकरियों में जल की कमी को सहन करने की क्षमता अधिक पाई जाती है।
अलग-अलग नस्ल की बकरियों में सेवन प्रवृत्ति में भी भिन्नता पाई गई है, उदाहरण के लिये सानेन बीटल संकर नस्लें गेहूं के भूसे का सेवन नहीं करती है, परंतु जमुनापारी एवं बीटल नस्ल की बकरियाँ बड़े चाव से इसे खाती हैं।
भेड़ों की अपेक्षा बकरियों के आमाशय (पेट) की क्षमता कम होती है, अत: प्रतिदिन का आहार तीन-चार बार में प्रदाय करना उचित होता हैं।
सांद्र मिश्रण जिसमें की स्टार्च युक्त अनाज का अनुपालत ज्यादा है या शीरा मिला हुआ है जो यूरिया का प्रयोग नवजात के स्त्रोतों के रूप में किया जा सकता है बकरी आहार में कुल प्रोटीन मात्रा का 30-40 प्रतिशत तक प्रोटीन, यूरिया द्वारा बिना किसी नुकसान के दिया जा सकता है, यूरिया का प्रयोग बकरी आहार मे 4 माह की उम्र उपरांत ही किया जाता हैं।
दुधारू बकरियों के आहार में चारे एवं दाने का संतुलन बहुत आवश्यक है इन नस्लों के आहार में चारे एवं दाने का निर्धारित अनुपात क्रमश: 60 एवं 40 प्रतिशत होना अधिक लाभदायक है।
बकरी के आहार में दाने या किसी अन्य नये आहार या यूरिया इत्यादि का समावेश त्वरित रूप से नहीं करें एवं धीरे-धीरे प्रारम्भ करें।
बकरियों के आहार में दाना मिश्रण की मात्रा उपलब्ध चारे की गुणवत्ता एवं मात्रा पर निर्भर करती हैं पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध होने पर दाने की मात्रा आधी की जा सकती है।
विभिन्न दैहिक अवस्थाओं के अनुसार पोषण
बकरियों की विभिन्न उत्पादन अवस्थाओं में व्यवहारिक आहार प्रब्रंध उपलब्ध खाद्य संसाधनों की मात्रा व गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अधिकांश उष्ण-कटिबंधीय चरागाहों तथा अन्य आहार स्त्रोतों से ऊर्जा की मात्रा रखरखाव के लिये ही पर्याप्त होती है परंतु तथा विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं के लिए किसी रूप में अनुपूरक आहार देना बहुधा आवश्यक हो जाता है। अच्छी गुणता के फलीदार चारे, पेड़़-पौधों की पत्तियाँ व फलियाँ मूल्यवान आहार स्त्रोत है तथा उनका प्रयोग अधिकतम करें। इसके अतिरिक्त सहउत्पाद जैसे अरहर भूसा, मूंगफली की लतायें, चने का भूसा, साइलेज आदि बहुत उपयोगी होते है। इनके आहार का 50 से 70 प्रतिशत अच्छी घासों से मिलना चाहिए। मोटे चारे, फलीदार चारे व पेड़ की पत्तियों की राशन में प्रमुखता होने पर खनिज अनुपूरक द्वारा कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीज, जिंक, कॉपर, लोहा, सैलीनियम, आयोडीन और कोबाल्ट देना जरूरी हो जाता है।

नवजात मेमनों की पोषण पद्धति ( जन्म से 90 दिनों तक )
उम्र (दिनों में) शारीरिक भार (किग्रा) खान-पान की आवृत्ति दूध (मिली) स्टार्टर आहार हरा चारा
0-7 1-3 2-3 बार इच्छानुसार – –
8-15 3-4 2 बार 250-300 इच्छानुसार –
15-30 4-5 2 बार 300-350 इच्छानुसार इच्छानुसार
31-60 5-7 2 बार 350-400 इच्छानुसार इच्छानुसार
61-90 7-10 2 बार 200 इच्छानुसार इच्छानुसार
जन्म से तीन माह तक के मेमनों के आहार –
बकरी के बच्चे पैदा होने के 1-2 घंटे के अंदर उन्हे माँ का प्रथम दूध चीका या खीस पिलायें। खीस में प्रोटीन, खनिज एवं विटामिन प्रचुर मात्रा में विधमान रहते हैं इन तत्वों के अतिरिक्त इसमे रोग प्रतिरोधक तत्व भी होते हैं जो नवजात को रोगों से लडऩे की शक्ति प्रदान करते हैं। नवजात मेमनों को जन्म के सात दिनों तक माँ के साथ रखकर उनको इच्छानुसार चीका व दूध पिलायें।

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सात दिनों के बाद में से अलग करके सीमित मात्रा में दिन में 2-3 बार दूध पिलाने हेतु छोड़ा जाता है या शरीर भार के 1/10 भाग बाटल से दूध पिलाया जाता है इस सीमित मात्रा में दूध पिलाने के साथ-साथ नवजात मेमनों को एक विशेष दाना मिश्रण देते हैं जो कि क्रीप/स्टार्टर आहार कहलाता है। स्टार्टर या क्रीप दाना बनाने का फार्मूला निम्न प्रकार है।

आहार के अवयव
प्रतिशत संघटन
पिसी मक्का 60 40 15
जौ/जई – 20 40
मूँगफली खली 20 20 20
मछली चूर्ण 10 10 10
शीरा – – 10
चापड़/दाल चुनी 7 7 2
खनिज लवण 2 2 2
नमक 1 1 1
स्त्रोत: एनिमल न्यूट्रिशन इन ट्रोपिक्स लेखक डॉ एस के रंजन
ऊपर बतायी गयी सामग्रियों का दर्रा बनाकर उचित मात्रा के अनुसार आपस में मिला दें। दाना तैयार करते समय ध्यान रखना है कि सामग्री पुराना या फफूंदी लगा न हो।

अनाथ बच्चों की आहार व्यवस्था

कुछ बकरियाँ प्रसव के तुरंत बाद बच्चे देकर किसी कारणवश मर जाती है। ऐसे अनाथ बच्चों को उन बकरियों से दूध पिलाने का प्रयत्न करना चाहिये जिनके बच्चे या तो मर चुके हों अथवा जो पर्याप्त दूध देने योग्य हों। फ्रांस में कुछ बकरी पालक बकरियों का खीस संग्रह कर रख लेते हैं तथा अनाथ बच्चों को खिला देते हंै ताकि उनमें भी रोगों के प्रति प्रतिरोधी शक्ति का विकास हो सके। अनाथ बच्चों के लियेे उपयुक्त बकरी न मिलने की स्थिति में उन्हे हाथ से ताजा किन्तु हल्का गरम गाय दूध पिलाया जा सकता है। प्रारम्भ में लगभग 100 मिली दूध प्रति 3-4 घंटे के अंतराल पर पिलायें। दूध पिलाते समय हाथ व बरतनों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

चार से छह महीनों के मेमनों का आहार

बच्चों को लगभग 3 माह की आयु अथवा जन्म भार से तिगुने वजन होने पर एक दम दूध छुड़वाना सर्वाधिक लाभप्रद होता है, इस समय मेमने 200 से 250 ग्राम दाना प्रतिदिन खाने लगते हंै। यह समय अवधि बकरियों में वृद्धि की होती है और अच्छी वृद्धि लेने के लिए भोजन में प्रोटीन की मात्रा पशु की अवश्यकतानुसार हो इसलिए दलहनी चारे जैसे मसूर, अरहर की पत्तियाँ, बरसीम, रिजका इत्यादि देना बहुत जरूरी है। आवश्यक प्रोटीन की मात्रा को पूरा करने के लिए दाना देना भी जरूरी है, ऐसे दाने को वृद्धि आहार कहते हैं जो निम्नानुसार बनाया जा सकता है ।

तत्व प्रतिशत भाग
चना/मसूर 50 – 30 12
दाल चुनी – – 30 35
जई या जौ – 50 30 10
चोकर 30 20 – 30
मूँगफली की खली 10 10 – 5
शीरा 7 17 7 5
खनिज लवण 2 2 2 2
नमक 1 1 1 1

सात से दस माह तक के मेमनों का आहार

इस समय जो दाना देते है उसे फीनिसर दाना कहते है समान्यत: ऐसा माना जाता है की कुल शरीर भार का एक तिहाई इसी अवधि में प्राप्त होता है इसलिए आहार आवश्यकतानुसार दें। अगर वसीय माँस प्राप्त करना हो तो आहार मे कुल शुष्क पदार्थ का 20-25 प्रतिशत मोटे चारों का समावेश करें । इस अवधि के सम्पूर्ण आहार मे लगभग 5-6 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन तथा 60 प्रतिशत कुल पाच्य तत्व होना चाहिए। एक आदर्श आहार व्यवस्था के अंतर्गत बकरों से उचित एवं अच्छी पैदावार लेने हेतु उन्हे अच्छी गुणवत्ता वाले दलहनी चारे के हे के साथ-साथ 200 से 300 ग्राम अनाज जिसमे 1.5 प्रतिशत नमक एवं 1.5 प्रतिशत खनिज लवण मिले हो प्रति पशु प्रतिदिन देना अवश्यक है। इस प्रकार के आहार से बकरों के वजन में वृद्धि के साथ-साथ उनके शरीर पर चमक भी उत्पन्न होगी जो अच्छा लाभ देगी।

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शुष्क बकरियों की आहार व्यवस्था

बकरी पोषण से संबंधित कुछ सावधानियाँ

एक ही चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक चरने से रोकें, क्योंकि ऐसा करने से इनमे कृमि रोग होने की संभावना बड़ जाती है।
बकरियाँ ठंड और बरसात के प्रति काफी संवेदनशील होती हैं, अत: अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिए भेजें। बरसात में गीली जगह, दलदल में चराई नहीं करायें।
बीमार बकरी को अन्य बकरियों से अलग रखें और उन्हे चरने भी नहीं भेजें।
गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह व बच्चा जनने के दो सप्ताह तक चरने नहीं भेजें।
नियंत्रित प्रजनन के लिए बकरी व बकरे को साथ में चरने नहीं भेजें या उन्नत नस्ल के बकरों को साथ भेजें।
बकरियों को चराने के लिये अच्छे चरागाह में चराना बहुत जरूरी है। उनको हर दिन 6 से 7 घंटा चरायें।
हर रोज बकरियों के जाने के बाद उनके बाड़े की सफाई अच्छे से करें।
जहां बकरियों को चरने के लिये छोडं़े उस जगह को पहले से देखकर निश्चित कर लें कि वहां बकरी के चरने के लिये पर्याप्त चारा हो।
बकरियाँ और अन्य जाति के बड़े पशुओं साथ-साथ न चरायें।
बकरियों को छोडऩे से पहले दाने की आधी मात्रा खिलायें और बकरियाँ वापस आने के बाद आधी मात्रा दें।
जिन बकरों का वजन कम हो, और जिनकी शरीर बड़त बराबर न हो। ऐसे बकरों का अपने पशु चिकित्सक के सहायता से खस्सी करवायें।
बरसात के दिनों में बकरियों को सूखा चारा जैसे चना भूसा, तुवर का भूसा, 400 से 500 ग्राम प्रति बकरी के हिसाब से खाने के लिये दें।
ऐसी बकरियाँ जिनसे दूध उत्पादन नही हो रहा एवं ब्याने में लगभग दो महीने से ज्यादा समय बाकी है को सामान्य प्रकार के आहार की आवश्यकता होती है जिससे की ये अपने शरीर भार को बनाए रखे । इस प्रकार की बकरियों को प्रतिदिन लगभग 500 ग्राम दलहनी या एक किग्रा अदलहनी हरा चारा, 500 से 600 ग्रा. दलहनी भूसा तथा लगभग 100 ग्रा. दाना मिश्रण की आवश्यकता होगी।

गाभिन बकरियों की आहार व्यवस्था

बकरी पालन की व्यावसायिक सफलता, मादा पशु की प्रजनन क्षमता एवं उसके सतत् प्रजनन चक्र पर निर्भर करती है। सुचारू प्रजनन चक्र के लिए उन्हें उचित पोषण देना आवश्यक है। सगर्भ शुष्क बकरियों के आहार पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है ताकि उनके शरीर में आगामी दूग्धस्त्रावण तथा गर्भपोषण हेतु पर्याप्त पोषक तत्व आरक्षित रहें। गर्भावस्था में उचित आहार प्रबन्ध का प्रभाव बच्चों के जन्म के वजन, उत्तरजीविता, वृद्धि क्षमता तथा कुल दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है। बकरी का गर्भकाल 5 माह का होता है। ब्याने की तिथि से लगभग 60 दिन के बाद बकरी को दोबारा प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गाभिन करा दें। गाभिन कराने के तुरन्त बाद 15 से 20 दिन तक 200 से 300 ग्राम दाना मिश्रण तथा 300 से 400 ग्राम हरा-चारा भूसे में मिलाकर प्रतिदिन देें। गर्भावस्था के अंतिम 6 से 8 सप्ताह में पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। इस समय गर्भ में शिशु की वृद्धि तीव्र गति से होती है, इसलिये इस समय अतिरिक्त पोषक तत्व, ऊर्जा, प्रोटीन और विटामिन शिशु की सामान्य वृद्धि और माँ के उचित शरीर भार बनाये रखने के लिये आवश्यक होता है।

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सगर्भ बकरियो को अच्छे चरागाह, पेड़-पौधों की पत्तियों और घासों पर रखना चाहियें । ठंड के दिनों में प्राय: चरागाहों में घास सूख जाती है अत: उन्हे पर्याप्त मात्रा में शीर्षचारे, फलियाँ, आहार व चने का भूसा, आदि खिलाना आवश्यक है। यदि सम्भव हो तो फलीदार प्रोटीन युक्त चारे बरसीम, रिजका, जई आदि खिलाये जा सकते हैं।

दुधारू बकरी का आहार

दुधारू बकरी को सामान्य बकरी से ज्यादा पौष्टिक और संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। सामान्यत: प्रति एक किलो दूध उत्पादन पर उन्हे 0.3 से 0.5 किलो दाना मिश्रण देना पर्याप्त होता है। दाना मिश्रण की मात्रा को दिन में दो बराबर भागो में बाँट कर दें। दूध देने वाली बकरियों को दलहनी हरा चारा कम से कम एक किलोग्राम प्रति दिन प्रति बकरी जरूर दे यदि यह उपलब्ध नहीं है तो उस स्थिति में दलहनी चारो से बनी हे खिलाकर बकरियों की पोषक तत्वों की अवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

प्रजनन हेतु बकरे

प्रजजन में काम आने वाले बकरे को अच्छा एवं संतुलित आहार की जरूरत होती है। प्रजनन ऋतु से करीब 2 सप्ताह पूर्व लगभग 500 ग्राम रातिब प्रतिदिन देना लाभप्रद है, विशेषकर जब एक ही बकरा कई बकरियों में प्रजनन हेतु प्रयुक्त किया जाता है। बकरा जब उपयोग में नहीं लाने का समय हो तो आहार की मात्रा कम कर सकते हैं।

बकरी पोषण में खनिज लवण का उपयोग

यह बात समझने योग्य है कि किसी भूदृभाग मे खनिज लवणों की कमी, क्षेत्र के उगाये जाने वाले चारे में परिलक्षित होती है जो पुन: क्षेत्र के पशुओं मे रोग के रूप प्रदर्शित होती है। मृदा मे खनिज लवणों की कमी क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती है अत: यह आवश्यक है कि किसान अपने कीमती बकरियों को वैज्ञानिकों के परामर्श के अनुसार, क्षेत्र के अनुसार विकसित किये गये खनिज लवणों का मिश्रण चारे व दाने के साथ प्रदान करें जिससे खनिज की पूर्ति हो सके। अत: राज्य क्षेत्र के अनुसार विकसित खनिज लवण मिश्रण आईएसआई बाजार में उपलब्ध है। इनका प्रयोग 10-20 ग्राम रोजाना बकरियों को दाने के साथ मिलाते रहें, जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

खनिज मिश्रण बनाने का नमूना
खनिज मिश्रण प्रतिशत
हड्डी का चूरा 25
बारीक पिसा हुआ चूना या खडिय़ा 35
साधारण पिसा हुआ नमक 20
गंधक 5
लोह ऑक्साइड 2
उपरोक्त अवयवों को अच्छी प्रकार से मिलाकर करीब 2.5 किलो ग्राम प्रति क्ंिवटल संतुलित सांद्र आहार बनाने के लिए उपयोग करें।

डॉ. अशोक कुमार पाटिल
डॉ. आर. के. जैन

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