राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एन ए डी सी पी ) का उद्देश्य एवं आवश्यकता

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राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एन ए डी सी पी ) का उद्देश्य एवं आवश्यकता

डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 11 सितंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गो-अनुसंधान संस्थान मथुरा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का इस उद्देश्य के साथ शुभारंभ किया था, कि खुर पका मुंह पका रोग अर्थात एफएमडी और संक्रामक गर्भपात अर्थात ब्रूसेलोसिस जैसी पशुओं की अति खतरनाक बीमारियों का समूल उन्मूलन किया जा सके। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों एवं पशुपालकों को सशक्त बनाना तथा उनकी आय को दोगुना करना है।
एन ए डी सी पी के दो मुख्य उद्देश्य हैं
१.सन 2025 तक इन दोनों बीमारियों का नियंत्रण करना।
२.सन 2030 तक इन दोनों बीमारियों का देश से उन्मूलन करना है।
विश्व में सबसे अधिक पशुधन लगभग 125 करोड़ से अधिक भारत में पाया जाता है। परंतु पशुओं की उत्पादकता कम होना और खतरनाक पशु रोगों का होना, आर्थिक हानि का मुख्य कारण है।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य 500 मिलियन पशुधन का टीकाकरण करना है जिसमें गाय, भैंस, भेड़, बकरी एवं शूकरो का खुरपकामुंहपका रोग के नियंत्रण के लिए टीकाकरण करना है। इसके अतिरिक्त पशुजन्य माल्टा फीवर से बचाव हेतु प्रत्येक वर्ष दुधारू पशुओं के 36 मिलीयन गाय एवं भैंस की मादा बछिया या पड़िया को ब्रूसेलोसिस का टीका लगाया जाना है।
इस कार्यक्रम की 100% वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। जिसमें लगभग 12652 करोड़ रुपए 5 वर्षों के लिए सन 2024 तक खर्च किए जाएंगे ।

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खुर पका मुंह पका रोग( एफएमडी) :
यह पशुओं का अति संक्रामक विषाणु जनित रोग है, जो गाय, भैंस, भेड़,बकरी, सूकर एवं अन्य फटी खुरी वाले पशुओं में होता है। वयस्क पशुओं में एफएमडी सामान्यतः पशु की मृत्यु नहीं करता है परंतु पशु को बहुत अधिक कमजोर कर देता है जिस कारण से उसका दुग्ध उत्पादन बहुत कम हो जाता है जिससे पशुपालक को, काफी आर्थिक हानि होती है। और पशुपालक पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है।
संक्रमित पशु को तेज बुखार मुंह में छाले एवं घाव जो कि उनके थनो और खुरों, के बीच हो जाते हैं।। संक्रमित पशु के उत्सर्जित पदार्थ एवं स्राव जैसे लार एवं उनकी स्वास के द्वारा भी स्वस्थ पशु को संक्रमण हो सकता है। एफएमडी अर्थात खुरपका मुंहपका रोग के आउटब्रेक को नियंत्रित करने के लिए, एवं एफएमडी के संचरण को रोकने के लिए नए पशुओं को पुराने पशुओं में मिलाने से पूर्व क्वारंटाइन करने के बाद टीकाकरण करके पुराने झुंड में मिलाना है। पशु के आवास की नियमित रूप से साफ सफाई एवं विसंक्रमित , किया जाना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इस बीमारी की मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग की जानी है एवं प्रभावी टीकाकरण व्यवस्था का उपयोग करना है।

संक्रामक गर्भपात/ ब्रूसेलोसिस:
यह एक जुनोटिक अर्थात पशुजन्य बीमारी है। जो पशुओं से मनुष्यों में माल्टा फीवर नामक बीमारी उत्पन्न करती है । पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अनुसार यह देश के विभिन्न भागों में एंडेमिक की तरह है । ब्रूसेलोसिस द्वारा पशुओं की अंतिम गर्भावस्था में गर्भपात होने के कारण नवजात बच्चे पशुधन की संख्या में नहीं जुड़ पाते हैं।
बीमारी को नियंत्रित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ब्रूसेलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम में गाय और भैंस की 4 से 8 माह की मादा पशुओं में 100% टीकाकरण जीवन में केवल एक बार करना है। इसके अतिरिक्त कुछ जगहों पर परीक्षणोंंपरॉंत पॉजिटिव पाए जाने वाले पशुओं की कलिंग करनी है, अर्थात उनको पशु समूह से अलग करना है।

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कार्यक्रम की आवश्यकता:
उपरोक्त दोनों ही बीमारियों का दूध और अन्य पशुधन उत्पादों के व्यापार पर प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि कोई गाय या भैंस एफएमडी से संक्रमित हो जाती है तो वह दूध देना लगभग बंद कर सकती है और यह रोग 4 से 6 महीने तक रह सकता है। इसके प्रभाव से किसान को काफी आर्थिक नुकसान हो सकता है। केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम को किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है।

पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम

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